Juvenile Case Study:किशोरों के मामले में अग्रिम जमानत याचिका पोषणीय नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट:बहुजन न्यूज़
1 min read
😊 Please Share This News 😊
|
किशोरों के मामले में अग्रिम जमानत याचिका पोषणीय नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट:बहुजन न्यूज़
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को कहा कि किशोरों के मामले में अग्रिम जमानत विचारणीय नहीं है।
⚫ न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा की खंडपीठ आईपीसी की धारा 307, 504 और 506 के तहत दर्ज मामले में अग्रिम जमानत के लिए नाबालिग ‘एक्स’ की ओर से उसके अभिभावक/पिता के माध्यम से दायर आवेदन पर सुनवाई कर रही थी।
🟤 इस मामले में, आवेदक की ओर से वकील राकेश पाठक और शशांक शेखर तिवारी ने तर्क दिया कि एक नाबालिग को धारा 438 सीआरपीसी के तहत उपलब्ध सुरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता है। सिर्फ इसलिए कि वह वयस्क नहीं है।
पीठ के समक्ष विचार के लिए मुद्दा था:
आवेदक को अग्रिम जमानत दी जा सकती है या नहीं?
🔵 हाईकोर्ट ने कहा कि जबकि एक वयस्क को आमतौर पर पुलिस द्वारा संज्ञेय हर अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है, लेकिन कानून के उल्लंघन में बच्चे के मामले में, उसे सामान्य रूप से संज्ञेय मामलों में गिरफ्तार/गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। यह कहना संभव सबसे संकीर्ण व्याख्या होगी कि विधायिका ने ‘गिरफ्तारी’ शब्द को ‘आशंका’ से बदल दिया, केवल बच्चों के अनुकूल लगने के लिए। यह प्रतिस्थापन अधिनियम के उद्देश्यों के अनुरूप उद्देश्यपूर्ण है।
🟢 बेंच ने किशोर न्याय अधिनियम, 2015 की धारा 12 को देखने के बाद कहा कि “.गिरफ्तारी की आशंका जो धारा 438 की प्रयोज्यता के लिए एक आवश्यक पूर्व-आवश्यकता है सीआर.पी.सी. किशोरों के मामलों में पूरी तरह से बाहर है। शब्द “गिरफ्तारी” किशोर न्याय अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रयुक्त अर्थ में “आशंका” शब्द द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है…”
🔴 हाईकोर्ट ने कहा कि बाल अपराधी के संबंध में एक विशिष्ट और विशेष प्रक्रिया किशोर न्याय अधिनियम, 2015 में रखी गई है ताकि उन सभी पहलुओं से व्यापक रूप से निपटा जा सके जो एक आपराधिक मामले में उत्पन्न हो सकते हैं, चाहे प्राथमिकी दर्ज करके शुरू किया गया हो या शुरू नहीं होता है। ऐसे कई संकेतक हैं जो एक राय या राय बनाने से इंकार करते हैं कि अग्रिम जमानत के प्रावधान किशोर की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लागू होंगे।
अधिनियम में एक योजना है जो ऐसे किशोरों के साथ प्री-प्रोडक्शन और पोस्ट-प्रोडक्शन चरणों में काम करती है।
🟣 पीठ ने आगे कहा कि “जमानत पर बच्चे की रिहाई से निपटने के दौरान जिन कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए, उनमें स्पष्ट रूप से उसके संघ में आने की संभावना शामिल है। ज्ञात अपराधियों के साथ, शारीरिक, नैतिक या मनोवैज्ञानिक खतरे के संपर्क में आने की संभावना या अन्यथा न्याय के उद्देश्यों को पराजित करना। उपरोक्त कारक यह निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त हैं कि धारा 12 के प्रावधानों को एक बच्चे के सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए अधिनियमित किया गया है।
