शहर लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी का संक्षिप्त इतिहास – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

शहर लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी का संक्षिप्त इतिहास

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लखनऊ (Lucknow) भारत के उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी है। प्रशासनिक रूप से यह लखनऊ ज़िले के अंतर्गत आता है

नवाबों का शहर लखनऊ

लखनऊ उत्तर प्रदेश की राजधानी है और यह हमेशा एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है शहर के फारसी-प्यार शिया नवाबों द्वारा संरक्षित सभ्य रूप से शिष्टाचार, सुंदर उद्यान, कविता, संगीत और ठीक भोजन भारतीयों और दक्षिण एशियाई संस्कृति और इतिहास के छात्रों में अच्छी तरह से जाना जाता है। लखनऊ को लोकप्रिय रूप से नवाबों के शहर के रूप में जाना जाता है। इसे पूर्व के गोल्डन सिटी, शिराज-ए-हिंद और भारत के कांस्टेंटिनोपल के नाम से भी जाना जाता है ।

अफगानों द्वारा कणोज की विजय के बाद 12 वीं शताब्दी के अंत में, अवध ने ग़ज़नी के सुल्तान को सौंप दिया, और इसलिए दिल्ली के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। लखनऊ अवध प्रान्त का खूबसूरत शहर था। अवध समय समय पर मुस्लिम शासक के अधीन होने के बाद भी अपनी आजादी का मुद्दा उठाता था, लेकिन बाबर ने उनकी एक नहीं मानी और अवध मुग़ल साम्राज्य का एक सुबा या प्रांत बन गया था। लखनऊ समेत अवध प्रान्त को मुग़ल साम्राज्य के अधीन हो गया. अधीन होने के बाद अवध प्रान्त के सम्राटों ने अपनी सर्वोच्चता खो दी और कठपुतलियों बनकर गए और फिर उनके सामंतवादियों को कैदी बना लिया गया उठती हुयी आवाज़ को हमेशा हमेशा के लिए दबा दिया गया।

मुग़ल साम्राज्य के सभी मुस्लिम राज्यों और निर्भरताओं में, अवध का नया शाही परिवार था। यह शाही परिवार पूर्वी फारस के खुरासन से सदात खान नामक एक फारसी साहसी के वंश से निकले थे। मुग़ल की सेवा में ज्यादातर खुरासानियाँ व ज्यादातर सैनिक थे, और यदि सफल रहे तो वे अमीर पुरस्कार की आशा कर सकते थे। सदात खान इस समूह में सबसे सफल साबित हुए। 1732 में, उन्हें अवध प्रांत के राज्यपाल बनाया गया था। उनका मूल शीर्षक नाजीम था। जिसका मतलब है गवर्नर, लेकिन जल्द ही उन्हें नवाब बनाया गया था।
1740 में, नवाब को वाजिर या विज़ीर कहा जाता था, जिसका अर्थ है मुख्यमंत्री, और उसके बाद उन्हें नवाब वजीर के नाम से जाना जाता था। व्यवहार में, सदात खान के बाद से, यह पद अथवा खिताब आनुवंशिक होते चले गए थे, हालांकि सिद्धांत रूप में वे मुग़ल सम्राट के उपहार में थे, जिनके लिए निष्ठा का भुगतान किया गया था। एक नगज, या टोकन श्रद्धांजलि, हर साल दिल्ली भेज दी जाती थी, और शाही परिवार के सदस्यों को महान सम्मान के साथ सौंपा गया था।

दिल्ली में मुगल की ओर से कुछ हद तक स्वतंत्रता हासिल करना दुर्भाग्य से नहीं था, इसका मतलब यह था कि नवाब पूरी तरह से उनके शासन के तौर पर शासन कर सकते थे। उन्होंने केवल एक मास्टर को दूसरे के लिए बदल दिया था। ब्रिटिश शासक , कलकत्ता में स्थित ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में, लंबे समय से अवध की संपत्ति हड़पने के लिए हिंसक आँखों से देखते रहते थे । अवध प्रांत में हस्तक्षेप करने के लिए बहाने मुश्किल नहीं थे अवध बिंदु से सबसे भयावहता तब आया जब नवाब शुजा-उद-दौला ने बंगाल पर आक्रमण कर दिया। लेकिन 1757 में प्लासी में ब्रिटिश सेना की जीत हुई और 1764 में बक्सर के युद्ध ने नवाब को पूरी तरह से हराया दिया तो अवध ने बहुत जमीन खो दी और ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में चली गयी। आपसी संधि में दुश्मनी की सतह पर आपस में दोस्त बनगये , और नवाब वजीर को ब्रिटिश संसद में बहकाया गया क्योंकि सभी भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के मुख्य मूल स्थान को हटा दिया गया था।

नवाबों ने कई वर्षोंतक प्रयास किया फिर बाद में अंग्रेजो के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। ब्रिटिश सेना की सुरक्षा और युद्ध में सहायता के लिए भुगतान करने के लिए, अवध ने पहले चुनार का किला, फिर बनारस और गाजीपुर जिलों को छोड़ दिया, फिर इलाहाबाद में किला; हर समय नकदी सब्सिडी जो कंपनी को भुगतान नवाब की वृद्धि हुई और वृद्धि होती चली गयी ।

1773 में, घातक कदम लखनऊ के नवाब ने लखनऊ में कंपनी को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया और विदेश नीति पर सभी प्रकार से नियंत्रण कर लिया और वास्तविक शासक बन गया।

शुजा-उदौला के बेटे असफ-उद-दौला ने 1775 में फैजाबाद से लखनऊ तक राजधानी चलाई और पूरे भारत में इसे सबसे समृद्ध और शानदार शहरों में से एक बना दिया। वह हिला क्यों? एक लहर पर, यह कहा जाता है, क्योंकि वह एक प्रमुख मां के नियंत्रण से दूर जाना चाहता था। इस तरह के थ्रेड पर लखनऊ के महान शहर का भाग्य निर्भर था।

लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध का बिना युद्ध ही अधिग्रहण कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। 1850 में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश अधीनता स्वीकार कर ली। लखनऊ के नवाबों का शासन इस प्रकार समाप्त हुआ।

