Bheema Koregaon Battle:कोरेगाँव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के पेशवा गुट के बीच लड़ी गई – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

Bheema Koregaon Battle:कोरेगाँव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के पेशवा गुट के बीच लड़ी गई

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Bheema Koregaon Battle:कोरेगाँव की लड़ाई 1 जनवरी 1818 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मराठा साम्राज्य के पेशवा गुट के बीच लड़ी गई।

Mukesh Bharti:: Published Dt.01.01.2023 ::भीमा कोरेगाँव 1818 का युद्ध:Bheema Koregaon Battle in 1818


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Maharashtra  News ।  ब्यूरो रिपोर्ट :मुकेश भारती महाराष्ट्र के कोरेगाँव भीमा में बाजीराव द्वितीय के नेतृत्व में 28000 मराठों को पुणे पर आक्रमण करना था। रास्ते में उनका सामना ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सैन्य शक्ति को मजबूत करने पुणे जा रही एक 800 सैनिकों की टुकड़ी से हो गया। पेशवा ने कोरेगाँव में तैनात इस कंपनी बल पर हमला करने के लिए 2 हजार सैनिक भेजे कप्तान फ्रांसिस स्टौण्टन के नेतृत्व में कंपनी के सैनिक लगभग 12 घंटे तक डटे रहे। अन्ततः जनरल जोसेफ स्मिथ की अगुवाई में एक बड़ी ब्रिटिश सेना के आगमन की संभावना के कारण मराठा सैन्यदल पीछे हट गए। भारतीय मूल के कंपनी सैनिकों में मुख्य रूप से बॉम्बे नेटिव इन्फैंट्री से संबंधित महार रेजिमेंट के करीब 500 महार सैनिक शामिल थे, जिसके सामने 3000 पेशवाई सैनिक थे अपने पराक्रम और कुशल सैन्य नेतृत्व की वजह से जीत दर्ज हुयी थी।पेशवाई को मुँह की खानी पड़ी इसलिए महाराष्ट्र के महारो के वंशज इस युद्ध को अपने इतिहास का एक वीरता का शौर्य मानते हैं। जिसको भीमा कोरेगाँव 1818 का युद्ध खा जाता है। इस मैदान में जीत के उपरान्त युद में शाहिद सैनिकों का स्मारक बनाया गया है। 1 जनवरी को देश के कोने कोने से महार जाति के लोग अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आते है।


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Maharashtra  News ।भीमा कोरेगांव युद्ध क्यों है महारों के शौर्य गाथा का इतिहास के महत्व को जानने के लिए एक नज़र सामाजिक व्यवस्था को पढ़े। दरअसल भारतीय हिन्दू धर्म के शास्त्र केवल विशेषकर क्षत्रिय जाति वर्ग के इतिहास को एक योद्धा के रूप में रेखांकित करता है।जिसका वर्णन की गाथा सभी धार्मिक पुस्तक में किया जाता है। इस भारत में और किसी दुसरे जाति वर्ग को योद्धा या शूर वीर मान्यता की बात छोड़ एक जिक्र भी नहीं करता है और इनको हजारों वर्षो से निम्न श्रेणी का मानव या फिर शूद्र मान कर केवल गुलामी कराया और जबरन इनके ऊपर उच्च जाति की सेवा करना धर्म के माध्यम से थोप दिया गया। युद्ध करने की बात तो बहुत बड़ी है युद्धक हथियार रखना भी अपराध घोषित कर दिया गया था। ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र जैसी वर्ण व्यवस्था इतनी कठोरबनाई गई की इस जाल से बाहर कोई निकल न सके। भारतीय समाज में इसको धार्मिक रूप से मजबूत किया गया। क्षत्रिय जाति वर्ग का होना कुलीन वर्ग बना दिया गया जो मानवता के विकास का बहुत ही बड़ा बाधक है। क्षत्रिय जाति वर्ग जिनको ब्राह्मण या फिर ब्राह्मणवादी संस्थान ने क्षत्रिय या क्षत्रिय होने की मान्यता दी हो वही क्षत्रिय जाति वर्ग का व्यक्ति कहलायेगा । इसी षड्यंत्र का शिकार छत्रपति शिवा जी महाराज हुये और मौर्य साम्राज्य के संस्थापक पर इतिहासकार आज भी दो धड़े में बटे हुये है। 1 जनवरी 1818 को भीमा कोरेगांव में पेशवाओं और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ था. इस युद्ध में अंग्रेजों की जीत हुई थी. 1 जनवरी को इसी युद्ध की 205 वीं वर्षगांठ है. दलित समुदाय का कहना है कि 1 जनवरी 1818 को भीमा कोरेगांव में पेशवाओं से लड़ने वाली ब्रिटिश सेना में मुख्य रूप से दलित महार समुदाय के सैनिक शामिल थे।


