PM Narendar Modi :: भारत का संविधान : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में क्या-क्या बदला
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संवाददाता :: Dt.28 .12.2022 :: भारत का संविधान : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में क्या-क्या बदला
संविधान चाहे जितना अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है, यदि उसका अनुसरण करने वाले लोग बुरे हों। यह कौन कह सकता है कि भारत की जनता और उसके दल कैसा आचरण करेंगे। अपना मक़सद हासिल करने के लिए वे संवैधानिक तरीके अपनाएंगे या क्रांतिकारी तरीके । यदि वे क्रांतिकारी तरीके अपनाते हैं तो संविधान चाहे जितना अच्छा हो, यह बात कहने के लिए किसी ज्योतिषी की आवश्यकता नहीं कि वह असफल ही रहेगा।
{संविधान बनाने के बाद भीमराव आंबेडकर ने ये भाषण नवंबर 1949 को नई दिल्ली में दिया था}
आंबेडकर के इस भाषण के कुछ ऐसे ही अंश अक्सर तब सुने जाते हैं जब ‘संविधान के अनुरूप काम नहीं करने’ के आरोप सत्तारूढ़ दलों पर लगाए जाते हैं।
संविधान की प्रस्तावना में बदलाव हो, जजों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली हो, दल-बदल क़ानून हो, जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म करना हो या फिर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की बात ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें लेकर अक्सर पक्ष और विपक्ष में तीखी जुबानी जंग लड़ी जाती रही है और हर मर्तबा हवाला दिया जाता है संविधान का।
वो संविधान जिसे 73 साल पहले 26 नवंबर 1949 के दिन अपनाया गया और तब से हर
साल ये तारीख़ संविधान दिवस के रूप में मनाई जाती है. यानी आज संविधान को अपनाए जाने की 73वीं वर्षगांठ है।
भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है. इसके अनुच्छेद 368 के आधार पर संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार दिया गया है।
संविधान में पहला संशोधन 1951 में अस्थायी संसद ने पारित किया था. उस समय राज्यसभा नहीं थी. पहले संशोधन के तहत ‘राज्यों’को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों या अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति की प्रगति के लिए सकारात्मक कदम उठाने का अधिकार दिया गया था. यूँ तो अब तक संविधान में 105 संशोधन किए जा चुके हैं, लेकिन संविधान की प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन किया गया है।
लघु संविधान
ये संशोधन इंदिरा गांधी के शासन के आपातकाल के दौरान हुआ था. ये 42वां संविधान संशोधन था और अब तक का सबसे व्यापक और विवादास्पद. उस वक्त ऐसा लगा था कि इस संशोधन के द्वारा सरकार कुछ भी बदल सकती है।
शायद यही वजह है कि इसे लघु संविधान भी कहा जाता है. इसमें संविधान की प्रस्तावना में तीन नए शब्द- समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष और अखंडता जोड़े गए।
1976 में किए गए 42वें संशोधन में अहम बात ये थी कि किसी भी आधार पर संसद के फ़ैसले को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी।
साथ ही सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता को भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती थी. किसी विवाद की स्थिति में उनकी सदस्यता पर फ़ैसला लेने का अधिकार सिर्फ़ राष्ट्रपति को दे दिया गया और संसद का कार्यकाल भी पांच साल से बढ़ाकर छह साल कर दिया गया।
इस संविधान संशोधन को लेकर सड़क से लेकर संसद तक जमकर बवाल और सियासत हुई. 1977 में सत्ता में आने के बाद तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार ने इस संशोधन के कई प्रावधानों को 44वें संविधान संशोधन के ज़रिए रद्द कर दिया. इनमें सांसदों को मिले असीमित अधिकारों को भी नहीं बख्शा गया, हालाँकि संविधान की प्रस्तावना में हुए बदलाव से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई।
