Hapur News:बाबूगढ़ नगर पंचायत चेयरमैन के छोटे भाई का हार्ट अटैक से निधन – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

Hapur News:बाबूगढ़ नगर पंचायत चेयरमैन के छोटे भाई का हार्ट अटैक से निधन

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संवाददाता ::बाबूगढ़ नगर ::दयानन्द कुमार{C020} :: Published Dt.04.01.2023 ::बाबूगढ़ नगर पंचायत चेयरमैन के छोटे भाई का हार्ट अटैक से निधन


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बहुजन प्रेरणा ( हिंदी दैनिक समाचार पत्र ) व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (डिजिटल मीडिया)


Hapur News ।  ब्यूरो रिपोर्ट :दयानन्द कुमार।बाबूगढ़ नगर पंचायत चेयरमैन के छोटे भाई का हार्ट अटैक से निधन

(हापुड़) मंगलवार की देर रात करीब 1:30 बजे बाबूगढ़ नगर पंचायत चैयरमेन जगबीर सिंह गुर्जर के छोटे भाई जयवीर सिंह गुर्जर का हार्ट अटैक से निधन हो गया। मौत की खबर सुनकर परिवार में कोहराम मच गया। जानकारी के अनुसार जयवीर सिंह गुर्जर का अंतिम संस्कार गढ़मुक्तेश्वर के ब्रजघाट में किया जाएगा। मंगलवार की रात रोजाना की तरह जयवीर सिंह गुर्जर अपने मेडिकल स्टोर पर बैठे हुए थे,जिनको रात करीब 1:30 बजे अचानक सीने में दर्द उठने की शिकायत हुई।

बाबूगढ़ नगर पंचायत चेयरमैन के छोटे भाई का हार्ट अटैक से निधन

जिसके बाद उन्हें आनन-फानन में शहर के देवनंदनी अस्पताल ले जाया गया, लेकिन अस्पताल में डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। मृतक जयवीर सिंह गुर्जर काफी सरल स्वभाव के व्यक्ति थे जिनके अचानक यूं चले जाना से लोग हतप्रभ है। नगर के सामाजिक व प्रतिष्ठित लोग नगर पालिका अध्यक्ष के प्रति शोक संवेदनाए व्यक्त कर रहे हैं।


पानीपत का तीसरा युद्ध

Dt.03.01.2023 । Virendra Kumar।  (History Department) Usmani Degree College Lakhimpur Kheri वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022

पानीपत का युद्ध अहमद शाह अब्दाली और मराठा सेनापति सदाशिव राव भाऊ के बीच 14 जनवरी 1761 को वर्तमान पानीपत के मैदान मे हुआ जो वर्तमान समय में हरियाणा में है। इस युद्ध में अब्दाली की जीत हुई और मराठों की पराजय इस युद्ध में गार्दी सेना प्रमुख इब्राहीम ख़ाँ गार्दी ने मराठों का साथ दिया तथा दोआब के अफगान रोहिला और अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने अहमद शाह अब्दाली का साथ दिया

Virendra kuamr Usmani Degree College Lakhimpur Kheri

युद्ध मे पराजय के कारण-
1- मराठों में एक कुशल नेतृत्व का आभाव जिससे वे तत्समय अन्य राजाओं से सहयोग पाप्त नही कर सके। 2- दोषपूर्ण सैन्य व्यवस्था, स्त्रियों और बच्चों को साथ ले जाना। 3-मराठे गोरिल्ला युद्ध मे अभ्यस्त थे उन्होने कभी खुला/ आमने-सामने का युद्ध नही लडा था। 4-अब्दाली की सेना अस्त्र-शस्त्र और तोपें मराठों की अपेक्षा श्रेष्ठ थी तथा अब्दाली सदाशिवराव और विश्वास राव की अपेक्षा कुशल सेनापति था 5-मराठा सेना की अपेक्षा अब्दाली की सेना भी अधिक थी 6-युद्ध क्षेत्र में पेशवा बालाजी बाजीराव की अनुपस्थिति।