लखनऊ के नवाब असफ-उद-दौला

नवाब असफ-उद-दौला एक उदार और सहानुभूति वाले शासक थे, स्मारकों के एक सशक्त निर्माता और कला के एक भेदभाव संरक्षक थे। सूखे के समय में उन्होंने अपने विषयों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए अपने जटिल भौल-भौलिया और आसपास के मस्जिद के साथ बारिया इमामबाबा का निर्माण किया। रुमी दरवाजा अपने वास्तुशिल्प उत्साह की भी पुष्टि करते है।

लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय

लखनऊ शहर में लखनऊ जिले और लखनऊ मंडल के प्रशासनिक मुख्यालय भी स्थित हैं। लखनऊ शहर अपनी खास नज़ाकत और तहजीब वाली बहुसांस्कृतिक खूबी, दशहरी आम के बाग़ों तथा चिकन की कढ़ाई के काम के लिये जाना जाता है। 2006 मे इसकी जनसंख्या  2541101 तथा साक्षरता दर 68.63%  थी। भारत सरकार की 2001 की जनगणना, सामाजिक आर्थिक सूचकांक और बुनियादी सुविधा सूचकांक संबंधी आंकड़ों के अनुसार, लखनऊ जिला अल्पसंख्यकों की घनी आबादी वाला जिला है। कानपुर के बाद यह शहर उत्तर-प्रदेश का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है। शहर के बीच से गोमती नदी बहती है, जो लखनऊ की संस्कृति का हिस्सा है।

लखनऊ उस क्ष्रेत्र मे स्थित है जिसे ऐतिहासिक रूप से अवध क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। लखनऊ हमेशा से एक बहुसांस्कृतिक शहर रहा है। यहाँ के शिया नवाबों द्वारा शिष्टाचार, खूबसूरत उद्यानों, कविता, संगीत और बढ़िया व्यंजनों को हमेशा संरक्षण दिया गया। लखनऊ को “नवाबों के शहर” के रूप में भी जाना जाता है। इसे पूर्व की स्वर्ण नगर (गोल्डन सिटी) और शिराज-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है। आज का लखनऊ एक जीवंत शहर है जिसमे एक आर्थिक विकास दिखता है और यह भारत के तेजी से बढ़ रहे गैर-महानगरों के शीर्ष पंद्रह में से एक है। यह हिंदी और उर्दू साहित्य के केंद्रों में से एक है। यहां अधिकांश लोग हिन्दी बोलते हैं। यहां की हिन्दी में लखनवी अंदाज़ है, जो विश्वप्रसिद्ध है। इसके अलावा यहाँ उर्दू और अंग्रेज़ी भी बोली जाती हैं।
लखनऊ प्राचीन कोसल राज्य का हिस्सा था। यह भगवान राम की विरासत थी जिसे उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को समर्पित कर दिया था। अत: इसे लक्ष्मणावती, लक्ष्मणपुर या लखनपुर के नाम से जाना गया, जो बाद में बदल कर लखनऊ हो गया। यहां से अयोध्या भी मात्र 80 मील दूरी पर स्थित है। लखनऊ का नाम कैसे पड़ा इस पर मतभेद है। मुस्लिम इतिहासकारों के मतानुसार बिजनौर के शेख यहां आये और 1526 ए डी मे‌ बसे और रहने‌ के लिए उस समय के वास्तुविद लाखन पासी  की देखरेख में एक किला बनवाया ‌‌‌‌जो लाखन पासी  के‌ नाम से जाना‌ गया।समय‌ के‌ साथ धीरे-धीरे लाखन पासी  लखनऊ में परिवर्तित हो गया।प्राचीन हिन्दू साहित्य के अनुसार यहां भगवान राम के सौतेले भाई लक्ष्मण का‌ जन्म हुआ‌ था जो‌ लाखनपुर से बदलते बदलते लखनऊ हो गया जो अधिक सत्य प्रतीत होता है क्यों कि‌ आज तक किसी‌ वास्तुविद के नाम पर किसी नगर का नाम नहीं रखा गया।

लखनऊ के वर्तमान स्वरूप

लखनऊ के वर्तमान स्वरूप की स्थापना नवाब आसफ़ुद्दौला ने 1775 ई. में की थी। अवध के शासकों ने लखनऊ को अपनी राजधानी बनाकर इसे समृद्ध किया। लेकिन बाद के नवाब विलासी और निकम्मे सिद्ध हुए। इन नवाबों के काहिल स्वभाव के परिणामस्वरूप आगे चलकर लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध का बिना युद्ध ही अधिग्रहण कर ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। 1850 में अवध के अन्तिम नवाब वाजिद अली शाह ने ब्रिटिश अधीनता स्वीकार कर ली। लखनऊ के नवाबों का शासन इस प्रकार समाप्त हुआ।

सन 1902 में नार्थ वेस्ट प्रोविन्स का नाम बदल कर यूनाइटिड प्रोविन्स ऑफ आगरा एण्ड अवध कर दिया गया। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे यूनाइटेड प्रोविन्स या यूपी कहा गया। सन 1920में प्रदेश की राजधानी को इलाहाबाद से बदल कर लखनऊ कर दिया गया। प्रदेश का उच्च न्यायालय इलाहाबाद ही बना रहा और लखनऊ में उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ स्थापित की गयी। स्वतन्त्रता के बाद 12 जनवरी सन 1950 में इस क्षेत्र का नाम बदल कर उत्तर प्रदेश रख दिया गया और लखनऊ इसकी राजधानी बना। इस तरह यह अपने पूर्व लघुनाम यूपी से जुड़ा रहा। गोविंद वल्लभ पंत इस प्रदेश के प्रथम मुख्यमन्त्री बने। अक्टूबर 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर-प्रदेश एवं भारत की प्रथम महिला मुख्यमन्त्री बनीं।

विशाल गांगेय मैदान के हृदय क्षेत्र में स्थित लखनऊ शहर बहुत से ग्रामीण कस्बों एवं गांवों से घिरा हुआ है, जैसे अमराइयों का शहर मलिहाबाद, ऐतिहासिक काकोरी, मोहनलालगंज, गोसांईगंज, चिन्हट और इटौंजा। इस शहर के पूर्वी ओर बाराबंकी जिला है, तो पश्चिमी ओर उन्नाव जिला एवं दक्षिणी ओर रायबरेली जिला है। इसके उत्तरी ओर सीतापुर एवं हरदोई जिले हैं। गोमती नदी, मुख्य भौगोलिक भाग, शहर के बीचों बीच से निकलती है और लखनऊ को ट्रांस-गोमती एवं सिस-गोमती क्षेत्रों में विभाजित करती है। लखनऊ शहर भूकम्प क्षेत्र तृतीय स्तर में आता है।