संवाददाता ::कुशीनगर ::जितेन्द्र भारती  {C03} :: Published Dt.01.01.2023 ::कुशीनगर में ओबीसी वर्ग की आरक्षण बहाली को लेकर असपा पार्टी के जिला अध्यक्ष ने दिया ज्ञापन


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KushiNagar  News ।  ब्यूरो रिपोर्ट :जितेन्द्र भारती ।कुशीनगर में आज दिनांक 31 -12 -2022 को दोपहर को जिला कलेक्ट्रेट पहुंचे आजाद समाज पार्टी व भीम आर्मी के सैकड़ों की संख्या में पार्टी के कार्यकर्ता जिसका नेतृत्व आजाद समाज पार्टी कुशीनगर के जिला अध्यक्ष राहुल चौधरी ने किया। जिलाधिकारी कुशीनगर के द्वारा महामहिम राष्ट्रपति महोदया जी को नगरपालिका पंचायत निकाय चुनाव में ओबीसी वर्ग के आरक्षण को बहाल करने एवं ओबीसी वर्ग की जातिगत जनगणना मांग को लेकर शांति प्रिय ढंग से एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन करते हुए ज्ञापन दिया गया। श्री चौधरी ने कहा कि सरकार ने आरक्षण से छेड़छाड़ किया तो लड़ाई सड़क से लेकर संसद तक लड़ा जाएगा इसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ेगा इस दौरान उपस्थित रहे। आजाद समाज पार्टी के जिला अध्यक्ष कुशीनगर राहुल चौधरी, प्रतिमा बौद्ध, जय सिंह सैंथवार, छोटेलाल भारती, तहज्जुद खान, इरफान अंसारी, जितेंद्र चौधरी, बलराम प्रसाद, अमरनाथ बौद्ध, सुजीत चैधरी, अयोध्या प्रसाद। जितेन्द्र भारती पत्रकार कुशीनगर यूपी,


गुरु गोविंद सिंह जी का संक्षिप्त परिचय: 

Lucknow ।Mukesh Bharti । :: Published Dt.29.12.2022 ::बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ गुरु गोविंद सिंह जी का संक्षिप्त परिचय :गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 में बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। इनके पिता गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे।गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। साल 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी ।

प्रकाश पर्व : इस साल 29 दिसंबर 2022 को गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती धूमधाम से मनाई जा रहे है । गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों की तरफ से हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ युद्ध किया था।और मानवता का सन्देश दिया था मुगलों के दबाव के बाद भी इस्लाम धर्म नहीं क़ुबूल किया और जीवन पर्यन्त मुगलों से संघर्ष किया। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 में बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। इनके पिता गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे।गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। साल 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी गुरु गोविंद सिंह की जयंती को सिख धर्म के अनुयायी बहुत ही पवित्र मानते है और धूमधाम से मानते है शहर में नगर कीर्तन निकला जाता है सभी गुरूद्वारे में जा कर मत्था टेकते है और गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त करते है। इस दिन को प्रकाश पर्व के  नाम से जाना जाता है सिखों के दसवें गुरु होने के अलावा गुरु गोविंद सिंह जी महान योद्धा भी थे उनका जीवन आदर्शों से भरा हुआ है।


बहुजन प्रेरणा दैनिक समाचार पत्र व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (सम्पादक- मुकेश भारती )

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गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती पर आइए जानते हैं उनके अनमोल वचन: 1-जब आप भीतर के अहंकार को खत्म कर देते हैं तभी आप को वास्तविक शांति की प्राप्ति होती है ।  2-इंसान से प्रेम करना ही ईश्वर से सच्ची आस्था और सकती है।  3-जो लोग भगवान के नाम पर सिमरन करते हैं वही जीवन में सुख और शांति पाते हैं ।   4- मैं हर उस व्यक्ति को पसंद करता हूं जो हमेशा अपनी जिंदगी में सच्चाई की राह पर चलता है।