अब तक हुए संविधान संशोधनों में से कई को अदालत में चुनौती दी गई है, लेकिन देश के उच्चतम न्यायालय ने केवल 99वें संविधान संशोधन को
असंवैधानिक करार दिया है. यह संशोधन राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (एनजेएसी क़ानून) के गठन के संबंध में था. सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को जजों द्वारा जजों की नियुक्ति की 22 साल पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने वाले एनजेएसी क़ानून, 2014 को निरस्त कर दिया था।
पांच जजों की संविधान पीठ ने चार-एक के बहुमत से दिए फैसले में एनजेएसी कानून और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 दोनों को असंवैधानिक तथा अमान्य घोषित किया था।
लगातार 10 साल तक चली मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को हटाकर एनडीए गठबंधन ने साल 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता संभाली. इसके बाद से सरकार के कई फ़ैसलों और इसके द्वारा लाए गए कई नई अध्यादेशों और क़ानूनों को लेकर ख़ासा विवाद रहा है. इस दौरान कुल मिलाकर संविधान में छह संशोधन किए गए।
{मोदी सरकार के आठ साल के शासन के दौरान कितना बदला संविधान }
99वां संविधान संशोधन
नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद एक अहम फ़ैसला लिया, वो था राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन करने की दिशा में आगे बढ़ना. इस आयोग के ज़रिये केंद्र सरकार न्यायाधीशों का चयन ख़ुद करने में सक्षम हो जाती. क़ानून के तहत प्रावधान ये था कि जजों की नियुक्ति करने वाले इस आयोग की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश को करनी थी।
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, क़ानून मंत्री और दो जानी-मानी हस्तियां भी इस आयोग का हिस्सा थीं. इन दो हस्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति को करना था जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल थे. इसमें दिलचस्प बात ये थी कि इस क़ानून की एक धारा के तहत अगर आयोग के दो सदस्य किसी नियुक्ति पर सहमत नहीं हुए तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफ़ारिश नहीं करेगा।
इस संविधान संशोधन पर 29 राज्यों में से गोवा, राजस्थान, त्रिपुरा, गुजरात और तेलंगाना समेत 16 राज्यों की विधानसभाओं ने अपनी मुहर लगाई. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के इस विधेयक को मंज़ूरी देने के साथ ही इस संविधान संशोधन ने क़ानून की शक्ल ले ली. लेकिन इस क़ानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
याचिकाओं पर सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने चार-एक के बहुमत से इस संविधान संशोधन क़ानून को रद्द कर दिया. अदालत ने कहा कि जजों की नियुक्ति पुराने तरीक़े- कॉलिजियम सिस्टम से ही होगी।
100वां संविधान संशोधन
भारत और बांग्लादेश के बीच हुई भू-सीमा संधि के लिए संविधान में 100वां संशोधन किया गया. 1 अगस्त 2015 को लागू इस क़ानून से न केवल 41 सालों से पड़ोसी देश बांग्लादेश के साथ चल आ रहे सीमा विवाद को सुलझाने की दिशा में कदम बढ़े, बल्कि अधिनयम बनने के बाद दोनों देशों ने आपसी सहमति से कुछ भू-भागों का आदान-प्रदान किया. समझौते के तहत बांग्लादेश से भारत में शामिल लोगों को भारतीय नागरिकता भी दी गई।
दरअसल, भारत में 111 जबकि बांग्लादेश में ऐसे 51 इन्क्लेव थे जहां रहने वाले लोगों को किसी भी देश के नागरिक होने का अधिकार प्राप्त नहीं था. भारत में यह क्षेत्र पूर्वोत्तर के असम, त्रिपुरा, मेघालय और पूर्वी बंगाल के हिस्सों में स्थित थे. यह इन्क्लेव किसी द्वीप की तरह ही कुछ ऐसे बसे थे कि एक देश के नागरिकों की आबादी के हिस्से चारों ओर से दूसरे देश की ज़मीन और उसके निवासियों से घिरे हुए थे।