⏹️ हाईकोर्ट ने कहा कि कानून के साथ संघर्ष करने वाले बच्चे से निपटने के लिए कानून की एक समग्र मशीनरी स्थापित की गई है। निहितार्थ के रूप में, ऐसे अंतराल, यदि कोई हों, को बाहर करने की आवश्यकता है जहां एक बच्चे को प्रक्रिया के नियमित कानून के तहत निपटाया जा सकता है।
🟠 मामले में, धारा 438 Cr.P.C के प्रावधान। किशोर के मामलों में अधिकार रखने की अनुमति दी जाती है, तो अधिनियम का उद्देश्य और उद्देश्य विफल हो जाएगा। कानून की व्याख्या इस तरह से नहीं की जा सकती है, जिससे कि इस अधिनियमन द्वारा प्राप्त किए जाने वाले व्यापक और गंभीर उद्देश्य में बाधा उत्पन्न हो।
🟡 पीठ बंबई हाईकोर्ट की राय से असहमत है और उसने शहाब अली और अन्य बनाम यूपी राज्य के मामले का उल्लेख किया और कहा कि किशोर न्याय अधिनियम एक व्यापक कानून है जिसमें कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के संबंध में सभी प्रावधान हैं और वह धारा 438 Cr.P.C के प्रावधान। योजना के साथ-साथ लक्ष्य और उद्देश्य के साथ असंगत और असंगत कोई आवेदन नहीं है, जिसे अधिनियम द्वारा प्राप्त करने की मांग की गई है।
उपरोक्त के मद्देनजर, हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
❇️केस का शीर्षक:- माइनर ‘एक्स’ बनाम यूपी राज्य
बेंच: जस्टिस ज्योत्सना शर्मा
केस नंबर: क्रिमिनल विविध अग्रिम जमानत आवेदन धारा 438 CR.P.C. क्रमांक – 2022 का 11542
आवेदक के वकील: राकेश पाठक और शशांक शेखर तिवारी
प्रतिवादी के वकील: प्रेम शंकर पांडे
संत रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और जातिपाति का घोर खंडन किया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।Bahujan Movement:
संत रैदास स्वयं मधुर तथा भक्तिपूर्ण भजनों की रचना करते थे और उनके शिष्य उन्हें भाव-विभोर होकर सुनाते थे। उनका विश्वास था कि वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में जिस परमेश्वर राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि का गुणगान किया गया है।सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। एक ही अलौकिक शक्ति है और कोई दूजा नहीं है। सभी मनुष्य सामान है कोई ऊच नीच नहीं है।ऊच नीच जैसी सामाजिक बुराई सभी चालाक लोग अपने फायदे के लिए बनाये है। ईश्वर सभी को सामान दृष्टि से देखता है। मानव मानव में कोई भेद नहीं है।
कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।
संत रविदास का विश्वास था कि ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार, परहित-भावना तथा सद्व्यवहार का पालन करना अत्यावश्यक है। अभिमान त्याग कर दूसरों के साथ व्यवहार करने और विनम्रता तथा शिष्टता के गुणों का विकास करने पर उन्होंने बहुत बल दिया। अपने एक भजन में उन्होंने कहा है-
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै॥
संत रविदास के विचारों का आशय यही है कि ईश्वर की भक्ति बड़े भाग्य से प्राप्त होती है। अभिमान शून्य रहकर काम करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल रहता है जैसे कि विशालकाय हाथी शक्कर के कणों को चुनने में असमर्थ रहता है जबकि लघु शरीर की पिपीलिका (चींटी) इन कणों को सरलतापूर्वक चुन लेती है। इसी प्रकार अभिमान तथा बड़प्पन का भाव त्याग कर विनम्रतापूर्वक आचरण करने वाला मनुष्य ही ईश्वर का भक्त हो सकता है Bahujan Movement:
निम्न जाति की महिलाओं पर स्तन कर , महिलाओं का शादियों तक सहना पड़ा अपमान
Published Date 28 January 2023: दुनिया में टैक्स की शुरुआत 14वीं शताब्दी से माना जाता है । हालांकि 5000 साल पहले मिस्त्र में टैक्स वसूली के सबूत भी मिले हैं। चलिए आपको कुछ अजीबो-गरीब ।
त्रावणकोर में ब्रेस्ट टैक्स-
स्तन कर त्रावणकोर साम्राज्य द्वारा नादारों, एझावारों और अन्य निम्न जाति समुदायों पर लगाया जाने वाला एक प्रमुख कर था। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार निम्न वर्ग की महिलाओं पर स्तन कर लगाया जाता था यदि वे अपने स्तनों को ढकती थीं।
नांगेली की ग्रामीण एक ऐसी महिला के बारे में है जो 19वीं सदी की शुरुआत में त्रावणकोर राज्य के चेरथला में रहती थी, और कथित तौर पर जाति-आधारित “स्तन कर” का विरोध करने के प्रयास में अपने स्तनों को काट देती थी।
भारत के केरल राज्य में स्तन कर त्रावणकोर साम्राज्य द्वारा नादारों, एझावारों और अन्य निम्न जाति समुदायों पर लगाया जाने वाला एक प्रमुख कर था। जो धर्म शास्त्रों में मूलाकरम के नाम से जाना जाता था। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार निम्न वर्ग की महिलाओं पर स्तन कर लगाया जाता था यदि वे अपने स्तनों को ढकती थीं।
यानी उन्हें अपना स्तन खुला ही रखना होता था। ये महिलाएं अर्धनग्न अवस्था में न रहकर यदि कपड़े से अपना स्तन ढकती थीं तो उन्हें ब्रेस्ट टैक्स (Breast Tax ) देना होता था। जी हां, ब्रेस्ट टैक्स, जिसे मूलाकरम (Mulakkaram) कहा जाता था।
19वीं सदी की शुरुआत केरल के त्रावणकोर में महिलाओं से ब्रेस्ट टैक्स लिया जाता था ब्रेस्ट की साइज के मुताबिक अधिकारी टैक्स निर्धारित करते थे बताया जाता है कि नांगेली नाम की महिला ने इसके विरोध में अपने स्तन काट दिए थे इसके बाद इस टैक्स का विरोध होने लगा साल 1814 में त्रावणकोर के राजा ने ब्रेस्ट टैक्स को खत्म कर दिया।
मुर्ख राजा मार्थंड वर्मा : भारत के कर्नाटक राज्य में मुर्ख मार्थंड वर्मा नामक राजा के राज्य में स्तन कर त्रावणकोर साम्राज्य द्वारा नादारों, एझावारों और अन्य निम्न जाति समुदायों पर लगाया जाने वाला एक प्रमुख कर था। जो धर्म शास्त्रों में मूलाकरम के नाम से जाना जाता था। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार निम्न वर्ग की महिलाओं पर स्तन कर लगाया जाता था यदि वे अपने स्तनों को ढकती थीं। ऊंची जाति के महिलाओं पर टैक्स नहीं लगता था। जिससे जाति वादी मानशिकता साफ नज़र आती है। ये टैक्स अंग्रेजों या मुस्लिम शासकों द्वारा नहीं लगाया गया था बल्कि हिन्दू धर्म के भारतीय क्षत्रियों द्वारा ब्राह्मण मंत्रियों की सलाह पर लगाया गया था। धीरे धीरे धार्मिक रूप देकर इसको भारतीय संस्कृत और सभ्यता बताने की कोशिश की गयी थी। इस घृणित कार्य में वेद पुराण धर्म शास्त्र के पढ़े लिखे के महारथियों का षड्यंत्र था जिससे उच्च जाति और निम्न जाति की महिलाओं में विभेद किया जा सके।जाति वर्ग व्यवस्था को मजबूत किया जा सके। जितने दोषी उस राज्य के पण्डे पुजारी धर्मशास्त्री लोग थे उतना ही दोष उनकी महिलाओं का था जो इसका स्पोर्ट करती थी। इसको बनाये रखने के लिए नये नये तर्क गढ़े जाते थे और धर्म शास्त्र का सहारा लिया जाता था। और एक विशेष जाति की प्रथा बता कर किनारा कर लिया जाता था।