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Mukesh Bharti: Chief Editor- Bahujan India 24 News

“सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़िया ते मैं बाज तुड़ाऊँ तवैं गुरू गोविन्द सिंह नाम कहाऊँ ” अन्याय और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले, त्याग और मानवता के प्रतीक सिख समुदाय के दसवें गुरु ‘गुरु गोबिंद सिंह’ जी की जयंती पर उन्हे मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि ।  :Mukesh Bharti- Bahujan India 24 News 


बहुजन प्रेरणा ( हिंदी दैनिक समाचार पत्र ) व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (डिजिटल मीडिया)  Stikar

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(सम्पादक- मुकेश भारती एड0 ): किसी भी शिकायत के लिए सम्पर्क करे – 9336114041


Baba Saheb Dr Bheem Rao Ambedkar

Stikar” मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है। ” बाबा साहेब : डॉ भीम राव अम्बेडकर।


Stikar Aaj ka suvichar” जिन्दगी का हर एक छोटा हिस्सा ही
हमारी जिदंगी की सफ़लता का बड़ा हिस्सा होता है।”


चाणक्य नीति : “आदमी अपने जन्म से नहीं अपने कर्मों से महान होता है।” :- आचार्य चाणक्य 


lekhak
डॉ श्यामसुन्दर दास

हिंदी के महान लेखक और कवि डॉ श्यामसुन्दर दास का संक्षिप्त परिचय और योगदान : डॉ श्यामसुन्दर दास का जन्म सन् 1875 ई. काशी (वाराणसी) में हुआ था।; और मृत्यु- 1945 ई.में हुई। डॉ श्यामसुन्दर दास ने जिस निष्ठा से हिन्दी के अभावों की पूर्ति के लिये लेखन कार्य किया और उसे कोश, इतिहास, काव्यशास्‍त्र भाषाविज्ञान, अनुसंधान पाठ्यपुस्तक और सम्पादित ग्रन्थों से सजाकर इस योग्य बना दिया कि वह इतिहास के खंडहरों से बाहर निकलकर विश्वविद्यालयों के भव्य-भवनों तक पहुँची।

डॉ श्यामसुन्दर दास के पूर्वज लाहौर के निवासी थे और पिता लाला देवी दास खन्ना काशी में कपड़े का व्यापार करते थे। इन्होंने 1897 ई. में बी.ए. पास किया था। यह 1899 ई. में हिन्दू स्कूल में कुछ दिनों तक अध्यापक रहे। उसके बाद लखनऊ के कालीचरन स्कूल में बहुत दिनों तक हैडमास्टर रहे। सन् 1921 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए।
श्यामसुन्दर दास जी ने परिचयात्मक और आलोचनात्मक ग्रंथ लिखने के साथ ही कई दर्जन पुस्तकों का संपादन किया। पाठ्यपुस्तकों के रूप में इन्होंने कई दर्जन सुसंपादित संग्रह ग्रंथ प्रकाशित कराए। डॉ श्यामसुन्दर दास ने वैसे तो 70 साहित्य-कृतियों की रचना की लेकिन डॉ श्यामसुन्दर दास की प्रमुख साहित्य-कृतियाँ निम्नलिखित हैं।
चन्द्रावली’ अथवा ‘नासिकेतोपाख्यान’ पृथ्वीराज रासो ,मेघदूत, परमाल रासो, रानी केतकी की कहानी, भारतेन्दु नाटकावली ,नूतन संग्रह, हम्मीर रासो ,साहित्यलोचन जैसी प्रसिद्ध रचनाओं का निर्माण किया। जिनकी रचनाओं को बीए और एमए की कक्षा में आज पढ़ाया जाता है।


stikar kabir ki vani

“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा।


Dt.27.12.2022 । Virendra Kumar।  (History Department) Usmani Degree College Lakhimpur Kheri वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022

जलियांवाला बाग हत्याकांड:

आज़ादी के आंदोलन में हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे : 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों पर बिना बताये ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए थे। इस कांड में मारे गए लोग रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। इस हत्या काण्ड का बदला लेने के लिए वर्ष 1940 में सरदार उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या कर दी थी। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022

Virendra kuamr Usmani Degree College Lakhimpur Kheri
Virendra Kumar Usmani Degree College

