Mainpuri News:मंत्री जयवीर सिंह ने मैंनपुरी में 80 दिव्यांगजनों को मोटराइज्ड ट्राई-साइकिल वितरित किया :बहुजन प्रेस  – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

Mainpuri News:मंत्री जयवीर सिंह ने मैंनपुरी में 80 दिव्यांगजनों को मोटराइज्ड ट्राई-साइकिल वितरित किया :बहुजन प्रेस 

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संवाददाता :: मैनपुरी::अवनीश कुमार  {C016} :: Published Dt.15.01.2023 :Time:1:10PM : मंत्री जयवीर सिंह ने मैंनपुरी में 80 दिव्यांगजनों को मोटराइज्ड ट्राई-साइकिल वितरित किया :बहुजन प्रेस 


अवनीश कुमार -ब्यूरो चीफ मैनपुरी

बहुजन प्रेरणा ( हिंदी दैनिक समाचार पत्र ) व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (डिजिटल मीडिया)


Mainpuri News ।  ब्यूरो रिपोर्ट :अवनीश कुमार  । मंत्री जयवीर सिंह ने मैंनपुरी में 80 दिव्यांगजनों को मोटराइज्ड ट्राई-साइकिल वितरित किया

प्रदेश सरकार बिना भेद-भाव के समाज के अंतिम व्यक्ति तक संचालित जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ आसानी से पहुंचाकर विकास से वंचित लोगों को भी विकास की मुख्यधारा में जोड़ने का कार्य कर रही है:– मंत्री

मैनुपरी – नव वर्ष-2023 मकर संक्रांति के अवसर पर प्रदेश के पयर्टन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग द्वारा विकास भवन में आयोजित कायर्क्रम में जनपद के 80 दिव्यांगजनों को मोटराइज्ड ट्राई-साइकिल उपलब्ध कराते हुए कहा कि बैटरी चालित इस ट्राई साइकिल से दिव्यांग जनों के जीवन में सुगमता आएगी, आवागमन में काफी आसानी होगी। उन्होंने कहा कि शारीरिक रूप से कमजोर दिव्यांगजनों को जीवन की मुख्यधारा से जोड़ने, उन्हें दिव्यांगता संबंधी उपकरण उपलब्ध कराने के लिए प्रदेश सरकार निरंतर प्रयासरत है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार बिना भेद-भाव के समाज के अंतिम व्यक्ति तक संचालित जन कल्याणकारी योजनाओं का लाभ आसानी से पहुंचाकर विकास से वंचित लोगों को भी विकास की मुख्यधारा में जोड़ने का कार्य तेजी से कर रही है। संचालित योजना का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचे, इसके लिए पात्रों का चिन्हाकंन का कायर् पूरी पारदशिर्ता के साथ कराया जा रहा है।

      पयर्टन एवं संस्कृति मंत्री ने कहा कि दिव्यांगजन समाज का अहम हिस्सा है, उन्हें समाज में सम्मान से जीने का अधिकार है। उन्हें उपेक्षा महसूस न हो इसके लिए केंद्र, प्रदेश सरकार ने दिव्यांगजनों के कल्याण हेतु योजनाएं संचालित की हैं ताकि वह भी जन- कल्याणकारी योजनाओं का लाभ पाकर विकास की मुख्यधारा में शामिल हो और सम्मान के साथ अपना जीवन यापन कर सकें। उन्होने कहा कि दरिद्र नारायण की सेवा करना सबसे पुनीत कार्य है, दिव्यांगजनों से ज्यादा गरीब कोई नहीं हो सकता इसलिए प्रदेश सरकार ने सबसे ज्यादा ध्यान इस तवके पर दिया है। उन्होने कहा कि जनपद में जिलाधिकारी के नेतृत्व, कुशल मार्ग दशर्न में संचालित योजनाओं का धरातल पर सही ढंग से क्रियान्वयन हो रहा है। जनपद के अधिकारी लगन-मेहनत, निष्ठा के साथ संचालित योजनाओं का लाभ पात्र व्यक्तियों तक पहुंचाकर उन्हें विकास की मुख्य धारा से जोड़ने का कार्य कर रहे हैं। उन्होने कहा कि प्रदेश सरकार की योजना का लाभ प्रत्येक पात्र व्यक्ति तक पहुंचे, एक बार योजना का लाभ पाने के उपरांत कोई व्यक्ति दुबारा योजना का लाभ प्राप्त न कर सके इसके लिए लाभा दिये जाते समय उसका आधार लिंक अवश्य कराया जाये।