जनसांख्यिकी
लखनऊ की अधिकांश जनसंख्या पूर्वार्ध उत्तर प्रदेश से है। फिर भी यहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों के अलावा बंगाली, दक्षिण भारतीय एवं आंग्ल-भारतीय लोग भी बसे हुए हैं। यहां की कुल जनसंख्या का 77%हिन्दू एवं 20%मुस्लिम लोग हैं। शेष भाग में सिख, जैन, ईसाई एवं बौद्ध लोग हैं। लखनऊ भारत के सबसे साक्षर शहरों में से एक है।

                         लखनऊ शहर की साक्षरता दर 82.5% है, स्त्रियों की78%एवं पुरुषों की साक्षरता 89% हैं।

लखनऊ शहर की जनसंख्या 
2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या
2011 में लखनऊ की कुल आबादी 4,589,838 पुरुषों की जनसंख्या 2,394,476 महिलाओं की जनसंख्या 2,195,362
क्षेत्र (प्रति वर्ग कि.मी.) 2,528 घनत्व (प्रति वर्ग कि.मी.) 1,816

लखनऊ में गर्म अर्ध-उष्णकटिबन्धीय जलवायु है। यहां ठंडे शुष्क शीतकाल दिसम्बर-फरवरी तक एवं शुष्क गर्म ग्रीष्मकाल अप्रैल-जून तक रहते हैं। मध्य जून से मध्य सितंबर तक वर्षा ऋतु रहती है, जिसमें औसत वर्षा 1010 मि.मी. (40 इंच) अधिकांशतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाओं से होती है।

लखनऊ में मानसून की उमड़ती घुमड़ती घटाएं
शीतकाल का अधिकतम तापमान 21°से. एवं न्यूनतम तापमान 3-4°से. रहता है। दिसम्बर के अंत से जनवरी अंत तक कोहरा भी रहता है। ग्रीष्म ऋतु गर्म रहती है, जिसमें तापमान 40-45°से. तक जाता है और औसत उच्च तापमान 30°से. तक रहता है।
पुराने लखनऊ में चौक का बाजार प्रमुख है। यह चिकन के कारीगरों और बाजारों के लिए प्रसिद्ध है। यह इलाका अपने चिकन के दुकानों व मिठाइयों की दुकाने की वजह से मशहूर है। चौक में नक्खास बाजार भी है। यहां का अमीनाबाद दिल्ली के चाँदनी चौक की तरह का बाज़ार है जो शहर के बीच स्थित है। यहां थोक का सामान, महिलाओं का सजावटी सामान, वस्त्राभूषण आदि का बड़ा एवं पुराना बाज़ार है। दिल्ली के ही कनॉट प्लेस की भांति यहां का हृदय हज़रतगंज है। यहां खूब चहल-पहल रहती है। प्रदेश का विधान सभा भवन भी यहीं स्थित है। इसके अलावा हज़रतगंज में जी पी ओ, कैथेड्रल चर्च, चिड़ियाघर, उत्तर रेलवे का मंडलीय रेलवे कार्यालय (डीआरएम ऑफिस), लाल बाग, पोस्टमास्टर जनरल कार्यालय (पीएमजी), परिवर्तन चौक, बेगम हज़रत महल पार्क भी काफी प्रमुख़ स्थल हैं। इनके अलावा निशातगंज, डालीगंज, सदर बाजार, बंगला बाजार, नरही, केसरबाग भी यहां के बड़े बाजारों में आते हैं। अमीनाबाद लखनऊ का एक ऐसा स्थान है जो पुस्तकों के लिए मशहूर है।

यहां के आवासीय इलाकों में सिस-गोमती क्षेत्र में राजाजीपुरम, कृष्णानगर, आलमबाग, दिलखुशा, आर.डी.एस.ओ.कालोनी, चारबाग, ऐशबाग, हुसैनगंज, लालबाग, राजेंद्रनगर, मालवीय नगर, सरोजिनीनगर, हैदरगंज, ठाकुरगंज एवं सआदतगंज आदि क्षेत्र हैं। ट्रांस-गोमती क्षेत्र में गोमतीनगर,इंदिरानगर, महानगर, अलीगंज, डालीगंज, नीलमत्था कैन्ट, विकासनगर, खुर्रमनगर, जानकीपुरम एवं साउथ-सिटी (रायबरेली रोड पर) आवासीय क्षेत्र हैं।

लखनऊ उत्तरी भारत का एक प्रमुख बाजार एवं वाणिज्यिक नगर ही नहीं, बल्कि उत्पाद एवं सेवाओं का उभरता हुआ केन्द्र भी बनता जा रहा है। उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी होने के कारण यहां सरकारी विभाग एवं सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम बहुत हैं। यहां के अधिकांश मध्यम-वर्गीय वेतनभोगी इन्हीं विभागों एवं उपक्रमों में नियुक्त हैं। सरकार की उदारीकरण नीति के चलते यहां व्यवसाय एवं नौकरियों तथा स्व-रोजगारियों के लिए बहुत से अवसर खुल गये हैं। इस कारण यहां नौकरी पेशे वालों की संख्या निरंतर बढ़ती रहती है। लखनऊ निकटवर्ती नोएडा एवं गुड़गांव के लिए सूचना प्रौद्योगिकी एवं बीपीओ कंपनियों के लिए श्रमशक्ति भी जुटाता है। यहां के सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लोग बंगलुरु एवं हैदराबाद में भी बहुतायत में मिलते हैं।

लखनऊ शहर में बैंक और वित्तीय सस्थान 

लखनऊ शहर में भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (एसआईडीबीआई) तथा प्रादेशिक औद्योगिक एवं इन्वेस्टमेंट निगम, उत्तर प्रदेश (पिकप) के मुख्यालय भी स्थित हैं। उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम का क्षेत्रीय कार्यालय भी यहीं स्थित है। यहां अन्य व्यावसायिक विकास में उद्यत संस्थानों में कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) एवं एन्टरप्रेन्योर डवलपमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (ईडीआईआई) हैं।
लखनऊ में बड़ी उत्पादन इकाइयों में हिंदुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड, टाटा मोटर्स, एवरेडी इंडस्ट्रीज़, स्कूटर इंडिया लिमिटेड आते हैं। संसाधित उत्पाद इकाइयों में दुग्ध उत्पादन, इस्पात रोलिंग इकाइयाँ एवं एल पी जी भरण इकाइयाँ आती हैं।