सदियों पहले राजाओं के जमाने में हुए ज़मीन के बंटवारे के कारण ऐसी स्थिति बनी थी और वही व्यवस्था 1947 में ब्रिटिश शासन के ख़त्म होने और 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग होने के दौरान भी बरकरार रही. संविधान के संसोधन के बाद दोनों देशों के लिए अपने इन्क्लेवों की अदला-बदली करने का रास्ता खुल गया।
101वां संविधान संशोधन
देश में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी को लागू करने के लिए भारतीय संविधान में 101वां संशोधन किया गया. मकसद था राज्यों के बीच वित्तीय बाधाओं को दूर करके एक समान बाज़ार को बांध कर रखना. तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मंज़ूरी और राज्यों से सहमति मिलने के बाद एक जुलाई 2017 से यह लागू हो गया. जीएसटी राष्ट्रीय स्तर पर सेवाओं के साथ-साथ वस्तुओं के निर्माण और बिक्री पर लगने वाला अप्रत्यक्ष कर (मूल्य वर्धित कर) है।
जीएसटी एक ऐसी व्यवस्था बनी जिसने केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर लगाए गए सभी अप्रत्यक्ष कर (इनडायरेक्ट टैक्स) की जगह ली. दरअसल, जीएसटी विधेयक को क़ानून बनाने के लिए एक दशक से बात हो रही थी लेकिन राजनीतिक रस्साकशी के कारण ये अधर में लटक गया था. ड्राफ़्ट बिल से लेकर संसद में पास कराए जाने तक भारत को दस साल लगे।
‘एक देश-एक कर’ कहे जाने वाली इस सेवा को मोदी सरकार ने आज़ादी के सत्तर साल बाद का सबसे बड़ा टैक्स सुधार बताया. यही नहीं जीएसटी लागू करने से कुछ घंटे पहले मोदी सरकार ने 30 जून की आधी रात को सेंट्रल हॉल में एक विशेष सत्र बुलाया।
कहा गया कि 14 अगस्त 1947 को संसद के केंद्रीय कक्ष में आज़ाद भारत का जन्म हुआ था, इसी तर्ज़ पर मोदी सरकार ने जीएसटी लॉन्चिंग के लिए आधी रात को कार्यक्रम रखा, हालाँकि कांग्रेस समेत ज़्यादातर विपक्षी दलों ने विशेष सत्र का बहिष्कार किया।
102वां संविधान संशोधन
2018 में संसद ने संविधान में 102वां संशोधन पारित किया था जिसमें संविधान में तीन नए अनुच्छेद शामिल किए गए थे. नए अनुच्छेद 338-बी के ज़रिए राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया. इसी तरह एक और नया अनुच्छेद 342ए जोड़ा गया जो अन्य पिछड़ा वर्ग की केंद्रीय सूची से संबंधित है. तीसरा नया अनुच्छेद 366(26सी) सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को परिभाषित करता है. इस संशोधन के माध्यम से पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिला।
संवैधानिक दर्जा मिलने की वजह से संविधान में अनुच्छेद 342 एक जोड़कर आयोग को सिविल न्यायालय के बराबर अधिकार मिले. इससे आयोग को पिछड़े वर्गों की शिकायतों का निवारण करने का अधिकार मिला।
दरअसल, 1993 में वैधानिक संस्था के तौर पर स्थापित राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की शक्तियां बेहद सीमित थीं. वह सिर्फ़ किसी जाति को ओबीसी की केंद्रीय सूची में जोड़ने या हटाने की सिफ़ारिश ही कर सकता था. ओबीसी वर्ग की शिकायतें सुनने और उनके हितों की रक्षा का अधिकार अभी तक राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के पास था. संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद आयोग को ओबीसी के अधिकारों की रक्षा के लिए शक्तियां मिलीं।
103वां संविधान संशोधन
9 जनवरी, 2019 को संसद द्वारा 103वां संविधान संशोधन अधिनियम 2019 पारित किया गया. यह अधिनियम आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों से संबंधित व्यक्तियों को 10 फ़ीसदी आरक्षण का प्रावधान करता है. क़ानूनन आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी से ज़्यादा नहीं होनी चाहिए और अभी तक देशभर में एससी, एसटी ओबीसी वर्ग को जो आरक्षण मिलता था तो 50 फ़ीसदी की सीमा के भीतर ही मिलता था. लेकिन सामान्य वर्ग का 10
फ़ीसदी कोटा इस 50 फ़ीसदी की सीमा से बाहर है।