Stikar Samany Gyan 2023
क्या है रॉलेट एक्ट 1919 को जाने :
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक शृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था।इस संदर्भ में सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर यह अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये अधिकार प्रदान किये और दो साल तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दी।
जलियांवाला बाग हत्या काण्ड की पृष्ठभूमि: महात्मा गांधी इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे, जो 6 अप्रैल, 1919 को शुरू हुआ। 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी वारेंट के गिरफ्तार कर लिया। इससे भारतीय प्रदर्शनकारियों में आक्रोश पैदा हो गया जो 10 अप्रैल को हज़ारों की संख्या में अपने नेताओं के साथ एकजुटता दिखाने के लिये निकले थे।भविष्य में इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने हेतु सरकार ने मार्शल लॉ लागू कियाHistory और पंजाब में कानून-व्यवस्था ब्रिगेडियर-जनरल डायर को सौंप दी गई।Stikar घटना का दिन: 13 अप्रैल, बैसाखी के दिन अमृतसर में निषेधाज्ञा से अनजान ज़्यादातर पड़ोसी गाँव के लोगों की एक बड़ी भीड़ जालियांवाला बाग में जमा हो गई।इस बड़ी भीड़ को तितर बितर करने के लिए ब्रिगेडियर- जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचा। सैनिकों ने जनरल डायर के आदेश के तहत सभा को घेर कर एकमात्र निकास द्वार को अवरुद्ध कर दिया और निहत्थे भीड़ पर गोलियाँ चलाना शुरू कर दी दीं, जिसमें 1000 से अधिक निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई।Genral Knowledge
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना का महत्त्व:जलियांवाला बाग भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थल बन गया और अब यह देश का एक महत्त्वपूर्ण स्मारक है।जलियांवाला बाग त्रासदी उन कारणों में से एक थी जिसके कारण महात्मा गांधी ने अपना पहला, बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) अभियान, असहयोग आंदोलन (1920–22) का आयोजन शुरू किया।इस घटना के विरोध में बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।भारत की तत्कालीन सरकार ने घटना (हंटर आयोग) की जाँच का आदेश दिया, जिसने वर्ष 1920 में डायर के कार्यों के लिये निंदा की और उसे सेना से इस्तीफा देने का आदेश दिया। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022


घरेलू उपचार :5 मिनट में खांसी से छुटकारा कैसे पाएं?

दिसंबर और जनवरी के महिने में हम सभी को अक्सर सर्दी -जुकाम और खासी की शिकायत रहती है। घरेलू उपचार से सर्दी खासी से निजात

Dr Ajay Annat Chaudhry
डॉ अजय अनंत चौधरी

पाये।Gharelu Upchar

अदरक और नमक:अदरक से भी सूखी खांसी में आराम मिलता है। इसके लिए अदरक की एक गांठ को कूटकर उसमें एक चुटकी नमक मिला लें और दाढ़ के नीचे दबा लें। उसका रस धीरे-धीरे मुंह के अंदर जाने दें। 5 मिनट तक उसे मुंह में रखें और फिर कुल्ला कर लें।सर्दी -जुकाम और खासी में फाफी रहत आप को मिलेगी। डॉ अजय अनंत चौधरी Dt.27-12-2022


लौंग और शहद खाएं- खांसी या जुकाम होने पर आप लौंग का सेवन करें
तुलसी अदरक की चाय- अगर आप बहती नांक और खांसी से परेशान हैं तो आपको गर्म तासीर की चीजों का सेवन करना चाहिए ।शहद और अदरक का रस- जुकाम एक ऐसी समस्या है जो हफ्तों में जाकर ठीक होती है। भाप लें- सर्दी-खांसी में सबसे ज्यादा राहत भाप लेने से मिलती है।


सर्दी-खांसी और जुकाम से राहत के लिए घरेलू उपचार | Home Remedies For Common Cold And Cough के लिए निम्न का भी सेवन करके ठीक हो सकते है।
1-अदरक की चाय (Ginger Tea) का सेवन करें। Gharelu Upchar
2-आंवला का सेवन (Amla Consumption) का सेवन करें।
3-शहद का सेवन (Honey Consumption) का सेवन करें।
4-खांसी के लिए रामबाण दवा है तुलसी (Tulsi Home Remedy For Cough In Hindi) का सेवन करें।
5-हल्दी दूध (Turmeric Milk) का सेवन करें। घरेलू उपचार से सर्दी -जुकाम ,खासी से निजात पाये। डॉ अजय अनंत चौधरी Dt.27-12-2022


