Lucknow News: आज ही के दिन पहली बार भारत के वंचित समाज के व्यक्ति डॉ० के०आर० नारायणन बने थे देश के प्रथम व्यक्ति-Hon’ble K R Narayanan – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

Lucknow News: आज ही के दिन पहली बार भारत के वंचित समाज के व्यक्ति डॉ० के०आर० नारायणन बने थे देश के प्रथम व्यक्ति-Hon’ble K R Narayanan

1 min read
😊 Please Share This News 😊

सम्पादकीय ::मुकेश भारती  {Lucknow} :: Published Dt.25.07.2023 :Time:8:30PM : आज ही के दिन पहली बार भारत के वंचित समाज के व्यक्ति बने थे देश के प्रथम व्यक्ति:बहुजन प्रेस -संपादक: मुकेश भारती :www. Bahujan india 24 news.com


Mukesh Bharti
Editor- Mukesh Bharti: Bahujan India 24 News

बहुजन प्रेरणा ( हिंदी दैनिक समाचार पत्र ) व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (डिजिटल मीडिया)

न्यूज़ और विज्ञापन के लिए संपर्क करें – सम्पर्क सूत्र :9336114041, 9161507983


Lucknow News ।  ब्यूरो रिपोर्ट :मुकेश भारती ।।Date:25 Jully। (Month Jully 2023)- Lucknow News Serial: Weak -05:: (23 Days to 31 Days)(News No-02) (Year 2023 -News No:12)


आज ही के दिन पहली बार भारत के वंचित समाज के व्यक्ति बने थे देश के प्रथम व्यक्ति।
ऐसे दलित राष्ट्रपति जिन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति फाईल को यह कहकर वापस कर दिया था कि इसमें एक भी यससी, यसटी , ओबीसी, माईनरिटी के नाम क्यों नहीं हैं ?

महामहिम राष्ट्रपति डॉ० के०आर० नारायणन देश के पहले दलित राष्ट्रपति थे। उनका सम्पूर्ण जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। वे केरल के एक गांव में फूस की झोपड़ी में 1920 में पैदा हुए। उनके पिता आयुर्वेदिक औषधिओं के ज्ञाता थे, इसी से वे अपना परिवार चलाते थे। गरीबी इतनी भयंकर कि 15 किमी. दूर सरकारी स्कूल में पैदल पढ़ने जाते थे। कभी-कभी फीस न होने पर उन्हें कक्षा से बाहर खड़ा होना पड़ता था। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की। ज़ब वह भारत लौटे तो उनके प्रोफेसर ने एक पत्र भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल के नाम उन्हें दिया उस पत्र में उनकी प्रतिभा का उल्लेख था। चूंकि उन्होंने तीन वर्ष का कोर्स 2 साल में विशेष योग्यता के साथ पास किया था। ज़ब वह पत्र उन्होंने नेहरू जी को दिया तो नेहरू जी ने उन्हें राजदूत नियुक्त कर दिया। सेवानिवृत होने पर उन्हें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। एक बार वे उप राष्ट्रपति रहे। उसके बाद वे भारत के दसवें एवं पहले दलित राष्ट्रपति बने।

1. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बिना हस्ताक्षर किये फाइल यह कहते हुए वापस कर दी कि 10 न्यायाधीशों के इस पैनल में एक भी SC/ST/OBC का जज क्यों नहीं है। उनके तेवर देखकर सरकार में हड़कंम मच गया तब जाकर मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन को बनाया गया, जो अनुसूचित जाति के पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। इस व्यवस्था को Sc. St. Obc के लोग भूल नहीं सकते। ये भी केरल के ही थे।
2. दूसरा कड़ा कदम तब उठाया जब वाजपेयी सरकार के सावरकर को भारत रत्न देने के प्रस्ताव को वापस कर दिया !
3. तीसरा कड़ा कदम तब उठाया जब वाजपेयी सरकार के उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया।

ऐसे महामहिम की आज जरूरत है ! ऐसे महान पुरुषों को उत्तर भारत के sc. St. Obc. के लोग जानते तक नहीं !

