गोंडा- कम लागत वाली जलवायु आधारित धान की खेती अपना रहे किसान – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

गोंडा- कम लागत वाली जलवायु आधारित धान की खेती अपना रहे किसान

1 min read
😊 Please Share This News 😊

बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ व बहुजन प्रेरणा दैनिक समाचार पत्र-(सम्पादक मुकेश भारती )9161507983
गोंडा- (राम बहादुर मौर्य – ब्यरो रिपोर्ट)


गोंडा- कम लागत वाली जलवायु आधारित धान की खेती अपना रहे किसान

जलवायु आधारित धान की खेती किसानों के लिए लाभकारी-अनूप सिंह *कम लागत वाली जलवायु आधारित धान की खेती अपना रहे किसान, जिले में बड़े क्षेत्रफल में किसानों ने की बुआई कोरोना महामारी के दौरान जनपद गोंडा के विकासखंड परसपुर के किसानों द्वारा जलवायु आधारित, कम श्रम लागत वाली धान की खेती की पद्धति को अपनाया गया है। यह पद्धति सतत कृषि विकास, जलवायु एवं कोरोना वायरस महामारी के काल में अति उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध हुई है। ज्ञातव्य है कि धान एक जल आधारित एवं श्रम आधिक्य वाली फसल है जिसमें जल एवं श्रम दोनों की अत्यधिक आवश्यकता होती है। जिस कारण से धान के उत्पादन की लागत बढ़ जाती है एवं कोरोना महामारी के दौरान सामाजिक दूरी को तय कर पाना नामुमकिन हो जाता है साथ ही साथ कोरोना जैसी बीमारी बढ़ने की संभावना अत्यधिक हो जाती है। खेत में जलभराव के कारण भूमि के पोषक तत्वों का निक्षालन हो जाता है, साथ ही साथ मृदा की रचना एवं संरचना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मृदा अपरदन की संभावना बढ़ जाती है। पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। भूजल का दोहन अत्यधिक होता है जल संरक्षण पर कुप्रभाव पड़ता है। इस दुष्प्रभाव से बचाने के लिए प्रभारी राजकीय कृषि बीज भंडार परसपुर अनूप सिंह चौहान द्वारा व्यापक पहल की गई एवं किसानों को जलवायु आधारित खेती के लिए प्रेरति किया गया जिससे प्रभावित होकर परसपुर में किसानों द्वारा जल दोहन करने वाली एवं श्रम आधिक्य धान फसल पद्धति का त्याग करके जलवायु आधारित फसल पद्धति को अपनाया गया यहां के किसानों द्वारा वृहद स्तर पर सैकड़ों हेक्टेयर भूमि पर धान की सीधी बुवाई की गई। कुछ किसानों द्वारा कस्टम हायरिंग एवं फार्म मशीनरी बैंक की योजना का लाभ उठाते हुए सीड ड्रिल एवं सुपर सीडर द्वारा धान की बुवाई की गई। कुछ किसानों ने छिटकवाँ विधि से भी बुवाई की जिससे लागत में कमी आयी। श्रम एवं जल की कम आवश्यकता हुई। गिरते हुए भौम जल स्तर के लिए सहायक सिद्ध हुई है। रोपाई पद्धति की अपेक्षा सिर्फ 20 प्रतिशत जल की आवश्यकता होती है। बुआई विधि के बारे में बताते हुए श्री सिंह ने बताया कि धान की सीधी बुवाई के लिए 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देसी प्रजाति एवं 15 किलोग्राम संकर धान के प्रजाति की आवश्यकता होती है। बीज को स्टेपटोसयइक्लीन एंवम करबेंडाज़ीम से शोधित करके बुराई करते हैं।इसके लिए 150ः60ः40 नाइट्रोजन फास्फोरस फोटोस की आवश्यकता होती है। धान की बुवाई मानसून आने से 10 से 12 दिन पूर्व की जाती है अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई से पूर्व सिंचाई की आवश्यकता होती है। ये हैं जलवायु आधारित धान की बुआई के फायदे *इन किसानों ने अपनाई जलवायु आधारित बुआई प्रभारी राजकीय कृषि बीज भंडार परसपुर ने बताया कि इस विधि से श्रम की बचत, जल संरक्षण मृदा संरक्षण, मृदा अपरदन से बचाव, कृषि विविधीकरण को बढ़ावा, महामारी आपदा के समय एक स्थान पर श्रम इकट्ठा होने से बचाव होगा। विकासखंड परसपुर में ग्राम मधईपरुखाण्डेराय गलिबहा निवासी किसान अरूण सिंह, अनिल सिंह व अविनाश सिंह, चरौहां निवासी रविशंकर सिंह चरौहां, बबलू सिंह डेहरास, राजेश सिंह परसपुर, विवेक सिंह परसपुर बेचन सिंह राजापुर, चंद्रहास सिंह बहुवन, शिवाकांत सिंह राजेश त्रिपाठी डेहरास इंद्र प्रकाश शुक्ला आदि द्वारा इस पद्धति को अपनाया गया है। उन्होंने किसानों से अपील की है कम लाग में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए कृषक भाई इस विधि को अपनाएं।
राम बहादुर मौर्य बहुजन इंडिया 24न्यूज़ गोंडा।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें 

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

Donate Now

[responsive-slider id=1466]
error: Content is protected !!