प्रथम विश्व युद्ध

ऑस्ट्रिया के सिंहासन के उत्तराधिकारी आर्चड्युक फर्डिनेंड और उनकी पत्नी का वध इस युद्ध का तात्कालिक कारण था। यह घटना 28 जून 1914, को सेराजेवो में हुई थी। एक माह के बाद ऑस्ट्रिया ने सर्बिया के विरुद्ध युद्ध घोषित किया। रूस, फ़्रांस और ब्रिटेन ने सर्बिया की सहायता की और जर्मनी ने आस्ट्रिया की। Genral Knowledge
साम्राज्यवाद (Imperialism): प्रथम विश्व युद्ध से पहले अफ्रीका और एशिया के कुछ हिस्से कच्चे माल की उपलब्धता के कारण यूरोपीय देशों के बीच विवाद का विषय बने हुए थे। जब जर्मनी और इटली इस उपनिवेशवादी दौड़ में शामिल हुए तो उनके विस्तार के लिये बहुत कम संभावना बची। इसका परिणाम यह हुआ कि इन देशों ने उपनिवेशवादी विस्तार की एक नई नीति अपनाई। यह नीति थी दूसरे राष्ट्रों के उपनिवेशों पर बलपूर्वक अधिकार कर अपनी स्थिति को सुदृढ़ किया जाए। बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और अधिक साम्राज्यों की इच्छा के कारण यूरोपीय देशों के मध्य टकराव में वृद्धि हुई जिसने समस्त विश्व को प्रथम विश्व युद्ध में धकेलने में मदद की। इसी प्रकार मोरक्को तथा बोस्निया संकट ने भी इंग्लैंड एवं जर्मनी के बीच प्रतिस्पर्द्धा को और बढ़ावा दिया।
अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करने के उद्देश्य से जर्मनी ने जब बर्लिन-बगदाद रेल मार्ग योजना बनाई तो इंग्लैंड के साथ-साथ फ्राँस और रूस ने इसका विरोध किया, जिसके चलते इनके बीच कटुता मेंऔर अधिक वृद्धि हुई।

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Ram Kumar Pal
Ram Kumar Pal Bareilly UP

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सैन्यवाद (Militarism): 20वीं सदी में प्रवेश करते ही विश्व में हथियारों की दौड़ शुरू हो गई थी। वर्ष 1914 तक जर्मनी में सैन्य निर्माण में सबसे अधिक वृद्धि हुई। ग्रेट ब्रिटेन और जर्मनी दोनों ने इस समयावधि में अपनी नौ-सेनाओं में काफी वृद्धि की। सैन्यवाद की दिशा में हुई इस वृद्धि ने युद्ध में शामिल देशों को और आगे बढ़ने में मदद की।
वर्ष 1911 में आंग्ल जर्मन नाविक प्रतिस्पर्द्धा के परिणामस्वरूप ‘अगादिर का संकट’ उत्पन्न हो गया। हालाँकि इसे सुलझाने का प्रयास किया गया परंतु यह प्रयास सफल नहीं हो सका। वर्ष 1912 में जर्मनी में एक विशाल जहाज़ ‘इम्प रेटर’ का निर्माण किया गया जो उस समय का सबसे बड़ा जहाज़ था। इससे इंग्लैंड और जर्मनी के मध्य वैमनस्य एवं प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि हुई।
राष्ट्रवाद (Nationalism): जर्मनी और इटली का एकीकरण भी राष्ट्रवाद के आधार पर ही किया गया था। बाल्कन क्षेत्र में राष्ट्रवाद की भावना अधिक प्रबल थी। चूँकि उस समय बाल्कन प्रदेश तुर्की साम्राज्य के अंतर्गत आता था, अतः जब तुर्की साम्राज्य कमज़ोर पड़ने लगा तो इस क्षेत्र में रहने वाले लोगों ने स्वतंत्रता की मांग शुरू कर दी।