         जिलाधिकारी अविनाश कृष्ण सिंह ने कहा की दिव्यांगजनों के कल्याण, उनकी समस्याओं के त्वरित निदान के लिए प्रदेश सरकार प्रयत्नशील है। दिव्यांगों के कल्याणाथर् तमाम महत्वाकांक्षी योजनाएं संचालित है ताकि दिव्यांगजन अपने को कमजोर महसूस न कर सकें। उन्होंने बताया कि आज आयोजित कायर्क्रम में जनपद के चिन्हित 80 दिव्यांगजनों को बैटरी चालित ट्राई साइकिल उपलब्ध करायी गयी है। इस बैटरी चालित ट्राई साइकिल की कीमत 40 हजार रू. है, इसकी बैटरी चार्ज होने के उपरांत ट्राई साइकिल कम से कम 30-35 किमी. का सफर तय कर सकती है। इससे दिव्यांगजनों को आवागमन में काफी सहायता मिलेगी, बैटरी चालित ट्राई-साइकिल से जीवन में सुगमता आयेगी।

        पयर्टन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह, जिलाधिकारी अविनाश कृष्ण सिंह, मुख्य विकास अधिकारी विनोद कुमार ने विकास भवन में दिव्यांगजन शैलेश, महेन्द्र किशोर, सनी, संतोष कुमार, हरीश चन्द्र, रिंकू, शरद कुमार, राम नरेश, वेनीराम, सचिन, ध्रुव सिंह, देवेन्द्र, धमेर्न्द्र, मनोज, नवीन, कौशल किशोर, अख्तर अली, सोबरन सिंह, रजनीश, प्रवल प्रताप, आविद अली, नीतू सक्सैना, ज्ञानेन्द्र, अचर्ना शर्मा, विमलेश कुमारी, सरला देवी, नीरज देवी, गुलशन, सुशीला देवी, विनय कुमार, द्वारपाल, ललिता, शानू, बाॅबी, पूजा, सविता, लल्लन कुमार, सदानन्द, बृजेश कुमार, सानू, राज कुमार, उरेन्द्र कुमार, मधु सोधन सिंह, राधे मोहन, संजय, ज्ञानेन्द्र आदि 80 दिव्यांगजनों को अपने कर-कमलों से मोटराइज्ड ट्राई साइकिल उपलब्ध करायी।

         इस अवसर पर जिलाध्यक्ष प्रदीप चैहान, अपर जिलाधिकारी राम जी मिश्र, उप जिलाधिकारी सदर नवोदिता शर्मा, क्षेत्राधिकारी नगर संतोष कुमार, जिला दिव्यांगजन सशक्तीकरण अधिकारी महेन्द्र प्रताप, उपायुक्त उद्योग मो. सऊद, जिला पंचायतराज अधिकारी अविनाश चन्द, पयर्टन अधिकारी प्रदीप टमटा के अलावा शिवदत्त भदौरिया, सीमा चैहान, उदय चैहान, शिव प्रताप सिंह राजू, अजुर्न चैहान, धीरू राठौर, अमित गुप्ता, अन्य पदाधिकारी सहित बड़ी संख्या में दिव्यांगजन आदि उपस्थित रहे।