शहर की लघु एवं मध्यम-उद्योग इकाइयाँ चिन्हट, ऐशबाग, तालकटोरा एवं अमौसी के औद्योगिक एन्क्लेवों में स्थित हैं। चिन्हट अपने टेराकोटा एवं पोर्सिलेन उत्पादों के लिए प्रसिद्ध है।

लखनऊ शहर में रियल एस्टेट
रियल एस्टेट अर्थव्यवस्था का एक सहसावृद्धि वाला क्षेत्र है। शहर में विभिन्न शॉपिंग मॉल्स, आवासीय परिसर एवं व्यावसायिक परिसर बढ़ते जा रहे हैं। पार्श्वनाथ, डीएलएफ़, ओमैक्स, सहारा, युनिटेक, अंसल एवं ए पी आई जैसे इस क्षेत्र के महाकाय निवेशक यहाँ उपस्थित हैं।

लखनऊ की प्रगति दिल्ली, मुंबई, सूरत एवं गाजियाबाद से कहीं कम नहीं है। यहां के उभरते क्षेत्रों में गोमती नगर, हज़रतगंज, एवं कपूरथला आदि प्रमुख हैं। यहां बड़े निजी अस्पतालों में से सहारा अस्पताल निर्माणाधीन है, जिसमें 25 तल हैं। इसके बाद मेट्रो, पार्श्वनाथ प्लानेट, ओमेक्स हाइट्स का नंबर आता है। शहर का संपत्ति विस्तार सूचकांक बहुत ऊंचा है। एक अनुमान के अनुसार शहर में 2010 तक 2.5 बिलियन डालर की व्यवस्थित रियल एस्टेट होगी। ये उत्तर भारत में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बाद सबसे अधिक है।परंपरानुसार लखनवी आम (खासकर दशहरी आम), खरबूजा एवं निकटवर्ती क्षेत्रों में उगाये जा रहे अनाज की मंडी रही है। यहां के मशहूर मलीहाबादी दशहरी आम को भौगोलिक संकेतक का विशेष कानूनी दर्जा प्राप्त हो चुका है। मलीहाबादी आम को यह विशेष दर्जा भारत सरकार के भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री कार्यालय, चेन्नई ने एक विशेष क़ानून के अंतर्गत्त दिया गया है। एक अलग स्वाद और सुगंध के कारण दशहरी आम की संसार भर में विशेष पहचान बनी हुई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार मलीहाबादी दशहरी आम लगभग 6253 हैक्टेयर में उगाए जाते हैं और 15658.39  टन उत्पादन होता है।

गन्ने के खेत एवं चीनी मिलें भी निकट ही स्थित हैं। इनके कारण मोहन मेकिन्स ब्रीवरी जैसे उद्योगकर्ता यहां अपनी मिलें लगाने के लिए आकर्षित हुए हैं। मोहन मेकिन्स की इकाई 1855 में स्थापित हुई थी। यह एशिया की प्रथम व्यापारिक ब्रीवरी थी।

लखनऊ का चिकन का व्यापार भी बहुत प्रसिद्ध है। यह एक लघु-उद्योग है, जो यहां के चौक क्षेत्र के घर घर में फ़ैला हुआ है। चिकन एवं लखनवी ज़रदोज़ी, दोनों ही देश के लिए भरपूर विदेशी मुद्रा कमाते हैं। चिकन ने बॉलीवुड एवं विदेशों के फैशन डिज़ाइनरों को सदा ही आकर्षित किया है। लखनवी चिकन एक विशिष्ट ब्रांड के रूप में जाना जाये और उसे बनाने वाले कारीगरों का आर्थिक नुकसान न हो, इसलिए केंद्र सरकार के वस्त्र मंत्रालय की टेक्सटाइल कमेटी ने चिकन को भौगोलिक संकेतक के तहत रजिस्ट्रार ऑफ जियोग्राफिकल इंडिकेटर के यहां पंजीकृत करा लिया है। इस प्रकार अब विश्व में चिकन की नकल कर बेचना संभव नहीं हो सकेगा।

नवाबों के काल में पतंग-उद्योग भी अपने चरमोत्कर्ष पर था। यह आज भी अच्छा लघु-उद्योग है। लखनऊ तम्बाकू का औद्योगिक उत्पादनकर्ता रहा है। इनमें किमाम आदि प्रसिद्ध हैं। इनके अलावा इत्र, कलाकृतियां जैसे चिन्हट की टेराकोटा, मृत्तिकाकला, चाँदी के बर्तन एवं सजावटी सामान, सुवर्ण एवं रजत वर्क तथा हड्डी-पर नक्काशी करके बनी कलाकृतियों के लघु-उद्योग बहुत चल रहे हैं।

शहर में सार्वजनिक यातायात के उपलब्ध साधनों में सिटी बस सेवा, टैक्सी, साइकिल रिक्शा, ऑटोरिक्शा, टेम्पो एवं सीएनजी बसें हैं। सीएनजी को हाल ही में प्रदूषण पर नियंत्रण रखने हेतु आरंभ किया गया है। नगर बस सेवा को लखनऊ महानगर परिवहन सेवा संचालित करता है। यह उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की एक इकाई है। शहर के हज़रतगंज चौराहे से चार राजमार्ग निकलते हैं: राष्ट्रीय राजमार्ग24 – दिल्ली को, राष्ट्रीय राजमार्ग 25 – झांसी और मध्य प्रदेश को, राष्ट्रीय राजमार्ग 56 – वाराणसी को एवं राष्ट्रीय राजमार्ग 28 मोकामा, बिहार को। प्रमुख बस टर्मिनस में आलमबाग का डॉ॰भीमराव अम्बेडकर बस टर्मिनस आता है। इसके अलावा अन्य प्रमुख बस टर्मिनस केसरबाग, चारबाग आते थे, जिनमें से चारबाग का बस टर्मिनस, जो चारबाग रेलवे स्टेशन के ठीक सामने था, नगर बस डिपो बना कर स्थानांतरित कर दिया गया है। यह रेलवे स्टेशन के सामने की भीड़ एवं कंजेशन को नियंत्रित करने हेतु किया गया है।