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बोस्निया और हर्जेगोविना में रहने वाले स्लाविक लोग ऑस्ट्रिया-हंगरी का हिस्सा नहीं बना रहना चाहते थे, बल्कि वे सर्बिया में शामिल होना चाहते थे और बहुत हद तक उनकी इसी इच्छा के परिणामस्वरूप प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत हुई। इस तरह राष्ट्रवाद युद्ध का कारण बना।रूस का मानना था कि स्लाव यदि ऑस्ट्रिया-हंगरी एवं तुर्की से स्वतंत्र हो जाता है तो वह उसके प्रभाव में आ जाएगा, यही कारण रहा कि रूस ने अखिल स्लाव अथवा सर्वस्लाववाद आंदोलन को बल दिया। स्पष्ट है कि इससे रूस और ऑस्ट्रिया–हंगरी के मध्य संबंधों में कटुता आई।इसी तरह के और भी बहुत से उदाहरण रहे जिन्होंने राष्ट्रवाद की भावना को उग्र बनाते हुए संबंधों को तनावपूर्ण स्थिति में ला खड़ा किया। ऐसा ही एक उदाहरण है सर्वजर्मन आंदोलन।



आईपीसी की  धारा 207 में विधि का  क्या प्राविधान है

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विधिक सलाहकार : Mukesh Bharti Advocate

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IPC की धारा 207 का विवरण :जो कोई किसी सम्पत्ति को, या उसमें के किसी हित को, यह जानते हुये कि ऐसी सम्पत्ति या हित पर उसका कोई अधिकार या अधिकारपूर्ण दावा नहीं है, कपटपूर्वक प्रतिगृहीत करेगा, प्राप्त करेगा, या उस पर दावा करेगा, अथवा किसी संपत्ति या उसमें के किसी हित पर किसी अधिकार के बारे में जानते हुए की इस पर उसका कोई वैधानिक अधिकार नहीं है और  हड़पने , छीनने  के आशय से मिथ्या दावा  करेगा तो वह व्यक्ति धारा 207 के अंतर्गत दंड एवं जुर्माने से दण्डित किया जाएगा। विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0


Stikarसंत रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और जातिपाति का घोर खंडन किया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।Bahujan Movement:Guru ravidas ji

संत रैदास स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उनके शिष्य उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में जिस परमेश्वर राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि का गुणगान किया गया है।सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। एक ही अलौकिक शक्ति है और कोई दूजा नहीं है। सभी मनुष्य सामान है कोई ऊच नीच नहीं है।ऊच नीच जैसी सामाजिक बुराई सभी चालाक लोग अपने फायदे के लिए बनाये है। ईश्वर सभी को सामान दृष्टि से देखता है। मानव मानव में कोई भेद नहीं है।

stikar
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।

संत रविदास का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-stikar

कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै॥

संत रविदास के विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है Bahujan Movement:


” मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है। ” बाबा साहेब : डॉ भीम राव अम्बेडकर।


stikar kabir ki vani

“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा


पेरियार रामास्वामी जयंती 17 सितम्बर मनाई जाती है। पेरियार रामास्वामी जयंती 17 सितम्बर 2023 को मनाई जायेगी ।

जीवन परिचय : Periyar saheb :पेरियार इरोड वेंकट नायकर रामासामी (जन्म  17 सितम्बर, 1879-मृत्यु 24 दिसम्बर, 1973) जिन्हे पेरियार (तमिल में अर्थ -सम्मानित व्यक्ति) नाम से भी जाना जाता था, पेरियार का जन्म पश्चिमी तमिलनाडु के इरोड में एक सम्पन्न, परम्परावादी हिन्दू धर्म की बलीजा जाति में हुआ था।जो उत्तर भारत में पाल और गड़ेरिया जाति के सामान समकक्ष है।

Mukesh Bharti
Mukesh Bharti: Chief Editor- Bahujan India 24 News

और ओबीसी जाति का प्रतिनिधित्व करती है।Bahujan Movement: 1885 में उन्होंने एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में अध्ययन हेतु दाखिला लिया था । पर कोई पाँच साल से कम की औपचारिक शिक्षा मिलने के बाद ही उन्हें अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ना पड़ा। कई पीढ़ियों से उनके घर पर भजन , कीर्तन तथा उपदेशों का सिलसिला चलता ही रहता था। बचपन से ही वे तर्कशील और विवेकवान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे धार्मिक ग्रन्थ और उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे जिससे उनके पिता बहुत नाराज रहते थे । हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही बातों की परस्पर विरोधी तथा बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरुद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के घोर विरोधी थे। अपने काशी यात्रा के बाद उन्होंने हिन्दू वर्ण व्यवस्था और कुरीतियों का भी विरोध ही नहीं बल्कि बहिष्कार भी किया। 19 वर्ष की उम्र में उनकी शादी नगम्मल नाम की 13 वर्षीय स्त्री से हुई। उन्होंने अपना पत्नी को भी अपने विचारों से ओत प्रोत किया। तर्कशक्ति के कारण भारत ही नहीं बल्कि एशिया का सुकरात कहा जाता है।