लोगों द्वारा समाज में यह भ्रम फैलाया गया है कि दलित लोग शिक्षा के लायक नहीं थे, जबकि संविधान सभा में 14 महिलाएं ग्रेजुऐट थी एक sc. की महिला ग्रेजुएट थी। हजारों लोग ब्रिटिश शासन में उच्च शिक्षित थे।
दूसरे महामहिम राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्णन जिनके नाम से शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वे तथा डॉ केआर नारायणन सभी अंग्रेओं के इंग्लिश माध्यम में पढ़े थे।
#महामहिम राष्ट्रपति डॉ० केआर नारायणन जी ने सन् 1948 में अंग्रेजी साहित्य में प्रथम श्रेणी से एमए पास किया। एमए पास करने के बाद उन्होंने’ महाराजा कालेज में अंग्रेजी प्रवक्ता पद के लिये आवेदन किया। लेकिन त्रावणकोर के दीवान सीपी रामास्वामी अय्यर ने नारायणन जी को प्रवक्ता पद पर काम करने से रोक दिया और कहा कि आपको सिर्फ़ क्लर्क पद पर ही कार्य करना होगा।
अय्यर के मन में जातीय भेदभाव इस क़दर भरा हुआ था कि वह कामगार किसान आदिवासी-कबाइली जमात के किसी भी युवक-युवतियों को प्रवक्ता पद पर आसीन होते सहन नहीं कर सकता था।
स्वाभिमानी डॉ० केआर नारायणन जी ने क्लर्क की नौकरी पर काम करने से साफ-साफ इंकार कर दिया और इसके ठीक बाद में विवि के दीक्षांत समारोह में बीए की डिग्री लेने से भी मना कर दिया।


इस घटना के 4 दशक बाद सन 1992 में उपराष्ट्रपति बनने पर उनके गृह राज्य केरल विवि के उसी सीनेट में उनका जोरदार स्वागत हुआ।
उस वक़्त की तत्कालीन जातिवादियों पर तंज कसते हुए नारायणन जी ने कहा “आज मुझे उन जातिवादियों के दर्शन नहीं हो रहे हैं’, जिन्होंने वंचित जमात का सदस्य होने के कारण इसी विवि में मुझे प्रवक्ता बनने से वंचित कर दिया था”।
1946 में श्री केआर नारायणन जी दिल्ली में डॉ० बी०आर० अम्बेडकर जी से मिलने आये थे। डॉ० अम्बेडकर जी उस समय के वायसराय की काउंसिल में श्रम विभाग के सदस्य थे। नारायणन जी की योग्यता को देखते हुए डॉ० अम्बेडकर जी ने उन्हें दिल्ली में ही भारत ओवरसीज विभाग (जिसे अब “विदेश विभाग “कहा जाता है) में’ 250 रुपये प्रतिमाह पर सरकारी नौकरी दिलवा दी।

राजनयिक के तौर पर नारायणन जी टोकियो, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, हनोई में स्थित भारतीय उच्चायोग में प्रतिष्टित पदों पर रहे और चीन के राजदूत भी नियुक्त हुए। वहाँ से रिटायर होने के बाद सन 1979 से 1980 तक जेएनयू के कुलपति रहे। सन1980 से 1984 तक अमेरिका के राजदूत भी रहे।
श्री के आर नारायणन जी 14 जुलाई 1997 को भारत के दसवें राष्ट्रपति चुने गए।
श्री के आर नारायणन जी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने वंचित वर्ग के लोगों के लिये’ उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने का रास्ता खोला था।
उच्चतम न्यायालय के तत्कलीन मुख्य न्यायाधीश ए एस आनंद ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के लिये दस न्यायविद उच्च न्यायालयों के कानून विशेषज्ञों का एक पैनल बनाकर मंजूरी के लिये राष्ट्रपति को भेजा था।श्री के आर नारायणन जी ने उस फाइल को स्वीकृति करने की बजाय तल्ख टिप्पणी लिखी-“क्या इन दस व्यक्तियों के पैनल में रखने के लिये उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों में’ भारत में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित वर्ग के अनुसूचित जाति एवं जनजाति का एक भी व्यक्ति योग्य न्यायाधीश नहीं है?”
देश के राष्ट्रपति की इस टिप्पणी से सरकार से लेकर न्यायालय में हड़कंप सा मच गया। न्यायिक पदों के लिए देश में वंचितों और आदिवासियों के प्रतिनिधित्त्व पर बहस शुरू हो गई ।

