Mainpuri News:इन्वेस्टर्स समिट के दौरान निवेशकों के प्रस्तावों से जनपद तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर होगा, यहां के शिक्षित युवाओं को रोजगार के अवसर मुहैया होंगे पर्यटन मंत्री:बहुजन प्रेस
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संवाददाता :: मैनपुरी::अवनीश कुमार {C016} :: Published Dt.20.01.2023 :Time:10:30PM : इन्वेस्टर्स समिट के दौरान निवेशकों के प्रस्तावों से जनपद तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर होगा, यहां के शिक्षित युवाओं को रोजगार के अवसर मुहैया होंगे पर्यटन मंत्री:बहुजन प्रेस

बहुजन प्रेरणा ( हिंदी दैनिक समाचार पत्र ) व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (डिजिटल मीडिया)
Mainpuri News । ब्यूरो रिपोर्ट :अवनीश कुमार । इन्वेस्टर्स समिट के दौरान निवेशकों के प्रस्तावों से जनपद तेजी से विकास के पथ पर अग्रसर होगा, यहां के शिक्षित युवाओं को रोजगार के अवसर मुहैया होंगे पर्यटन मंत्री
जनपद के वॉसमती चावल को विश्व पटल पर मिलेगी पहचान, शिक्षा के क्षेत्र में भी देश में जनपद अग्रणी पंक्ति में होगा पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री
50 करोड़ की लागत से प्रदेश का सबसे अच्छा ऑडिटोरियम, म्यूजियम का निर्माण होगा, जनपद के ऐतिहासिक स्थलों का भी जीर्णोद्धार कराया जायेगा- जयवीर सिंहष्टाचार को समाप्त करने का काम किया, आज प्रदेश में बड़े-बड़े उद्योगपति तेजी से निवेश कर उद्योगों की स्थापना कर रहे हैं, इन उद्योगों की स्थापना से प्रदेश के बेरोजगार नौजवानों को बड़ी संख्या में रोजगार मिले है, प्रदेश के राजस्व में भी काफी बढ़ोत्तरी हुई है।
पर्यटन मंत्री ने कहा कि उद्यमियों में प्रदेश सरकार के प्रति विश्वास, आस्था बढ़ी है जिसका परिणाम है कि आज देश के विभिन्न राज्यों के अलावा अन्य देशों के उद्यमी भी उत्तर प्रदेश में बड़ा निवेश करने को तैयार हैं, एक लाख करोड़ के ऊपर के एम.ओ.यू. सिर्फ पर्यटन के क्षेत्र में मिले हैं, जापान, दक्षिण कोरिया जैसे देश प्रदेश में निवेश करने के लिए तेजी से आगे आए हैं। उन्होंने कहा कि देश के विकास का ग्रोथ इंजन उत्तर प्रदेश बनेगा लेकिन उत्तर प्रदेश के विकास का ग्रोथ इंजन जनपद मैनपुरी होगा। उन्होने कहा कि जनपद के सर्वांगीण विकास के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं, जनपद के ऐतिहासिक, पुरातात्विक महत्व के स्थलों के जीर्णोद्धार के लिए प्रदेश सरकार ने बहुत धनराशि अबमुक्त की है, च्यवनऋषि आश्रम, मार्कंडेय ऋषि आश्रम, रामलीला मैदान कुरावली, मैनपुरी के जीर्णोद्धार का कार्य प्रगति पर है, जनपद के समान पक्षी विहार को ईकोटूरिज्म के रूप में विकसित किया जाएगा इसके अलावा अगले वित्तीय वर्ष में 04 हेक्टेयर भूमि पर 50 करोड़ की लागत से प्रदेश का सबसे बेहतरीन ऑडिटोरियम, म्यूजियम की स्थापना होगी।
पूर्व मंत्री, विधायक भोगांव रामनरेश अग्निहोत्री ने कहा कि प्रदेश तेजी से विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है, प्रदेश में वर्तमान सरकार के नेतृत्व में तेजी से माहौल बदला है, आज प्रदेश में शांति का माहौल है और दुनिया भर के उद्यमी प्रदेश में इन्वेस्ट करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों पूर्व उद्योगों के संचालन में काफी कठिनाई का सामना करना पड़ता था, आसानी से अनापत्ति प्रमाण पत्र, विद्युत कनेक्शन नहीं मिलते थे लेकिन आज प्रदेश सरकार ने उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए एकल खिड़की व्यवस्था लागू की, सभी औपचारिकताएं ऑनलाइन करने की व्यवस्था की गयी ताकि किसी भी उद्यमी को उद्योग स्थापित करने में असुविधा का सामना न करना पड़े। उन्होने कहा कि देश विदेश के बड़े उद्योगपतियों द्वारा निवेश करने के कारण प्रदेश तेजी से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ेगा। उन्होने कहा कि प्रदेश में औद्योगिक नीति को लागू करके इन्वेस्ट फ्रैंडली बनाने का कार्य किया, निवेशक को आवेदन करने के अंदर 15 दिन भीतर भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गयी।
जिलाधिकारी अविनाश कृष्ण सिंह ने इन्वेस्टर्स समिट-2023 में निवेश करने वाले उद्यमियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि नए उद्योगों की स्थापना से जनपद विकास के मार्ग पर तेजी से अग्रसर होगा, यहां के शिक्षित नौजवानों को रोजगार के अवसर मिलेंगे साथ ही जनपद का राजस्व भी बढ़ेगा जो जनपद के विकास में सहायक सिद्ध होगा। उन्होंने उपस्थित उद्यमियों का आव्हान करते हुए कहा कि जनपद में काले गेहूं, चावल के अलावा मूंगफली, एक पुति के लहसुन के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं, काला गेहूं असाध्य बीमारियों से निजात दिलाने में सहायक है। उन्होंने जनप्रतिनिधियों, उद्यमियों से संवाद करते हुये बताया कि जनपद में शासन की जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम पायदान तक के व्यक्ति तक पहुंच रहा है, प्राप्त जन शिकायतों का समयबद्ध, गुणवत्तापरक निराकरण किया जा रहा है, संचालित विकास कार्यक्रमों का धरातल पर क्रियान्वयन हो रहा है, कानून व्यवस्था में भी तेजी से सुधार हुआ है, जिसका परिणाम है कि जनपद प्रदेश के टॉप-10 जनपद में शामिल हैं, वहीं जन शिकायतों के
निराकरण में जनपद को 06वीं रैंक प्राप्त हुई है, अपराध नियंत्रण में भी जनपद टॉप-10 में शामिल है ।
जिलाध्यक्ष प्रदीप चौहान ने कहा कि उ.प्र. को देश का ग्रोथ इंजन बनाने के लिए सरकार तेजी से कार्य कर रही है, आज प्रदेश में उद्यमी निवेश करने को तत्पर्य है। उन्होने कहा कि देश की बागडोर संभालने के बाद यशस्वी प्रधानमंत्री ने किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा किया और उसे पूरा करने के लिए किसानों को अपनी उपज का सामान वाजिब मूल्य पर बेचने के लिए प्लेटफॉर्म मुहैया कराया, कम लागत में अधिक मुनाफा मिले, इसके लिए तमाम योजनाएं संचालित की। पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार ने कहा कि उद्यमियों की सुरक्षा प्राथमिकता में हैं यदि किसी भी उद्यमी को कोई असुविधा हो या किसी के द्वारा शोषण करने का प्रयास किया जाये तो तत्काल संज्ञान में लायें, व्यापारियों की समस्या का सर्वोच्च प्राथमिकता पर निदान होगा। उन्होने कहा कि व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर जनपद पुलिस निरतंर चौकसी बरत रही है, जनपद में कानून व्यवस्था में तेजी से सुधार हुआ है, आज जनपद में माहौल बदला है। मुख्य विकास अधिकारी विनोद कुमार ने कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुये कहा कि जनपद में चावल के क्षेत्र में अपार सम्भावनाएं हैं, गत वर्ष जनपद से 300 करोड़ रु. का चावल निर्यात हुआ, जनपद का वॉसमती चावल विदेशों, विशेषतौर पर खाड़ी देशों में बहुत प्रचलित है। उन्होने उद्यमियों का आव्हान करते हुये कहा कि जनपद में निवेश करें किसी भी उद्यमी को उद्योगों की स्थापना, संचालन में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होगी, उद्यमी