Periyar saheb : पेरियार साहेब वैज्ञानिक दृष्टिकोण के व्यक्ति थे और तर्कशील थे। 20वीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता व दलित शोषित, गरीबों के मसीहा थे।और बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर के समकालीन थे। अपने सिद्धांतो से समाज में फैली बुराइयों का नाश किया। इन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जिसका सिद्धान्त जातिवादी व गैर बराबरी वाले हिन्दुत्व का विरोध था। पेरियार अपनी मान्यता का पालन करते हुए मृत्युपर्यंत जाति और हिंदू-धर्म से उत्पन्न असमानता और अन्याय का विरोध करते रहे। ऐसा करते हुए उन्होंने लंबा, सार्थक, सक्रिय और सोद्देश्यपूर्ण जीवन जीया था।


 ” चमार रेजिमेंट “

Dt.28.12.2022Mukesh bharti ।चमार रेजीमेंट का इतिहास जानने के लिए जरूर पढ़े।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अग्रेजों ने…भारत में लिंगायत , अजमेर , लुसाई रेजिमेंटों की स्थापना की थी तथा चमार जाति की रेजीमेंट सेकेंड पंजाब रेजीमेंट की 27वी बटालियन का नाम बदल कर चमार रेजिमेंट कर दिया था ।

मोहन लाल कुरील को चमार रेजिमेंट में कैप्टेन के पद पर नियुक्त किया गया था । कैप्टेन मोहन लाल कुरील उनका जन्म कोहार नामक स्थान ( आज का पाकिस्तान) में 1910 में हुआ था । बचपन से कैप्टेन मोहन लाल कुरील पढ़ने में बहुत तेज थे और बाद में लखनऊ क्रिश्चियन कालेज के छात्र रहे । उनके पिता का नाम मनुआ राम था ।

सन 1943 में जब चमार रेजिमेंट के नाम से एक स्टैडर्ड रेजीमेंट के नाम में परिवर्तन किया गया तब मोहनलाल इसमें केप्टन के पद पर नियुक्त किये गए थे । इस रेजिमेंट में अंग्रेजों की तरफ से लडते हुए जो शहीद हुए और उनका व्यौरा उपलब्ध हो सका उनमें से प्रमुख है । (1 )पेनू पुत्र श्री कोडाराम निवासी जिला होशियार पुर (2 ) पिरथी पुत्र श्री मामराज निवासी जिला रोहतक (3 ) पूर्णलांस नायक पुत्र श्री हंसा निवासी जिला मेरठ (4 ) हरवंश सिंह पुत्र श्री बुद्धयान निवासी जिला मेरठ (5 ) मायाराम पुत्र श्री भावाराम निवासी जिला होशियार पुर सभी वीर जवानों के रंगून वार मेमोरियल जिन चमार शहीद जवानौ की स्मृति में बना है उनके नाम है ।

1-भगवान लांस नायक ( सि. 28614) 2-बख्तावरसिंह लांस नायक ( सि.22344)

3-बालकराम ( सि. 22644) 4-बाली ( सि. 22553) 5-बलजीत नायक ( सि. 28636) 6-चेतु नायक ( 28636)

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजो की तरफ से चमार रेजिमेंट की एक टुकडी कैप्टेन मोहनलाल के नेतृत्व में सिंगापुर भेजी गई । वहाँ इस टुकडी को नेताजी शुभाषचंद बोस की बनाई गई आजाद हिन्द फौज के मुकाबले पर उतार दिया गया । उससे पहले द्वितीय विश्वयुद्ध में चमार रेजिमेंट को सबसे खतरनाक जापानी फौज के मुकाबले लडाया जाता था । 1939 से लेकर 1945 तक चमार रेजिमेंट ने अंग्रेजों को कई युद्ध जिताये थे और इस रेजिमेंट के काफी सिपाइयौ ने उस वक्त का सर्वश्रेष्ठ पुरुष्कार विक्टोरिया क्रास हासिल किया था ।