एक समय ऐसा भी आया जब राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन जी किसी दौरे पर थे और श्री के आर नारायणन जी को जिस होटल में ठहराया जाना था, उसी दौरान दक्षिण पंथी मनुवाद व मुनीमवाद के पक्षधर लोगों ने होटल के कर्मचारियों से मिलकर श्री के आर नारायणन जी को भोजन में जहर देकर मारने की कोशिश की थी। परन्तु होटल के रसोइयों ने ऐसा करने से मना कर दिया था।
एक राष्ट्रपति की इस बेबाक टिप्पणी ने वंचित जमात के लोगों के लिये सर्वोच्च न्यायालय में प्रवेश का रास्ता खोला गया था। सत्तारूढ़ मनुवाद व मुनीमवाद के अनुसार नहीं चलने के कारण ही श्री के आर नारायणन जी ने दोबारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। श्री के आर नारायणन जी वह पहले देश राष्ट्रपति थे जो अनुसूचित वर्ग से थे। जबकि राष्ट्रपति का चुनाव लड़ते समय उन्हें सामान्य श्रेणी में चुनाव लड़ा था।


लखीमपुर खीरी ::मुकेश भारती  {Lucknow} :: Published Dt.26.01.2023 :Time:3:30AM : 26 जनवरी 2023 को भारत अपना 74 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है:बहुजन प्रेस 


Mukesh Bharti
Editor- Mukesh Bharti: Bahujan India 24 News

बहुजन प्रेरणा ( हिंदी दैनिक समाचार पत्र ) व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (डिजिटल मीडिया)


Lakhimpur News ।  ब्यूरो रिपोर्ट :मुकेश भारती । 26 जनवरी 2023 को भारत अपना 74 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है इसे प्रधानमत्री जी ने अमृत महोत्सव के रूप में मनाने जा रहे है इसी दिन भारतीय संविधान को पूर्ण रूप से लागू किया गया था। वर्तमान में 28 राज्य और 7 इस संघीय राज्यों को संविधान से रेगुलेट किया जा रहा है। भारतीय संविधान विश्व का सबसे बड़ा लिखित संविधान है। जिसको 2 वर्ष 11 माह 18 दिन बनाने में लगा था।bheem rao ambedkar
संविधान सभा में मसौदा समिति के अध्यक्ष डॉ बीआर अम्बेडकर थे जिनको भारतीय संविधान का मुख्य वास्तुकार माना जाता है जो देश की अद्वितीय सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को ध्यान में रखते हुए देश को मार्गदर्शन और शासन करने के लिए एक व्यापक और गतिशील ढांचा प्रदान करता है। 26 जनवरी 1950 को ही भारतीय संविधान लागू किया गया था। 26 जनवरी का दिन भारतीय के इतिहास में विशेष महत्व रखता है। जिसके पश्चात हर साल 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय अधिनियम एक्ट को हटा कर संविधान को लागू किया गया था व लोकतान्त्रिक प्रणाली के साथ भारतीय संविधान को जोड़ा गया था। 26 जनवरी के दिन नई दिल्ली में सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमे भारत के राष्ट्रपति द्वारा ध्वजारोहण किया जाता है। इस दिन स्कूल कॉलेजों व सरकारी संस्थानों में भी तिरंगा फहराया जाता है, रैलियां निकाल कर नारे लगाए जाते हैं और वीर सपूतो को याद किया जाता है। छात्रों द्वारा स्कूलों में अलग-अलग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
भारत की संविधान सभा का चुनाव भारतीय संविधान की रचना के लिए किया गया था। ब्रिटेन से स्वतन्त्र होने के बाद संविधान सभा के सदस्य ही प्रथम संसद के सदस्य बने।