ग्राफिक्स इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. 40 से अधिक याचिकाएं दाखिल हो गई और दलील दी गई कि ये 10 फ़ीसदी आरक्षण संविधान के मूल ढाँचे का उल्लंघन है. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया था कि आर्थिक रूप से कमज़ोरों को 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के क़ानून उच्च शिक्षा और रोज़गार में समान अवसर देकर सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है।
नवंबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी कि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 10 फ़ीसदी आरक्षण जारी रहेगा. सुप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने यह फ़ैसला बहुमत के आधार पर सुनाया. चीफ़ जस्टिस यूयू ललित की अगुवाई वाली पाँच जजों की बेंच ने बहुमत से ईडब्लूएस कोटे के पक्ष में फ़ैसला सुनाया और कहा कि 103वां संविधान संशोधन वैध है।
104वां संविधान संशोधन
104वां संशोधन के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया और लोकसभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 साल के लिए और बढ़ा दिया गया था।
इससे पहले इस आरक्षण की सीमा 25 जनवरी 2020 थी. इसके अलावा अधिनियम के ज़रिये लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एंग्लो इंडियन के लिए सीटों के आरक्षण को समाप्त कर दिया गया।
105वां संविधान संशोधन
तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 18 अगस्त, 2021 को ‘105वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2021’ को अपनी स्वीकृति दी. संशोधन के अनुसार राष्ट्रपति केवल केंद्र सरकार के उद्देश्यों के लिए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची का नोटिफिकेशन जारी कर सकते हैं।
यह सूची केंद्र सरकार तैयार करेगी. इसके अलावा, यह क़ानून राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की अपनी सूची तैयार करने में सक्षम बनाता है।
इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की अपनी सूची की पहचान करने और उसे नोटिफ़ाई करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की शक्ति को दोबारा बहाल करना है।
केंद्र सरकार के अनुसार राज्यों की शक्ति को बहाल करने का सीधा लाभ उन 671 जातियों को मिलेगा जिनकी राज्य सूचियों में की गई अधिसूचना के रद्द होने का ख़तरा था।
ग़ौरतलब है कि संविधान के अनुच्छेद- 338 बी के मुताबिक केंद्र और राज्य सरकारों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को प्रभावित करने वाले सभी प्रमुख नीतिगत मामलों पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग से सलाह लेनी अनिवार्य है. संशोधन द्वारा राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची तैयार करने से संबंधित मामलों के लिए इस अनिवार्यता से छूट दी गई है।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग यानी एनसीबीसी की स्थापना राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 1993 के तहत की गई थी. 102वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 ने एनसीबीसी को संवैधानिक दर्जा दिया था और राष्ट्रपति को अधिकार दिया था वह सभी उद्देश्यों के लिए किसी भी राज्य या केंद्र-शासित प्रदेश के लिए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की सूची को अधिसूचित कर सकते हैं।
संवाददाता :: मेरठ :: राजीव नानू {c016} :: Dt.27.12.2022 ::शारुखान की फिल्म पठान में भगवा पहनकर बेशर्म रग नामक गाना हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने फूका पुतला