बहन मायावती जी का 67 वां जन्मदिन 15 जनवरी 2023 को जन कल्याणकारी दिवस के रूप में मनाया: बहुजन प्रेस

BSP Supremo Mayawati :tawang sector:: तवांग सेक्टर
BSP Supremo Mayawati : Happy Birthday

Bsp News: मायावती जी का 67 वां जन्मदिन 15 जनवरी 2023 को जन कल्याणकारी दिवस के रूप में मनाया गया इस अवसर पर भारतीय सिनेमा के गायक कैलाश खेर ने गीत प्रस्तुत किया। 15 जनवरी 1956 को एक साधारण परिवार में जन्म लेने वाली महिला ने भारतीय राजनीति में दलित शब्द के मायने ही बदल कर रख दिया। असंभव को संभव बनाने की कला की माहिर बहन जी ने भारत के सबसे बड़ी आवादी वाली राज्य की 4 बार मुख्य मंत्री अपने बलबूते बनी।बीजेपी और कांग्रेस भी बहन जी की राजनीतिक चाल को नहीं पकड़ पाते है। अपने प्रशासनिक और शासन करने के तरीके के बल पर करोड़ो बहुजन समाज पर राज करती है। भारतीय राजनीति में महिलाएं पुरुषों के समान ही सक्रिय भूमिका में हैं। इस समय देश के सर्वोच्च पद पर यानी भारत की राष्ट्रपति पद पर एक महिला आसीन हैं।

Mayawati Birthday 2023: वहीं कई राजनीतिक दलों में पार्टी अध्यक्ष से लेकर राज्य की भूमिका और राज्यपाल तक महिलाएं हैं। इन्हीं दमदार महिला राजनीतिज्ञों में से एक बड़ा नाम मायावती जी का है। बसपा का दूसरा नाम मायावती ही है और उत्तर प्रदेश की राजनीति का दमदार चेहरा भी है। मायावती उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री हैं, वहीं बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं। मायावती एक ऐसी दमदार व्यक्तित्व की राजनीतिज्ञ महिला हैं, जिसने राज्य के मुखिया के दायित्वों का निर्वहन बखूबी किया और एक राजनीतिक दल का नेतृत्व भी करती आ रही हैं। यूपी में जातिगत राजनीति का जिक्र जब भी होता है, मायावती का नाम जरूर याद आता है। लेकिन मायावती का शुरू से ही राजनीति में आना चाहती थीं? मायावती के परिवार में कोई भी राजनीतिक पृष्ठभूमि का नहीं था लेकिन एक किशोरी जो एक शिक्षिका बन सकती थी, अचानक ही राजनीति की ओर मुड़ गई, कैसे? आज उत्तर प्रदेश की राजनीति की दमदार महिला मायावती का जन्मदिन है। मान्यवर कांशीराम की जो सोच थी उसको हकीकत में हू बहू हू शासन करके दिखाया। यूपी में बहन जी की वजह से राजनीति में कई चेहरे आये और राजनीति में नाम कमाया लेकिन मिशन कांशीराम मिशन महापुरुषों के खिलाफ कार्य करने वाले नेताओं को कभीनहीं बक्सा पार्टी से चलता किया आज उनकी राजनीति पहचान ख़त्म हो चुकी है जैसे बाबू सिंह कुशवाहा ,दददू प्रसाद आदि।


संत रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और जातिपाति का घोर खंडन किया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।Bahujan Movement:Guru ravidas ji

संत रैदास स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उनके शिष्य उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में जिस परमेश्वर राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि का गुणगान किया गया है।सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। एक ही अलौकिक शक्ति है और कोई दूजा नहीं है। सभी मनुष्य सामान है कोई ऊच नीच नहीं है।ऊच नीच जैसी सामाजिक बुराई सभी चालाक लोग अपने फायदे के लिए बनाये है। ईश्वर सभी को सामान दृष्टि से देखता है। मानव मानव में कोई भेद नहीं है।

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कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।

