दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की और से महाजन धर्मशाला में श्री कृष्ण कथा पांच दिवसीय प्रोग्राम का भव्य आयोजन – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की और से महाजन धर्मशाला में श्री कृष्ण कथा पांच दिवसीय प्रोग्राम का भव्य आयोजन

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संवाददाता ::कालांवाली सिरसा:: कपिल यादव{C02} :: Date ::17 ::12::.2022दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की और से महाजन धर्मशाला में श्री कृष्ण कथा पांच दिवसीय प्रोग्राम का भव्य आयोजन किया जा रहा है। कथा के तीसरे दिन श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य साध्वी जयंती भारती जी ने भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया उन्होंने बाल

संवाददाता कपिल यादव

लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान श्री कृष्ण जी ने जनकल्याण के लिए द्वापर युग में अवतार लिया प्रभु जब भी कोई कार्य करते हैं तो वह लीला कहलाती है। भगवान श्री कृष्ण जी ने श्रीमद्भागवत गीता में कहा है कि अर्जुन मेरा जन्म भी दिव्या है और मेरे द्वारा किया गया प्रत्येक कर्म भी दिव्य है साध्वी जी ने बताया कि प्रभु द्वारा की गई प्रत्येक लीला में अध्यात्मिक रहस्य छिपे होते हैं लेकिन समय के गर्त में वह धूमिल हो जाते हैं जिसके कारण मनुष्य सत्य के मार्ग से भटक जाता है समय-समय पर संत महापुरुष इस धरा पर आकर अन्य रहस्य को उजागर करते हैं प्रभु जब जब इस धरा पर आकर लीला करते हैं तो साधारण मानव उन लीलाओ
को समझ नहीं पाते क्योंकि वह अपनी बुद्धि का प्रयोग करते हैं परंतु प्रभु बुद्धि का वैसे ही नहीं है प्रभु तो ज्ञान का विषय है प्रभु को तत्व से जानने के पश्चात ही प्रभु की लीलाओं के वास्तविक मर्म को समझा जा सकता है।

भगवान श्री कृष्ण ने जब माटी खाई तो यशोदा ने कन्हैया का मुंह खोल कर दिखाने को कहा प्रभु ने जब अपना मुंह खोला तो यशोदा को प्रभु के मुख्य में ब्रह्मांड का दर्शन हुआ इस लीला के माध्यम से प्रभु ने समझाया कि जो कुछ भी इस ब्रह्मांड में है वह सब घट के भीतर भी है गुरु के द्वारा प्राप्त ज्ञान से यह बात समझ आती है। एक पूर्ण सतगुरु मानव के घट के भीतर ही दिव्य दृष्टि खोलकर उसे अंदर ही प्रभु के प्रकाश रूप का साक्षात्कार करवा देते हैं भगवान श्री कृष्ण गोपियों के घर में जाकर माखन चुराते थे माखन चुराने का मतलब है कि वह भक्तों के चित को चुराना। वह हमारा मन मांगते हैं ताकि जो मन संसार में बंधन का कारण है वह मुक्ति का साधन बन जाए भक्तों ने अपने मन को श्री कृष्ण भक्ति के रंग में रंगा भक्ति का रंग ही मजीठ रंग है। जो कभी उतरता नहीं साध्वी जी ने कहा कि जब हम होली खेलते हैं तो एक-दूसरे पर गुलाल लगाते हैं यह कच्चा रंग है जो धोने से धुल जाता है। परंतु प्रभु भक्ति का रंग जिसके मन पर लग जाता है वह कभी उतरता नहीं।संत महापुरुष प्रभु भक्ति के रंग में रंग कर अपने जीवन को महान बनाते हैं ।

कथा का शुभ आरंभ प्रभु की पावन ज्योति प्रज्वलित करके किया गया जिसमे मंडी के विशेष अतिथि गण स. बलकोर सिंह पूर्व विधायक बीजेपी, प्रदीप जैन प्रधान न्यू आड़तिया एसोएस्शन, सूरज भान ठेकेदार अध्यक्ष महादेव नंदी शाला, नरेश सिंगला प्रधान प्राचीन दुर्गा मंदिर, संदीप फगुवाले,मक्खन पीपलीवाले,अनिल कुमार भारतीय वाल्मीकि धर्म सभा, पवन बागड़ी, विकी बांसल, रोहित सिंगला, नंदन जैन प्रधान जय मां चिंतपूर्णी संकीर्तन मण्डल, जसबीर सचिव, तरसेम बांसल डायरेक्टर, गुलाबदीप सिंह सिद्धू चांदनी ट्रांस्पोर्ट, राजीव कुमार RSS प्रमुख शाखा कालांवाली, सुनील बिला जय मां चिंतपूर्णी सेवा समिति, श्रीमति अलीशा सिंगला, श्रीमती दर्शना गोयल, श्रीमती असीमा जैन शमिल थे कथा का समापन प्रभू की आरती से किया गया।