शोषित पीड़ित लोगों का अपमान और दमनकारी धार्मिक जाल:
शोषित पीड़ित लोगों के साथ ऐसा इस लिए किया जाता है क्यों कि वे लोग स्वाभिमान की जिंदगी न जी सके। उनकी मोरैलिटी सदैव डाउन रह सके। उनका सामाजिक स्तर नीचे गिर सके। अपने आप को हीन मान सके। उनका स्वभाव चिड़चिड़ा हो सके। पढ़ने लिखने वाली संस्थाओं में एंट्री न मिल सके। जाति व्यवस्था कायम रहे और इसको लोग भगवान का कोप मानकर सदियों तक झेलते रहे। जिससे उनपर शासन किया जा सके और कभी भी विद्रोह न कर सके। इसलिए ऐसे पाप कर्म को धार्मिक चोला पहना दिया जाता है। मूलाकरम या स्तन कर यानी उन्हें अपना स्तन खुला ही रखना होता था। ये महिलाएं अर्धनग्न अवस्था में न रहकर यदि कपड़े से अपना स्तन ढकती थीं तो उन्हें ब्रेस्ट टैक्स (Breast Tax ) देना होता था। जी हां, ब्रेस्ट टैक्स, जिसे मूलाकरम (Mulakkaram) कहा जाता था।
निम्न जाति की महिलाओं को शादियों तक सहना पड़ा अपमान
1924 तक दलित महिलाओं को स्तन ढकने के लिए टैक्स देना पड़ता था, छाती पर कपड़ा दिखा तो चाकू से फाड़ देते थे ये कहानी महिलाओं के स्तन ढकने की लड़ाई के बारे में है। ये कहानी किसी दूसरे मुल्क की नहीं, बल्कि भारत की है। कब क्या हुआ? कैसे हुआ और कैसे चीजें सही हुईं ये सब बताते हैं।
एक क्रूर व मुर्ख राजा मार्थंड वर्मा का उदय त्रावणकोर साम्राज्य की स्थापना:
1729, मद्रास प्रेसीडेंसी में त्रावणकोर साम्राज्य की स्थापना हुई। राजा थे मार्थंड वर्मा। साम्राज्य बना तो नियम-कानून बने। टैक्स लेने का सिस्टम बनाया गया। जैसे आज हाउस टैक्स, सेल टैक्स और जीएसटी, लेकिन एक टैक्स और बनाया गया…ब्रेस्ट टैक्स मतलब स्तन कर। ये कर दलित और ओबीसी वर्ग की महिलाओं पर लगाया गया।
जितना बड़ा स्तन उतना बड़ा टैक्स:
त्रावणकोर में निचली जाति की महिलाएं सिर्फ कमर तक कपड़ा पहन सकती थी। अफसरों और ऊंची जाति के लोगों के सामने वे जब भी गुजरती उन्हें अपनी छाती खुली रखनी पड़ती थी। अगर महिलाएं छाती ढकना चाहें तो उन्हें इसके बदले ब्रेस्ट टैक्स देना होगा। इसमें भी दो नियम थे। जिसका ब्रेस्ट छोटा उसे कम टैक्स और जिसका बड़ा उसे ज्यादा टैक्स। टैक्स का नाम रखा था मूलाक्रम।
महिलाओं के साथ पुरुषों पर भी नियम लागू
यह फूहड़ रिवाज सिर्फ महिलाओं पर नहीं, बल्कि पुरुषों पर भी लागू था। उन्हें सिर ढकने की परमिशन नहीं थी। अगर वे कमर के ऊपर कपड़ा पहनना चाहें और सिर उठाकर चलना चाहें तो इसके लिए उसे अलग से टैक्स देना पड़ेगा। यह व्यवस्था ऊंची जाति को छोड़कर सभी पर लागू थी, लेकिन वर्ण व्यवस्था में सबसे नीचे होने के कारण निचली जाति की दलित महिलाओं को सबसे ज्यादा प्रताड़ना झेलनी पड़ी।
त्रावणकोर साम्राज्य के मुर्ख राजपुरोहित लोग होते थे महिलाओं की छाती पर कपड़ा दिखा तो चाकू से फाड़ देते थे।
नादर वर्ग की महिलाओं ने कपड़े से सीना ढका तो सूचना राजपुरोहित तक पहुंच जाती थी। पुरोहित एक लंबी लाठी लेकर चलता था जिसके सिरे पर एक चाकू बंधी होती थी। वह उसी से ब्लाउज खींचकर फाड़ देता था। उस कपड़े को वह पेड़ों पर टांग देता था। यह संदेश देने का एक तरीका था कि आगे कोई ऐसी हिम्मत न कर सके। कई बार तो टैक्स न देने पर पीट पीट कर मार दिया जाता था। हैवानित का मंजर चलता रहा और देवी देवता सभी ख़ामोशी से देखते रहे।