मगर जब चमार रेजीमेंट को अपने देश के ही , वो भी जो अपने देश की ही आजादी के लिये लड रहे थे को मारने का आदेश दिया गया तो केप्टन मोहनलाल ने अंग्रेजों का यह आदेश मानने से इन्कार कर दिया । तब अंग्रेजों ने हथियार जमा करने का आदेश दिया । फिर सिंगापुर युद्ध पर भेजी गई पूरी रेजिमेंट , हथियारों सहित आजाद हिन्द फौज में सम्मिलित हो गई । नेताजी शुभाषचंद बोस ने मोहन लाल को आजाद हिन्द फौज में मेजर जनरल का पद देकर अपना दांंया हाथ बताया था । इन्ही मोहनलाल कुरील ने ही आजाद हिन्द फौज के झन्डे तले वर्मा को अंग्रेजों से आजाद करा लिया था ।

जैसे ही अंग्रेजों को पता चला की चमार रेजिमेंट का विलय आजाद हिन्द फौज में हो गया है तो आनन फानन में अंग्रेजों ने चमार रेजिमेंट भंग कर दी थी । और सैनिकों को भेजी जाने वाली रसद पर रोक लगा दी। इस रेजिमेंट के तमाम सिपाही मियामार और थाइलैंड के जंगलौ में भटकते हुए मारे गये । कुछ युद्ध में मारे गये । जब जापान भी युद्ध हार गया तब आजाद हिन्द फौज के जीवित बचे सिपाही बन्दी बना लिये गये । उन्ही बंदियों में मोहनलाल भी बन्दी बनाये गए। आजादी के बाद जब मोहनलाल को जेल से रिहा किया गया तो वो उन्नाव में जाकर बस गये और कांग्रेस के साथ मिलकर राजनीति करने लगे । उनके बडे नाम के कारण वो 1952 के चुनाव में सफीपुर सीट से विधायक चुन लिए गये । उन्नाव के निवासी होने के बाद वो केप्टन मोहनलाल कुरील के नाम से जाने गये ।

Mukesh Bharti
Mukesh Bharti: Chief Editor- Bahujan India 24 News

सिंगापुर युद्ध:, इस युद्ध पर चमार रेजिमेंट के सिख सिपाई नहीं भेजे गये थे । और जब पूरी रेजिमेंट भंग कर दी तो रेजिमेंट के चमार सिखो ने अंग्रेज सरकार से अपील की कि मेरी क्या गलती है । तब अंग्रेजों ने चमार रेजिमेंट के बचे सिपाइयौ को सिख लाइट इनफेंन्टरी के नाम से बहाल कर दिया । जो आज भी सिख लाइट इनफेंन्टरी के नाम से सेना की रेजिमेंट है ।

कांग्रेस शोषित पीड़ित दलित की राजनीति 70 सालों तक की और दलितों के बड़े बड़े चेहरे वोट बैंक लेने के लिए पेस किये लेकिन इस रेजिमेंट को बहाल नहीं किया। कांग्रेस पार्टी का दोहरा चेहरा आज भी सभी के सामने है। हाय रे भारत की तकदीर और हाय आजाद भारत सरकार । दलितों के नेता कांग्रेस में क्या कर रहे थे जो इस छोटी सी रेजिमेंट को बहाल नहीं करा पाये यही है हक़ अधिकार मारने की कहानी। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ दुर्घटना हो गई । अगर नेताजी सुभाष चंद्र बोस जीवित होते तो कोई अन्य उनके मुकाबले चुनाव नही जीत सकता था । प्रवल सम्भावना थी कि नेताजी ही चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री बनते । तब चमार रेजिमेंट बुलंन्दियौ को छूती और प्रमुख रेजिमेंट भी होती । तकदीर का खिलवाड़ देखिये…..देश की आजादी के लिये जान लुटाने वाली चमार रेजिमेंट को भारत की आजाद सरकार ने आज भी बहाल नहीं किया है ।जबकि अंग्रेजों का साथ देने वाली और आजादी के दीवानों को मौत देने वाली सभी अंग्रेज भक्त वटालियन वहाल है ।


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