रानी दुर्गावती बलिदान दिवस – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

रानी दुर्गावती बलिदान दिवस

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24 जून रानी दुर्गावती बलिदान दिवस पर शत शत नमन

आज बलिदान दिवस पर एक दीपक अवश्य जलाये
रानी दुर्गावती का साहस नारीशक्ति के लिए प्रेरणा दायक है जिन्होंने अपने जीवन मैं 14 वर्षों तक सफलता पूर्वक स्वतंत्र शासन किया । आओ उनके इतिहास के बारे जाने ।
रानी दुर्गावती की जीवनी और इतिहास

रानी दुर्गावती का नाम भारत की उन महानतम वीरांगनाओं की सबसे अग्रिम पंक्ति में आता है जिन्होंने मात्रभूमि और अपने आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान दिया । रानी दुर्गावती कालिंजर के राजा कीरत सिंह की पुत्री और गोंड राजा दलपत शाह की पत्नी थीं । इनका राज्य क्षेत्र दूर-दूर तक फैला था । रानी दुर्गावती बहुत ही कुशल शासिका थीं इनके शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थी । इनके राज्य पर ना केवल अकबर बल्कि मालवा के शासक बाजबहादुर की भी नजर थी । रानी ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े और उनमें विजय भी पाई ।

रानी दुर्गावती का जन्म और बचपन
रानी दुर्गावती का जन्म चंदेल राजा कीरत राय ( कीर्तिसिंह चंदेल ) के परिवार में कालिंजर के किले में 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था । राजा कीरत राय की पुत्री का जन्म दुर्गा अष्टमी के दिन होने के कारण उसका नाम दुर्गावती रखा गया । वर्तमान में कालिंजर उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले में आता है । इनके पिता राजा कीरत राय का नाम बड़े ही सम्मान से लिया जाता था इनका सम्बन्ध उस चंदेल राज वंश से था राजा विद्याधर ने महमूद गजनबी को युद्ध में खदेड़ा था और विश्व प्रसिद्ध खजुराहो के कंदारिया महादेव मंदिर का निर्माण करवाया । कन्या दुर्गावती का बचपन उस माहोल में बीता जिस राजवंश ने अपने मान सम्मान के लिये कई लडाइयां लड़ी । कन्या दुर्गावती ने इसी कारण बचपन से ही अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा भी प्राप्त की ।

रानी दुर्गावती का विवाह और ससुराल

कन्या दुर्गावती जब विवाह योग्य हुई तब 1542 में उनका विवाह गोंड राजा संग्राम शाह के पुत्र दलपत शाह के सांथ संपन्न हुआ । दोनों पक्षों की जाती अलग-अलग थीं । राजा संग्राम शाह का राज्य बहुत ही विशाल था उनके राज्य में 52 गढ़ थे और उनका राज्य वर्तमान मंडला, जबलपुर , नरसिंहपुर , सागर, दमोह और वर्तमान छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था । 1545 में रानी दुर्गावती ने एक पुत्र को जन्म दिया । पुत्र का नाम वीरनारायण रखा गया । 1550 में राजा दलपत शाह की मृत्यु हो गई । इस दुःख भरी घड़ी में रानी को अपने नाबालिग पुत्र वीर नारायण को राजगद्दी पर बैठा कर स्वयं राजकाज की बागडोर संभालनी पड़ी ।

