डा.बी.आर.अम्बेडकर “-व्यक्तित्व एवं कृतित्व- – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

डा.बी.आर.अम्बेडकर “-व्यक्तित्व एवं कृतित्व-

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डा.बी.आर.अम्बेडकर “-व्यक्तित्व एवं कृतित्व-
डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर से मिलना एक चलते -फिरते- बोलते म्युजियम के साक्षात्कार के समान था,उनका वार्तालाप देदीप्यमान आकर्षक, कठोर तथा ज्ञानवर्धक हुआ करता था,उनकी बातचीतों के दौरान विविध विषयों पर चर्चाएं चलती रहती थीं जो उनके मन रूपी म्युजियम में भरी पड़ी रहती थीं,वह अपने श्रोताओं को प्राचीनकाल की ओर ले जाते मध्यकालीन अन्धकार से निकालते हुए एक ऐसे स्थान पर ले आते जहां वे दुनिया को दृष्टिगोचर कर सकते थे,डॉ. अम्बेडकर उन्हें भूतकाल की व्याख्या से परिचय देते ,विभिन्न दन्त कथाओं का महत्व बतलाते और फिर प्राचीन एवं आधुनिक दर्शनों ,धर्मो एवं सिद्धान्तों का विश्लेषण करते थे,श्रोताओं को बड़ा आनन्द आता था,वह उनकी बातों से उकताते नहीं थे, आधुनिक युग के महान ऋषियों में से एक डॉ.अम्बेडकर के साथ सम्पर्क स्थापित कर वे बहुत आनन्दित होते थे,उनके सम्पर्क में सामीप्य तथा आत्मीयता थी जिसके कारण जन – साधारण भी उनसे एक बार मिलकर मुग्ध हो जाया करता था.
उन्हें केवल किताबें खरीदने एवं पढ़ने का ही शौक नहीं था ,बल्कि उन्हें सम्भाल कर रखना ,व्यवस्थित स्प में पाना भी ,उनको प्रिय लगता था,एक बारडॉ.अम्बेडकर ने कहा कि दुर्भाग्यवश यदि कोई कारिन्दा उनके पुस्तकालय को कब्जे में करने आए तो वह उसे प्रथम पुस्तक छूने से पहले ही जान से मार देंगे।

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Mukesh Bharti: Chief Editor-बहुजन इंडिया 24 न्यूज़

डॉ.अम्बेडकर ने कहा कि दुर्भाग्यवश यदि कोई कारिन्दा उनके पुस्तकालय को कब्जे में करने आए तो वह उसे प्रथम पुस्तक छूने से पहले ही जान से मार देंगे,पुस्तके ही उनका असली जीवन था,उन्हीं में उनके प्राण थे सिसरो कहता था कि वह पुस्तकों के बीच रहने के लिए सबका त्याग कर देंगे,गिब्बन ने कहा कि वह भारत के समस्त खजानों के बदले में भी पुस्तक -प्रेम का त्याग नहीं करेंगे,मेकॉले ने इच्छा व्यक्त की कि यदि वह राजा होने के बाद पुस्तकें नहीं पढ़ सका अथवा उसे नहीं पढ़ने दिया गया तो वह राजा बनना कतई पसन्द नहीं करेगा, डा.अम्बेडकर की भी अपनी प्रतिज्ञा थी,जब उन्हें नेत्र – रोग हुआ तब वह फूट- फूट कर रोये कि कहीं उनका पुस्तक पढ़ना बन्द न हो जाये, उन्होने सोचा कि यदि उनके नेत्रों की रोशनी चली गई तो वह अपने जीवन का अन्त कर लेंगे,ऐसा था उनका पुस्तक शौक,पुस्तके ही उनके साथी और मित्र थे,पुस्तकों के अभाव में उनका समस्त जीवन शून्य था, डॉ.बाबासाहब अम्बेडकर को केवल पुस्तकें पढ़ने का ही शौक नहीं था,बल्कि पुस्तकें लिखना भी उनके व्यक्तित्व का अंग था,जब कभी भी वह नई पुस्तक लिखते थे ,उनको बहुत खुशी होती थी और जब वह अपने विचारों को पुस्तक के रूप में प्रकाशित देखते थे, तब उन्हें असीम आनन्द की अनुभूति होती थी,उनके मस्तिष्क से निकली एक पुस्तक की उनकी खुशी कहीं चार बच्चों के जन्म से बढ़ कर होती थी,जैफरसन ने अपने पुस्तकालय को अमेरिकी सरकार को बेच दिया था ताकि वह अपने ऋणों को चुका दे, डॉ . अम्बेडकर ने अपने

पुस्तकालय को सिद्धार्थ कॉलेज , बॉम्बे ,जिसकी स्थापना स्वयं उन्होंने ही की थी ,को दे दिया
ताकि उस पुस्तकालय से उनका सम्पर्क बराबर बना रहे ,उसके बाद जब वह श्रम मन्त्री बने और 26 ,अलीपुर रोड ,दिल्ली में रहने लगे ,तब भी वह निरन्तर पुस्तके खरीदते रहे, वहां पर भी बहुत बड़ा पुस्तकालय विकसित हो गया ,जिसकी कीमत लाखों में थी उनकी रुचियां स्वतन्त्र थीं । 
baba saheb 6 dec2021
Baba Saheb Dr. Bheemrao Ambedkar Ji

डॉ.बाबासाहेब का जीवन रूढ़िगत संस्कारों से मुक्त था,वह अपनी रुचि ,बुद्धि एवं आवरण के अनुसार रूढ़िबद्ध संस्कारों का पूर्णतया खण्डन करते थे तथा उस खोखली ब्राह्मणी आदर्श नीति को नष्ट करना चाहते थे जिसके कारण व्यक्ति अपनी इच्छानुसार स्वतन्त्र न रह कर , अपनी रुचि अनुसार काम न कर , समाज की परम्पराओं और संस्कारों के इशारों पर कठपुतली मात्र बन कर नाचता रहे,डॉ. साहेब की मान्यता थी कि यदि मनुष्य को अपनी रुचि अनुसार धन्धा या रोजगार न मिले तो आर्थिक व्यवस्था खुशहाल नहीं हो सकती,मनुष्य को रूढ़ि, परम्परा ,अन्धविश्वास ,अज्ञान एवं अशिक्षा के बन्धन से मुक्त किया जाना चाहिए,उम्र के मोड़ के साथ – साथ डॉ.बाबा साहेब की रुचियों ,आचार -विचारों तथा अभ्यासों में थोड़ा -सा अन्तर अवश्य आया ,पर परिस्थितियों के थपेड़े सहन करके भी दलितों की सेवा में लीन रहते हुए भी ,वह अपने रुचि अनुसार जिये, बनावटी रहन – सहन तथा वेशभूषा में उनका विश्वास कतई नहीं था। -“डा.बी.आर.अम्बेडकर”

व्यक्तित्व एवं कृतित्व- 64-65.———मिशन अम्बेडकर.


Face book Post:Mission Ambedkar 14 dec2021

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