रेलवे स्टेशन

लखनऊ में कई रेलवे स्टेशन हैं। शहर में मुख्य रेलवे स्टेशन चारबाग रेलवे स्टेशन है। इसकी शानदार महल रूपी इमारत 1923 में बनी थी। मुख्य टर्मिनल उत्तर रेलवे का है (स्टेशन कोड: LKO)। दूसरा टर्मिनल पूर्वोत्तर रेलवे (एनईआर) मंडल का है। (स्टेशन कोड: LJN)। लखनऊ एक प्रधान जंक्शन स्टेशन है, जो भारत के लगभग सभी मुख्य शहरों से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। यहां और 13 रेलवे स्टेशन हैं।

अब मीटर गेज लाइन ऐशबाग से आरंभ होकर लखनऊ सिटी, डालीगंज एवं मोहीबुल्लापुर को जोड़ती हैं। मोहीबुल्लापुर के अलावा अन्य स्टेशन ब्रॉड गेज से भी जुड़े हैं। अन्य सभी स्टेशन शहर की सीमा के भीतर ही हैं, एवं एक दूसरे से सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़े हैं। अन्य उपनगरीय स्टेशनों में निम्न स्टेशन हैं:

बख्शी का तालाब
काकोरी मुख्य रेलवे स्टेशन पर वर्तमान में 15 प्लेटफ़ॉर्म हैं और इसके 2009 तक देश के व्यस्ततम स्टेशनों में से एक बनने की आशा है। इस स्टेशन के 2009 के अंत तक विश्वस्तरीय स्टेशन बनने की आशा है।

अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा

अमौसी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा शहर का मुख्य विमानक्षेत्र है और शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। लखनऊ वायु सेवा द्वारा नई दिल्ली, पटना, कोलकाता एवं मुंबई एवं भारत के कई मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। यह ओमान एयर, कॉस्मो एयर, फ़्लाई दुबई, साउदी एयरलाइंस एवं इंडिगो एयर तथा अन्य कई अंतर्राष्ट्रीय वायु सेवाओं द्वारा अंतर्राष्ट्रीय गंतव्यों से जुड़ा हुआ है। इन गंतव्यों में लंदन, दुबई, जेद्दाह, मस्कट, शारजाह, सिंगापुर एवं हांगकांग आते हैं। हज मुबारक के समय यहां से हज-विशेष उड़ानें सीधे जेद्दाह के लिए चलती हैं।
लखनऊ के लिए उच्च क्षमता मास ट्रांज़िट प्रणाली यानि लखनऊ मेट्रो महानगर में यातयात का एक प्रमुख साधन है। इसके लिए दिल्ली मेट्रो रेल कार्पोरेशन ने ही योजनाएं बनाई थी और यह काम श्रेई इंटरनेशनल को दिया था। मेट्रो रेल के संचालन को मूर्त रूप देने और उस पर आने वाले खर्च को पूरा करने की व्यवस्था के लिए राज्य सरकार ने कई अधीनस्थ विभागों के प्रमुख सचिवों और लखनऊ के मंडलायुक्तगणों की एक समिति बनाई

 लखनऊ मेट्रो रेल 
लखनऊ में मेट्रो रेल शुरु होने के बाद सड़कों पर यातायात काफी कम हो गया है! वर्तमान में लखनऊ एवं कानपुर में हर महीने लगभग १००० नए चौपहिया वाहनों का पंजीकरण कराया जाता रहा है। लखनऊ में सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर बाइपास बना दिए जाने के बावजूद सड़कों पर गाड़ियों का दबाव बढ़ता ही जा रहा है। इस कारण से यहां मेट्रो का त्वरित निर्माण अत्यावश्यक हो गया था । लखनऊ शहर में आरंभ में चार गलियारे निश्चित किये गए हैं।
लखनऊ के अलावा कानपुर, मेरठ और गाजियाबाद शहरों में मेट्रो रेल चलाने की योजना है। इस परिवहन व्यवस्था की सफलता से प्रभावित होकर भारत के दूसरे राज्यों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान एवं कर्नाटक, आंध्र प्रदेश एवं महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के अन्य शहरों, में भी इसे चलाने की योजनाएं बन रही हैं।

अनुसंधान एवं शिक्षा
लखनऊ में देश के कई उच्च शिक्षा एवं शोध संस्थान भी हैं। इनमें से कुछ हैं: किंग जार्ज मेडिकल कालेज और बीरबल साहनी अनुसंधान संस्थान। यहां भारत के वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद की चार प्रमुख प्रयोगशालाएँ (केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, औद्योगिक विष विज्ञान अनुसंधान केन्द्र, राष्ट्रीय वनस्पति विज्ञान अनुसंधान संस्थान(एनबीआरआई) और केन्द्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान(सीमैप)) उत्तर प्रदेश राज्य ललित कला अकादमी हैं।

लखनऊ के छः विश्वविद्यालय : लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश तकनीकी विश्वविद्यालय(यूपीटीयू), राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय(लोहिया लॉ विवि), बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, एमिटी विश्वविद्यालय एवं इंटीग्रल विश्वविद्यालय। यहां कई उच्च चिकित्सा संस्थान भी हैं: संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान(एसजीपीजीआई), छत्रपति शाहूजी महाराज आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय (जिसे पहले किंग जॉर्ज मेडिकल कालिज कहते थे) के अलावा निर्माणाधीन सहारा अस्पताल, अपोलो अस्पताल, एराज़ लखनऊ मेडिकल कालिज भी हैं। प्रबंधन संस्थानों में भारतीय प्रबंधन संस्थान, लखनऊ (आईआईएम), इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज़(ल.वि.वि) आते हैं। यहां भारत के प्रमुखतम निजी विश्वविद्यालयों में से एक, एमिटी विश्वविद्यालय का भी परिसर है।

लखनऊ में  उच्चतर माध्यमिक शिक्षा

उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के लिये सरकारी एवं निजी विद्यालय हैं। इनमें से कुछ प्रमुख संस्थान हैं: सिटी मॉण्टेसरी स्कूल, ला मार्टिनियर महाविद्यालय, जयपुरिया स्कूल, कॉल्विन तालुकेदार्स कालेज, एम्मा थॉम्पसन स्कूल, सेंट फ्रांसिस स्कूल, महानगर बॉयज़ आदि।