Mukesh Bharti
Adv. Mukesh Bharti

संविधान कैसा हो इसकी रूप रेखा कैसी होगी वर्तमान के संविधान की संरचना कई चरणों के बाद मिली। सबसे पहले 1925 में महात्मा गांधी की अध्यक्षता में कामनवेल्थ ऑफ इण्डिया बिल प्रस्तुत किया। जो भारत के लिए संवैधानिक प्रणाली की रूपरेखा प्रस्तुत करने का प्रथम प्रयास था।

पहली बार संविधान सभा की माँग सन-1895 में बाल गंगाधरतिलक ने उठाई थी। अन्तिम बार (पाँचवी बार) 1938 में नेहरू जी ने संविधान सभा बनाने का निर्णय लिया था। संविधान सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित हुए थे। जिनका चुनाव जुलाई 1946 में सम्पन्न हुआ था।भारत पाकिस्तान बँटवारे के बाद कुल सदस्यों (389) में से भारत में 299 ही रह गए। जिनमे 296 चुने हुए थे। वहीं 70 मनोनीत थे। जिनमें कुल महिला सदस्यों की संख्या 15 , अनुसूचित जाति के 26, अनुसूचित जनजाति के 33 सदस्य थे।

संविधान सभा:

6 दिसम्बर 1946: संविधान सभा की स्थापना हुई (फ्रेंच प्रथा के अनुसार)Tiranga
9 दिसम्बर 1946: संविधान सभागृह (आज का संसद भवन सेंट्रल हॉल) में संविधान सभा की पहली बैठक हुई। संविधान सभा को संबोधित करने वाले प्रथम व्यक्ति जे.बी. कृपलानी थे। इसकी अध्यक्षता सच्चिदानन्द सिन्हा ने की। स्वतन्त्र देश की माँग करते हुए मुस्लिम लीग ने बैठक का बहिष्कार किया।
11 दिसम्बर 1946: राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष, हरेंद्र कुमार मुखर्जी उपाध्यक्ष निर्वाचित।
22 जनवरी 1947: वस्तुनिष्ठ ठराव सर्वानुमति से स्वीकार हुआ।
22 जुलाई 1947: संविधान सभा ने तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार किया।
15 अगस्त 1947: भारत को स्वतन्त्रता मिली। भारत से अलग होकर पाकिस्तान नामक देश बना।
29 अगस्त 1947: मसौदा समिति बनी, जिसके अध्यक्ष डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर बनाए गए। इसके अन्य सदस्य ये थे: कन्हैयालाल मुंशी, मोहम्मद सादुल्लाह, अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर, गोपाळ स्वामी अय्यंगार, एन. माधव राव puna rao sa, टी.टी. कृष्णामचारी ।
16 जुलाई 1948: हरेंद्र कुमार मुखर्जी वी.टी. कृष्णामचारी संविधान सभा के दूसरे उपाध्यक्ष निर्वाचित किये गये।
26 नवम्बर 1949: संविधान सभा ने भारतीय संविधान को स्वीकार किया और उसके कुछ धाराओं को लागू भी किया गया।
24 जनवरी 1950: संविधान सभा की बैठक हुई जिसमें संविधान पर सभी ने अपने हस्ताक्षर करके उसे मान्यता दी।
26 जनवरी 1950: सम्पूर्ण भारतीय संविधान लागू हुआ।