जनपद मेरठ। हिंदू जागरण मंच मेरठ महानगर के बैनर तले जिलाअधिकारी दीपक कुमार मीणा को दिया ज्ञापन प्रधानमंत्री के नाम शारुखान की फिल्म पठान में भगवा पहनकर बेशर्म रग नामक गाना हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाने हेतु सम्बन्ध में शाहरुख खान व दिपिका की फिल्म पठान को बहुत ही अश्लील तरीके से फिल्माया है गया और जानबूझकर भगवा रंग बिकनी पहनी गई है शाहरुख खान की फिल्म पठान में भगवा बिकनी पहनकर बेशर्म गीत से हिंदू भावनाओं को ठेस पहुंचाई गई है जो कि बर्दाश्त योग्य नहीं है और समस्त हिन्दू समाज इसका कडा विरोध करता है ऐसी फिल्म को तुरंत बंद किया जाए चौकी यह फिल्म हिंदू समाज के रीति-रिवाजों को ठेस पहुंचाने का काम कर रही है और ऐसे फिल्म कलाकारो के कठोर कार्यवाही होनी चाहिए जिससे कि भविष्य में इस तरह की फिल्म बनाने की कोशिश ना करें क्योंकि यह फिल्म कोई बड़ा रूप भी ले सकती है और इस फिल्म के जो प्रोड्यूसर है उनके ऊपर भी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए क्योंकि इस तरीके की फिल्मों से हिंदू समाज में काफी रोज देखने को मिल रहा है इस मौके पर उपस्थित रहे ललित गुप्ता संयोजक मेरठ महानगर संजय वर्मा सह संयोजक मेरठ महानगर कुलदीप वर्मा सह संयोजक मेरठ मेरठ प्रान्त सदस्य कमल खटीक वंदना वर्मा अभिषेक चौहान सह संयोजक मेरठ महानगर ममता महिला प्रदीप कौशिक आर्थिक व्यवस्था संजय सूचना संग्रह पवि कन्नौजिया सम्पर्क राजीव प्रसार आदि लोग मौजूद रहे और शासन प्रशासन से पठान फिल्म को बंद करने गुहार लगाई और अन्यथा अगर इस फिल्म को बंद नहीं किया गया तो हमारा संगठन बडा आंदोलन करने से पिछे नहीं हटेगा और इस मौके पर शाहरुख खान की पुतला भी फूंका गया है और हिन्दू जागरण मंच मेरठ महानगर के सभी पदाधिकारीयों में जबरदस्त रोष देखने को मिल रहा है रिपोर्टर राजीव नानू जिला मेरठ से
चाणक्य नीति : “आदमी अपने जन्म से नहीं अपने कर्मों से महान होता है।” :- आचार्य चाणक्य ।
हिंदी के महान लेखक और कवि डॉ श्यामसुन्दर दास का संक्षिप्त परिचय और योगदान : डॉ श्यामसुन्दर दास का जन्म सन् 1875 ई. काशी (वाराणसी) में हुआ था।; और मृत्यु- 1945 ई.में हुई। डॉ श्यामसुन्दर दास ने जिस निष्ठा से हिन्दी के अभावों की पूर्ति के लिये लेखन कार्य किया और उसे कोश, इतिहास, काव्यशास्त्र भाषाविज्ञान, अनुसंधान पाठ्यपुस्तक और सम्पादित ग्रन्थों से सजाकर इस योग्य बना दिया कि वह इतिहास के खंडहरों से बाहर निकलकर विश्वविद्यालयों के भव्य-भवनों तक पहुँची।
डॉ श्यामसुन्दर दास के पूर्वज लाहौर के निवासी थे और पिता लाला देवी दास खन्ना काशी में कपड़े का व्यापार करते थे। इन्होंने 1897 ई. में बी.ए. पास किया था। यह 1899 ई. में हिन्दू स्कूल में कुछ दिनों तक अध्यापक रहे। उसके बाद लखनऊ के कालीचरन स्कूल में बहुत दिनों तक हैडमास्टर रहे। सन् 1921 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए।
श्यामसुन्दर दास जी ने परिचयात्मक और आलोचनात्मक ग्रंथ लिखने के साथ ही कई दर्जन पुस्तकों का संपादन किया। पाठ्यपुस्तकों के रूप में इन्होंने कई दर्जन सुसंपादित संग्रह ग्रंथ प्रकाशित कराए। डॉ श्यामसुन्दर दास ने वैसे तो 70 साहित्य-कृतियों की रचना की लेकिन डॉ श्यामसुन्दर दास की प्रमुख साहित्य-कृतियाँ निम्नलिखित हैं।
चन्द्रावली’ अथवा ‘नासिकेतोपाख्यान’ पृथ्वीराज रासो ,मेघदूत, परमाल रासो, रानी केतकी की कहानी, भारतेन्दु नाटकावली ,नूतन संग्रह, हम्मीर रासो ,साहित्यलोचन जैसी प्रसिद्ध रचनाओं का निर्माण किया। जिनकी रचनाओं को बीए और एमए की कक्षा में आज पढ़ाया जाता है।
बहुजन प्रेरणा ( हिंदी दैनिक समाचार पत्र ) व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (डिजिटल मीडिया)
(सम्पादक- मुकेश भारती एड0 ): किसी भी शिकायत के लिए सम्पर्क करे – 9336114041
” मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है। ” बाबा साहेब : डॉ भीम राव अम्बेडकर।
” जिन्दगी का हर एक छोटा हिस्सा ही
हमारी जिदंगी की सफ़लता का बड़ा हिस्सा होता है।”
आईपीसी की धारा 323 में विधि का क्या प्राविधान है ?
