20 मार्च 1927 महाड़ जल सत्याग्रह : बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने करोड़ों अछूतों को पानी पीने का हक़ दिलवाने के लिए किया था क्रांति ऐसी महान शख्सियत को शत् शत् नमन कल बाबा थे इसलिए आज हम है जय भीम जय संविधान
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महाड़ आंदोलन: डॉ भीमराव अम्बेडकर जी ने सदियों से चली आ रही अछूतों को तालाब से पानी पीने की रोक का बड़ी नीडरता से किया था बिरोध झेलना पड़ा ब्राह्मणवाद और सुप्रीम कोर्ट तक लड़े लड़ाई
उस समय दलितों/अछूतों यहां तक की दूसरे धर्म के लोगों को सावर्जनिक नलों, जलाशयों से पानी पीने से जल दूषित हो जाता था सदियों से चली आ रही अछूतों को तालाब से पानी पीने की रोक का बड़ी नीडरता से किया था बिरोध झेलना पड़ा ब्राह्मणवाद और सुप्रीम कोर्ट तक लड़े लड़ाई।

आज ही के दिन (20 मार्च, 1927) करीब 94 साल पहले बाबा साहब डॉक्टर भीमराव आंबेडकर (Baba Saheb Dr. Bhimrao Ambedkar) ने इस कुरूति के खिलाफ एक ऐसा आंदोलन किया, जो महाआंदोलन बन गया. यह ‘महाड़ आंदोलन’ (Mahad Andolan) या महाड़ सत्याग्रह (Mahad Satyagraha) कहलाया। दरअसल, जब अछूतों को किसी भी तालाब, जलाशय से पानी पीने की अनुमति नहीं थी। ये रोक संबैधानिक और धार्मिक रूप में थी जो ब्राह्मणो द्वारा लगाई गयी थी। जीने के लिए हिन्दू धर्म ने अछूतों के कुछ भी नहीं छोड़ा था कैसे थे ऋषि मुनि और कैसे थे मनु महाराज , क्या बिगाड़ा था अछूतों ने आखिर क्यों इतना जलते थे। क्यों सरे अधिकारछीन लिया था। ब्राह्मणो की सम्बेदनाएँ अछूतों के लिए मर चुकी थी क्या कर रहे थे ।राम और 600 सौ साल तक मुस्लिम और मुगलो का शासन हिंदुयों और मुसलमानो के रहनुमा लोगो की नज़र क्यों नहीं पड़ी। इस भारत में कैसे अकबर महान हो गया। किसी देवी देवता ने भी शुद्ध नहीं ली। कैसे अछूत वर्ग राणा प्रताप को प्रतापी शासक मान ले। भारतीय इतिहास में इतना बड़ा काला सच दुनिया के सामने 20 मार्च, 1927 को उस वक्त खुलासा हुआ जब बाबा साहब द्वारा महाड़ आंदोलन जलाशय के पानी को पीने के लिए आंदोलन करना पड़ा। कैसे दलित और अछूत वर्ग बिना पानी के सदियों तक जियें होंगे।
20 मार्च 1927 महाड़ जल सत्याग्रह : बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने करोड़ों अछूतों को पानी पीने का हक़ दिलवाने के लिए किया था क्रांति ऐसी महान शख्सियत को शत् शत् नमन कल बाबा थे

इसलिए 20 मार्च, 1927 के आंदोलन के लिए दिल से हम बाबा साहेब को जय भीम करते है। जलाशय से जानवर पानी पी सकता था लेकिन दलित और अछूत रूपी इन्शान नहीं। क्या इसी संस्कृति और सभ्यता को मनुवादी महान बताते नहीं थकते थे। इस आंदोलन के जरिये बाबा साहब ने हजारों साल पुरानी सवर्ण सत्ता (सामंती सत्ता) को चुनौती दी थी. सवर्ण जो अछूतों को उनके इंसान भी हक देने को तैयार नहीं थी, जो जानवरों को भी प्राप्त था… उसे दिलाने को संविधान निर्माता डॉ. आंबेडकर आगे आए और दलितों/अछूतों को एक किया। अभी भी कुछ जगहों पर यैसा नजारा देखने को मिल ही जाता है जैसे ग़ाज़ियाबाद में एक मंदिर के नल से मुस्लिम लड़के को पानी पीने जाने पर बेरहमी से पीटे जाने की घटना के बाद फिर से इसका जवाब तलाशा जा रहा है।
