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Dalit News:यूपी के जौनपुर को गौरवान्वित करने वाले” फ्रीडम फाइटर बांके चमार” जिसे इतिहास में स्थान नहीं मिला “ईनाम पूरे पचास हज़ार: Bahujan Press

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सम्पादकीय ::मुकेश भारती  {Lucknow} :: Published Dt.31.07.2023 :Time:2:30PM : यूपी के जौनपुर को गौरवान्वित करने वाले” फ्रीडम फाइटर बांके चमार” जिसे इतिहास में स्थान नहीं मिला “ईनाम पूरे पचास हज़ार:बहुजन प्रेस -संपादक: मुकेश भारती :www. Bahujan india 24 news.com


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Lucknow News ।  ब्यूरो रिपोर्ट :मुकेश भारती ।।Date:31 Jully। (Month Jully 2023)- Lucknow News Serial: Weak -05:: (23 Days to 31 Days)(News No-13) (Year 2023 -News No:23)


Bahujan News।यूपी के जौनपुर को गौरवान्वित करने वाले” फ्रीडम फाइटर बांके चमार” जिसे इतिहास में स्थान नहीं मिला “ईनाम पूरे पचास हज़ार

इतिहास के लेखन में भी जातिवाद का हाबीपन देखने को मिला जौनपर को गौरवान्वित करने वाले फ्रीडम फाइटर बांके चमार का इतिहास में कोई जगह इसलिए नहीं दी गयी क्यों की उनकी जाति चमार थी। आप ने अक्सर पढ़ा होगा खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी , नाना के संघ पढ़ती थी और नाना के संघ खेली थी। फ्रीडम फाइटर चंद्र शेखर आज़ाद और भगत सिंह या फिर महात्मा गाँधी , सुभाष चंद्र बोस लेकिन किसी भी किताब में फ्रीडम फाइटर बांके चमार को साहित्य या सरकारी विद्यालय में कोई अध्याय में जगह नहीं दी गयी और उनकी आज़ादी की लड़ाई कैसे साहित्य से गुम कहानी हो गयी इसी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है की पढ़े लिखे लोग कितने जातिवादी होते है। 70 वर्षों तक सेन्ट्रल में शासन करने वाली कांग्रेस ने भी कोई सम्मान नहीं दिया और बहुजन समाज के नाम पर यूपी में सर्कार बनाने वाली बसपा ने भी कोई तब्बजो नहीं दी। फ्रीडम फाइटर बांके चमार को जिला अधिकारी जनपद जौनपुर ने भी आज तक कोई सम्मान नहीं दिया ये सभी शासन और प्रशासन की निष्ठुरता को दर्शित करता है।
आज़ादी की लड़ाई में अपनी बलिदानी और कुर्बानी देने वाले फ्रीडम फाइटर बांके चमार के ऊपर ब्रिटिश हुकूमत ने जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए ईनाम के तौर पर पूरे पचास हज़ार की घोषणा कर रखी थी।
फ्रीडम फाइटर बांके चमार का समाज बहुत ही गरीब और निरक्षर था फिर भी आज़ादी का जूनून कर जज्बा कूट कूट कर उनमे भरा था। क्या आप जानते हैं कि बनारस क्षेत्र में किसी फ्रीडम फाइटर के ऊपर सबसे बड़ी धनराशि पकड़ने के ईनाम एवज में 50 हज़ार की रकम घोषित की गयी थी तो केवल फ्रीडम फाइटर बांके चमार के ऊपर थी।
भारत के आजतक के इतिहास में सबसे बड़ा इनाम किसके सर पर रखा गया। अगर मैं आज 165 साल पहले की उस 50 हज़ार की रकम की कीमत निकालूं तो आज बैठेगी करीब 30 करोड। जी हाँ एक हिंदुस्तानी योद्धा के सर की कीमत तब की अंग्रेज सरकार ने तय की थी 50 हज़ार। वो भी आज से 164 साल पहले यानी 1857 में उसकी पूरी टोली के सर का इनाम तो तब भी 2 लाख से ऊपर था।