IPC की धारा 323 का विवरण :जो कोई किसी अगर कोई अपनी इच्छा से किसी को चोट या नुकसान पहुंचाता है, तो ऐसा करने पर उसे 1 साल तक की कैद या 1 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है तो वह व्यक्ति धारा 323 के अंतर्गत दंड एवं जुर्माने से दण्डित किया जाएगा।
विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0।Dt.27-12-2022
अथवा
स्वेच्छया उपहति/चोट कारित करने के लिए दण्ड। उस दशा के सिवाय जिसके लिए धारा 334 में उपबंध है ,जो कोई स्वेच्छया उपहति करीत करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से , जिसकी अवश्य एक वर्ष तक की हो सकरगि , या जुर्माने से जो 1000 रूपये तक का हो सकेगा , या दोनों से , दण्डित किया जायेगा।
उपहति /चोट से आशय ; जो कोई किसी व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा , रोग या अंग -शैथिल्य कारित करता है, वह उपहति करता है। यह कहा जाता है।
विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0।Dt.27-12-2022
नोट : दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार : यह जमानतीय और असंज्ञेय अपराध है जमानत कोई जुडिसियल मजिस्ट्रेट दे सकता है।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा।
Dt.27.12.2022 । Virendra Kumar। (History Department) Usmani Degree College Lakhimpur Kheri वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022
जलियांवाला बाग हत्याकांड:
आज़ादी के आंदोलन में हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे : 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों पर बिना बताये ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए थे। इस कांड में मारे गए लोग रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। इस हत्या काण्ड का बदला लेने के लिए वर्ष 1940 में सरदार उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या कर दी थी। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022
क्या है रॉलेट एक्ट 1919 को जाने :
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक शृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था।इस संदर्भ में सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर यह अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये अधिकार प्रदान किये और दो साल तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दी।
जलियांवाला बाग हत्या काण्ड की पृष्ठभूमि: महात्मा गांधी इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे, जो 6 अप्रैल, 1919 को शुरू हुआ। 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी वारेंट के गिरफ्तार कर लिया। इससे भारतीय प्रदर्शनकारियों में आक्रोश पैदा हो गया जो 10 अप्रैल को हज़ारों की संख्या में अपने नेताओं के साथ एकजुटता दिखाने के लिये निकले थे।भविष्य में इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने हेतु सरकार ने मार्शल लॉ लागू किया और पंजाब में कानून-व्यवस्था ब्रिगेडियर-जनरल डायर को सौंप दी गई। घटना का दिन: 13 अप्रैल, बैसाखी के दिन अमृतसर में निषेधाज्ञा से अनजान ज़्यादातर पड़ोसी गाँव के लोगों की एक बड़ी भीड़ जालियांवाला बाग में जमा हो गई।इस बड़ी भीड़ को तितर बितर करने के लिए ब्रिगेडियर- जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचा। सैनिकों ने जनरल डायर के आदेश के तहत सभा को घेर कर एकमात्र निकास द्वार को अवरुद्ध कर दिया और निहत्थे भीड़ पर गोलियाँ चलाना शुरू कर दी दीं, जिसमें 1000 से अधिक निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना का महत्त्व:जलियांवाला बाग भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थल बन गया और अब यह देश का एक महत्त्वपूर्ण स्मारक है।जलियांवाला बाग त्रासदी उन कारणों में से एक थी जिसके कारण महात्मा गांधी ने अपना पहला, बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) अभियान, असहयोग आंदोलन (1920–22) का आयोजन शुरू किया।इस घटना के विरोध में बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।भारत की तत्कालीन सरकार ने घटना (हंटर आयोग) की जाँच का आदेश दिया, जिसने वर्ष 1920 में डायर के कार्यों के लिये निंदा की और उसे सेना से इस्तीफा देने का आदेश दिया। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022
घरेलू उपचार :5 मिनट में खांसी से छुटकारा कैसे पाएं?
दिसंबर और जनवरी के महिने में हम सभी को अक्सर सर्दी -जुकाम और खासी की शिकायत रहती है। घरेलू उपचार से सर्दी खासी से निजात
पाये।
अदरक और नमक:अदरक से भी सूखी खांसी में आराम मिलता है। इसके लिए अदरक की एक गांठ को कूटकर उसमें एक चुटकी नमक मिला लें और दाढ़ के नीचे दबा लें। उसका रस धीरे-धीरे मुंह के अंदर जाने दें। 5 मिनट तक उसे मुंह में रखें और फिर कुल्ला कर लें।सर्दी -जुकाम और खासी में फाफी रहत आप को मिलेगी। डॉ अजय अनंत चौधरी Dt.27-12-2022