रानी दुर्गावती और उनका राज्य

रानी दुर्गावती की राजधानी सिंगोरगढ़ थी । वर्तमान में जबलपुर-दमोह मार्ग पर स्थित ग्राम सिंग्रामपुर में रानी दुर्गावती की प्रतिमा से छः किलोमीटर दूर स्थित सिंगोरगढ़ का किला बना हुआ है | सिंगोरगढ़ के अतिरिक्त मदन महल का किला और नरसिंहपुर का चौरागढ़ का किला रानी दुर्गावती के राज्य के प्रमुख गढ़ों में से एक थे । रानी का राज्य वर्तमान के जबलपुर, नरसिंहपुर , दमोह, मंडला, छिंदवाडा और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों तक फैला था । रानी के शासन का मुख्य केंद्र वर्तमान जबलपुर और उसके आस-पास का क्षेत्र था । अपने दो मुख्य सलाहकारों और सेनापतियों आधार सिंह कायस्थ और मानसिंह ठाकुर की सहायता से राज्य को सफलता पूर्वक चला रहीं थीं । रानी दुर्गावती ने 1550 से 1564 ईसवी तक सफलतापूर्वक शासन किया । रानी दुर्गावती के शासन काल में प्रजा बहुत सुखी थी और उनका राज्य भी लगातार प्रगति कर रहा था । रानी दुर्गावती के शासन काल में उनके राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल गई । रानी दुर्गावंती ने अपने शासन काल में कई मंदिर, इमारते और तालाब बनवाये । इनमें सबसे प्रमुख हैं जबलपुर का रानी ताल जो रानी दुर्गावती ने अपने नाम पर बनवाया , उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरिताल और दीवान आधार सिंह के नाम पर आधार ताल बनवाया । रानी दुर्गावती ने अपने शासन काल में जात-पात से दूर रहकर सभी को समान अधिकार दिए उनके शासन काल में गोंड , राजपूत और कई मुस्लिम सेनापति भी मुख्य पदों पर आसीन थे । रानी दुर्गावती ने वल्लभ सम्प्रदाय के स्वामी विट्ठलनाथ का स्वागत किया । रानी दुर्गावती को उनकी कई विशेषताओं के कारण जाना जाता है वे बहुत सुन्दर होने के सांथ-सांथ बहादुर और योग्य शासिका भी थीं । उन्होंने दुनिया को यह बलताया की दुश्मन की आगे शीश झुकाकर अपमान जनक जीवन जीने से अच्छा मृत्यु को वरन करना है ।

रानी दुर्गावती और बाज बहादुर की लड़ाई

शेर शाह सूरी के कालिंजर के दुर्ग में मरने के बाद मालवा पर सुजात खान का अधिकार हो गया जिसे उसके बेटे बाजबहादुर ने सफलतापूर्वक आगे बढाया । गोंडवाना राज्य की सीमा मालवा को छूती थीं और रानी के राज्य की ख्याति दूर-दूर तक फ़ैल चुकी थी। मालवा के शासक बाजबहादुर ने रानी को महिला समझकर कमजोर समझा और गोंडवाना पर आक्रमण करने की योजना बनाई । बाजबहादुर इतिहास में रानी रूपमती के प्रेम के लिये जाना जाता है । 1556 में बाजबहादुर ने रानी दुर्गावती पर हमला कर दिया । रानी की सेना बड़ी बहादुरी के सांथ लड़ी और बाजबहादुर को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा और रानी दुर्गावती की सेना की जीत हुई । युद्ध में बाजबहादुर की सेना को बहुत नुकसान हुआ । इस विजय के बाद रानी का नाम और प्रसिद्धी और अधिक बढ़ गई ।

रानी दुर्गावती और अकबर की लडाई

1562 ईसवी में अकबर ने मालवा पर आक्रमण कर मालवा के सुल्तान बाजबहादुर को परास्त कर मालवा पर अधिकार कर लिया । अब मुग़ल साम्राज्य की सीमा रानी दुर्गावती के राज्य की सीमाओं को छूने लगी थीं । वहीँ दूसरी तरफ अकबर के आदेश पर उसके सेनापति अब्दुल माजिद खान ने रीवा राज्य पर भी अधिकार कर लिया । अकबर अपने साम्राज्य को और अधिक बढ़ाना चाहता था । इसी कारण वह गोंडवाना साम्राज्य को हड़पने की योजना बनाने लगा। उसने रानी दुर्गावती को सन्देश भिजवाया कि वह अपने प्रिय सफ़ेद हांथी सरमन और सूबेदार आधार सिंह को मुग़ल दरवार में भेज दे । रानी अकबर के मंसूबों से भली भांति परिचित थी उसने अकबर की बात मानने से सफ्फ इंकार कर दिया और अपनी सेना को युद्ध की तैयारी करने का आदेश दिया । इधर अकबर ने अपने सेनापति आसफ खान को गोंडवाना पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया । आसफ खान एक विशाल सेना लेकर रानी पर आक्रमण करने के लिये आगे बढ़ा । रानी दुर्गावारी जानती थीं की उनकी सेना अकबर की सेना के आगे बहुत छोटी है । युद्ध में एक और जहाँ मुगलों की विशाल सेना आधुनिक अस्त्र-शत्र से प्रशिक्षित सेना थी वहीँ रानी दुर्गावती की सेना छोटी और पुराने परंपरागत हथियार से तैयार थी । उन्होंने अपनी सेना को नरई नाला घाटी की तरफ कूच करने का आदेश दिया । रानी दुर्गावती के लिये नरई युद्ध हेतु सुविधाजनक स्थान था क्यूंकि यह स्थान एक ओर से नर्मदा नदी की विशाल जलधारा से और दूसरी तरफ गौर नदी से घिरा था और नरई के चारो तरफघने जंगलों से घिरी पहडियाँ थीं । मुग़ल सेना के लिये यह क्षेत्र युद्ध हेतु कठिन था । जैसे ही मुग़ल सेना ने घाटी में प्रवेश किया रानी के सैनिकों ने उस पर धावा बोल दिया । लडाई में रानी की सेना के फौजदार अर्जुन सिंह मारे गये अब रानी ने स्वयं ही पुरुष वेश धारण कर युद्ध का नेतृत्व किया दोनों तरफ से सेनाओं को काफी नुकसान हुआ । शाम होते होते रानी की सेना ने मुग़ल सेना को घाटी से खदेड़ दिया और इस दिन की लड़ाई में रानी दुर्गावती की विजय हुई । रानी रात में ही दुबारा मुग़ल सेना पर हमला उसे भरी नुकसान पहुँचाना चाहती थीं परन्तु उनके सलाहकारों ने उन्हें ऐसा नहीं करने की सलाह दी ।