लखनऊ अपनी विरासत में मिली संस्कृति को आधुनिक जीवनशैली के संग बड़ी सुंदरता के साथ संजोये हुए है। भारत के उत्कृष्टतम शहरों में गिने जाने वाले लखनऊ की संस्कृति में भावनाओं की गर्माहट के साथ उच्च श्रेणी का सौजन्य एवं प्रेम भी है। लखनऊ के समाज में नवाबों के समय से ही “पहले आप!” वाली शैली समायी हुई है। हालांकि स्वार्थी आधुनिक शैली की पदचाप सुनायी देती है, किंतु फिर भी शहर की जनसंख्या का एक भाग इस तहजीब को संभाले हुए है। यह तहजीब यहां दो विशाल धर्मों के लोगों को एक समान संस्कृति से बांधती है। ये संस्कृति यहां के नवाबों के समय से चली आ रही है।लखनवी पान यहां की संस्कृति का अभिन्न अंग है। इसके बिना लखनऊ अधूरा लगता है।

लखनऊ शहर की भाषा

लखनऊ में हिन्दी एवं उर्दू दोनों ही बोली जाती हैं किंतु उर्दू को यहां सदियों से खास महत्त्व प्राप्त रहा है। जब दिल्ली खतरे में पड़ी तब बहुत से शायरों ने लखनऊ का रुख किया। तब उर्दू शायरी के दो ठिकाने हो गये- देहली और लखनऊ। जहां देहली सूफ़ी शायरी का केन्द्र बनी, वहीं लखनऊ गज़ल विलासिता और इश्क-मुश्क का अभिप्राय बन गया। जैसे नवाबों के काल में उर्दू खूब पनपी एवं भारत की तहजीब वाली भाषा के रूप में उभरी। यहां बहुत से हिन्दू कवि एवं मुस्लिम शायर हुए हैं, जैसे बृजनारायण चकबस्त, ख्वाजा हैदर अली आतिश, विनय कुमार सरोज, आमिर मीनाई, मिर्ज़ा हादी रुसवा, नासिख, दयाशंकर कौल नसीम, मुसाहफ़ी, इनशा, सफ़ी लखनवी और मीर तकी “मीर” तो प्रसिद्ध ही हैं, जिन्होंने उर्दू शायरी तथा लखनवी भाषा को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया है। लखनऊ शिया संस्कृति के लिए विश्व के महान शहरों में से एक है। मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर उर्दू शिया गद्य में मर्सिया शैली के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। मर्सिया इमाम हुसैन की कर्बला के युद्ध में शहादत का बयान करता है, जिसे मुहर्रमके अवसर पर गाया जाता है। काकोरी कांड के अभियुक्त प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बिस्मिल, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने काकोरी में फांसी पर लटका दिया था, उर्दू शायरी से खासे प्रभावित थे, एवं बिस्मिल उपनाम से लिखते थे। कई निकटवर्ती कस्बों जैसे काकोरी, दरयाबाद, बाराबंकी, रुदौली एवं मलिहाबाद ने कई उर्दू शायरों को जन्म दिया है। इनमें से कुछ हैं मोहसिन काकोरवी, मजाज़, खुमार बाराबंकवी एवं जोश मलिहाबादी। हाल ही में 2008 में 1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की 150वीं वर्षगांठ पर इस विषय पर एक उपन्यास का विमोचन किया गया था। इस विषय पर प्रथम अंग्रेज़ी उपन्यास रीकैल्सिट्रेशन, एक लखनऊ के निवासी ने ही लिखा था।

प्रसिद्ध भारतीय नृत्य कथक ने अपना स्वरूप यहीं पाया था। अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह कथक के बहुत बड़े ज्ञाता एवं प्रेमी थे। लच्छू महाराज, अच्छन महाराज, शंभु महाराज एवं बिरजू महाराज ने इस परंपरा को जीवित रखा है।

यूपी का प्रसिद्ध कथक नृत्य
लखनऊ प्रसिद्ध गज़ल गायिका बेगम अख्त का भी शहर रहा है। वे गज़ल गायिकी में अग्रणी थीं और इस शैली को नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया। ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया – उनकी गायी बेहतरीन गज़लों में से एक है। लखनऊ के भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय का नाम यहां के महान संगीतकार पंडित विष्णु नारायण भातखंडे के नाम पर रखा हुआ है। यह संगीत का पवित्र मंदिर है। श्रीलंका, नेपाल आदि बहुत से एशियाई देशों एवं विश्व भर से साधक यहां नृत्य-संगीत की साधना करने आते हैं।

लखनऊ के विख्यात गायक

लखनऊ ने कई विख्यात गायक दिये हैं, जिनमें से नौशाद अली, तलत महमूद, अनूप जलोटा और बाबा सेहगल कुछ हैं। संयोग से यह शहर ब्रिटिश पॉप गायक क्लिफ़ रिचर्ड का भी जन्म-स्थान है।

फ़िल्मी संसार

जावेद जान निसार अख्तर, प्रसिद्ध हिन्दी चलचित्र गीतकार ,लखनऊ हिन्दी चलचित्र उद्योग की आरंभ से ही प्रेरणा रहा है। यह कहना अतिशयोक्ति ना होगा कि लखनवी स्पर्श के बिना, बॉलीवुड कभी उस ऊंचाई पर नहीं आ पाता, जहां वह अब है। अवध से कई पटकथा लेखक एवं गीतकार हैं, जैसे मजरूह सुलतानपुरी, कैफ़े आज़मी, जावेद अख्तर, अली रज़ा, भगवती चरण वर्मा, डॉ॰कुमुद नागर, डॉ॰अचला नागर, वजाहत मिर्ज़ा (मदर इंडिया एवं गंगा जमुना के लेखक), अमृतलाल नागर, अली सरदार जाफरी एवं के पी सक्सेना जिन्होंने भारतीय चलचित्र को प्रतिभा से धनी बनाया। लखनऊ पर बहुत सी प्रसिद्ध फिल्में बनी हैं जैसे शशि कपूर की जुनून, मुज़फ्फर अली की उमराव जान एवं गमन, सत्यजीत राय की शतरंज के खिलाड़ी और इस्माइल मर्चेंट की शेक्स्पियर वाला की भी आंशिक शूटिंग यहीं हुई थी।