लौंग और शहद खाएं- खांसी या जुकाम होने पर आप लौंग का सेवन करें
तुलसी अदरक की चाय- अगर आप बहती नांक और खांसी से परेशान हैं तो आपको गर्म तासीर की चीजों का सेवन करना चाहिए ।शहद और अदरक का रस- जुकाम एक ऐसी समस्या है जो हफ्तों में जाकर ठीक होती है। भाप लें- सर्दी-खांसी में सबसे ज्यादा राहत भाप लेने से मिलती है।
सर्दी-खांसी और जुकाम से राहत के लिए घरेलू उपचार | Home Remedies For Common Cold And Cough के लिए निम्न का भी सेवन करके ठीक हो सकते है।
1-अदरक की चाय (Ginger Tea) का सेवन करें।
2-आंवला का सेवन (Amla Consumption) का सेवन करें।
3-शहद का सेवन (Honey Consumption) का सेवन करें।
4-खांसी के लिए रामबाण दवा है तुलसी (Tulsi Home Remedy For Cough In Hindi) का सेवन करें।
5-हल्दी दूध (Turmeric Milk) का सेवन करें। घरेलू उपचार से सर्दी -जुकाम ,खासी से निजात पाये। डॉ अजय अनंत चौधरी Dt.27-12-2022
प्रथम विश्व युद्ध
ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी का वध इस युद्ध का तात्कालिक कारण था। यह घटना 28 जून 1914, को सेराजेवो में हुई थी। एक माह के बाद ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित किया। रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने आस्ट्रिया की।
साम्राज्यवाद (Imperialism): प्रथम विश्व युद्ध से पहले अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्से कच्चे माल की उपलब्धता के कारण यूरोपीय देशों के बीच विवाद का विषय बने हुए थे। जब जर्मनी और इटली इस उपनिवेशवादी दौड़ में शामिल हुए तो उनके विस्तार के लिये बहुत कम संभावना बची। इसका परिणाम यह हुआ कि इन देशों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति अपनाई। यह नीति थी दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया जाए। बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और अधिक साम्राज्यों की इच्छा के कारण यूरोपीय देशों के मध्य टकराव में वृद्धि हुई जिसने समस्त विश्व को प्रथम विश्व युद्ध में धकेलने में मदद की। इसी प्रकार मोरक्को तथा बोस्निया संकट ने भी इंग्लैंड एवं जर्मनी के बीच प्रतिस्पर्द्धा को और बढ़ावा दिया।
अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करने के उद्देश्य से जर्मनी ने जब बर्लिन-बगदाद रेल मार्ग योजना बनाई तो इंग्लैंड के साथ-साथ फ्राँस और रूस ने इसका विरोध किया, जिसके चलते इनके बीच कटुता मेंऔर अधिक वृद्धि हुई।
बहुजन प्रेरणा दैनिक समाचार पत्र व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (सम्पादक- मुकेश भारती ) किसी भी शिकायत के लिए सम्पर्क करे – 9336114041
सैन्यवाद (Militarism): 20वीं सदी में प्रवेश करते ही विश्व में हथियारों की दौड़ शुरू हो गई थी। वर्ष 1914 तक जर्मनी में सैन्य निर्माण में सबसे अधिक वृद्धि हुई। ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी दोनों ने इस समयावधि में अपनी नौ-सेनाओं में काफी वृद्धि की। सैन्यवाद की दिशा में हुई इस वृद्धि ने युद्ध में शामिल देशों को और आगे बढ़ने में मदद की।
वर्ष 1911 में आंग्ल जर्मन नाविक प्रतिस्पर्द्धा के परिणामस्वरूप ‘अगादिर का संकट’ उत्पन्न हो गया। हालाँकि इसे सुलझाने का प्रयास किया गया परंतु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। वर्ष 1912 में जर्मनी में एक विशाल जहाज़ ‘इम्प रेटर’ का निर्माण किया गया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज़ था। इससे इंग्लैंड और जर्मनी के मध्य वैमनस्य एवं प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हुई।
राष्ट्रवाद (Nationalism): जर्मनी और इटली का एकीकरण भी राष्ट्रवाद के आधार पर ही किया गया था। बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद की भावना अधिक प्रबल थी। चूँकि उस समय बाल्कन प्रदेश तुर्की साम्राज्य के अंतर्गत आता था, अतः जब तुर्की साम्राज्य कमज़ोर पड़ने लगा तो इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने स्वतंत्रता की मांग शुरू कर दी।
बोस्निया और हर्जेगोविना में रहने वाले स्लाविक लोग ऑस्ट्रिया-हंगरी का हिस्सा नहीं बना रहना चाहते थे, बल्कि वे सर्बिया में शामिल होना चाहते थे और बहुत हद तक उनकी इसी इच्छा के परिणामस्वरूप प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। इस तरह राष्ट्रवाद युद्ध का कारण बना।रूस का मानना था कि स्लाव यदि ऑस्ट्रिया-हंगरी एवं तुर्की से स्वतंत्र हो जाता है तो वह उसके प्रभाव में आ जाएगा, यही कारण रहा कि रूस ने अखिल स्लाव अथवा सर्वस्लाववाद आंदोलन को बल दिया। स्पष्ट है कि इससे रूस और ऑस्ट्रिया–हंगरी के मध्य संबंधों में कटुता आई।इसी तरह के और भी बहुत से उदाहरण रहे जिन्होंने राष्ट्रवाद की भावना को उग्र बनाते हुए संबंधों को तनावपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया। ऐसा ही एक उदाहरण है सर्वजर्मन आंदोलन।