 

युद्ध का परिणाम- पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों की पराजय हुई करीब 20000 मराठा सैनिकों और सरदारों को मैत के घाट उतार दिया गया, महाराष्ट मे शायद ही कोई जिसने किसी अपने को न खोया हो। इस युद्ध के पश्चात मराठों का सम्पूर्ण भारत पर शासन करने का सपना ध्वस्त हो गया और मराठों का भाग्य निम्नतम स्तर की ओर अग्रसर होता गया अंततः 1818 पूर्णरूपेण अंग्रेजो के द्वारा समाप्त कर दिया गया। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 03-1-2023


” मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है। ” बाबा साहेब : डॉ भीम राव अम्बेडकर।


संत रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और जातिपाति का घोर खंडन किया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।Bahujan Movement:Guru ravidas ji

संत रैदास स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उनके शिष्य उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में जिस परमेश्वर राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि का गुणगान किया गया है।सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। एक ही अलौकिक शक्ति है और कोई दूजा नहीं है। सभी मनुष्य सामान है कोई ऊच नीच नहीं है।ऊच नीच जैसी सामाजिक बुराई सभी चालाक लोग अपने फायदे के लिए बनाये है। ईश्वर सभी को सामान दृष्टि से देखता है। मानव मानव में कोई भेद नहीं है।

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कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।

संत रविदास का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-Ravidasstikar

कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै॥

संत रविदास के विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है Bahujan Movement:


Dt.27.12.2022 । Virendra Kumar।  (History Department) Usmani Degree College Lakhimpur Kheri वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022

जलियांवाला बाग हत्याकांड:

आज़ादी के आंदोलन में हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे : 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों पर बिना बताये ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए थे। इस कांड में मारे गए लोग रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। इस हत्या काण्ड का बदला लेने के लिए वर्ष 1940 में सरदार उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या कर दी थी। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022

Virendra kuamr Usmani Degree College Lakhimpur Kheri
Virendra Kumar Usmani Degree College

Stikar Samany Gyan 2023
क्या है रॉलेट एक्ट 1919 को जाने :
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक शृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था।इस संदर्भ में सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर यह अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये अधिकार प्रदान किये और दो साल तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दी।
जलियांवाला बाग हत्या काण्ड की पृष्ठभूमि: महात्मा गांधी इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे, जो 6 अप्रैल, 1919 को शुरू हुआ। 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी वारेंट के गिरफ्तार कर लिया। इससे भारतीय प्रदर्शनकारियों में आक्रोश पैदा हो गया जो 10 अप्रैल को हज़ारों की संख्या में अपने नेताओं के साथ एकजुटता दिखाने के लिये निकले थे।भविष्य में इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने हेतु सरकार ने मार्शल लॉ लागू कियाHistory और पंजाब में कानून-व्यवस्था ब्रिगेडियर-जनरल डायर को सौंप दी गई।Stikar घटना का दिन: 13 अप्रैल, बैसाखी के दिन अमृतसर में निषेधाज्ञा से अनजान ज़्यादातर पड़ोसी गाँव के लोगों की एक बड़ी भीड़ जालियांवाला बाग में जमा हो गई।इस बड़ी भीड़ को तितर बितर करने के लिए ब्रिगेडियर- जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचा। सैनिकों ने जनरल डायर के आदेश के तहत सभा को घेर कर एकमात्र निकास द्वार को अवरुद्ध कर दिया और निहत्थे भीड़ पर गोलियाँ चलाना शुरू कर दी दीं, जिसमें 1000 से अधिक निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई।Genral Knowledge
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना का महत्त्व:जलियांवाला बाग भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थल बन गया और अब यह देश का एक महत्त्वपूर्ण स्मारक है।जलियांवाला बाग त्रासदी उन कारणों में से एक थी जिसके कारण महात्मा गांधी ने अपना पहला, बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) अभियान, असहयोग आंदोलन (1920–22) का आयोजन शुरू किया।इस घटना के विरोध में बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।भारत की तत्कालीन सरकार ने घटना (हंटर आयोग) की जाँच का आदेश दिया, जिसने वर्ष 1920 में डायर के कार्यों के लिये निंदा की और उसे सेना से इस्तीफा देने का आदेश दिया। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 27-12-2022


stikar kabir ki vani

“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”

अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा।


क्या इस दुनिया में ईश्वर है ?
चार्वाक ने बृहस्पति सूत्र का प्रतिपादन (600 ईसा पूर्व) में किया था जिसके अधिकांश प्राथमिक साहित्य गायब या खो गए हैं


Lucknow ।Mukesh Bharti । :: Published Dt.02.01.2023 ::चार्वाक दर्शन के अनुसार : जगत में ना कोई आत्मा है या न ही कोई ईश्वर। चार्वाक आत्मा और ईश्वर के अस्तित्व को पूरी तरह मानने से इंकार कर देता है। चार्वाक का नैतिक दर्शन – चार्वाक के अनुसार मानव जीवन एक मात्र लक्ष्य जीवन में अधिकतम सुख पाना है,चाहे वो कैसे भी आये। सुख ही एकमात्र साध्य है।Charvak
चार्वाक दर्शन : सृष्टि की संरचना कैसे हुयी ? चार्वाक दर्शन के अनुसार -पृथ्वी, जल, तेज तथा वायु ये चार ही तत्त्व सृष्टि के मूल कारण हैं। जिस प्रकार बौद्ध उसी प्रकार चार्वाक का भी मत है कि आकाश नामक कोई तत्त्व नहीं है। यह शून्य मात्र है। अपनी आणविक अवस्था से स्थूल अवस्था में आने पर उपर्युक्त चार तत्त्व ही बाह्य जगत, इन्द्रिय अथवा देह के रूप में दृष्ट होते हैं।

चार्वाक सिद्धांत : वेद से असम्मत सिद्धान्तों का प्रतिपादन है। अजित केशकंबली को चार्वाक के अग्रदूत के रूप में श्रेय दिया जाता है, जबकि बृहस्पति को आमतौर पर चार्वाक या लोकायत दर्शन के संस्थापक के रूप में जाना जाता है।


गुरु गोविंद सिंह जी का संक्षिप्त परिचय: 

Lucknow ।Mukesh Bharti । :: Published Dt.29.12.2022 ::बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ गुरु गोविंद सिंह जी का संक्षिप्त परिचय :गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 में बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। इनके पिता गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे।गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। साल 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी ।

प्रकाश पर्व : इस साल 29 दिसंबर 2022 को गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती धूमधाम से मनाई जा रहे है । गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुगलों की तरफ से हो रहे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ युद्ध किया था।और मानवता का सन्देश दिया था मुगलों के दबाव के बाद भी इस्लाम धर्म नहीं क़ुबूल किया और जीवन पर्यन्त मुगलों से संघर्ष किया। गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 में बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। इनके पिता गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे।गुरु गोविंद सिंह सिखों के दसवें और अंतिम गुरु थे। साल 1699 में उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की थी गुरु गोविंद सिंह की जयंती को सिख धर्म के अनुयायी बहुत ही पवित्र मानते है और धूमधाम से मानते है शहर में नगर कीर्तन निकला जाता है सभी गुरूद्वारे में जा कर मत्था टेकते है और गुरु जी से आशीर्वाद प्राप्त करते है। इस दिन को प्रकाश पर्व के  नाम से जाना जाता है सिखों के दसवें गुरु होने के अलावा गुरु गोविंद सिंह जी महान योद्धा भी थे उनका जीवन आदर्शों से भरा हुआ है।


बहुजन प्रेरणा दैनिक समाचार पत्र व बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ (सम्पादक- मुकेश भारती )

