गर्भ पात में महिला की मर्जी चलेगी
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संवाददाता : : : : :: Date ::1 .10 .2022:: गर्भ पात में महिला की मर्जी चलेगी
गर्भ पात में महिला की मर्जी चलेगी गर्भपात में अब महिलाओं की मर्जी चलेगी सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार लिवइन रिलेशनशिप से उपजे गर्भ को समाप्त करने का अविवाहित महिलाओं पूरा हक गर्भपात में अब महिलाओं की मर्जी चलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है। चाहे महिला विवाहित हो या अविवाहित, वह गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक गर्भपात करा सकती है। लिवइन रिलेशनशिप से उपजे गर्भ को महिला समाप्त कर सकती है।
बहुजन प्रेरणा दैनिक समाचार पत्र व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (सम्पादक- मुकेश भारती ) किसी भी शिकायत के लिए सम्पर्क करे – 9336114041
गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के दायरे से अविवाहित माहिलाओं को बाहर रखना असंवैधानिक है।मकसद पूरा होना चाहिए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एएस बोपन्ना और जेबी पारदीवाला की पीठ ने यह भी कहा कि शादीशुदा महिलाएं भी पति की जोर-जबरदस्ती और रेप का शिकार हो सकती हैं। इसलिए बलात्कार के अपराध की व्याख्या में वैवाहिक बलात्कार को भी शामिल किया जाए ताकि एमटीपी अधिनियम का असली मकसद पूरा हो। पीठ ने कहा, एमटीपी ऐक्ट के नियम 3 बी (सी) की व्याख्या प्रतिबंधात्मक तरीके से नहीं की जा सकती। और अविवाहित महिलाओं को 20 सप्ताह से अधिक के गर्भपात के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। अगर उन्हें अनुमति न दी गई तो यह संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन होगा।अदालत ने कहा कि कानून के नियम 3 बी (सी) की यदि इस समझ से व्याख्या की जाए कि यह विवाहित महिला पर ही लागू होता है तो इसका मतलब होगा कि अविवाहित महिलाएं यौन गतिविधियों में शामिल नहीं होतीं। यह संवैधानिक रूप से टिकाऊ नहीं है। इस प्रकार विवाहित और अविवाहित महिला के बीच इस कृत्रिम भेदभाव को कायम नहीं रखा जा सकता। महिलाओं को इन अधिकारों का मुक्त प्रयोग करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि प्रजननात्मक स्वायत्तता अविवाहित माहिला को भी वहीं अधिकार देती है तो जो विवाहित माहिला को हैं। फैसले में कोर्ट ने कहा कि गर्भ महिला के शरीर पर पलता है। इसकी कई परेशानियां होती हैं जिससे कमर में दर्द, कमजोरी आदि पैदा होते हैं। इसलिए इसे समाप्त करने का फैसला आवश्यक रूप से महिला के साथ ही जुड़ा है। यदि राज्य उसे अवांछित गर्भ को रखने के लिए मजबूर करता है तो यह उसकी गरिमा पर हमला है।एमटीपी अधिनियम के तहत दुष्कर्म पीड़िता, नाबालिग, तलाक या विधवा होने पर, विकलांग महिला, मानसिक रूप से कमजोर और विक्षिप्त महिला, गर्भ में विकृति होने पर और महिला के स्वास्थ्य को खतरा होने पर 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने की अनुमति दी गई है। वहीं, अविवाहित तथा विधवा गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक ही गर्भपात करा सकती हैं, जिन्होंने सहमति से संबंध बनाए हैं या बनाए थे। अब अदालत ने कहा, हम उन सात श्रेणियों में विवाहित ना होने बावजूद छोड़ दी गईं महिलाओं के लिए एक श्रेणी जोड़ना चाहेंगे, जिसमें 24 सप्ताह की गर्भावस्था तक महिलाएं गर्भपात करा सकती हैं।25 वर्षीय महिला की याचिका पर फैसला सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला मणिपुर निवासी और वर्तमान में दिल्ली में रह रही 25 वर्षीय एक महिला की याचिका पर सुनाया। महिला ने अपनी गर्भावस्था के बारे में पता चलने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया था और 24 हफ्ते के गर्भ को गिराने की इजाजत मांगी थी। हाईकोर्ट ने महिला को यह कहते हुए राहत देने से इनकार कर दिया था कि एक अविवाहित महिला है और सहमति से यौन संबंध से बच्चे को जन्म दे रही है। उसे 20 सप्ताह से अधिक उम्र के गर्भागर्भपात कराने वाली नाबालिग की पहचान न खोलें डाक्टर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन हमले की शिकार नाबालिग की पहचान डॉक्टर पुलिस रिपोटिंग के लिए न बताएं। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि एमटीपी के तहत आई नाबालिग की पहचान का खुलासा करना जरूरी नहीं है। कोर्ट ने कहा पोक्सो ऐक्ट की धारा-19 में यह जरूरी है लेकिन हम इस जरूरत को समाप्त कर रहे हैं।वस्था को समाप्त करने की अनुमति नहीं दी जा सकती। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने महिला को जुलाई में 24 हफ्ते का गर्भपात कराने की अनुमति दे दी थी।
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