चंदौली में संविधान बचाओ यात्रा आरक्षण जमीन वापस करो आंदोलन पहुंचा चंदौली कई घंटे शहर जाम
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संवाददाता :: चंदौली :: मुकेश भारती {भीम आर्मी } :: Date ::22 ::12::.2022 ::
चंदौली: भीम आर्मी राष्ट्रीय अध्यक्ष मनजीत सिंह संविधान बचाओ यात्रा आरक्षण जमीनों वापस करो उत्तर प्रदेश जिला चंदौली पहुचने से पहले युवा हाईवे पर बेसब्री से इंतजार कर कर रहा था जैसे ही चंदौली जिले में पहुंचे कई घंटे जाम की स्थिति बनी रही रोड शो जिले से होता हुआ जब कार्यक्रम स्थल पहुंचे ।
लोगों ने फूल माला पहनाकर स्वागत किया अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़े अल्पसंख्यक वर्गों के लोगो ने यह भी कहा कि आप हमारे अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हो इस आंदोलन को मजबूती से आगे बढ़ाएंगे और मनजीत सिंह के साथ रहने का वादा किया आपको बता दें कि यह आन्दोलन दिन प्रतिदिन बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है देश का दलित मुस्लिम पिछड़ा इस आंदोलन को खूब पसंद कर रहा हूं बढ़ चढ़कर हिस्सा भी ले रहा है। इस अंदोलन से प्रदेश की सरकार भी सतर्क हो गई हैं जिस जिले में आंदोलन जा रहा है अधिकारियों के पसीने छूट रहे । ऐसा भी देखने को देखा जा रहा है कि अनुसूचित जाति जनजाति पिछड़ा अल्पसंख्यक आदिवासी युवा इस आंदोलन को बहुत ज्यादा पसंद कर रहा है और बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहा आने वाले समय में यह आंदोलन सरकार का सिरदर्द बन सकता है।
ललई सिंह यादव का जन्म 01 सितम्बर 1921 को और मृत्यु 07 फरवरी 1993 को हुई वे एक सामाजिक कार्यकर्ता (ऐक्टिविस्ट) थे जिन्होने सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया और सामाजिक न्याय के अपने लक्ष्य के लिए अनेक पुस्तकों की रचना सच्ची रामायण का अनुवाद हिंदी में किया जो अत्यन्त विवादित रहीं। अपनी इस पुस्तक के लिए सुप्रीम कोर्ट तक की लड़ाई लड़ी अंत में जीत ललई सिंह यादव को मिली इस लिए उन्हें उत्तर भारत का “पेरियार” कहा जाता है।
सामाजिक कुरूतियों को जड़ से उखाड़ फेकने वाले नायक , दक्षिण भारत के समाज सुधार आन्दोलन के पिता, अज्ञानता के नाशक , अंधविश्वास का चुरा बनाने वाले महानायक और हिन्दू समाज में फैली रीति-रिवाज़ के नाम पर सामाजिक बुराइयों का दमन करने वाले ई वी पेरियार रामास्वामी नायकर को सत सत नमन और विनम्र भावपूर्ण श्रद्धांजलि। 24 दिसंबर 1973को 93 वर्ष की आयु में उनको महा परिनिर्वाण प्राप्त हुआ। उनके महान कार्यों को नमन ऐसे पराक्रमी,कर्मयोगी ,महा पुरुष का जन्म युगो युगो बाद होता है। एडवोकेट मुकेश भारती सिविल कोर्ट लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश।
पेरियार कौन थे ? who was periar ?