जनपद को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में पहचान दिलाने में अपना सहयोग दें इन्वेस्टर्स मीट में उद्यमी अनिल 1 अग्रवाल, लक्ष्मी नारायण तापडिया, राघव तापड़िया, डा. राम मोहन, डा. कुसुम मोहन, अनुज अग्निहोत्री, राहुल राठौर, मयंक शर्मा ने प्रस्तुत किये गये निवेश प्रस्तावों पर विस्तार से जानकारी दी। इस अवसर पर पूर्व विधायक अशोक सिंह चौहान, जिला पंचायत प्रतिनिधि गोविन्द भदौरिया, अपर जिलाधिकारी राम जी मिश्र, उप जिलाधिकारी सदर, भोगांव, करहल, किशनी, कुरावली नवोदिता शर्मा, अंजलि सिंह, गोपाल शर्मा, आर.एन. वर्मा, युगान्तर त्रिपाठी, डिप्टी कलेक्टर वीरेन्द्र कुमार मित्तल, क्षेत्राधिकारी नगर संतोष कुमार, उपायुक्त उद्योग मो. सऊद, उप कृषि निदेशक डी.वी. सिंह, अग्रणी जिला प्रबन्धक अनिल प्रकाश तिवारी, पर्यटन अधिकारी प्रदीप टमटा सहित अन्य सम्बन्धित अधिकारी, उद्यमी, पार्टी पदाधिकारी आदि उपस्थित रहे।
संत रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और जातिपाति का घोर खंडन किया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।Bahujan Movement:
संत रैदास स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उनके शिष्य उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में जिस परमेश्वर राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि का गुणगान किया गया है।सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। एक ही अलौकिक शक्ति है और कोई दूजा नहीं है। सभी मनुष्य सामान है कोई ऊच नीच नहीं है।ऊच नीच जैसी सामाजिक बुराई सभी चालाक लोग अपने फायदे के लिए बनाये है। ईश्वर सभी को सामान दृष्टि से देखता है। मानव मानव में कोई भेद नहीं है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।
संत रविदास का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै॥
संत रविदास के विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है Bahujan Movement:
साहित्यकार मुंशी प्रेम चन्द
Dt.15 January 2023। Mukesh Bharti ।हिंदी के महान साहित्यकार मुंशी प्रेम चन्द का नाम किसने नहीं सुना और पढ़ा नहीं है लेकिन अधिकांश लोग उनके बारे में नहीं जानते है। मुंशी प्रेम चन्द उर्फ़ धनपत राय श्रीवास्तव जो प्रेमचंद नाम से जाने जाते हैं, मुंशी प्रेम चन्द का जन्म 31 जुलाई 1880 को हुआ था और अंतिम साँस 8 अक्टूबर 1936 को लेकर इस दुनिया से विदाई ली। अपने कहानी और उपन्यास के माध्यम अपनी पहचान स्थापित किया और लोगो के दिलों में लम्बे समय तक राज किया। आज भी मुंशी प्रेम चन्द जी के साहित्य के बिना साहित्य की पढ़ाई अधूरी है।
मुंशी प्रेम चन्द उर्फ़ धनपत राय श्रीवास्तव जी हिन्दी और उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार, कहानीकार एवं विचारक थे। उन्होंने सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि लगभग डेढ़ दर्जन उपन्यास तथा कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, बूढ़ी काकी, दो बैलों की कथा आदि तीन सौ से अधिक कहानियाँ लिखीं। गबन, कर्मभूमि, गोदान ने तो खूब धमाल मचाया। उनमें से अधिकांश हिन्दी तथा उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुईं। उन्होंने अपने दौर की सभी प्रमुख उर्दू और हिन्दी पत्रिकाओं जमाना, सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि में लिखा।