रानी दुर्गावती का बलिदान

अपनी हार से तिलमिलाई मुग़ल सेना के सेनापति आसफ खान ने दूसरे दिन विशाल सेना एकत्र की और बड़ी-बड़ी तोपों के सांथ दुबारा रानी पर हमला बोल दिया । रानी दुर्गावती भी अपने प्रिय सफ़ेद हांथी सरमन पर सवार होकर युद्ध मैदान में उतरीं । रानी के सांथ राजकुमार वीरनारायण भी थे रानी की सेना ने कई बार मुग़ल सेना को पीछे धकेला । कुंवर वीरनारायण के घायल हो जाने से रानी ने उन्हें युद्ध से बाहरसुरक्षित जगह भिजवा दिया ।युद्ध के दौरान एक तीर रानी दुर्गावती के कान के पास लगा और दूसरा तीर उनकी गर्दन में लगा । तीर लगने से रानी कुछ समय के लिये अचेत हो गई । जब पुनः रानी को होश आया तब तक मुग़ल सेना हावी हो चुकी थी । रानी के सेनापतियों ने उन्हें युद्ध का मैदान छोड़कर सुरक्षित स्थान पर जाने की सलाह दी परन्तु रानी ने इस सलाह को दरकिनार कर दिया । अपने आप को चारो तरफ से घिरता देख रानी ने अपने शरीर को शत्रू के हाँथ ना लगने देने की सौगंध खाते हुए अपने मान-सम्मान की रक्षा हेतु अपनी तलवार निकाली और स्वयं तलवार घोपकर अपना बलिदान दे दिया और इतिहास में वीरंगना रानी सदा – सदा के लिये अमर हो गई ।

रानी दुर्गावती के बलिदान के बाद उनका राज्य

रानी दुर्गावती के बलिदान के बाद कुंवर वीर नारायण चौरागढ़ में मुगलों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए । अब सम्पूर्ण गोंडवाना पर मुगलों का अधिपत्य हो गया । कुछ समय पश्चात राजा संग्राम शाह के छोटे पुत्र ( रानी दुर्गावती के देवर ) और चांदा गढ़ के राजा चन्द्र शाह को अकबर ने अपने अधीन गोंडवाना का राजा घोषित किया और बदले में अकबर ने गोंडवाना के 10 गढ़ लिये ।

रानी दुर्गावती की समाधि

वर्तमान में जबलपुर जिले में जबलपुर और मंडला रोड पर स्थित बरेला के पास नर्रई नाला वह स्थान है जहां पर रानी दुर्गावती वीरगती को प्राप्त हुईं थीं । अब इसी स्थान के पास बरेला में रानी दुर्गावती का समाधि स्थल है । प्रतिवर्ष 24 जून को रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर लोग इस स्थान पर उन्हें श्रध्दा सुमन अर्पित करते हैं ।

रानी दुर्गावती का सम्मान
रानी दुर्गावती के सम्मान में 1983 में जबलपुर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय कर दिया गया ।जबलपुर में स्थित संग्रहालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया ।मंडला जिले के शासकीय महाविद्यालय का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर ही रखा गया है ।इसी प्रकार कई जिलों में रानी दुर्गावती की प्रतिमाएं लगाई गई हैं और कई शासकीय इमारतों का नाम भी रानी दुर्गावती के नाम पर रखा गया है ।धन्य हैं रानी दुर्गावती जिन्होंने अपने स्वाभिमान और देश की रक्षा के लिये अपना बलिदान दिया । अपने इस लेख के माध्यम से हम रानी दुर्गावती और उनके शाहस और बलिदान को शत-शत नमन करते ।महारानी दुर्गावती बलिदान दिवस पर शत शत नमन

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