किसी भी शिकायत के लिए सम्पर्क करे – 9336114041


गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती पर आइए जानते हैं उनके अनमोल वचन: 1-जब आप भीतर के अहंकार को खत्म कर देते हैं तभी आप को वास्तविक शांति की प्राप्ति होती है ।  2-इंसान से प्रेम करना ही ईश्वर से सच्ची आस्था और सकती है।  3-जो लोग भगवान के नाम पर सिमरन करते हैं वही जीवन में सुख और शांति पाते हैं ।   4- मैं हर उस व्यक्ति को पसंद करता हूं जो हमेशा अपनी जिंदगी में सच्चाई की राह पर चलता है।

“सवा लाख से एक लड़ाऊँ चिड़िया ते मैं बाज तुड़ाऊँ तवैं गुरू गोविन्द सिंह नाम कहाऊँ ” अन्याय और अत्याचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले, त्याग और मानवता के प्रतीक सिख समुदाय के दसवें गुरु ‘गुरु गोबिंद सिंह’ जी की जयंती पर उन्हे मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि ।  :Mukesh Bharti- Bahujan India 24 News 


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(सम्पादक- मुकेश भारती एड0 ): किसी भी शिकायत के लिए सम्पर्क करे – 9336114041


Baba Saheb Dr Bheem Rao Ambedkar

Stikar” मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है। ” बाबा साहेब : डॉ भीम राव अम्बेडकर।


Stikar Aaj ka suvichar” जिन्दगी का हर एक छोटा हिस्सा ही
हमारी जिदंगी की सफ़लता का बड़ा हिस्सा होता है।”


चाणक्य नीति : “आदमी अपने जन्म से नहीं अपने कर्मों से महान होता है।” :- आचार्य चाणक्य 


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डॉ श्यामसुन्दर दास

हिंदी के महान लेखक और कवि डॉ श्यामसुन्दर दास का संक्षिप्त परिचय और योगदान : डॉ श्यामसुन्दर दास का जन्म सन् 1875 ई. काशी (वाराणसी) में हुआ था।; और मृत्यु- 1945 ई.में हुई। डॉ श्यामसुन्दर दास ने जिस निष्ठा से हिन्दी के अभावों की पूर्ति के लिये लेखन कार्य किया और उसे कोश, इतिहास, काव्यशास्‍त्र भाषाविज्ञान, अनुसंधान पाठ्यपुस्तक और सम्पादित ग्रन्थों से सजाकर इस योग्य बना दिया कि वह इतिहास के खंडहरों से बाहर निकलकर विश्वविद्यालयों के भव्य-भवनों तक पहुँची।

डॉ श्यामसुन्दर दास के पूर्वज लाहौर के निवासी थे और पिता लाला देवी दास खन्ना काशी में कपड़े का व्यापार करते थे। इन्होंने 1897 ई. में बी.ए. पास किया था। यह 1899 ई. में हिन्दू स्कूल में कुछ दिनों तक अध्यापक रहे। उसके बाद लखनऊ के कालीचरन स्कूल में बहुत दिनों तक हैडमास्टर रहे। सन् 1921 ई. में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए।
श्यामसुन्दर दास जी ने परिचयात्मक और आलोचनात्मक ग्रंथ लिखने के साथ ही कई दर्जन पुस्तकों का संपादन किया। पाठ्यपुस्तकों के रूप में इन्होंने कई दर्जन सुसंपादित संग्रह ग्रंथ प्रकाशित कराए। डॉ श्यामसुन्दर दास ने वैसे तो 70 साहित्य-कृतियों की रचना की लेकिन डॉ श्यामसुन्दर दास की प्रमुख साहित्य-कृतियाँ निम्नलिखित हैं।
चन्द्रावली’ अथवा ‘नासिकेतोपाख्यान’ पृथ्वीराज रासो ,मेघदूत, परमाल रासो, रानी केतकी की कहानी, भारतेन्दु नाटकावली ,नूतन संग्रह, हम्मीर रासो ,साहित्यलोचन जैसी प्रसिद्ध रचनाओं का निर्माण किया। जिनकी रचनाओं को बीए और एमए की कक्षा में आज पढ़ाया जाता है।

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