डा.भीमराव अम्बेडकर .B. R. Ambedkar. lakheempur kheeri
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बोधिसत्व बाबासाहब डा.भीमराव अम्बेडकर का लंदन के प्रथम गोलमेज सम्मेलन में भाषण बहुत ही हृदयस्पर्शी था,उन्होंने सभा में सिंह के समान गरजते हुए सभा के माध्यम से सारी दुनियाँ के लोगों को बताया,कि मैं भारत के जिन लोगों का यहां प्रतिनिधित्व करनें आया हूँ,उनकी सँख्या भारत की पूरी जनसंख्या का पांचवां हिस्सा है,यह आबादी इंग्लैंड,फ्रांस की कुल आबादी से भी ज्यादा है,इस आबादी को इंसानों की गुलामों की तरह बना दिया गया है,आप लोग अपनें दासों को छूते हैं पर भारत में दासों को छुवा नहीं जा सकता है,इतनी बड़ी संख्या में होते हुए भी वे अपनें ऊपर होने वाले जुल्मों का किसी भी प्रकार विरोध नहीं कर सकते,ऐसा नहीं है कि जुल्मों का विरोध करनें का उनमें साहस नहीं है बल्कि जुल्मों का विरोध करने का उनका अधिकार ही छीन लिया गया है,और जिसका एकमात्र कारण है भारत में स्थापित अश्पृश्यता,उन्होंने अंग्रेजों की सर जमीं पर उन्ही के खिलाफ गरजते हुए कहा कि हम भारत के अश्पृश्य,अंग्रेजों के आने के पहले जैसे थे आज भी वैसे ही हैं,हम पर होने वाले नित नए नए जुल्म आज भी यथावत जारी हैं,ब्रिटिश सरकार नें अपनें डेढ़ सौ वर्षों के शासन के दौरान हमारे समाज का आज तक कोई भी सुधार नहीं किया है,हम पहले भी कुँए से पानी नहीं भर सकते थे और आज भी किसी कुँए से पानी नहीं भर सकते,आप बताइए क्या ब्रिटिश सरकार ने अपने डेढ़ सौ सालों के शासन में क्या हमें कुओं से पानी भरने का अधिकार दिलाया.?.मंदिरों में प्रवेश,पुलिस और सेना में प्रवेश वर्जित था,क्या ब्रिटिश सरकार नें हमें ये अधिकार दिलाये,हमारा अब और अधिक भला ऐसी सरकार से क्या होगा,हमारे इन प्रश्नों का उत्तर आप में से किसी के भी पास नहीं है,डा.बाबासाहब अम्बेडकर के यथार्थ ओजस्वी भाषण से सभा में उपस्थित सभी प्रतिनिधि स्तब्ध रह गए,और एक दूसरे का मुंह ताकनें लगे,अंत में डा.बाबासाहब नें कहा कि अब हमें भारत में ऐसी सरकार चाहिए जिसमें सभी की भागीदारी समान हो,आप कोई भी विधान बनाएं,लेकिन बहुमत के बगैर अब कोई भी विधान स्वीकृत नहीं हो सकता,अब भारत के अछूत भी मौजूदा ब्रिटिश राज्य के स्थान पर जनता के लिए,जनता के द्वारा संचालित जनता का ही राज्य चाहते हैं,वे मजदूरों और किसानों का शोषण करनें वाले पूंजीपतियों और जमींदारों की रक्षा करने वाली सरकार कतई नहीं चाहते,अब वह समय बीत गया जब आप फैसला करते थे,और भारत के लोग उसे मान लेते थे,अब आपका वह समय भारत में कभी वापस नहीं आएगा-(यह डा.बाबासाहब अम्बेडकर का ओजस्वी भाषण से ज्यादा अंग्रेजों के लिए खुली चुनौती थी जो उन्होंने उन्ही की सर जमीं से उन्हें दी थी,जिसे इनकार करनें की अंग्रेजों ने भी कभी हिम्मत नहीं दिखाई और बल्कि उन्होंने डा.बाबासाहब अम्बेडकर की चिंताओं और सवालों पर गंभीरता से विचार किया और मान्य किया
बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ व बहुजन प्रेरणा दैनिक समाचार पत्र (सम्पादक मुकेश भारती- सम्पर्क सूत्र 9336114041 )
लखनऊ : ( संदीपा राय – ब्यूरो रिपोर्ट ) दिनांक- 9 – दिसंबर – 2021 -गुरुवार ।
यह वाक्य सर्वमान्य है कि ‘ विद्या शक्ति है,लन्दन,अमेरिका तथा जर्मनी में ज्ञान -साधना के पश्चात् डॉ.अम्बेडकर ने इस रहस्य को जाना कि ” विद्या मनुष्य को शक्ति का मुकुट पहनाती है ” ब्रिटिश दार्शनिक बेकन के ये शब्द डॉ. साहेब के लिए स्वतः अपने ही अनुभव से पूर्णतः प्रामाणिक सिद्ध हो गये,वह इन शब्दों को दलितों के समक्ष दोहराते थे कि ” बेकन ने सत्य कहा है कि विद्या शक्ति है ” विद्या -विहीन आदमी पशु के समान होता है,विद्या ही मार्ग दर्शाती है और उत्थान की दिशा में ले जाती है,बेकन का उक्त कथन बाबासाहेब पर जितना चरितार्थ होता है उतना किसी अन्य पर नहीं,निर्धन , अछूत तथा उपेक्षित होने पर भी , वह सर्वोच्च स्थान पर पहुंचे ,ज्ञान के बादलों में घुलमिल गये ,किन्तु जमीन पर ही अपने आधार को उन्होंने बनाए रखा,उनकी महानता तथा उत्कृष्टता ,विद्या ही के परिणाम थे,भारतीय दर्शनों में तो विद्या को मोक्ष का मार्ग व साधन माना गया है,अविद्या बंधन है तो विद्या मुक्ति है,डॉ. अम्बेडकर ने विद्या को आध्यात्मिक-पारलौकिक मोक्ष का साधन नहीं माना,अपितु उसे सामाजिक अन्याय और आर्थिक शोषण से मुक्ति का हथियार बताया,वह शस्त्र के समान ही शक्तिशाली होती है. डॉ.