1857 की क्रांति में कई जिलों ने गोरों को नाकों चने चबवा दिए थे लेकिन दुर्भाग्य से हिंदुस्तान हिंदुस्तान से लड़ा और हार गया… पर फिर भी कुछ क्रांतिकारी थे जो न अभी तक हार मानने को तैयार थे न लड़ाई से हटने को और ऐसे ही योद्धा थे जौनपुर जनपद के क्षेत्र मछली शहर के बांके चमार। जौनपुर के इस इलाके में बांके चमार का अंग्रेज़ो में इतना खौफ था कि भारतीयों पर जुर्म करने की बात तो बहुत दूर उनके सपने में भी जुर्म करने से डरते थे। युद्ध कला के माहिर अंग्रेजो के खिलाफ अभियान में उनकी 40-50 की टोली अचानक प्रकट होती और किसी काफ़िले या अंग्रेज़ो के शिविर को नेस्तनाबूद करने में कुछ पल लगाती थी और अपना विजय पताका फहराकर आँखों से ओझल हो जाती थी आज की हाई टेक आर्मी भी नहीं सफल ऑपरेशन को अंजाम दे पाती है लेकिन चमारों की अपनी खुद की युद्ध नीति और सफल ट्रेनिंग की वजह से सब कुछ सहज कर विजय हासिल कर लेते थे ऐसी युद्ध नीति आज अमेरिका के पास भी नहीं है । जो गोरा हाथ लगता उसे मौत के घाट उतार दिया जाता। कानपुर के बाद सबसे ज्यादा अंग्रेज़ो को बांके ने अपना शिकार बनाया।
इस छापामार जंग का जब अंग्रेज़ो को कोई जवाब न सूझा उन्होंने हिंदुस्तानियत की अपनी समझ को ध्यान रख बांके पर 50 हज़ार का इनाम रख दिया….. अब उस समय की दुनियाँ का ये सबसे बड़ा ईनाम था। जब ये खबर बांके तक पहुंची वो हँस पड़ा और उसने ऐलान किया के आज से 50 कोस के दायरे में कोई अंग्रेज जिंदा नहीं छोड़ा जाएगा।
1850 के दशक में एक कहावत चल पड़ी कि अंग्रेजन गोरी माएँ अपने बच्चों को इस खौफ से रोने भी न देती थीं कि चुप हो जाओ कहीं बांके न आजाये। खैर आगे वही हुआ जो होता आया इतने बड़े इनाम के लालच में अंग्रेजों के दलाल स्थानीय जमीदारों ने बांके की मुखबिरी कर दी और धोखे से गिरफ्तार करवा दिया। अंग्रेज सरकार ने भी बिना एक पल गवाए बांके और 17 अन्य साथियों को फांसी पर लटका दिया।
बस यही से आगे बांके चमार का नाम इतिहास से मिटा दिया गया। न किसी नीले वस्त्रधारी महापुरुष को कभी उनकी याद आयी, न UP के किसी दलित नेता नेत्री को और न ही किसी कथित आर्मी को अन्य किसी की बात भी क्या करें। न बांके की कोई स्मृति बची, न इतिहास और न वो कहावत…. उस 50 हज़ार के ईनाम की कहानी जरूर ब्रिटिश राज की फाइलों में आज भी चीख चीख कर फ्रीडम फाइटर बांके चमार की दास्तान सुनाती हैं।
फ्रीडम फाइटर बांके चमार की दास्तान की कहानी जब जनपद के जाबाज और ईमानदार पत्रकारों को उनके बारे में पता चला तो लेख लिखना ईमानदारी के साथ फ्रीडम फाइटर बांके चमार की स्मृति के लिए शुरू कर दिया। देखना बाकि है कि क्या फ्रीडम फाइटर बांके चमार को इंसाफ मिलेगा या फिर ठन्डे बास्ते में चला जायेगा। बहुजन बहुजन चिल्लाने वाले नेताओं और सामाजिक कार्यकर्तों से अपील है कि अपनी रोटी सेकने के साथ कभी इंसानियत की भी बात कर फ्रीडम फाइटर बांके चमार को इंसाफ दिलाने के लिए अपनी आवाज बुलंद करें।

 

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