प्रथम विश्व युद्ध

ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी का वध इस युद्ध का तात्कालिक कारण था। यह घटना 28 जून 1914, को सेराजेवो में हुई थी। एक माह के बाद ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित किया। रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने आस्ट्रिया की। Genral Knowledge
साम्राज्यवाद (Imperialism): प्रथम विश्व युद्ध से पहले अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्से कच्चे माल की उपलब्धता के कारण यूरोपीय देशों के बीच विवाद का विषय बने हुए थे। जब जर्मनी और इटली इस उपनिवेशवादी दौड़ में शामिल हुए तो उनके विस्तार के लिये बहुत कम संभावना बची। इसका परिणाम यह हुआ कि इन देशों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति अपनाई। यह नीति थी दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया जाए। बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और अधिक साम्राज्यों की इच्छा के कारण यूरोपीय देशों के मध्य टकराव में वृद्धि हुई जिसने समस्त विश्व को प्रथम विश्व युद्ध में धकेलने में मदद की। इसी प्रकार मोरक्को तथा बोस्निया संकट ने भी इंग्लैंड एवं जर्मनी के बीच प्रतिस्पर्द्धा को और बढ़ावा दिया।
अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करने के उद्देश्य से जर्मनी ने जब बर्लिन-बगदाद रेल मार्ग योजना बनाई तो इंग्लैंड के साथ-साथ फ्राँस और रूस ने इसका विरोध किया, जिसके चलते इनके बीच कटुता मेंऔर अधिक वृद्धि हुई।

बहुजन प्रेरणा दैनिक समाचार पत्र व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (सम्पादक- मुकेश भारती ) किसी भी शिकायत के लिए सम्पर्क करे – 9336114041

Ram Kumar Pal
Ram Kumar Pal Bareilly UP

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सैन्यवाद (Militarism): 20वीं सदी में प्रवेश करते ही विश्व में हथियारों की दौड़ शुरू हो गई थी। वर्ष 1914 तक जर्मनी में सैन्य निर्माण में सबसे अधिक वृद्धि हुई। ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी दोनों ने इस समयावधि में अपनी नौ-सेनाओं में काफी वृद्धि की। सैन्यवाद की दिशा में हुई इस वृद्धि ने युद्ध में शामिल देशों को और आगे बढ़ने में मदद की।
वर्ष 1911 में आंग्ल जर्मन नाविक प्रतिस्पर्द्धा के परिणामस्वरूप ‘अगादिर का संकट’ उत्पन्न हो गया। हालाँकि इसे सुलझाने का प्रयास किया गया परंतु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। वर्ष 1912 में जर्मनी में एक विशाल जहाज़ ‘इम्प रेटर’ का निर्माण किया गया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज़ था। इससे इंग्लैंड और जर्मनी के मध्य वैमनस्य एवं प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हुई।
राष्ट्रवाद (Nationalism): जर्मनी और इटली का एकीकरण भी राष्ट्रवाद के आधार पर ही किया गया था। बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद की भावना अधिक प्रबल थी। चूँकि उस समय बाल्कन प्रदेश तुर्की साम्राज्य के अंतर्गत आता था, अतः जब तुर्की साम्राज्य कमज़ोर पड़ने लगा तो इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने स्वतंत्रता की मांग शुरू कर दी।


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बोस्निया और हर्जेगोविना में रहने वाले स्लाविक लोग ऑस्ट्रिया-हंगरी का हिस्सा नहीं बना रहना चाहते थे, बल्कि वे सर्बिया में शामिल होना चाहते थे और बहुत हद तक उनकी इसी इच्छा के परिणामस्वरूप प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। इस तरह राष्ट्रवाद युद्ध का कारण बना।रूस का मानना था कि स्लाव यदि ऑस्ट्रिया-हंगरी एवं तुर्की से स्वतंत्र हो जाता है तो वह उसके प्रभाव में आ जाएगा, यही कारण रहा कि रूस ने अखिल स्लाव अथवा सर्वस्लाववाद आंदोलन को बल दिया। स्पष्ट है कि इससे रूस और ऑस्ट्रिया–हंगरी के मध्य संबंधों में कटुता आई।इसी तरह के और भी बहुत से उदाहरण रहे जिन्होंने राष्ट्रवाद की भावना को उग्र बनाते हुए संबंधों को तनावपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया। ऐसा ही एक उदाहरण है सर्वजर्मन आंदोलन।



आईपीसी की  धारा 207 में विधि का  क्या प्राविधान है

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विधिक सलाहकार : Mukesh Bharti Advocate

Kanooni salah

IPC की धारा 207 का विवरण :जो कोई किसी सम्पत्ति को, या उसमें के किसी हित को, यह जानते हुये कि ऐसी सम्पत्ति या हित पर उसका कोई अधिकार या अधिकारपूर्ण दावा नहीं है, कपटपूर्वक प्रतिगृहीत करेगा, प्राप्त करेगा, या उस पर दावा करेगा, अथवा किसी संपत्ति या उसमें के किसी हित पर किसी अधिकार के बारे में जानते हुए की इस पर उसका कोई वैधानिक अधिकार नहीं है और  हड़पने , छीनने  के आशय से मिथ्या दावा  करेगा तो वह व्यक्ति धारा 207 के अंतर्गत दंड एवं जुर्माने से दण्डित किया जाएगा। विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0


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