आईपीसी की धारा 207 में विधि का क्या प्राविधान है
IPC की धारा 207 का विवरण :जो कोई किसी सम्पत्ति को, या उसमें के किसी हित को, यह जानते हुये कि ऐसी सम्पत्ति या हित पर उसका कोई अधिकार या अधिकारपूर्ण दावा नहीं है, कपटपूर्वक प्रतिगृहीत करेगा, प्राप्त करेगा, या उस पर दावा करेगा, अथवा किसी संपत्ति या उसमें के किसी हित पर किसी अधिकार के बारे में जानते हुए की इस पर उसका कोई वैधानिक अधिकार नहीं है और हड़पने , छीनने के आशय से मिथ्या दावा करेगा तो वह व्यक्ति धारा 207 के अंतर्गत दंड एवं जुर्माने से दण्डित किया जाएगा। विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0
संत रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और जातिपाति का घोर खंडन किया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।Bahujan Movement:
संत रैदास स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उनके शिष्य उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में जिस परमेश्वर राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि का गुणगान किया गया है।सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। एक ही अलौकिक शक्ति है और कोई दूजा नहीं है। सभी मनुष्य सामान है कोई ऊच नीच नहीं है।ऊच नीच जैसी सामाजिक बुराई सभी चालाक लोग अपने फायदे के लिए बनाये है। ईश्वर सभी को सामान दृष्टि से देखता है। मानव मानव में कोई भेद नहीं है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।
संत रविदास का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै॥
संत रविदास के विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है Bahujan Movement:
” मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है। ” बाबा साहेब : डॉ भीम राव अम्बेडकर।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा
पेरियार रामास्वामी जयंती 17 सितम्बर मनाई जाती है। पेरियार रामास्वामी जयंती 17 सितम्बर 2023 को मनाई जायेगी ।
जीवन परिचय : Periyar saheb :पेरियार इरोड वेंकट नायकर रामासामी (जन्म 17 सितम्बर, 1879-मृत्यु 24 दिसम्बर, 1973) जिन्हे पेरियार (तमिल में अर्थ -सम्मानित व्यक्ति) नाम से भी जाना जाता था, पेरियार का जन्म पश्चिमी तमिलनाडु के इरोड में एक सम्पन्न, परम्परावादी हिन्दू धर्म की बलीजा जाति में हुआ था।जो उत्तर भारत में पाल और गड़ेरिया जाति के सामान समकक्ष है।
और ओबीसी जाति का प्रतिनिधित्व करती है।Bahujan Movement: 1885 में उन्होंने एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में अध्ययन हेतु दाखिला लिया था । पर कोई पाँच साल से कम की औपचारिक शिक्षा मिलने के बाद ही उन्हें अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ना पड़ा। कई पीढ़ियों से उनके घर पर भजन , कीर्तन तथा उपदेशों का सिलसिला चलता ही रहता था। बचपन से ही वे तर्कशील और विवेकवान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे धार्मिक ग्रन्थ और उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे जिससे उनके पिता बहुत नाराज रहते थे । हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही बातों की परस्पर विरोधी तथा बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरुद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के घोर विरोधी थे। अपने काशी यात्रा के बाद उन्होंने हिन्दू वर्ण व्यवस्था और कुरीतियों का भी विरोध ही नहीं बल्कि बहिष्कार भी किया। 19 वर्ष की उम्र में उनकी शादी नगम्मल नाम की 13 वर्षीय स्त्री से हुई। उन्होंने अपना पत्नी को भी अपने विचारों से ओत प्रोत किया। तर्कशक्ति के कारण भारत ही नहीं बल्कि एशिया का सुकरात कहा जाता है।
Periyar saheb : पेरियार साहेब वैज्ञानिक दृष्टिकोण के व्यक्ति थे और तर्कशील थे। 20वीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता व दलित शोषित, गरीबों के मसीहा थे।और बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर के समकालीन थे। अपने सिद्धांतो से समाज में फैली बुराइयों का नाश किया। इन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जिसका सिद्धान्त जातिवादी व गैर बराबरी वाले हिन्दुत्व का विरोध था। पेरियार अपनी मान्यता का पालन करते हुए मृत्युपर्यंत जाति और हिंदू-धर्म से उत्पन्न असमानता और अन्याय का विरोध करते रहे। ऐसा करते हुए उन्होंने लंबा, सार्थक, सक्रिय और सोद्देश्यपूर्ण जीवन जीया था।
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