संत रविदास का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-stikar

कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै॥

संत रविदास के विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है Bahujan Movement:

 


साहित्यकार मुंशी प्रेम चन्द

Dt.15 January 2023। Mukesh Bhartiहिंदी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेम चन्द का नाम किसने नहीं सुना और पढ़ा नहीं है लेकिन अधिकांश लोग उनके बारे में नहीं जानते है। मुंशी प्रेम चन्द उर्फ़ धनपत राय श्रीवास्तव जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, मुंशी प्रेम चन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को हुआ था और अंतिम साँस 8 अक्टूबर 1936 को लेकर इस दुनिया से विदाई ली। अपने कहानी और उपन्यास के माध्यम अपनी पहचान स्थापित किया और लोगो के दिलों में लम्बे समय तक राज किया। आज भी मुंशी प्रेम चन्द जी के साहित्य के बिना साहित्य की पढ़ाई अधूरी है।
मुंशी प्रेम चन्द उर्फ़ धनपत राय श्रीवास्तव जी हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। गबन, कर्मभूमि, गोदान ने तो खूब धमाल मचाया। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा।
मुंशी प्रेम चन्द उर्फ़ धनपत राय श्रीवास्तव ने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में चली गयी और प्रेस बन्द करना पड़ा। अंतिम दिनों में प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।

1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाजसुधार आन्दोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखण्ड को ‘प्रेमचंद युग’ या ‘प्रेमचन्द युग’ कहा जाता है।


stikar kabir ki vani

“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा।


Stikar Aaj ka suvichar” जिन्दगी का हर एक छोटा हिस्सा ही
हमारी जिदंगी की सफ़लता का बड़ा हिस्सा होता है।”


आईपीसी की  धारा 323 में विधि का  क्या प्राविधान है

Kanooni salah

Mukesh Bharti
Adv. Mukesh Bharti

IPC की धारा 323 का विवरण :जो कोई किसी अगर कोई अपनी इच्छा से किसी को चोट या नुकसान पहुंचाता है, तो ऐसा करने पर उसे 1 साल तक की कैद या 1 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है  तो वह व्यक्ति धारा 323 के अंतर्गत दंड एवं जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।

विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0।Dt.19-12-2022

अथवा 

स्वेच्छया उपहति/चोट कारित करने के लिए दण्ड। उस दशा के सिवाय जिसके लिए धारा 334 में उपबंध है ,जो कोई स्वेच्छया उपहति करीत करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवश्य एक वर्ष तक की हो सकरगि , या जुर्माने से जो 1000 रूपये तक का हो सकेगा , या दोनों से , दण्डित किया जायेगा।

उपहति /चोट से आशय ; जो कोई किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा , रोग या अंग -शैथिल्य कारित करता है, वह उपहति करता है। यह कहा जाता है।

विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0।Dt.19-12-2022


नोट : दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार : यह जमानतीय और असंज्ञेय अपराध है जमानत कोई जुडिसियल मजिस्ट्रेट दे सकता है।


जलियांवाला बाग हत्याकांड:

आज़ादी के आंदोलन में हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे : 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों पर बिना बताये ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए थे। इस कांड में मारे गए लोग रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। इस हत्या काण्ड का बदला लेने के लिए वर्ष 1940 में सरदार उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या कर दी थी। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 19-12-2022

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क्या है रॉलेट एक्ट 1919 को जाने :
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक शृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था।इस संदर्भ में सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर यह अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये अधिकार प्रदान किये और दो साल तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दी।
जलियांवाला बाग हत्या काण्ड की पृष्ठभूमि: महात्मा गांधी इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे, जो 6 अप्रैल, 1919 को शुरू हुआ। 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी वारेंट के गिरफ्तार कर लिया। इससे भारतीय प्रदर्शनकारियों में आक्रोश पैदा हो गया जो 10 अप्रैल को हज़ारों की संख्या में अपने नेताओं के साथ एकजुटता दिखाने के लिये निकले थे।भविष्य में इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने हेतु सरकार ने मार्शल लॉ लागू किया और पंजाब में कानून-व्यवस्था ब्रिगेडियर-जनरल डायर को सौंप दी गई। घटना का दिन: 13 अप्रैल, बैसाखी के दिन अमृतसर में निषेधाज्ञा से अनजान ज़्यादातर पड़ोसी गाँव के लोगों की एक बड़ी भीड़ जालियांवाला बाग में जमा हो गई।इस बड़ी भीड़ को तितर बितर करने के लिए ब्रिगेडियर- जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचा। सैनिकों ने जनरल डायर के आदेश के तहत सभा को घेर कर एकमात्र निकास द्वार को अवरुद्ध कर दिया और निहत्थे भीड़ पर गोलियाँ चलाना शुरू कर दी दीं, जिसमें 1000 से अधिक निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई।Genral Knowledge
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना का महत्त्व:जलियांवाला बाग भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थल बन गया और अब यह देश का एक महत्त्वपूर्ण स्मारक है।जलियांवाला बाग त्रासदी उन कारणों में से एक थी जिसके कारण महात्मा गांधी ने अपना पहला, बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) अभियान, असहयोग आंदोलन (1920–22) का आयोजन शुरू किया।इस घटना के विरोध में बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।भारत की तत्कालीन सरकार ने घटना (हंटर आयोग) की जाँच का आदेश दिया, जिसने वर्ष 1920 में डायर के कार्यों के लिये निंदा की और उसे सेना से इस्तीफा देने का आदेश दिया। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 19-12-2022


महान दार्शनिक रजनीश ओशो

प्रेम है सीढ़ी और परमात्मा है उस यात्रा की अंतिम मंजिल।”—ओशो


Dt.7 January 2023। Mukesh Bhartiआधुनिक युग के महान दार्शनिक रजनीश ओशो ने जीवन जीने की नई ऊर्जा दी। संभोग में समाधि नामक अपने दर्शन की किताब में इस नये आयाम दिया मनुष्य अपने जीवन को नर्क बना देता है जीवन भर सेक्स के पीछे भागता रहता है जबकि जीवन का लक्ष्य कुछ और ही है।

“जो उस मूलस्रोत को देख लेता है…”।

यह बुद्ध का वचन बड़ा अदभुत है : वह अमानुषी रति को उपलब्ध हो जाता है। वह ऐसे संभोग को उपलब्ध हो जाता है, जो मनुष्यता के पार है।
जिसको मैंने, ” संभोग से समाधि की ओर ” कहा है, उसको ही बुद्ध अमानुषी रति कहते हैं | एक तो रति है मनुष्य की — स्त्री और पुरुष की। क्षण भर को सुख मिलता है। मिलता है? — या आभास होता है कम से कम। फिर “एक रति है, जब तुम्हारी चेतना अपने ही मूलस्रोत में गिर जाती है; जब तुम अपने से मिलते हो। “एक तो रति है – दूसरे से मिलने की। और एक रति है – अपने से मिलने की। ” जब तुम्हारा तुमसे ही मिलना होता है, उस क्षण जो महाआनंद होता है, वही समाधि है। ” संभोग में समाधि की झलक है; समाधि में संभोग की पूर्णता है।” ओशो

पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
प्रेम क्या है? कामवासना का मूलस्रोत क्या है? यौन-ऊर्जा का रूपांतरण कैसे संभव? क्या संभावनाएं हैं मनुष्य की?
सामग्री तालिका
अध्याय शीर्षक अनुक्रम
1: संभोग : परमात्मा की सृजन-ऊर्जा 2: संभोग : अहं-शून्यता की झलक 3: संभोग : समय-शून्यता की झलक 4: समाधि : अहं-शून्यता, समय-शून्यता का अनुभव 5: समाधि : संभोग-ऊर्जा का आध्यात्मिक नियोजन 6: यौन : जीवन का ऊर्जा-आयाम  7: युवक और यौन  8: प्रेम और विवाह 9: जनसंख्या विस्फोट  10: विद्रोह क्या है  11: युवक कौन  12: युवा चित्त का जन्म 13: नारी और क्रांति  14: नारी—एक और आयाम  15: सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति 16: भीड़ से, समाज से—दूसरों से मुक्ति  17: दमन से मु‍क्ति  18: न भोग, न दमन—वरन जागरण
विवरण: जीवन-ऊर्जा रूपांतरण के विज्ञान पर ओशो द्वारा ‍दिए गए 18 प्रवचनों का संकलन।

उद्धरण : संभोग से समाधि की ओर – पहला प्रवचन – संभोग : परमात्मा की सृजन-ऊर्जा

“जिस आदमी का ‘मैं’ जितना मजबूत है, उतनी ही उस आदमी की सामर्थ्य दूसरे से संयुक्त हो जाने की कम हो जाती है। क्योंकि ‘मैं’ एक दीवाल है, एक घोषणा है कि मैं हूं। मैं की घोषणा कह देती है: तुम ‘तुम’ हो, मैं ‘मैं’ हूं। दोनों के बीच फासला है। फिर मैं कितना ही प्रेम करूं और आपको अपनी छाती से लगा लूं, लेकिन फिर भी हम दो हैं। छातियां कितनी ही निकट आ जाएं, फिर भी बीच में फासला है–मैं ‘मैं’ हूं, तुम ‘तुम’ हो। इसीलिए निकटतम अनुभव भी निकट नहीं ला पाते। शरीर पास बैठ जाते हैं, आदमी दूर-दूर बने रह जाते हैं। जब तक भीतर ‘मैं’ बैठा हुआ है, तब तक दूसरे का भाव नष्ट नहीं होता।

सार्त्र ने कहीं एक अदभुत वचन कहा है। कहा है कि दि अदर इज़ हेल। वह जो दूसरा है, वही नरक है। लेकिन सार्त्र ने यह नहीं कहा कि व्हाय दि अदर इज़ अदर? वह दूसरा ‘दूसरा’ क्यों है? वह दूसरा ‘दूसरा’ इसलिए है कि मैं ‘मैं’ हूं। और जब तक मैं ‘मैं’ हूं, तब तक दुनिया में हर चीज दूसरी है, अन्य है, भिन्न है। और जब तक भिन्नता है, तब तक प्रेम का अनुभव नहीं हो सकता।

प्रेम है एकात्म का अनुभव। प्रेम है इस बात का अनुभव कि गिर गई दीवाल और दो ऊर्जाएं मिल गईं और संयुक्त हो गईं। प्रेम है इस बात का अनुभव कि एक व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति की सारी दीवालें गिर गईं और प्राण संयुक्त हुए, मिले और एक हो गए। जब यही अनुभव एक व्यक्ति और समस्त के बीच फलित होता है, तो उस अनुभव को मैं कहता हूं–परमात्मा। और जब दो व्यक्तियों के बीच फलित होता है, तो उसे मैं कहता हूं–प्रेम।

अगर मेरे और किसी दूसरे व्यक्ति के बीच यह अनुभव फलित हो जाए कि हमारी दीवालें गिर जाएं, हम किसी भीतर के तल पर एक हो जाएं, एक संगीत, एक धारा, एक प्राण, तो यह अनुभव है प्रेम। और अगर ऐसा ही अनुभव मेरे और समस्त के बीच घटित हो जाए कि मैं विलीन हो जाऊं और सब और मैं एक हो जाऊं, तो यह अनुभव है परमात्मा।


इसलिए मैं कहता हूं: प्रेम है सीढ़ी और परमात्मा है उस यात्रा की अंतिम मंजिल।”—ओशो


 

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