बहू बेगम, मेहबूब की मेहंदी, मेरे हुजूर, चौदहवीं का चांद, पाकीज़ा, मैं मेरी पत्नी और वो, सहर, अनवर और बहुत सी हिन्दी फिल्में या तो लखनऊ में बनी हैं, या उनकी पृष्ठभूमि लखनऊ की है। गदर फिल्म में भी पाकिस्तान के दृश्यों में लखनऊ की शूटिंग ही है। इसमें लाल पुल, लखनऊ एवं ला मार्टीनियर कालिज की शूटिंग हैं।

नवाबी खानपान शैली

अवध क्षेत्र की अपनी एक अलग खास नवाबी खानपान शैली है। इसमें विभिन्न तरह की बिरयानियां, कबाब, कोरमा, नाहरी कुल्चे, शीरमाल, ज़र्दा, रुमाली रोटी और वर्की परांठा और रोटियां आदि हैं, जिनमें काकोरी कबाब, गलावटी कबाब, पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब प्रमुख हैं। शहर में बहुत सी जगह ये व्यंजन मिलेंगे। ये सभी तरह के एवं सभी बजट के होंगे। जहां एक ओर 1805 में स्थापित राम आसरे हलवाई की मक्खन मलाई एवं मलाई-गिलौरी प्रसिद्ध है, वहीं अकबरी गेट पर मिलने वाले हाजी मुराद अली के टुण्डे के कबाब भी कम मशहूर नहीं हैं। इसके अलावा अन्य नवाबी पकवानो जैसे ‘दमपुख़्त’, लच्छेदार प्याज और हरी चटनी के साथ परोसे गय सीख-कबाब और रूमाली रोटी का भी जवाब नहीं है। लखनऊ की चाट देश की बेहतरीन चाट में से एक है। और खाने के अंत में विश्व-प्रसिद्ध लखनऊ के पान जिनका कोई सानी नहीं है।

लखनऊ के अवधी व्यंजन जगप्रसिद्ध हैं। यहां के खानपान बहुत प्रकार की रोटियां भी होती हैं। ऐसी ही रोटियां यहां के एक पुराने बाज़ार में आज भी मिलती हैं, बल्कि ये बाजार रोटियों का बाजार ही है। अकबरी गेट से नक्खास चौकी के पीछे तक यह बाजार है, जहां फुटकर व सैकड़े के हिसाब से शीरमाल, नान, खमीरी रोटी, रूमाली रोटी, कुल्चा जैसी कई अन्य तरह की रोटियां मिल जाएंगी। पुराने लखनऊ के इस रोटी बाजार में विभिन्न प्रकार की रोटियों की लगभग 15 दुकानें हैं, जहां सुबह नौ से रात नौ बजे तक गर्म रोटी खरीदी जा सकती है। कई पुराने नामी होटल भी इस गली के पास हैं, जहां अपनी मनपसंद रोटी के साथ मांसाहारी व्यंजन भी मिलते हैं। एक उक्ति के अनुसार लखनऊ के व्यंजन विशेषज्ञों ने ही परतदार पराठे की खोज की है, जिसको तंदूरी परांठा भी कहा जाता है। लखनऊवालों ने भी कुलचे में विशेष प्रयोग किये। कुलचा नाहरी के विशेषज्ञ कारीगर हाजी जुबैर अहमद के अनुसार कुलचा अवधी व्यंजनों में शामिल खास रोटी है, जिसका साथ नाहरी बिना अधूरा है। लखनऊ के गिलामी कुलचे यानी दो भाग वाले कुलचे उनके परदादा ने तैयार किये थे।
प्रेस व साहित्य
लखनऊ इतिहास में भी पत्रकारिता का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले आरंभ किया गया समाचार पत्र नेशनल हेराल्ड लखनऊ से ही प्रकाशित होता था। इसके तत्कालीन संपादक मणिकोण्डा चलपति राउ थे।

लखनऊ से प्रकाशित समाचार-पत्र

अंग्रेज़ी समाचार-पत्र :शहर के प्रमुख अंग्रेज़ी समाचार-पत्रों में द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, द पाइनियर एवं इंडियन एक्स्प्रेस आदि  हैं। इनके अलावा भी बहुत से समाचार दैनिक अंग्रेज़ी, हिन्दी एवं उर्दू भाषाओं में शहर से प्रकाशित होते हैं।

हिन्दी समाचार-पत्र :-हिन्दी समाचार पत्रों में स्वतंत्र भारत, दैनिक जागरण, अमर उजाला, दैनिक हिन्दुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता , (बहुजन प्रेरणा -दैनिक समाचार पत्र ) एवं आई नेक्स्ट आदि  हैं।

उर्दू समाचार-पत्र :-प्रमुख उर्दू समाचार दैनिकों में जायज़ा दैनिक, राष्ट्रीय सहारा, सहाफ़त, क़ौमी खबरें एवं आग आदि हैं।

प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया एवं यूनाइटेड न्यूज ऑफ इंडिया के कार्यालय शहर में हैं, एवं देश के सभी प्रमुख समाचार-पत्रों के पत्रकार लखनऊ में उपस्थित रहते हैं।

इंटरनेट कनेक्टिविटी
शहर में इंटरनेट के लिए ब्रॉडबैण्ड इंटरनेट कनेक्टिविटी एवं वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग सुविधा उपलब्ध हैं। प्रमुख सेवाकर्ता भारत संचार निगम लिमिटेड, भारती एयरटेल, रिलायंस कम्युनिकेशन्स, टाटा कम्युनिकेशन्स एवं एसटीपीआई का बृहत अवसंरचना ढांचा है। इनके द्वारा गृह प्रयोक्ताओं एवं निगमित प्रयोक्ताओं को अच्छी गति का ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्शन उपलब्ध होता है। शहर में ढेरों इंटरनेट कैफ़े भी उपलब्ध हैं।
लखनऊ के दर्शनीय स्थल