अम्बेडकर की राय में नि:संदेह विद्या शक्ति है,किन्तु विद्या अकेली शक्ति नहीं होती, उसके साथ कार्य -शक्ति भी जुड़ी होती है अर्थात विद्या एवं कर्म की सुसंगति होनी चाहिए,तभी उससे वांछित परिणाम निकल सकते हैं डॉ.बाबासाहेब ने बहुत कुछ विद्यार्जन किया ,लेकिन उनके द्वारा कर्म करने की क्षमता ने ही उन्हें शक्तिशाली बनाया,स्पष्ट है कि कोई भी विद्वान पुरुष कर्म करने पर ही शक्तिशाली बनता है डॉ.अम्बेडकर की विद्या -शक्ति अपूर्व थी,उनकी विद्वत्ता अद्वितीय थी ,किन्तु उनकी कर्म -शक्ति उससे भी बढकर थी,दोनों का संयोग उनकी महानता का हेतु और साथ ही दलितों की मुक्ति का मार्ग सिद्ध हुआ,विद्या ज्ञान का दूसरा नाम है और ज्ञान सुख का सशक्त साधन है,ज्ञान अध्ययन द्वारा प्राप्त होता है तथा एकान्त निवास में भी उसे मनन से अर्जित किया जा सकता है,विद्या ( ज्ञान ) निरन्तर बढ़ने वाली प्रकिया है ज्ञान अग्नि के समान है जो प्रज्वलित होने पर और बढ़ती है इसलिए डॉ.बाबासाहेब ने कहा है कि विद्वान पुरुषों में ज्ञान की आकांक्षा उसके प्राप्त होने के उपरान्त में बढ़ती ही जाती है,वह जो सदैव अधिक प्रकाश दूंढता है ,अधिक पाता है और जितना ही अधिक प्रकाश ( ज्ञान या विद्या ) पाता है उतना ही अधिक और दूंढ़ता है,वह जगत के उन कुछ इनेगिने सुखी पुरुषों में है जो प्रत्येक काल में ज्ञान प्राप्त करते और देते हैं,इस लेने -देने का उतार -चढ़ाव ही मानव सुखों का सार है ऐसा आनन्द वही प्राप्त करता है जो नित्य नवीन ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा करता है और नित्य नया पाता है. संसार में सबसे अधिक सुखदायी वस्तुएं उत्तम विचार हैं और मानव जीवन में सबसे बड़ी कला यथा सम्भव श्रेष्ठ विचारों से सम्पन्न होना है ” डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर ने विद्या और कर्म को धैर्य से भी जोड़ा,विद्या तथा कर्म में धैर्य और अध्यवसाय बड़े आवश्यक है,महान कार्य मात्र शक्ति से ही सम्पन्न नहीं किये जाते ,किन्तु धर्य के साथ सतत कार्य करने से पूर्ण किए जाते हैं धैर्य एक बड़ा ही हितकारी सद्गुण है,जो अनेक संकटों में भी सफलता की ओर ले जाता है कैसी भी स्थिति आए ,अच्छी या बुरी ,सरल या कठिन ,धैर्य तथा सतत प्रयत्न से मनुष्य आगे बढ़ जाता है,डॉ.बाबासाहेब का जीवन सम्यक उद्देश्य से अभिभूत सभी परिस्थितियों में सतत परिश्रम , ज्ञानार्जन और सेवाभाव का इतिहास रहा है,सिद्धार्थ कॉलेज ( बॉम्बे ) के विद्यार्थियों को उपदेश देते हुए,डॉ.अम्बेडकर ने कहा था कि ” एक जीवन जिसमें बहाव नहीं है ,एक जीवन जिसमें उत्साह नहीं है,जिसमें विद्यार्जन नहीं अथवा जिसमें प्रयत्न और परिश्रम नहीं है ,वह निरर्थक है. मनुष्य को उत्कर्ष के लिए , अभिलाषी होना चाहिए । अभिलापा एक प्रोत्साहन है , सम्प्रेरणा है ,जो आदमी को आगे बढ़ने और पुरुषार्थ करने की ओर ले जाता है ” संक्षेप में डॉ.बाबासाहेब ने विद्या ,कर्म , परिश्रम ,साहस तथा धैर्य को उत्कृष्ट जीवन के आवश्यक तत्वों के रूप में केवल स्वीकार ही नहीं किया ,अपितु स्वयं अपने जीवन – काल में उन्हें व्यावहारिक कर दिखाया जो उनके दृढ़ -संकल्प का परिचायक है,ये सद्गुण ही, उन्हें उन दिनों वकालत तथा समाज सुधार जैसे कठिन मार्ग की ओर ले गये जिसमें उन्हें भारी प्रसन्नता हुई और सफलता भी मिली डा.बी.आर.अम्बेडकर”व्यक्तित्व एवं कृतित्व
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