नादर वर्ग की स्वाभिमानी नांगेली ने दिखाया था दम किया विरोध
19वीं शताब्दी की शुरुआत में चेरथला में नांगेली नाम की एक महिला थी। स्वाभिमानी और क्रांतिकारी। उसने तय किया कि ब्रेस्ट भी ढकूंगी और टैक्स भी नहीं दूंगी। नांगेली का यह कदम सामंतवादी लोगों के मुंह पर तमाचा था। अधिकारी घर पहुंचे तो नांगेली के पति चिरकंडुन ने टैक्स देने से मना कर दिया। बात राजा तक पहुंच गई। राजा ने एक बड़े दल को नांगेली भेज दिया।
नांगेली ने स्तन टैक्स के लिए स्तन ही काट दिया
मुर्ख राजा के आदेश पर टैक्स लेने अफसर नांगेली के घर पहुंच गए। पूरा गांव इकट्ठा हो गया। अफसर बोले, “ब्रेस्ट टैक्स दो, किसी तरह की माफी नहीं मिलेगी।” नांगेली बोली, ‘रुकिए मैं लाती हूं टैक्स।’ नांगेली अपनी झोपड़ी में गई। बाहर आई तो लोग दंग रह गए। अफसरों की आंखे फटी की फटी रह गई। नांगेली केले के पत्ते पर अपना कटा स्तन लेकर खड़ी थी। अफसर भाग गए। लगातार ब्लीडिंग से नांगेली जमीन पर गिर पड़ी और फिर कभी न उठ सकी।
नांगेली की चिता में कूद गया पति
नांगेली की मौत के बाद उसके पति चिरकंडुन ने भी चिता में कूदकर अपनी जान दे दी। भारतीय इतिहास में किसी पुरुष के ‘सती’ होने की यह एकमात्र घटना है। इस घटना के बाद विद्रोह हो गया। हिंसा शुरू हो गई। महिलाओं ने फुल कपड़े पहनना शुरू कर दिए। मद्रास के कमिश्नर त्रावणकोर राजा के महल में पहुंच गए। कहा, “हम हिंसा रोकने में असफल साबित हो रहे हैं कुछ करिए।” राजा बैकफुट पर चले गए। उन्हें घोषणा करनी पड़ी कि अब नादर जाति की महिलाएं बिना टैक्स के ऊपर कपड़े पहन सकती हैं।
महिला ने ही महिला को परेशान किया
नादर जाति कि महिलाओं को स्तन ढकने की इजाजत मिली तो एजवा, शेनार या शनारस और नादर वर्ग की महिलाओं ने भी विद्रोह किया। उनके विद्रोह को दबाने के लिए उच्च परिवार की स्त्रियां भी आगे आ गई। ऐसे ही एक कहानी सामने आती है जिसमें रानी ‘अन्तिंगल’ ने एक दलित महिला का स्तन कटवा दिया था।
गरीब जनता राजा से इतना परेशान हो गए कि श्रीलंका भाग गए और धर्म परिवर्तन कर लिया।
इस कुप्रथा के खिलाफ विद्रोह करने वाले लोग पकड़े जाने के डर से श्रीलंका चले गए। वहां की चाय बगानों में काम करने लगे। इसी दौरान त्रावणकोर में अंग्रेजों का दखल बढ़ा। 1829 में त्रावणकोर के दीवान मुनरो ने कहा, “अगर महिलाएं ईसाई बन जाएं तो उन पर हिन्दुओं का ये नियम नहीं लागू होगा। वे स्तन ढक सकेंगी।”
जल-भुन गए ऊंची जाति के लोग:मुनरो के इस आदेश से ऊंची जाति के लोगों में गुस्सा भर गया, लेकिन अंग्रेज फैसले पर टिके रहे। 1859 में अंग्रेजी गवर्नर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने त्रावणकोर में इस नियम को रद्द कर दिया। अब हिंसा करने वाले बदल गए। ऊंची जाति के लोगों ने लूटपाट शुरू कर दी। नादर महिलाओं को निशाना बनाया और उनके अनाज जला दिए। इस दौरान नादर जाति कि दो महिलाओं को सरेआम फांसी पर चढ़ा दिया गया। अंग्रेजों के बढ़ते दबदबे से महिलाओं को मिली राहत-अंग्रेजी दीवान जर्मनी दास ने अपनी किताब ‘महारानी’ में इस कुप्रथा का जिक्र करते हुए लिखा, “संघर्ष लंबा चला। 1965 में प्रजा जीत गई और सभी को पूरे कपड़े पहनने का अधिकार मिल गया। इस अधिकार के बावजूद कई हिस्सों में दलितों को कपड़े न पहनने देने की कुप्रथा चलती रही। 1924 में यह कलंक पूरी तरफ से खत्म हो गया, क्योंकि उस वक्त पूरा देश आजादी की लड़ाई में कूद पड़ा था।”