आज से करीब 94 साल पहले, 20 मार्च, 1927 को डॉ. आंबेडकर ने महाड़ स्थान पर चावदार तालाब से दो घूंट पानी पीया और हजारों वर्ष पुराने ब्राह्मणवाद के कानून को तोड़ा। यह इतिहास की एक बड़ी घटना थी। खास तौर अछूतों/दलितों के लिए उनके जीवन को बदलने की दिशा में बड़ा कदम भी था। महाड़ महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले में आता है। 20 मार्च, 1927 के दिन डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व में हजारों की संख्या में अछूत और दलित कहे जाने वाले लोगों ने सार्वजनिक तालाब चावदार से पानी पीया। डॉ. आंबेडकर ने सबसे पहले अंजुली से पानी पीया. फिर उनका अनुकरण करते हुए हजारों दलितों ने पानी पीया. ऐसा कर बाबा साहब ने अगस्त 1923 में बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल (ब्रिटिशों के नेतृत्व वाली समिति) द्वारा लाए गए एक प्रस्ताव, कि वो सभी ऐसी जगहें, जिनका निर्माण और देखरेख सरकार करती है, का इस्तेमाल हर कोई कर सकता है ब्रिटिशों के नेतृत्व वाली समिति 1923 के आधार पर इस आंदोलन को सफल पूर्वक किया। तालाब से पानी पीते हुए डॉ. आंबेडकर ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘क्या यहां हम इसलिए आए हैं कि हमें पीने के लिए पानी मयस्सर नहीं होता है? क्या यहां हम इसलिए आए हैं कि यहां के जायकेदार कहलाने वाले पानी के हम प्यासे हैं? नहीं! दरअसल, इंसान होने का हमारा हक जताने के लिए हम यहां आए हैं।
अछूतों के चावदार तालाब से पानी पीने की घटना को सवर्ण हिंदुओं ने ब्राह्मणवाद सत्ता के खिलाफ देखा। उन्होंने तालाब में पानी पीने की जुर्रत का बदला दलितों से हिंसक रूप से लिया। उनकी बस्ती में आकर खूब तांडव मचाया। लोगों को लाठियों से बुरी तरह पीटा। बच्चों, बूढ़ों यहां तक की औरतों को भी पीट-पीटकर लहूलुहान कर दिया। उनके घरों में तोड़फोड़ की. सवर्ण हिन्दुओं ने इल्जाम लगाया कि अछूतों ने चावदार तालाब से पानी पीकर उसे भी अछूत, अपवित्र कर दिया है. इसके बाद सवर्णों ने ब्राह्मणों के कहने पर पूजा-पाठ और पंचगव्य यानि गाय का दूध, घी, दही, मूत व गोबर से तालाब को फिर शुद्ध किया। बाबा साहब यहीं नहीं रूके. उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में करीब 10 वर्ष तक ये लड़ाई लड़ी और अंत में 17 दिसंबर 1936 को अछूतों को चावदार तालाब में पानी पीने का अधिकार मिला. यह अस्पृश्य समाज के लिए ऐतिहासिक जीत थी।
इस तरह महाड़ आंदोलन में चावदार तालाब से बाबा साहब के साथ हजारों दलितों/अछूतों का पानी वह ऐतिहासिक पल था, जिसने अस्पृश्य वर्ग में क्रान्ति का मार्ग प्रशस्त किया. यह एक प्रतीकात्मक क्रिया थी, जिसके द्वारा यह सिद्ध किया गया कि हम भी मनुष्य हैं और हमें भी अन्य मनुष्यों के समान मानवीय अधिकार हैं।
महाड़ का सत्याग्रह (अन्य नाम: चवदार तालाब सत्याग्रह व महाड का मुक्तिसंग्राम) भीमराव आंबेडकर की अगुवाई में 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के महाड स्थान पर दलितों को सार्वजनिक चवदार तालाब से पानी पीने और इस्तेमाल करने का अधिकार दिलाने के लिए किया गया एक प्रभावी सत्याग्रह था।[1] इस दिन को भारत में सामाजिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस सत्याग्रह में हजारों की संख्या में दलित लोग एवं सवर्ण लोग भी सम्मिलित हुए थे, सभी लोग महाड के चवदार तालाब पहुँचे और आंबेडकर ने प्रथम अपने दोनों हाथों से उस तालाब में पानी पिया, फिर हजारों सत्याग्रहियों ने उनका अनुकरण किया। यह आंबेडकर का पहला सत्याग्रह था।
सवर्णवादीयो द्वारा अछूतों को तालाब का पानी पाने के अधिकार से नकारा गया था, जबकि सवर्णवादी दलितों को हिंदू धर्म का हिस्सा मानते थे। सभी हिंदू जाति समूहों एवं अन्य धर्म के लोग मुस्लिम, ईसाई तक भी उस ताबाल का पानी पी सकते थे। ऐसी असमानता के विरोध में आंबेडकर ने क्रान्ति की पहली शुरूवात की।
हिन्दू जाति प्रथा में दलितों (जिन लोगो को दबाया गया हो समाजिक, राजनैतिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से) को समाज से पृथक करके रखा जाता था। उन लोगों को सार्वजनिक नदी, तालाब और सड़कें इस्तेमाल करने की मनाही थी। अगस्त 1923 को बॉम्बे लेजिस्लेटिव कौंसिल के द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया, कि वो सभी जगह जिनका निर्माण और देखरेख सरकार करती है, ऐसी जगहों का इस्तमाल हर कोई कर सकता है। जनवरी 1924 में, महाड जोकि बॉम्बे कार्यक्षेत्र का हिस्सा था। उस अधिनियम को नगर निगम परिषद के द्वारा लागु किया गया। लेकिन सवर्णवादीयो के विरोध के कारण इसे अमल में नहीं लाया जा सका।
1927 में अंबेडकर ने सार्वजनिक स्थानों पर पानी का इस्तेमाल करने के अपने अधिकारों पर जोर देने के लिए सत्याग्रह (अहिंसक प्रतिरोध) शुरू करने का फैसला किया। कोंकण के एक शहर महाड को इस आयोजन के लिए चुना गया था । सवर्ण समाज के ए वी चित्रे, समाज सेवा लीग के चितपवन ब्राह्मण जी.एन.सहस्रबुद्धे और मद्ठ नगर पालिका के अध्यक्ष रहे सुरेंद्रनाथ टिपनिस। महाड नगर पालिका के अध्यक्ष सुरेंद्रनाथ टिपनिस इन सभी ने अपने सार्वजनिक स्थलों को अछूतों के लिए खुला घोषित किया और अंबेडकर को 1927 में मड़ई में एक बैठक आयोजित करने के लिए आमंत्रित किया । बैठक के बाद वे ‘चवदार टैंक’ के लिए रवाना हो गए। अंबेडकर ने टैंक से पानी पिया और हजारों अछूतों ने उनका पीछा किया । अंबेडकर ने सत्याग्रह के दौरान दलित महिलाओं को संबोधित करते हुए बयान भी दिया।
उन्होंने उन सभी पुराने रीति-रिवाजों को छोड़ने को कहा और उच्च जाति की महिलाओं की तरह साड़ियां पहनने के लिए कहा । महाड में अंबेडकर के भाषण के तुरंत बाद दलित महिलाओं ने आसानी से अपनी साड़ियों को उच्च जाति की महिलाओं की तरह कपड़ा खाने का फैसला किया । लक्ष्मीबाई टिपनिस और इंदिराबिया चिटरे नाम की ऊंची जाति की ब्राह्मण महिलाओं ने दलित महिलाओं के पैरों को अपनी एड़ियों तक कवर करके ‘ ऊंची जाति की महिलाओं ‘ की पोशाक में मदद की । उसके बाद अंबेडकर और उनके अनुयायी शहर के एक हिंदू मंदिर में प्रवेश करने की योजना बना रहे थे। और सवर्णवादीयो का तर्क था कि अछूतों ने उससे पानी लेकर टैंक को प्रदूषित किया। टैंक को शुद्ध करने के लिए “गोमूत्र और गोबर” का इस्तेमाल किया गया। इन उत्पादों के मिश्रण वाले 108 बर्तनों को टैंक में खाली कर दिया गया । इसके बाद टैंक को सवर्णवादी उपभोग के लिए उपयुक्त घोषित किया गया ।
अंबेडकर ने 26-27 दिसंबर 1927 को मड़ई में दूसरा सम्मेलन आयोजित करने का निर्णय लिया। लेकिन जाति के सवर्णवादीयो ने उनके खिलाफ एक निजी संपत्ति के रूप में उस टैंक के खिलाफ मामला दायर किया । वह अपना सत्याग्रह जारी नहीं रख पा रहा था क्योंकि मामला न्यायालय में विचाराधीन था । 25 दिसंबर (मनुस्मृति दहन दीन) को अंबेडकर के मार्गदर्शन में शास्त्राभिषेक, विधि मनुस्मृती को विरोध स्वरूप जलाया। दिसंबर 1937 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि अछूतों को टैंक से पानी का इस्तेमाल करने का अधिकार है। दलित द्वारा पानी तक पहुंचने की जद्दोजहद अब भी जारी है। पानी तक पहुंच अभी भी कई स्थानों पर दलितों को मना किया जाता है और अगर वे वर्जित स्थानों से पानी पीने की कोशिश करते हैं तो उन्हें कई बार पीटा जाता है या मार दिया जाता है । 19 मार्च 1940 को डॉ अंबेडकर ने 14वें महागिर सत्याग्रह दिवस को सशक्तिकरण दिवस के रूप में याद करने के लिए महाद में रैली और जनसम्मेलन की व्यवस्था की। इस दिन महाअधिकर नगर निगम के अध्यक्ष के रूप में अभिभाषक विष्णु नरहरि खोडके ने एक समारोह का आयोजन किया और डॉ अंबेडकर को उनके “चवदार कथा सत्याग्रह“ और “मनुस्मृति दहन” और महामनुति दहन और अन्य आंदोलनों के लिए सम्मान पत्र (सम्मान पत्र) से सम्मानित किया । लेखक-मुकेश भारती एडवोकेट
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