मुंशी प्रेम चन्द उर्फ़ धनपत राय श्रीवास्तव ने हिन्दी समाचार पत्र जागरण तथा साहित्यिक पत्रिका हंस का संपादन और प्रकाशन भी किया। इसके लिए उन्होंने सरस्वती प्रेस खरीदा जो बाद में घाटे में चली गयी और प्रेस बन्द करना पड़ा। अंतिम दिनों में प्रेमचंद फिल्मों की पटकथा लिखने मुंबई आए और लगभग तीन वर्ष तक रहे। जीवन के अंतिम दिनों तक वे साहित्य सृजन में लगे रहे। महाजनी सभ्यता उनका अंतिम निबन्ध, साहित्य का उद्देश्य अन्तिम व्याख्यान, कफन अन्तिम कहानी, गोदान अन्तिम पूर्ण उपन्यास तथा मंगलसूत्र अन्तिम अपूर्ण उपन्यास माना जाता है।
1906 से 1936 के बीच लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य इन तीस वर्षों का सामाजिक सांस्कृतिक दस्तावेज है। इसमें उस दौर के समाजसुधार आन्दोलनों, स्वाधीनता संग्राम तथा प्रगतिवादी आन्दोलनों के सामाजिक प्रभावों का स्पष्ट चित्रण है। उनमें दहेज, अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह, आधुनिकता, स्त्री-पुरुष समानता, आदि उस दौर की सभी प्रमुख समस्याओं का चित्रण मिलता है। आदर्शोन्मुख यथार्थवाद उनके साहित्य की मुख्य विशेषता है। हिन्दी कहानी तथा उपन्यास के क्षेत्र में 1918 से 1936 तक के कालखण्ड को ‘प्रेमचंद युग’ या ‘प्रेमचन्द युग’ कहा जाता है।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा।
” जिन्दगी का हर एक छोटा हिस्सा ही
हमारी जिदंगी की सफ़लता का बड़ा हिस्सा होता है।”
आईपीसी की धारा 323 में विधि का क्या प्राविधान है

IPC की धारा 323 का विवरण :जो कोई किसी अगर कोई अपनी इच्छा से किसी को चोट या नुकसान पहुंचाता है, तो ऐसा करने पर उसे 1 साल तक की कैद या 1 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है तो वह व्यक्ति धारा 323 के अंतर्गत दंड एवं जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।
विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0।Dt.19-12-2022
अथवा
स्वेच्छया उपहति/चोट कारित करने के लिए दण्ड। उस दशा के सिवाय जिसके लिए धारा 334 में उपबंध है ,जो कोई स्वेच्छया उपहति करीत करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवश्य एक वर्ष तक की हो सकरगि , या जुर्माने से जो 1000 रूपये तक का हो सकेगा , या दोनों से , दण्डित किया जायेगा।
उपहति /चोट से आशय ; जो कोई किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा , रोग या अंग -शैथिल्य कारित करता है, वह उपहति करता है। यह कहा जाता है।
विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0।Dt.19-12-2022
नोट : दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार : यह जमानतीय और असंज्ञेय अपराध है जमानत कोई जुडिसियल मजिस्ट्रेट दे सकता है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड:
आज़ादी के आंदोलन में हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे : 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों पर बिना बताये ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए थे। इस कांड में मारे गए लोग रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। इस हत्या काण्ड का बदला लेने के लिए वर्ष 1940 में सरदार उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या कर दी थी। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 19-12-2022

क्या है रॉलेट एक्ट 1919 को जाने :
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक शृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था।इस संदर्भ में सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर यह अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये अधिकार प्रदान किये और दो साल तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दी।