काले कानून को छिपाने की कोशिश इतिहास से मिटाने की कोशिश
NCRT ने 2019 में क्लास 9 के इतिहास की बुक से तीन अध्याय हटा दिए। इसमें एक अध्याय त्रावणकोर में निचली जातियों के संघर्ष से जुड़ा था। हंगामा हुआ। केरल के सीएम पिनाराई विजयन ने कहा, “यह विषय हटाना संघ परिवार के एजेंडे को दिखाता है।” इसके पहले CBSE ने भी 2017 में 9वीं के सोशल साइंस से ये वाला चैप्टर हटा दिया था। मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंच गया। कोर्ट ने कहा, “2017 की परीक्षाओं में चैप्टर, कास्ट, कन्फ्लिक्ट एंड ड्रेस चेंज से कुछ भी नहीं पूछा जाएगा।”
नांगेली को इतिहास बहादुरी की मिशाल
केरल के श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय में जेंडर इकोलॉजी और दलित स्टडीज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ शीबा केएम कहती हैं, “ब्रेस्ट टैक्स का मकसद जातिवाद के ढांचे को बनाए रखना था।” नंगेली के पड़पोते मणियन वेलू कहते हैं कि मुझे नांगेली के परिवार की संतान होने पर गर्व है। उन्होंने ये फैसला अपने लिए नहीं, बल्कि सारी औरतों के लिए किया था। उनके त्याग से ही राजा को ये कर वापस लेना पड़ा था।
महिला नांगेली ने अपने प्राण त्याग से क्रांति रची। उन्होंने एक शर्मनाक टैक्स को खत्म करने के लिए अपनी जान दे दी। केरल के मुलच्छीपुरम में उनकी एक मूर्ति लगाई गई है।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा।
” जिन्दगी का हर एक छोटा हिस्सा ही
हमारी जिदंगी की सफ़लता का बड़ा हिस्सा होता है।”
आईपीसी की धारा 504 में विधि का क्या प्राविधान है
IPC की धारा 504 का विवरण :जो कोई किसी अगर कोई शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करना या गाली गलौज करेगा , Intentional insult with intent to provoke breach of the peace ) यह एक जमानती, गैर-संज्ञेय अपराध है और किसी भी न्यायधीश द्वारा विचारणीय है। यह अपराध पीड़ित / अपमानित व्यक्ति द्वारा समझौता करने योग्य है। जैसे अ ने ब को अपमानित करने के लिए माँ बहन की गालिया या किसी प्रकार की गालियां या गाली गलौज करेगा जिससे ब का मान मर्दन को ठेस पहुंचे या फिर उसको भड़काकर उकसाकर मारपीट किया जा सके या लोक शांति भंग किया जा सके।
विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0।Dt.28-01-2023
अथवा
जो कोई किसी व्यक्ति को साशय अपमानित करेगा या गाली गलौज करेगा और तद्द्वारा उस व्यक्ति कोइस आशय से या यह सम्भाव्य जानते हुए, प्रकोपित करेगा कि ऐसे प्रकोपन से वह लोक शान्ति भंग या कोई अन्य अपराध कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा ।
अपमानित /लोक शान्ति भंग से आशय ; जो कोई किसी व्यक्ति को प्रकोपित करेगा कि ऐसे प्रकोपन से वह लोक शान्ति भंग या कोई अन्य अपराध कारित करेगा ह, वह अपमानित करता है। यह कहा जाता है।
विधिक सलाहकार -मुकेश भारती एड0।Dt.28-01-2023
नोट : दण्ड प्रक्रिया संहिता के अनुसार : यह जमानतीय और असंज्ञेय अपराध है जमानत कोई जुडिसियल मजिस्ट्रेट दे सकता है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड:
