मुरादनगर-एच एल एम कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय टूर्नामेंट खेल प्रतियोगिता का आयोजन
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संवाददाता ::मुरादनगर::नागराज भारती {C020} :: Date ::17 ::12::.2022::सी डी आर एस पब्लिक स्कूल मकरेड़ा की कबड्डी टीम ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया: एच एल एम कॉलेज द्वारा आयोजित जिला स्तरीय टूर्नामेंट में सी डी आर एस पब्लिक स्कूल मकरेड़ा की कबड्डी टीम ने दूसरा स्थान प्राप्त किया
मुरादनगर-एच एल एम कॉलेज में आयोजित दो दिवसीय टूर्नामेंट में अनेक खेल प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। सी डी आर एस पब्लिक स्कूल मकरेड़ा की कबड्डी टीम ने एच एल एम कॉलेज में आयोजित टूर्नामेट में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर दूसरा स्थान प्राप्त किया था। टीम को रवाना करते समय स्कूल की प्रधानाचार्य आकांक्षा त्यागी और समस्त स्टाफ ने टीम के खिलाड़ियों और टीम कोच जितेंद्र पंडित का भारतीय संस्कृति के अनुसार तिलक लगाकर कबड्डी प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर स्कूल का नाम रोशन करने व जीत हासिल करने की शुभकामनाएं दी।
दो दिवसीय टूर्नामेंट में सी डी आर एस पब्लिक स्कूल मकरेड़ा कि टीम ने अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से खेल प्रतियोगिता में दूसरा स्थान प्राप्त किया।सी डी आर एस पब्लिक स्कूल मकरेड़ा की तरफ से कबड्डी की टीम में लवीश,दीपांशु,मन्नू,मयंक,विकास, तन्मीय,देवपाल,अर्पित,देवरत,देव,कुणाल और अंश के साथ स्कूल के पी टी आई एवम् कब्बड़ी कोच जितेंद्र पंडित और पारस त्यागी के नेतृत्व में कबड्डी में दूसरा स्थान प्राप्त किया।शुक्रवार को स्कूल प्रबन्धक वीरेन्द्र त्यागी,प्रधानाचार्य आकांक्षा त्यागी, को ऑर्डिनेटर प्रीति त्यागी,मीडिया प्रभारी नितिन प्रधान,स्कूल पी टी आई जितेंद्र पंडित और समस्त स्टाफ ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए सभी खिलाड़ियों को मैडल और प्रशस्ति पत्र पत्र देकर सम्मानित किया।
आईपीसी की धारा 207 में विधि का क्या प्राविधान है
IPC की धारा 207 का विवरण :जो कोई किसी सम्पत्ति को, या उसमें के किसी हित को, यह जानते हुये कि ऐसी सम्पत्ति या हित पर उसका कोई अधिकार या अधिकारपूर्ण दावा नहीं है, कपटपूर्वक प्रतिगृहीत करेगा, प्राप्त करेगा, या उस पर दावा करेगा, अथवा किसी संपत्ति या उसमें के किसी हित पर किसी अधिकार के बारे में जानते हुए की इस पर उसका कोई वैधानिक अधिकार नहीं है और हड़पने , छीनने के आशय से मिथ्या दावा करेगा तो वह व्यक्ति धारा 207 के अंतर्गत दंड एवं जुर्माने से दण्डित किया जाएगा। विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0
प्रथम विश्व युद्ध
ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी का वध इस युद्ध का तात्कालिक कारण था। यह घटना 28 जून 1914, को सेराजेवो में हुई थी। एक माह के बाद ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित किया। रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने आस्ट्रिया की।
साम्राज्यवाद (Imperialism): प्रथम विश्व युद्ध से पहले अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्से कच्चे माल की उपलब्धता के कारण यूरोपीय देशों के बीच विवाद का विषय बने हुए थे। जब जर्मनी और इटली इस उपनिवेशवादी दौड़ में शामिल हुए तो उनके विस्तार के लिये बहुत कम संभावना बची। इसका परिणाम यह हुआ कि इन देशों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति अपनाई। यह नीति थी दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया जाए। बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और अधिक साम्राज्यों की इच्छा के कारण यूरोपीय देशों के मध्य टकराव में वृद्धि हुई जिसने समस्त विश्व को प्रथम विश्व युद्ध में धकेलने में मदद की। इसी प्रकार मोरक्को तथा बोस्निया संकट ने भी इंग्लैंड एवं जर्मनी के बीच प्रतिस्पर्द्धा को और बढ़ावा दिया।
अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करने के उद्देश्य से जर्मनी ने जब बर्लिन-बगदाद रेल मार्ग योजना बनाई तो इंग्लैंड के साथ-साथ फ्राँस और रूस ने इसका विरोध किया, जिसके चलते इनके बीच कटुता मेंऔर अधिक वृद्धि हुई।
सैन्यवाद (Militarism): 20वीं सदी में प्रवेश करते ही विश्व में हथियारों की दौड़ शुरू हो गई थी। वर्ष 1914 तक जर्मनी में सैन्य निर्माण में सबसे अधिक वृद्धि हुई। ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी दोनों ने इस समयावधि में अपनी नौ-सेनाओं में काफी वृद्धि की। सैन्यवाद की दिशा में हुई इस वृद्धि ने युद्ध में शामिल देशों को और आगे बढ़ने में मदद की।
वर्ष 1911 में आंग्ल जर्मन नाविक प्रतिस्पर्द्धा के परिणामस्वरूप ‘अगादिर का संकट’ उत्पन्न हो गया। हालाँकि इसे सुलझाने का प्रयास किया गया परंतु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। वर्ष 1912 में जर्मनी में एक विशाल जहाज़ ‘इम्प रेटर’ का निर्माण किया गया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज़ था। इससे इंग्लैंड और जर्मनी के मध्य वैमनस्य एवं प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हुई।
राष्ट्रवाद (Nationalism): जर्मनी और इटली का एकीकरण भी राष्ट्रवाद के आधार पर ही किया गया था। बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद की भावना अधिक प्रबल थी। चूँकि उस समय बाल्कन प्रदेश तुर्की साम्राज्य के अंतर्गत आता था, अतः जब तुर्की साम्राज्य कमज़ोर पड़ने लगा तो इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने स्वतंत्रता की मांग शुरू कर दी।
बोस्निया और हर्जेगोविना में रहने वाले स्लाविक लोग ऑस्ट्रिया-हंगरी का हिस्सा नहीं बना रहना चाहते थे, बल्कि वे सर्बिया में शामिल होना चाहते थे और बहुत हद तक उनकी इसी इच्छा के परिणामस्वरूप प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। इस तरह राष्ट्रवाद युद्ध का कारण बना।रूस का मानना था कि स्लाव यदि ऑस्ट्रिया-हंगरी एवं तुर्की से स्वतंत्र हो जाता है तो वह उसके प्रभाव में आ जाएगा, यही कारण रहा कि रूस ने अखिल स्लाव अथवा सर्वस्लाववाद आंदोलन को बल दिया। स्पष्ट है कि इससे रूस और ऑस्ट्रिया–हंगरी के मध्य संबंधों में कटुता आई।इसी तरह के और भी बहुत से उदाहरण रहे जिन्होंने राष्ट्रवाद की भावना को उग्र बनाते हुए संबंधों को तनावपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया। ऐसा ही एक उदाहरण है सर्वजर्मन आंदोलन।
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