प्रस्तावना :- गणतंत्र दिवस 26 जनवरी को मनाया जाता है। क्योकि इस दिन हमारा संविधान लागू हुआ था। इस दिन अंग्रेजों के कानूनों को हटा कर हमने खुद के संविधान को अपनाया था, संसद से भारतीय संविधान लागू होने के बाद भारत इस लोकतान्त्रिक गणराज्य बन गया, यही कारण है कि इस दिन को हम सभी राष्ट्रीय त्यौहार के रूप में सेलिब्रेट करते हैं।
भारत में लाहौर अधिवेशन में इस प्रस्ताव की घोषणा की गयी की यदि अंग्रेज सरकार द्वारा 26 जनवरी 1930 तक भारत को डोमीनियम का दर्जा नहीं दिया गया तो भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र घोषित कर दिया जाएगा। इस बात पर जब ब्रिटिश सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया। तब भारतीय कांग्रेस द्वारा 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वराज घोषित कर दिया गया। यह अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में दिसम्बर 1929 में हुआ था।
भारत की आजादी के बाद 9 दिसम्बर 1947 को संविधान सभा बनाने की शुरुआत की जिसे 2 वर्ष 11 माह व 18 दिन में बना कर तैयार किया गया। इसी दिन भारतीय कांग्रेस सरकार द्वारा भारत में पूर्ण स्वराज को भी घोषित कर दिया गया था और उस दिन से 26 जनवरी गणंतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारतीय संविधान निर्माण के लिए 22 समितियों का चुनाव किया गया। जिनका कार्य संविधान का निर्माण करना व संविधान बनाना था। सविधान सभा द्वारा संविधान निर्माण के लिए 114 दिन की बैठक की गयी जिसमे 308 सदस्यों ने भाग लिया इस बैठक के मुख्य सदस्य डॉ राजेंद्र प्रसाद, पंडित जवहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अंबेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद आदि थे।इनके अलावा संविधान सभा बैठक में जनता अथवा प्रेस को भी शामिल किया गया था। भारतीय संविधान को बनने में कुल 2 वर्ष 11 माह व 18 दिन का समय लगा जिसके बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान पुरे देश में लागू किया गया। 26 जनवरी की महत्व बनाये रखने के लिए व भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता देने के लिए 26 जनवरी गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन 1950 को देश में कानून और भारतीय शासन को लागू कर दिया गया।
गणतंत्र दिवस को पुरे भारत में राष्ट्रीय पर्व के रूप मनाया जाता है। 26 जनवरी के दिन भारत के राष्ट्रपति द्वारा समारोह में ध्वजारोहण किया जाता है और तोपों की सलामी के साथ ही गणतंत्र दिवस समारोह में मौजूद सभी नागरिकों द्वारा सामूहिक रूप से खड़े हो कर राष्ट्रगान गाया जाता है। Republic Day के दिन अलग-अलग रेजिमेंट, भारतीय तीनों सेनाएं ( जल, थल, नभ ) गणतंत्र दिवस समारोह में भाग लेते है और राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रपति को सलामी देते
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की अभिकल्पना पिंगली वैंकैया ने की थी। इसे 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजों से भारत की स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व 22 जुलाई, 1947 को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज: भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को 1921 में पहली बार अखिल भारतीय कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी को भारत के ध्वज का डिजाइन पिंगली (या पिंगले) वेंकय्या द्वारा बनाया गया था। इसमें दो प्रमुख धर्मों से जुड़े रंग शामिल थे, हिंदुओं के लिए लाल और मुसलमानों के लिए हरा।
क्षैतिज तिरंगा झंडा (भारत केसरिया, सफेद और भारत हरा) सफेद पट्टी के केंद्र में 24 तीलियां के साथ एक गहरे नीले रंग का पहिया। भारत के राष्ट्रीय ध्वज जिसे तिरंगा भी कहते हैं, तीन रंग की क्षैतिज पट्टियों के बीच नीले रंग के एक चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है।
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र हैं। यह चक्र धर्मचक्र का प्रतीक है।सफेद पट्टी के केंद्र में 24 तीलियां के साथ एक गहरे नीले रंग का पहिया है जो 24 घण्टे को प्रदर्शित करता है। उदाहरण के लिये सारनाथ स्थित सिंह-चतुर्मुख (लायन कैपिटल) एवं अशोक स्तम्भ पर अशोक चक्र विद्यमान है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज में अशोक चक्र को स्थान दिया गया है।
गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम राजपथ पर होता है जहां राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं। 1950 से पहले प्रधानमंत्री राज्य के मुखिया हुआ करते थे, इसलिए,पंडित जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण करते थे।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें 

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

Donate Now

[responsive-slider id=1466]
error: Content is protected !!