जलियांवाला बाग हत्या काण्ड की पृष्ठभूमि: महात्मा गांधी इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे, जो 6 अप्रैल, 1919 को शुरू हुआ। 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी वारेंट के गिरफ्तार कर लिया। इससे भारतीय प्रदर्शनकारियों में आक्रोश पैदा हो गया जो 10 अप्रैल को हज़ारों की संख्या में अपने नेताओं के साथ एकजुटता दिखाने के लिये निकले थे।भविष्य में इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने हेतु सरकार ने मार्शल लॉ लागू किया और पंजाब में कानून-व्यवस्था ब्रिगेडियर-जनरल डायर को सौंप दी गई। घटना का दिन: 13 अप्रैल, बैसाखी के दिन अमृतसर में निषेधाज्ञा से अनजान ज़्यादातर पड़ोसी गाँव के लोगों की एक बड़ी भीड़ जालियांवाला बाग में जमा हो गई।इस बड़ी भीड़ को तितर बितर करने के लिए ब्रिगेडियर- जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचा। सैनिकों ने जनरल डायर के आदेश के तहत सभा को घेर कर एकमात्र निकास द्वार को अवरुद्ध कर दिया और निहत्थे भीड़ पर गोलियाँ चलाना शुरू कर दी दीं, जिसमें 1000 से अधिक निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना का महत्त्व:जलियांवाला बाग भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थल बन गया और अब यह देश का एक महत्त्वपूर्ण स्मारक है।जलियांवाला बाग त्रासदी उन कारणों में से एक थी जिसके कारण महात्मा गांधी ने अपना पहला, बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) अभियान, असहयोग आंदोलन (1920–22) का आयोजन शुरू किया।इस घटना के विरोध में बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।भारत की तत्कालीन सरकार ने घटना (हंटर आयोग) की जाँच का आदेश दिया, जिसने वर्ष 1920 में डायर के कार्यों के लिये निंदा की और उसे सेना से इस्तीफा देने का आदेश दिया। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 19-12-2022
महान दार्शनिक रजनीश ओशो
प्रेम है सीढ़ी और परमात्मा है उस यात्रा की अंतिम मंजिल।”—ओशो
Dt.7 January 2023। Mukesh Bharti ।आधुनिक युग के महान दार्शनिक रजनीश ओशो ने जीवन जीने की नई ऊर्जा दी। संभोग में समाधि नामक अपने दर्शन की किताब में इस नये आयाम दिया मनुष्य अपने जीवन को नर्क बना देता है जीवन भर सेक्स के पीछे भागता रहता है जबकि जीवन का लक्ष्य कुछ और ही है।
“जो उस मूलस्रोत को देख लेता है…”।
यह बुद्ध का वचन बड़ा अदभुत है : वह अमानुषी रति को उपलब्ध हो जाता है। वह ऐसे संभोग को उपलब्ध हो जाता है, जो मनुष्यता के पार है।
जिसको मैंने, ” संभोग से समाधि की ओर ” कहा है, उसको ही बुद्ध अमानुषी रति कहते हैं | एक तो रति है मनुष्य की — स्त्री और पुरुष की। क्षण भर को सुख मिलता है। मिलता है? — या आभास होता है कम से कम। फिर “एक रति है, जब तुम्हारी चेतना अपने ही मूलस्रोत में गिर जाती है; जब तुम अपने से मिलते हो। “एक तो रति है – दूसरे से मिलने की। और एक रति है – अपने से मिलने की। ” जब तुम्हारा तुमसे ही मिलना होता है, उस क्षण जो महाआनंद होता है, वही समाधि है। ” संभोग में समाधि की झलक है; समाधि में संभोग की पूर्णता है।” ओशो
पुस्तक के कुछ मुख्य विषय-बिंदु:
प्रेम क्या है? कामवासना का मूलस्रोत क्या है? यौन-ऊर्जा का रूपांतरण कैसे संभव? क्या संभावनाएं हैं मनुष्य की?
सामग्री तालिका
अध्याय शीर्षक अनुक्रम
1: संभोग : परमात्मा की सृजन-ऊर्जा 2: संभोग : अहं-शून्यता की झलक 3: संभोग : समय-शून्यता की झलक 4: समाधि : अहं-शून्यता, समय-शून्यता का अनुभव 5: समाधि : संभोग-ऊर्जा का आध्यात्मिक नियोजन 6: यौन : जीवन का ऊर्जा-आयाम 7: युवक और यौन 8: प्रेम और विवाह 9: जनसंख्या विस्फोट 10: विद्रोह क्या है 11: युवक कौन 12: युवा चित्त का जन्म 13: नारी और क्रांति 14: नारी—एक और आयाम 15: सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति 16: भीड़ से, समाज से—दूसरों से मुक्ति 17: दमन से मुक्ति 18: न भोग, न दमन—वरन जागरण
विवरण: जीवन-ऊर्जा रूपांतरण के विज्ञान पर ओशो द्वारा दिए गए 18 प्रवचनों का संकलन।
उद्धरण : संभोग से समाधि की ओर – पहला प्रवचन – संभोग : परमात्मा की सृजन-ऊर्जा
“जिस आदमी का ‘मैं’ जितना मजबूत है, उतनी ही उस आदमी की सामर्थ्य दूसरे से संयुक्त हो जाने की कम हो जाती है। क्योंकि ‘मैं’ एक दीवाल है, एक घोषणा है कि मैं हूं। मैं की घोषणा कह देती है: तुम ‘तुम’ हो, मैं ‘मैं’ हूं। दोनों के बीच फासला है। फिर मैं कितना ही प्रेम करूं और आपको अपनी छाती से लगा लूं, लेकिन फिर भी हम दो हैं। छातियां कितनी ही निकट आ जाएं, फिर भी बीच में फासला है–मैं ‘मैं’ हूं, तुम ‘तुम’ हो। इसीलिए निकटतम अनुभव भी निकट नहीं ला पाते। शरीर पास बैठ जाते हैं, आदमी दूर-दूर बने रह जाते हैं। जब तक भीतर ‘मैं’ बैठा हुआ है, तब तक दूसरे का भाव नष्ट नहीं होता।
सार्त्र ने कहीं एक अदभुत वचन कहा है। कहा है कि दि अदर इज़ हेल। वह जो दूसरा है, वही नरक है। लेकिन सार्त्र ने यह नहीं कहा कि व्हाय दि अदर इज़ अदर? वह दूसरा ‘दूसरा’ क्यों है? वह दूसरा ‘दूसरा’ इसलिए है कि मैं ‘मैं’ हूं। और जब तक मैं ‘मैं’ हूं, तब तक दुनिया में हर चीज दूसरी है, अन्य है, भिन्न है। और जब तक भिन्नता है, तब तक प्रेम का अनुभव नहीं हो सकता।
प्रेम है एकात्म का अनुभव। प्रेम है इस बात का अनुभव कि गिर गई दीवाल और दो ऊर्जाएं मिल गईं और संयुक्त हो गईं। प्रेम है इस बात का अनुभव कि एक व्यक्ति और दूसरे व्यक्ति की सारी दीवालें गिर गईं और प्राण संयुक्त हुए, मिले और एक हो गए। जब यही अनुभव एक व्यक्ति और समस्त के बीच फलित होता है, तो उस अनुभव को मैं कहता हूं–परमात्मा। और जब दो व्यक्तियों के बीच फलित होता है, तो उसे मैं कहता हूं–प्रेम।
अगर मेरे और किसी दूसरे व्यक्ति के बीच यह अनुभव फलित हो जाए कि हमारी दीवालें गिर जाएं, हम किसी भीतर के तल पर एक हो जाएं, एक संगीत, एक धारा, एक प्राण, तो यह अनुभव है प्रेम। और अगर ऐसा ही अनुभव मेरे और समस्त के बीच घटित हो जाए कि मैं विलीन हो जाऊं और सब और मैं एक हो जाऊं, तो यह अनुभव है परमात्मा।
इसलिए मैं कहता हूं: प्रेम है सीढ़ी और परमात्मा है उस यात्रा की अंतिम मंजिल।”—ओशो
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