Answar: इरोड वेंकट नायकर रामासामी (17 सितम्बर, 1879-24 दिसम्बर, 1973) जिन्हे पेरियार (तमिल में अर्थ -सम्मानित व्यक्ति) नाम से भी जाना जाता था,पेरियार साहेब वैज्ञानिक दृष्टिकोण के व्यक्ति थे और तर्कशील थे। 20वीं सदी के तमिलनाडु के एक प्रमुख राजनेता व दलित शोषित, गरीबों के मसीहा थे।और बाबा साहेब डॉ भीम राव अम्बेडकर के समकालीन थे। अपने सिद्धांतो से समाज में फैली बुराइयों का नाश किया। इन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जिसका सिद्धान्त जातिवादी व गैर बराबरी वाले हिन्दुत्व का विरोध था। पेरियार अपनी मान्यता का पालन करते हुए मृत्युपर्यंत जाति और हिंदू-धर्म से उत्पन्न असमानता और अन्याय का विरोध करते रहे। ऐसा करते हुए उन्होंने लंबा, सार्थक, सक्रिय और सोद्देश्यपूर्ण जीवन जीया था।
काशी विश्वनाथ की यात्रा और और ज्ञान की प्राप्ति व परिणाम
सन 1904 में पेरियार कुछ दिनों के लिए घर छोड़ कर काशी घूमने गए। बड़ी कठिनाइयों के साथ भारत यात्रा करते हुए काशी पहुंचे थे। महीनो का समय लगा था काशी विश्वनाथ की यात्रा में। ब्राह्मणों ने उनका घोर अपमान किया उन्हे इस बात का बहुत दुःख हुआ और उन्होने हिन्दुत्व के विरोध की ठान ली। इसके लिए उन्होने किसी और धर्म को नहीं स्वीकारा और वे हमेशा नास्तिक रहे। इसके बाद उन्होने एक मन्दिर के न्यासी का पदभार संभाला तथा जल्द ही वे अपने शहर के नगरपालिका के प्रमुख बन गए। चक्रवर्ती राजगोपालाचारी के अनुरोध पर 1919 में उन्होने कांग्रेस की सदस्यता ली। इसके कुछ दिनों के भीतर ही वे तमिलनाडु इकाई के प्रमुख भी बन गए। केरल के कांग्रेस नेताओं के निवेदन पर उन्होने वाईकॉम आन्दोलन का नेतृत्व भी स्वीकार किया जो मन्दिरों कि ओर जाने वाली सड़कों पर दलितों के चलने की मनाही को हटाने के लिए संघर्षरत था। उनकी पत्नी तथा दोस्तों ने भी इस आंदोलन में उनका साथ दिया। एडवोकेट मुकेश भारती सिविल कोर्ट लखीमपुर खीरी उत्तर प्रदेश।
जानें- क्यों ‘सच्ची रामायण’ का विवाद क्या है। sachchi ramayan dispute….? ।
पेरियार ई.वी. रामासामी:ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ अपने समय के महानतम चिंतक और विचारकों में से एक थे । वे तर्कवादी के साथ साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे । मानवीय विवेक पर भरोसा करते थे। किसी भी किस्म की अंधश्रद्धा, कूपमंडूकता, जड़ता, अतार्किकता और विवेकहीनता उन्होंने अपने जीवन में स्वीकार नहीं किया । वर्चस्व, अन्याय, असमानता, पराधीनता और अज्ञानता के हर रूप को वे चुनौती दिया । उनकी विशिष्ट तर्कपद्धति, तेवर और अभिव्यक्ति शैली के चलते जून 1970 में यूनेस्को ने उन्हें ‘आधुनिक युग का मसीहा’, ‘दक्षिण-पूर्वी एशिया का सुकरात’, ‘समाज सुधारवादी आंदोलनों का पितामह’ तथा ‘अज्ञानता, अंधविश्वास, रूढ़िवाद और निरर्थक रीति-रिवाजों का कट्टर दुश्मन’ स्वीकार किया है। उन्हें वाल्तेयर की श्रेणी का दार्शनिक, चिंतक, लेखक और वक्ता माना जाता।‘सच्ची रामायण’ उनकी एक चर्चित कृति है।
दक्षिण भारत के सुकरात “पेरियार साहेब “ रामायण को धार्मिक किताब नहीं मानते थे। उनका कहना था कि यह एक राजनीतिक पुस्तक है और कपोल कल्पित है। जिसे ब्राह्मणों ने दक्षिणवासी अनार्यों पर उत्तर के आर्यों की विजय और प्रभुत्व को जायज ठहराने के लिए लिखा गया है और गैर बराबरी की नीव इस किताब के माध्यम भारत में डाली गयी इस किताब के माधयम से लोगो में भ्रम फैलाया गया । ब्राह्मणों का गैर-ब्राह्मणों पर और मूलनिवासी महिलाओं व पुरुषों पर ब्राह्मण के वर्चस्व स्थापित करने का साधन मात्र है । पेरियार साहेब ने अपने मिशन को जिन्दा रखने के लिए ” सच्ची रामायण” की रचना की जिससे आने वाली पीढ़ियां सबक ले सके। रामायण की मूल अंतर्वस्तु को उजागर करने के लिए पेरियार ने ‘वाल्मीकि रामायण’ के ब्राह्मणों द्वारा किए गए अनुवादों सहित; अन्य राम कथाओं, जैसे- ‘कंब रामायण’, ‘तुलसीदास की रामायण’ (रामचरित मानस), ‘बौद्ध रामायण’, ‘जैन रामायण’ आदि के अनुवादों तथा उनसे संबंधित ग्रंथों का सम्यक अध्ययन किया था। इसके साथ ही उन्होंने रामायण के बारे में विद्वान अध्येताओं और इतिहासकारों की टिप्पणियों का भी गहन अध्ययन किया। उन्होंने करीब चालीस