चमार रेजिमेंट की बहाली कब होगी ? मुकेश भारती :बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

चमार रेजिमेंट की बहाली कब होगी ? मुकेश भारती :बहुजन इंडिया 24 न्यूज़

1 min read
😊 Please Share This News 😊

 ” चमार रेजिमेंट “

Dt.28.12.2022Mukesh bharti ।चमार रेजीमेंट का इतिहास जानने के लिए जरूर पढ़े।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अग्रेजों ने…भारत में लिंगायत , अजमेर , लुसाई रेजिमेंटों की स्थापना की थी तथा चमार जाति की रेजीमेंट सेकेंड पंजाब रेजीमेंट की 27वी बटालियन का नाम बदल कर चमार रेजिमेंट कर दिया था ।

मोहन लाल कुरील को चमार रेजिमेंट में कैप्टेन के पद पर नियुक्त किया गया था । कैप्टेन मोहन लाल कुरील उनका जन्म कोहार नामक स्थान ( आज का पाकिस्तान) में 1910 में हुआ था । बचपन से कैप्टेन मोहन लाल कुरील पढ़ने में बहुत तेज थे और बाद में लखनऊ क्रिश्चियन कालेज के छात्र रहे । उनके पिता का नाम मनुआ राम था ।

सन 1943 में जब चमार रेजिमेंट के नाम से एक स्टैडर्ड रेजीमेंट के नाम में परिवर्तन किया गया तब मोहनलाल इसमें केप्टन के पद पर नियुक्त किये गए थे । इस रेजिमेंट में अंग्रेजों की तरफ से लडते हुए जो शहीद हुए और उनका व्यौरा उपलब्ध हो सका उनमें से प्रमुख है । (1 )पेनू पुत्र श्री कोडाराम निवासी जिला होशियार पुर (2 ) पिरथी पुत्र श्री मामराज निवासी जिला रोहतक (3 ) पूर्णलांस नायक पुत्र श्री हंसा निवासी जिला मेरठ (4 ) हरवंश सिंह पुत्र श्री बुद्धयान निवासी जिला मेरठ (5 ) मायाराम पुत्र श्री भावाराम निवासी जिला होशियार पुर सभी वीर जवानों के रंगून वार मेमोरियल जिन चमार शहीद जवानौ की स्मृति में बना है उनके नाम है ।

1-भगवान लांस नायक ( सि. 28614) 2-बख्तावरसिंह लांस नायक ( सि.22344)

3-बालकराम ( सि. 22644) 4-बाली ( सि. 22553) 5-बलजीत नायक ( सि. 28636) 6-चेतु नायक ( 28636)

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजो की तरफ से चमार रेजिमेंट की एक टुकडी कैप्टेन मोहनलाल के नेतृत्व में सिंगापुर भेजी गई । वहाँ इस टुकडी को नेताजी शुभाषचंद बोस की बनाई गई आजाद हिन्द फौज के मुकाबले पर उतार दिया गया । उससे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध में चमार रेजिमेंट को सबसे खतरनाक जापानी फौज के मुकाबले लडाया जाता था । 1939 से लेकर 1945 तक चमार रेजिमेंट ने अंग्रेजों को कई युद्ध जिताये थे और इस रेजिमेंट के काफी सिपाइयौ ने उस वक्त का सर्वश्रेष्ठ पुरुष्कार विक्टोरिया क्रास हासिल किया था ।

मगर जब चमार रेजीमेंट को अपने देश के ही , वो भी जो अपने देश की ही आजादी के लिये लड रहे थे को मारने का आदेश दिया गया तो केप्टन मोहनलाल ने अंग्रेजों का यह आदेश मानने से इन्कार कर दिया । तब अंग्रेजों ने हथियार जमा करने का आदेश दिया । फिर सिंगापुर युद्ध पर भेजी गई पूरी रेजिमेंट , हथियारों सहित आजाद हिन्द फौज में सम्मिलित हो गई । नेताजी शुभाषचंद बोस ने मोहन लाल को आजाद हिन्द फौज में मेजर जनरल का पद देकर अपना दांंया हाथ बताया था । इन्ही मोहनलाल कुरील ने ही आजाद हिन्द फौज के झन्डे तले वर्मा को अंग्रेजों से आजाद करा लिया था ।

जैसे ही अंग्रेजों को पता चला की चमार रेजिमेंट का विलय आजाद हिन्द फौज में हो गया है तो आनन फानन में अंग्रेजों ने चमार रेजिमेंट भंग कर दी थी । और सैनिकों को भेजी जाने वाली रसद पर रोक लगा दी। इस रेजिमेंट के तमाम सिपाही मियामार और थाइलैंड के जंगलौ में भटकते हुए मारे गये । कुछ युद्ध में मारे गये । जब जापान भी युद्ध हार गया तब आजाद हिन्द फौज के जीवित बचे सिपाही बन्दी बना लिये गये । उन्ही बंदियों में मोहनलाल भी बन्दी बनाये गए। आजादी के बाद जब मोहनलाल को जेल से रिहा किया गया तो वो उन्नाव में जाकर बस गये और कांग्रेस के साथ मिलकर राजनीति करने लगे । उनके बडे नाम के कारण वो 1952 के चुनाव में सफीपुर सीट से विधायक चुन लिए गये । उन्नाव के निवासी होने के बाद वो केप्टन मोहनलाल कुरील के नाम से जाने गये ।

सिंगापुर युद्ध:, इस युद्ध पर चमार रेजिमेंट के सिख सिपाई नहीं भेजे गये थे । और जब पूरी रेजिमेंट भंग कर दी तो रेजिमेंट के चमार सिखो ने अंग्रेज सरकार से अपील की कि मेरी क्या गलती है । तब अंग्रेजों ने चमार रेजिमेंट के बचे सिपाइयौ को सिख लाइट इनफेंन्टरी के नाम से बहाल कर दिया । जो आज भी सिख लाइट इनफेंन्टरी के नाम से सेना की रेजिमेंट है ।

कांग्रेस शोषित पीड़ित दलित की राजनीति 70 सालों तक की और दलितों के बड़े बड़े चेहरे वोट बैंक लेने के लिए पेस किये लेकिन इस रेजिमेंट को बहाल नहीं किया। कांग्रेस पार्टी का दोहरा चेहरा आज भी सभी के सामने है। हाय रे भारत की तकदीर और हाय आजाद भारत सरकार । दलितों के नेता कांग्रेस में क्या कर रहे थे जो इस छोटी सी रेजिमेंट को बहाल नहीं करा पाये यही है हक़ अधिकार मारने की कहानी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ दुर्घटना हो गई । अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जीवित होते तो कोई अन्य उनके मुकाबले चुनाव नही जीत सकता था । प्रवल सम्भावना थी कि नेताजी ही चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनते । तब चमार रेजिमेंट बुलंन्दियौ को छूती और प्रमुख रेजिमेंट भी होती । तकदीर का खिलवाड़ देखिये…..देश की आजादी के लिये जान लुटाने वाली चमार रेजिमेंट को भारत की आजाद सरकार ने आज भी बहाल नहीं किया है ।जबकि अंग्रेजों का साथ देने वाली और आजादी के दीवानों को मौत देने वाली सभी अंग्रेज भक्त वटालियन वहाल है ।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें 

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

Donate Now

[responsive-slider id=1466]
error: Content is protected !!