शहर और आसपास कई दर्शनीय स्थल हैं। इनमें ऐतिहासिक स्थल, उद्यान, मनोरंजन स्थल एवं शॉपिंग मॉल आदि हैं। यहां कई इमामबाड़े हैं। इनमें बड़ा एवं छोटा प्रमुख है। प्रसिद्ध बड़े इमामबाड़े का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है। इस इमामबाड़े का निर्माण आसफउद्दौला ने 1784 में अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत करवाया था। यह विशाल गुम्बदनुमा हॉल 50 मीटर लंबा और 15 मीटर ऊंचा है। यहां एक अनोखी भूल भुलैया है। इस इमामबाड़े में एक अस़फी मस्जिद भी है जहां गैर मुस्लिम लोगों के प्रवेश की अनुमति नहीं है। मस्जिद परिसर के आंगन में दो ऊंची मीनारें हैं। इसके अलावा छोटा इमामबाड़ा, जिसका असली नाम हुसैनाबाद इमामबाड़ा है मोहम्मद अली शाह की रचना है जिसका निर्माण 1837 ई. में किया गया था। इसे छोटा इमामबाड़ा भी कहा जाता है।

लखनऊ में मकबरा व पार्क

सआदत अली का मकबरा बेगम हजरत महल पार्क के समीप है। इसके साथ ही खुर्शीद जैदी का मकबरा भी बना हुआ है। यह मकबरा अवध वास्तुकला का शानदार उदाहरण हैं। मकबरे की शानदार छत और गुम्बद इसकी खासियत हैं। ये दोनों मकबरे जुड़वां लगते हैं। बड़े इमामबाड़े के बाहर ही रूमी दरवाजा बना हुआ है। यहां की सड़क इसके बीच से निकलती है। इस द्वार का निर्माण भी अकाल राहत परियोजना के अन्तर्गत किया गया था। नवाब आसफउद्दौला ने यह दरवाजा 1782  ई. में अकाल के दौरान बनवाया था ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। जामी मस्जिद हुसैनाबाद इमामबाड़े के पश्चिम दिशा स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण मोहम्मद शाह ने शुरू किया था लेकिन 1840 ई. में उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने इसे पूरा करवाया। मोती महल गोमती नदी की सीमा पर बनी तीन इमारतों में से प्रमुख है। इसे सआदत अली खां ने बनवाया था।

लखनऊ रेज़ीडेंसी के अवशेष ब्रिटिश शासन की स्पष्ट तस्वीर दिखाते हैं। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय यह रेजिडेन्सी ईस्ट इंडिया कम्पनी के एजेन्ट का भवन था। यह ऐतिहासिक इमारत हजरतगंज क्षेत्र में राज्यपाल निवास के निकट है। लखनऊ का घंटाघर भारत का सबसे ऊंचा घंटाघर है। हुसैनाबाद इमामबाड़े के घंटाघर के समीप 19वीं शताब्दी में बनी एक पिक्चर गैलरी है। यहां लखनऊ के लगभग सभी नवाबों की तस्वीरें देखी जा सकती हैं। कुकरैल फारेस्ट एक पिकनिक स्थल है। यहां घड़ियालों और कछुओं का एक अभयारण्य है। यह लखनऊ के इंदिरा नगर के निकट, रिंग मार्ग पर स्थित है। बनारसी बाग वास्तव में एक चिड़ियाघर है, जिसका मूल नाम प्रिंस ऑफ वेल्स वन्य-प्राणी उद्यान है। स्थानीय लोग इस चिड़ियाघर को बनारसी बाग कहते हैं। यहां के हरे भरे वातावरण में जानवरों की कुछ प्रजातियों को छोटे पिंजरों में रखा गया है। यह देश के अच्छे वन्य प्राणी उद्यानों में से एक है। इस उद्यान में एक संग्रहालय भी है।

लखनऊ के पार्क व दरवाजा

 रूमी दरवाजा, छतर मंजिल, हाथी पार्क, बुद्ध पार्क, नीबू पार्क मैरीन ड्राइव और इंदिरा गाँधी तारामंडल भी दर्शनीय हैं। लखनऊ-हरदोइ राजमार्ग पर ही मलिहाबाद गांव है, जहां के दशहरी आम विश्व प्रसिद्ध हैं। लखनऊ का अमौसी हवाई अड्डा शहर से बीस किलोमीटर दूर अमौसी में स्थित है। शहर से 90 किलोमीटर की दूरी पर ही नैमिषारण्य तीर्थ है। इसका पुराणों में बहुत ऊंचा स्थान बताया गया है। यहीं पर ऋषि सूतजी ने शौनकादि ऋषियों को पुराणों का आख्यान दिया था। लखनऊ के निकटवर्ती शहरों में कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, फैजाबाद, बाराबंकी, हरदोई हैं।

खनऊ में वैसे तो सभी धर्मों के लोग सौहार्द एवं सद्भाव से रहते हैं, किंतु हिन्दुओं एवं मुस्लिमों का बाहुल्य है। यहां सभी धर्मों के अर्चनास्थल भी इस ही अनुपात में हैं। हिन्दुओं के प्रमुख मंदिरों में हनुमान सेतु मंदिर, मनकामेश्वर मंदिर, अलीगंज का हनुमान मंदिर, भूतनाथ मंदिर, इंदिरानगर, चंद्रिका देवी मंदिर, नैमिषारण्य तीर्थ और रामकृष्ण मठ, निरालानगर हैं। यहां कई बड़ी एवं पुरानी मस्जिदें भी हैं। इनमें लक्ष्मण टीला मस्जिद, इमामबाड़ा मस्जिद एवं ईदगाह प्रमुख हैं। प्रमुख गिरिजाघरों में कैथेड्रल चर्च, हज़रतगंज, इंदिरानगर (सी ब्लॉक) चर्च, सुभाष मार्ग पर सेंट पाउल्स चर्च एवं असेंबली ऑफ बिलीवर्स चर्च हैं। यहां हिन्दू त्यौहारों में होली,दीपावली, दुर्गा पूजा एवं दशहरा और ढेरों अन्य त्यौहार जहां हर्षोल्लास से मनाये जाते हैं, वहीं ईद और बारावफात तथा मुहर्रम के ताजिये भी फीके नहीं होते। साम्प्रदायिक सौहार्द यहां की विशेषता है। यहां दशहरे पर रावण के पुतले बनाने वाले अनेकों मुस्लिम एवं ताजिये बनाने वाले अनेकों हिन्दू कारीगर हैं।

 

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