मनुस्मृति दहन दिवस यानी बहुजन मुक्त्ति दिवस – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

मनुस्मृति दहन दिवस यानी बहुजन मुक्त्ति दिवस

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🌻”मनुस्मृति दहन दिवस” यानी “बहुजन मुक्त्ति दिवस” 🌻
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#आज ही के दिन 25 दिसम्बर 1927 को महाड़ तालाब आंदोलन के तहत बाब साहेब डॉ.भीम राव अम्बेडकर ने खुले तौर पर मनुस्मृति जलाई थी और ब्राह्मणवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष को एक नया आयाम दिया था | इस अवसर पर बाबा साहेब ने आन्दोलन में शामिल सभी कार्यकर्ताओं को पांच बातों की शपथ भी दिलायी थी…..

1.मैं जन्म आधारित चातुर्वर्ण में विश्वास नहीं रखता हूँ |
2. मैं जाति भेद में विश्वास नहीं रखता हूँ |
3. मेरा विश्वास है कि जातिभेद हिन्दू धर्म पर कलंक है और मैं इसे ख़त्म करने की कोशिश करूँगा |
4. यह मान कर कि कोई भी ऊँचा–नीचा नहीं है, मैं कम से कम हिन्दुओं में आपस में खान पान में कोई प्रतिबन्ध नहीं मानूंगा |
5. मेरा विश्वास है कि अछूतों का मंदिर, तालाब और दूसरी सुविधाओं पर बराबर का अधिकार है |

#मनुस्मृति दहन स्थल पर ये नारे भी लगाए गए थे…..

#छुआ-छूत का नाश हो |
#ब्राह्मणवाद को दफ़न करो |

25 दिसम्बर, 1927 को 9 बजे डॉक्टर अम्बेडकर , सहस्रबुद्धे और अन्य छः बहुजन साथियों ने एक एक पन्ना फाड़ कर मनुस्मृति को जला डाला। सभा मे मौजूद लोगों से डॉ.अम्बेडकर ने कहा था…..ब्राह्मणों को हमें यह समझाना चाहिए कि हमें इस तालाब से पानी पीने से क्यों रोका गया है | बाबासाहेब ने चातुर्वर्ण की व्याख्या की और घोषणा की कि हमारा संघर्ष चातुर्वर्ण को नष्ट करना है और यही हमारा समानता के लिए संघर्ष की दिशा में पहला कदम है | उन्होंने इस दिन की तुलना 24 जनवरी, 1789 के दिन से की जब लुई 16वें ने फ्रांस के जन प्रतिनिधियों की सभा बुलाई थी | इस मीटिंग में राजा और रानी मारे गए थे, उच्च वर्ग के लोगों को परेशान किया गया था और कुछ लोग मारे भी गए थे | बाकी भाग गए और अमीर लोगों की सम्पति ज़ब्त कर ली गयी थी तथा इस से 15 वर्ष लम्बा गृह युद्ध शुरू हो गया था। डॉ.अम्बेडकर ने ये भी कहा कि लोगों ने इस क्रांति के महत्त्व को नहीं समझा है | उन्होंने फ्रांस की क्रांति के बारे में विस्तार से बताया। यह क्रांति केवल फ्रांस के लोगों की खुशहाली का प्रारंभ ही नहीं था, इस से पूरे यूरोप और विश्व में क्रांति आ गयी थी | डॉ.अम्बेडकर ने यह भी कहा कि हमारा उद्देश्य न केवल छुआ – छूत को समाप्त करना है बल्कि इस की जड़ में चातुर्वर्ण को भी समाप्त करना है। उन्होंने कहा कि जिस तरह पैट्रीशियन्स ने धर्म के नाम पर प्लीबियन्स को बेवकूफ बनाया था ठीक उसी तरह ब्राह्मणों ने चातुर्वर्ण बनाकर समाज को जातियों में बाँट दिया | उन्होंने ये भी कहा था कि छूआ छूत का मुख्य कारण अंतर्जातीय विवाहों पर प्रतिबंध है जिसे हमें तोडना है | उन्होंने उच्च वर्णों से इस “सामाजिक क्रांति” को शांतिपूर्ण ढंग से होने देने, शास्त्रों को नकारने और न्याय के सिद्धांत को स्वीकार करने की अपील की। उन्होंने उन्हें अपनी तरफ से पूरी तरह से शांत रहने का आश्वासन दिया | ब्राह्मणवादी मीडिया ने प्रतिक्रिया में उन्हें “भीम असुर” तक कह डाला। डॉ.अम्बेडकर ने अपने कई लेखों में मनुस्मृति के जलाने को जायज़ ठहराया | उन्होंने ब्राह्मणों का उपहास किया और कहा कि उन्होंने मनुस्मृति को पढ़ा नहीं है और कहा कि हम इसे कभी भी स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने लोगों का ध्यान अछूतों पर होने वाले अत्याचार की ओर खींचते हुए कहा कि वे लोग मनुस्मृति पर चल रहे हैं | और जो यह कहते हैं कि यह तो चलन में नहीं है, तो फिर वे इसे क्यों महत्व देते हैं। जो लोग यह कह रहे थे कि मनुस्मृति जलाने से अछूतों को क्या मिलेगा ? तो इस पर उन्होंने उल्टा पूछा कि गांधी जी को विदेशी वस्त्र जलाने से क्या मिला? “ज्ञान प्रकाश ” अख़बार जिसने खान और मालिनी के विवाह के बारे में छापा था , को जला कर क्या मिला? न्यूयॉर्क में मिस मेयो की ” मदर इंडिया ” पुस्तक जला कर क्या मिला? राजनैतिक सुधारों को लागू करने के लिए बनाये गए “साइमन कमीशन” का बॉयकॉट करने से क्या मिला? उन्होंने कहा कि ये सभी विरोध दर्ज करने के तरीके थे और ऐसा ही विरोध हमारा भी मनुस्मृति के विरुद्ध था | डॉ.अम्बेडकर ने घोषणा की कि यदि मनुस्मृति जलाने से ब्राह्मणवाद ख़त्म नहीं होता तो हमें या तो ब्राह्मणवाद से ग्रस्त लोगों को जलाना पड़ेगा या फिर हिन्दू धर्म छोड़ना पड़ेगा। आखिरकार बाबा साहब को हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धम्म अपनाना पड़ा | समाज में आज भी जाति के आधार पर भेदभाव , जातिगत उत्पीड़न , अन्याय और अत्याचार विद्यमान है। इसलिए आज भी मनुस्मृति दहन प्रासंगिक विषय है | देश में जातिगत उत्पीड़न और अत्याचार ख़त्म करने के लिए , समानता के सभी संवैधानिक अधिकारों को पाने के लिए , जातिविहीन समाज स्थापित करने के लिए…..💥 आओ मिलकर मनुस्मृति जलाएँ 💥 ☀️ जय भीम !!! नमो बुद्धाय !!! जय भारत !!! ☀️”मनुस्मृति दहन दिवस” यानी “बहुजन मुक्त्ति दिवस”:-समृद्धभारत लखीमपुर खीरी : लेखक :राकेश कुमार चौधरी बांकेगंज लखीमपुर खीरी यूपी। 

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