आज़ादी के आंदोलन में हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे : 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में आयोजित एक शांतिपूर्ण बैठक में रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों पर बिना बताये ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर ने गोली चलाने का आदेश दिया था, जिसमें हज़ारों निहत्थे पुरुष, महिलाएँ और बच्चे मारे गए थे। इस कांड में मारे गए लोग रॉलेट एक्ट 1919 का शांतिपूर्ण विरोध कर रहे थे। इस हत्या काण्ड का बदला लेने के लिए वर्ष 1940 में सरदार उधम सिंह ने जनरल डायर की हत्या कर दी थी। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 19-12-2022
क्या है रॉलेट एक्ट 1919 को जाने :
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक शृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था।इस संदर्भ में सर सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता वाली राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर यह अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये अधिकार प्रदान किये और दो साल तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दी।
जलियांवाला बाग हत्या काण्ड की पृष्ठभूमि: महात्मा गांधी इस तरह के अन्यायपूर्ण कानूनों के खिलाफ अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करना चाहते थे, जो 6 अप्रैल, 1919 को शुरू हुआ। 9 अप्रैल, 1919 को पंजाब में दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल को ब्रिटिश अधिकारियों ने बिना किसी वारेंट के गिरफ्तार कर लिया। इससे भारतीय प्रदर्शनकारियों में आक्रोश पैदा हो गया जो 10 अप्रैल को हज़ारों की संख्या में अपने नेताओं के साथ एकजुटता दिखाने के लिये निकले थे।भविष्य में इस प्रकार के किसी भी विरोध को रोकने हेतु सरकार ने मार्शल लॉ लागू किया और पंजाब में कानून-व्यवस्था ब्रिगेडियर-जनरल डायर को सौंप दी गई। घटना का दिन: 13 अप्रैल, बैसाखी के दिन अमृतसर में निषेधाज्ञा से अनजान ज़्यादातर पड़ोसी गाँव के लोगों की एक बड़ी भीड़ जालियांवाला बाग में जमा हो गई।इस बड़ी भीड़ को तितर बितर करने के लिए ब्रिगेडियर- जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ घटनास्थल पर पहुँचा। सैनिकों ने जनरल डायर के आदेश के तहत सभा को घेर कर एकमात्र निकास द्वार को अवरुद्ध कर दिया और निहत्थे भीड़ पर गोलियाँ चलाना शुरू कर दी दीं, जिसमें 1000 से अधिक निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की मौत हो गई।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना का महत्त्व:जलियांवाला बाग भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थल बन गया और अब यह देश का एक महत्त्वपूर्ण स्मारक है।जलियांवाला बाग त्रासदी उन कारणों में से एक थी जिसके कारण महात्मा गांधी ने अपना पहला, बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) अभियान, असहयोग आंदोलन (1920–22) का आयोजन शुरू किया।इस घटना के विरोध में बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।भारत की तत्कालीन सरकार ने घटना (हंटर आयोग) की जाँच का आदेश दिया, जिसने वर्ष 1920 में डायर के कार्यों के लिये निंदा की और उसे सेना से इस्तीफा देने का आदेश दिया। वीरेंद्र कुमार : प्रवक्ता – उस्मानी डिग्री कॉलेज लखीमपुर खीरी (यूजीसी नेट-इतिहास ) Dt. 19-12-2022
व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें |