मन चंगा तो कठौती में गंगा-गुरु रविदास; बहुजन इंडिया 24 न्यूज़
1 min read
😊 Please Share This News 😊
|
रैदास वाणी के अनमोल बचन
Dt.26 Dec 2022 । Mukesh Bharti ।
भक्त रैदास या गुरु रविदास , संत रविदास । Guru Ravidas ।
“मन चंगा तो कठौती में गंगा”
भाव अर्थ :- गुरु रविदास जी अपनी वाणी के माध्यम से कहते है की यदि आपका मन और हृदय पवित्र है साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते है।
” रैदास जन्म के कारने होत न कोई नीच, नर कूं नीच कर डारि है, ओछे करम की नीच “
” जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।”
भाव अर्थ :- गुरु रविदास जी अपनी वाणी के माध्यम से कहते है की जिस प्रकार केले के तने को छिला जाये तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता है लेकिन पूरा पेड़ खत्म हो जाता है ठीक उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बाँट दिया गया है इन जातियों के विभाजन से इन्सान तो अलग अलग बंट जाता है और इन अंत में इन्सान भी खत्म हो जाते है लेकिन यह जाति खत्म नही होती है इसलिए रविदास जी कहते है जब तक ये जाति खत्म नही होंगा तबतक इन्सान एक दुसरे से जुड़ नही सकता है या एक नही हो सकता है।
“मन चंगा तो कठौती में गंगा”
भाव अर्थ :- गुरु रविदास जी अपनी वाणी के माध्यम से कहते है की यदि आपका मन और हृदय पवित्र है साक्षात् ईश्वर आपके हृदय में निवास करते है।
” हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस ”
भाव अर्थ :-समाज में फैले बुराईयों, कुरूतियो को दूर करते हुए सभी को एकता के सूत्र में बाधने का कार्य करते ही और सभी को ईश्वर की भक्ति करते हुए सच्चाई की मार्ग पर चलने का राह दिखाते है संत रविदास जिन्हें गुरु रविदास, रैदास, रूहिदास और रोहिदास जैसे अनेको नाम से भी जाना जाता है मध्युगीन भारत के महान समाज सुधारक, संत संत रविदास के दिखाए हुए भक्ति के मार्ग पर चलते हुए सत्य का पालन करना ही सच्ची ईश्वर की भक्ति और सेवा है रविदास के ऐसे विचार आज भी हम सभी के अनुकरणीय है।
” हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास। “
भाव अर्थ :- गुरु रविदास जी अपनी वाणी के माध्यम से कहते है की हीरे से बहुमूल्य हरी यानि ईश्वर को छोड़कर अन्य चीजो की आशा करते है उन्हें अवश्य ही नर्क जाना पड़ता है अर्थात प्रभु की भक्ति को छोडकर इधर उधर भटकना व्यर्थ है।
” करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।। “
भाव अर्थ :- गुरु रविदास जी अपनी वाणी के माध्यम से कहते है की हमे हमेसा अपने कर्म में लगे रहना चाहिए और कभी भी कर्म बदले मिलने वाले फल की आशा भी नही छोडनी चाहिए क्युकी कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना भी हमारा सौभाग्य है।
” कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै। तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।।“
भाव अर्थ :- गुरु रविदास जी अपनी वाणी के माध्यम से कहते है की ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है यदि आपमें थोडा सा भी अभिमान नही है तो निश्चित ही आपका जीवन सफल रहता है ठीक वैसे ही जैसे एक विशालकाय हाथी शक्कर के दानो को बिन नही सकता है लेकिन एक तुच्छ सी दिखने वाली चीटी भी शक्कर के इन दानो को आसानी से बिन लेती है इस प्रकार इंसानों को भी बडप्पन का भाव त्यागकर ईश्वर की भक्ति में अपना ध्यान लगाना चाहिए।
” कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।”
भाव अर्थ :- गुरु रविदास जी अपनी वाणी के माध्यम से कहते है की राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते है।
” जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड मेँ बास।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास।।”
भाव अर्थ :- गुरु रविदास जी अपनी वाणी के माध्यम से कहते है की जिस रविदास को देखने से लोगो को घृणा आती थी जिनका निवास नर्क कुंद के समान था ऐसे रविदास का ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना सच में फिर दे उनकी मनुष्य के रूप में उत्पत्ति हो गयी है।
” रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।”
भाव अर्थ :- गुरु रविदास जी अपनी वाणी के माध्यम से कहते है कीकी जिसके हृदय में रात दिन राम समाये रहते है ऐसा भक्त होना राम के समान है क्युकी फिर उसके ऊपर न तो क्रोध का असर होता है और न ही काम की भावना उसपर हावी होती है।
संत रविदास (रैदास) का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1398 को हुआ था उनका एक दोहा प्रचलित है।
चौदह सौ तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री रविदास।
उनके पिता संतोख दास तथा माता का नाम कलसांं देवी था। उनका विवाह माता लोना देवी से हुआ था। उनका पारिवारिक व्यवसाय जूता बनाने का था और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त व्यावहारिक और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया था। संत रामानन्द के शिष्य बनकर उन्होंने आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया। संत रविदास जी ने स्वामी रामानंद जी को कबीर साहेब जी के कहने पर गुरु बनाया था। जबकि उनके वास्तविक आध्यात्मिक गुरु कबीर साहेब जी ही थे।उनकी समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से भगा दिया। रविदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग इमारत बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे।
संत रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और जातिपाति का घोर खंडन किया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
संत रैदास स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उनके शिष्य उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में जिस परमेश्वर राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि का गुणगान किया गया है।सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। एक ही अलौकिक शक्ति है और कोई दूजा नहीं है। सभी मनुष्य सामान है कोई ऊच नीच नहीं है।ऊच नीच जैसी सामाजिक बुराई सभी चालाक लोग अपने फायदे के लिए बनाये है। ईश्वर सभी को सामान दृष्टि से देखता है। मानव मानव में कोई भेद नहीं है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।
संत रविदास का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै॥
संत रविदास के विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा
पेरियार रामास्वामी जयंती 17 सितम्बर मनाई जाती है। पेरियार रामास्वामी जयंती 17 सितम्बर 2023 को मनाई जायेगी ।
जीवन परिचय : Periyar saheb :पेरियार इरोड वेंकट नायकर रामासामी (जन्म 17 सितम्बर, 1879-मृत्यु 24 दिसम्बर, 1973) जिन्हे पेरियार (तमिल में अर्थ -सम्मानित व्यक्ति) नाम से भी जाना जाता था, पेरियार का जन्म पश्चिमी तमिलनाडु के इरोड में एक सम्पन्न, परम्परावादी हिन्दू धर्म की बलीजा जाति में हुआ था।जो उत्तर भारत में पाल और गड़ेरिया जाति के सामान समकक्ष है।
और ओबीसी जाति का प्रतिनिधित्व करती है। 1885 में उन्होंने एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में अध्ययन हेतु दाखिला लिया था । पर कोई पाँच साल से कम की औपचारिक शिक्षा मिलने के बाद ही उन्हें अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ना पड़ा। कई पीढ़ियों से उनके घर पर भजन , कीर्तन तथा उपदेशों का सिलसिला चलता ही रहता था। बचपन से ही वे तर्कशील और विवेकवान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे धार्मिक ग्रन्थ और उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे जिससे उनके पिता बहुत नाराज रहते थे । हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही बातों की परस्पर विरोधी तथा बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरुद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के घोर विरोधी थे। अपने काशी यात्रा के बाद उन्होंने हिन्दू वर्ण व्यवस्था और कुरीतियों का भी विरोध ही नहीं बल्कि बहिष्कार भी किया। 19 वर्ष की उम्र में उनकी शादी नगम्मल नाम की 13 वर्षीय स्त्री से हुई। उन्होंने अपना पत्नी को भी अपने विचारों से ओत प्रोत किया। तर्कशक्ति के कारण भारत ही नहीं बल्कि एशिया का सुकरात कहा जाता है।
Periyar saheb : पेरियार साहेब वैज्ञानिक दृष्टिकोण के व्यक्ति थे और तर्कशील थे। 20वीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता व दलित शोषित, गरीबों के मसीहा थे।और बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर के समकालीन थे। अपने सिद्धांतो से समाज में फैली बुराइयों का नाश किया। इन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जिसका सिद्धान्त जातिवादी व गैर बराबरी वाले हिन्दुत्व का विरोध था। पेरियार अपनी मान्यता का पालन करते हुए मृत्युपर्यंत जाति और हिंदू-धर्म से उत्पन्न असमानता और अन्याय का विरोध करते रहे। ऐसा करते हुए उन्होंने लंबा, सार्थक, सक्रिय और सोद्देश्यपूर्ण जीवन जीया था।
पासी जाति का गौरवशाली इतिहास:
पासी उत्तर भारत में निवास करने वाली हिन्दू धर्म के अनुसूचित जाति में सम्मलित है। पासी जाति को पूर्वी उत्तर प्रदेश में पासी और राजवंशी और भार्गव आदि नाम से भी जाना जाता है और यूपी के कुछ भाग में चौकीदार भी कहते है। आजादी के पहले और बाद में भी थाने और पुलिस चौकी में चौकीदारी का काम करते थे। आजादी की लड़ाई में पासी समुदाय का अतुलनीय योगदान है ।आजादी की लड़ाई में पासी समुदाय का अतुलनीय योगदान है पासी जाति के लोग कद काठी से बलवान और निडर होना इनका स्वभाव है। शारीरिक रूप से बलिष्ट और मूछ रखने के बहुत ही शौक़ीन होते है। पासी जाति के लोग शाकाहारी और मांशाहारी दोनों होते है। मुख्यरूप से किसानी का काम करते है उत्तर प्रदेश में पासी अनुसूचित जाति के अंतर्गत आते हैं इन्हें कुछ जगह इन्हें रावत कहते है इनको निम्न श्रेणी के अंतर्गत रखा गया है कुछ राज्यों में इन्हे एससी श्रेणी में रखा गया है। भरपासी ,कैथवास पासी, रावतपासी, गूजरपासी इनकी मुख्य उपजाती है। पासी का काम श्रम करना है ,इन्हें भर भी कहते हैं ।पासी लोग उत्तर भारतीय राज्यों पंजाब बिहार और उत्तर प्रदेश अरूणाचल प्रदेश में निवास करते हैं। अंग्रेजो ने पासी राजवंश के वंशजो को दबाने के लिए एक्ट ले कर आये और जबरन जेल में बंद कर दिया गया और इतिहास के लेखकों ने इतिहास के पन्ने से पासी लोगो का इतिहास मिटा दिया। पासी समुदाय उत्तर भारत के तराई क्षेत्र में कई सौ साल पहले राजवंश की स्थापना की थी और लगभग 3 सौ साल तक राज्य किया था लखनऊ में पासी राजाओं के कई किले आज भी खँडहर के रूप में है लखनऊ को बसाने का श्रेय भी पासी राजाओं का है। वर्तमान का सीतापुर जिला छीता पासी की विरासत है।
यूपी सरकार 2022 में पासी समाज के चुने हुये विधायक : पासी जाति से विधायक चुनकर पहुंचे सदन 27
1-MLA : Hon’ble Smt. Manju Tyagi Shri Nagar Distt. Lakhimpur Kheri UP
2- MLA : Hon’ble Shri.BabuRam Paswan Puranpur Distt. Pilibhit UP
3- MLA : Hon’ble Shri. Ram Krishan Bhargav Mishrikh Distt. Sitapur UP
4- MLA : Hon’ble Shri. Dr Vimlesh Paswan Bas Gaon Distt. Gorakhpur UP
5- MLA : Hon’ble Shri. Shyam Dhani Rahi Kapil vastu Distt. Sidharth Nagar UP
6- MLA : Hon’ble Shri. Suresh Rahi Hargaon Distt. Sitapur UP
7-MLA : Hon’ble Shri. Vinod saroj Babaganj Distt. Pratapgarh U
महाराजा बिजली पासी: Maharaja Bijli Pasi:महाराजा बिजली पासी लखनऊ के पास अवध प्रांत के बिजनौर गढ़ के राजा थे जो 12वीं सदी के अंत तक अवध के एक बड़े भू-भाग पर स्थापित था।और महान गौवरौता के साथ शासन किया। इनके पिता नथावन देव तथा माता बिजना थीं। बिजनौर नामक शहर को महाराजा बिजली पासी ने ही बसाया था। एक वीर योद्धा के रूप में दो बार राजा जयचंद को हराया था। महाराजा राजा बिजली ने सर्वप्रथम अपनी माता की स्मृति में बिजनागढ की स्थापना की थी जो कालांतर में बिजनौरगढ़ एवं वर्तमान में बिजनौर के नाम से संबोधित किया जाने लगा। इसके बाद उन्होंने अपनी पिता की याद में बिजनौर गढ़ से उत्तर तीन किलोमीटर की दूरी पर पिता नाथावन के नाम पर नथवागढ़ की स्थापना की। महाराजा राजा बिजली ने किसी की अधीनता स्वीकार नहीं की बल्कि दो बार राजा जयचंद की सेना को पराजित भी किया था।
महाराजा बिजली पासी, पासी समुदाय के एक महान भारतीय राजा थे, वे उत्तरी भारत में एक राजा के रूप में लोकप्रिय थे। बिजली पासी ने वर्तमान उत्तर प्रदेश राज्य के एक हिस्से पर शासन किया।
बिजली पासी के अस्तित्व या जीवन के संबंध में ऐतिहासिक साक्ष्य स्पष्ट हैं। 2000 में, डाक विभाग, भारत सरकार, रामविलास पासवान (पिछले पोस्ट मंत्री) के प्रभार के तहत, सामाजिक सम्मान के लिए एक स्मारक डाक टिकट जारी किया और पासी जाति के आंदोलन का राजनीतिक प्रभाव। इस स्मारक स्टाम्प में, उत्तर प्रदेश में बिजनौर शहर की स्थापना का श्रेय बिज़ली पासी को दिया गया। उन्हें पृथ्वीराज चौहान के समकालीन होने के रूप में भी वर्णित किया गया था। इस विशेष मोहर के अनुसार, उन्होंने उस समय अपनी स्थिति मजबूत कर ली जब उत्तर भारत को अतीत के शक्तिशाली साम्राज्य के पतन से पहले कई छोटे राज्यों में विभाजित किया गया था।
महाराजा बिजली पासी एक प्रबुद्ध शासक थे जिन्होंने अपनी स्थिति को मजबूत किया और बिजनौर के क्षेत्र में भूमि के एक बड़े पथ पर अपना शासन स्थापित किया। जैसा कि अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के ब्रिटिश गजेटियर में दर्ज किया गया था, वह पृथ्वीराज चौहान के समकालीन थे। वह “पासिस” का एक सक्षम नेता था, जो इलाके के स्वदेशी लोगों की एक भयंकर स्वतंत्रता थी। बिजली पासी के स्मरणोत्सव ने दलित के दावों को आवाज़ दी कि अतीत में दलित राजा थे और उनका उच्च जातियों की तरह ही शानदार इतिहास था। महाराजा की योद्धा छवि, जो अक्सर कांशी राम, बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक के सुझाव के अनुसार विभिन्न दलित समुदायों (विशेष रूप से पासी जाति के लोगों) की दीवारों पर देखी गई थी। वह चाहते थे कि छवि में पांच सिख गुरुओं को शामिल किया जाए, जिन्हें आज भी दलित समुदायों द्वारा पूजा जाता है। उन गुरुओं की विशिष्ट विशेषता महाराजा की छवि में दिखाई देती है, सावधान परीक्षा पर।
महाराजा बिजली पासी किला
महाराजा बिजली पासी किला लखनऊ का एक और ऐतिहासिक स्थल है जो देखने लायक है।हर वर्ष महाराजा बिजली पासी के जन्मदिन पर लाखों पासी लखनऊ के अन्य ऐतिहासिक आकर्षणों की तुलना में, महाराज बीजली पासी किला कम प्रसिद्ध है। आशियाना के आवासीय क्षेत्र में स्थित, लखनऊ का यह पर्यटन स्थल है।
पासी जाति की उपजातियां:
01-कैथवास: काशी प्रांत में रहने वाले पासियों को कैथवास कहा गया है।
02-गूजर: गुर्ज का मतलब गदा होता है जो लोग युद्ध में गदा प्रयोग करते थे उन्हें गुर्जर या गूजर कहा गया है।
03-कमानिया: जो लोग कमान (धनुष बाण) धारण करते थे, और युद्ध में प्रयोग करते थे।
04-त्रिशूलिया: जो पासी त्रिशूल को शस्त्र के रूप में प्रयोग करते थे।
05-तरमाली: वह पासी जाति जो ताड़ व खजूर से ताड़ी निकालते थे, यही उनका व्यवसाय था।
06-राजपासी या राजवंशी: यह अधिकांश राज्यों के राजा हुआ करते थे।07-बौरिया या बौरासी: जो युद्धों में तलवार चलाते चलाते उन्मक्त अर्थात मदमस्त हो जाते थे। 08-खटिक: पासी समाज के ही अंग हैं जो खड्ग (तलवार) चलाया करते थे।09-भुरजा :यह भर पासी थे, उड़ीसा में जाने पर भुरजा हो गये।
10-भर पासी: भाला धारण करने वाले भल या भर पासी कहे जाते थे, सन् 1900 के पूर्व भर लोग पिछड़े वर्ग में शामिल कर दिये गए थे।
11-अहेरिया: जंगलों में आखेट (शिकार) करने वाले पासी जाति। 12-बहेलिया अथवा व्याधपासी:13 – पासवान : यह सभी पासी जाति में आते हैं, इनकी जनसंख्या आजमगढ़ जिले में अधिक है
बौरिया रायबरेली एवं उन्नाव जिले में अधिक हैं नेपाल, असम,बंगाल तथा बिहार में भी करोड़ों की संख्या में पासी हैं असम का पासी घाट बहुत ही प्रसिद्ध स्थान है। अरूणाचल में पासी धनाढ्य है। आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक के पासी अपने को किंग पासी कहते हैं। 800 वर्ष पहले भारतवर्ष में कई प्रदेशों में पासी राजाओं का शासन था। उत्तर प्रदेश में तो सैकड़ों छोटे बड़े राजा महाराजा 12वीं शताब्दी तक थे। और बहराइच के राजा त्रिलोक चंद ने दिल्ली के राजा विक्रमपाल को हरा कर सारे अवध पर राज्य स्थापित कर लिया था। पहली शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक अवध प्रान्त में पासियों का साम्राज्य रहा है।
उत्तर प्रदेश में पासी जाति के नाम पर राजनीति में लगी है होड़। सभी राजनितिक दल अपने अपने तरीके से इस बड़े वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की करते है कोशिश। 3 December 2021 को पड़ोसी जनपद कौशांबी में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने शुक्रवार को सिराथू तहसील में संयारा रेलवे ओवरब्रिज का नामकरण महाराजा बिजली पासी पर कर पासवान समाज को साधने का प्रयास किया है।
व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें |