अमेठी जनपद के जगदीशपुर विकास खंड के अंतर्गत विभिन्न गांवों में भगवान महात्मा बुद्ध का जन्म दिवस कोरोना लाकडाउन के चलते लोगों ने अपने अपने घरों में ही रहकर मनाया – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

अमेठी जनपद के जगदीशपुर विकास खंड के अंतर्गत विभिन्न गांवों में भगवान महात्मा बुद्ध का जन्म दिवस कोरोना लाकडाउन के चलते लोगों ने अपने अपने घरों में ही रहकर मनाया

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बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ व बहुजन प्रेरणा दैनिक हिंदी समाचार पत्र (सम्पदक मुकेश कुमार भारती -9161507983 )
अमेठी(रमेश कुमार ) बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ ब्यूरो चीफ


अमेठी जनपद के जगदीशपुर विकास खंड के अंतर्गत विभिन्न गांवों में भगवान महात्मा बुद्ध का जन्म दिवस कोरोना लाकडाउन के चलते लोगों ने अपने अपने घरों में ही रहकर मनाया

भगवान महात्मा बुद्ध की जयंती पर उन्हे याद किया गया अमेठी जनपद के जगदीशपुर विकास खंड के अंतर्गत विभिन्न गांवों में भगवान महात्मा बुद्ध का जन्म दिवस कोरोना लाकडाउन के चलते लोगों ने अपने अपने घरों में ही रहकर मनाया । भगवान महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के पास लुम्बिनी में हुआ था। भगवान गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था। बहुत ही कम उम्र में ही गौतम बुद्ध घर छोड़कर संन्यासी का जीवन जीने लगे थे। 27 वर्ष की आयु में ही गौतम बुद्ध संन्यासी बन गए थे। भगवान महात्मा बुद्ध ने ही बौद्ध धर्म की स्थापना की थी और अपना पहला उपदेश सारनाथ में दिया था। बुद्ध पूर्णिमा के दिन बौद्ध धर्म के आस्था रखने वाले लोग अपने घरों पर दीपक जलाते हैं और ग्रंथों का पाठ कर गौतम बुद्ध के बताए हुए रास्ते पर चलने की प्रेरणा लेते हैं। वैशाख मास की पूर्णिमा तिथि को बुद्ध पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था।ऐसा माना जाता है कि कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ को वैशाख पूर्णिमा की चांदनी रात में ज्ञान मिला था। इसके बाद यह तिथि बुद्ध पूर्णिमा के नाम से मशहूर हुई। बुद्ध का एक नाम तथागत भी है तथागत का अर्थ है – आत्मज्ञान की साधना में लीन रहते हुए जिसने परम सत्य को पा लिया हो। गौतम बुद्ध ने हजारों साल पहले ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने अनुयाइयों को जो पहला उपदेश दिया वह संदेश आज भी उतना ही सार्थक और प्रासंगिक है।उन्होंने बताया कि हर आदमी का जीवन दुखों से भरा हुआ है। सांसारिक जीवन में बीमारी, महामारी, शारीरिक कष्ट और प्रियजनों के बिछुड़ने की प्रक्रिया चलती रहती है और जिन चीजों में लोग सुख ढूंढ़ते हैं उनके मूल में आखिरकार दुख ही दुख निकलता है। मौजूदा वक्त में भी देखा जाए तो जो व्यक्ति खुद को जितना ज्यादा सुखों की चाह में लगा रहता है, उसका अंत उतना ही दुखभरा होता है। संसार दुखों और कष्टों से भरा हुआ है लेकिन दुखों का अंत संभव है। दुखों से मुक्ति मनुष्य के इसी जन्म में संभव है। बुद्ध का स्वर्ग-नरक, परलोक आदि में विश्वास नहीं था। बुद्ध ने बहुत आसान शब्दों में कहा कि हर चीज किसी न किसी कारण से पैदा होती है। इसलिए यदि कारण को ही समूल नष्ट कर दिया जाए तो उस चीज का कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाता।
चूंकि दुखों का मूल कारण अज्ञानता है अज्ञानता के समाप्त होते ही मनुष्य का निर्वाण हो जाता है।भगवान महात्मा बुद्ध कहते हैं कि निर्वाण का मतलब मृत्यु या मुक्ति नहीं बल्कि जीवन के दुखों से मुक्ति है।किसी भी व्यक्ति के दुखों को कोई दूसरा व्यक्ति चाहे तो वह कितना भी बड़ा महाज्ञानी हो नष्ट नहीं कर सकता। मनुष्य के जीवन में दुख-दर्द, उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। व्यक्ति को दूसरे की नहीं बल्कि अपने सहारे ही चलना पड़ता है। दूसरे की बैसाखी से मंजिल तक नहीं पहुंचा जा सकता।


रिपोर्ट -अमेठी ब्यूरो बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ उत्तर प्रदेश

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