वर्षों तक अध्ययन करने के बाद तमिल भाषा में लिखी पुस्तक ‘रामायण पादीरंगल’ में उसका निचोड़ प्रस्तुत किया। यह पुस्तक 1944 में तमिल भाषा में प्रकाशित हुई थी। इसका जिक्र पेरियार की पत्रिका ‘कुदी अरासू’ (गणतंत्र) के 16 दिसंबर 1944 के अंक में किया गया है। इसका अंग्रेजी अनुवाद द्रविड़ कषगम पब्लिकेशन्स ने ‘द रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ नाम से 1959 में प्रकाशित किया गया। इसका हिंदी अनुवाद 1968 में ‘सच्ची रामायण’ नाम से किया गया। हिंदी अनुवाद के प्रकाशक ललई सिंह यादव और अनुवादक राम आधार थे। ललई सिंह यादव उत्तर प्रदेश-बिहार के प्रसिद्ध मानवतावादी संगठन ‘अर्जक संघ’ से जुड़े लोकप्रिय सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता थे।
9 दिसंबर, 1969 को तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘सच्ची रामायण’ पर प्रतिबंध लगा दिया। इसी के साथ पुस्तक की सभी प्रतियों को जब्त कर लिया गया। उत्तर भारत के पेरियार नाम से चर्चित हुए प्रकाशक ललई सिंह यादव ने जब्ती के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। वे हाईकोर्ट में मुकदमा जीत गए। सरकार ने हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट में इस ऐतिहासिक मामले की सुनवाई तीन जजों की खंडपीठ ने की। खंडपीठ के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर; तथा दो अन्य न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती और सैयद मुर्तज़ा फ़ज़ल अली थे। 16 सितंबर 1976 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सर्वसम्मति से फैसला देते हुए राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में निर्णय सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ललई सिंह यादव ने हिंदी में ‘सच्ची रामायण’ को प्रकाशित कर एक ऐतिहासिक कार्य को अंजाम दिया।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा
तुरंत ब्लड शुगर लेवल के स्तर को कैसे कम करें? Sugar Level Kam Karne ka Gharelu Upay
पहला उपाय : ये है कि जिस मरीज का ब्लड शुगर लेवल बड़ा हुआ है उसके लिए ब्लड शुगर लेवल के स्तर को कम करने लिए सुबह उठकर खाली पेट दो से तीन तुलसी की पत्ती चबाएं,या फिर आप चाहें तो तुलसी का रस भी पी सकते हैं । इससे आपका ब्लड शुगर नियंत्रण में आ जाएगा । तुलसी के सेवन के साथ में यदि आप शुगर को कम करने वाली दवाओं का सेवन कर रहे हैं तो ध्यान रखें और डॉक्टर्स से परामर्श जरूर लें । क्योंकि शुगर को तेजी से कम करने का काम करती है ।
दूसरा उपाय: ये है कि जिस मरीज का ब्लड शुगर लेवल बड़ा हुआ है उसके लिए ब्लड शुगर लेवल के स्तर को कम करने का सबसे आसान तरीका है पानी। इस दौरान अगर आप पानी पीते हैं तो यह आपके रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है। आपको बता दें कि पानी के जरिए किडनी टॉक्सिन्स और इंसुलिन को शरीर से बाहर निकालने का काम करता है।
शुगर को कम करने के लिए क्या खाना चाहिए ?
डायबिटीज में अरहर की दाल, काबुली चने, हरे चने, कुलथी की दाल का सेवन अधिक करना चाहिए. डायबिटीज में कौन-से फल खाने चाहिए? शुगर के मरीज सेब, संतरा, आड़ू, बेरीज, चेरी, एप्रिकोट, नाशपाती और कीवी जैसे फल हर दिन खा सकते हैं. आप बिना गुड़ के उबाली हुई शकरकंद का सेवन भी कर सकते हैं. डॉ अजय अनंत चौधरी Dt.21-12-2022
मधुमेह के लिए प्राकृतिक घरेलू उपचार का अवलोकन।
मधुमेह रोग (Diabetes) एक ऐसी स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति के रक्त शर्करा ( blood sugar ) का स्तर सामान्य शर्करा के स्तर से ऊपर होता है। हम जो भी खाना खिलते है उसके पाचन के बाद वह ग्लूकोस बन जाता है। यह ग्लूकोस (glucose) खून के ज़रिये विभिन शरीर की कोशिकाओं तक पहुँचता है। और ऊर्जा पैदा होती है। इसलिए खाना खाते ही ग्लूकोस की मात्रा खून मे बढ़ जाती है। ग्लूकोस की मात्रा बढ़ते ही इन्सुलिन (insulin) नाम का हॉर्मोन (hormone) सतर्क हो जाता है और वह इस ग्लूकोस को शरीर की कोशिकायों मे प्रवेश करने मे मदद करता है।
जब इन्सुलिन की कमी होती है या शरीर इन्सुलिन प्रतिरोधक (insuline resistance) हो जाता है तो ग्लूकोस का कोशिकाओं मे प्रवेश कम हो जाता है। जिस कारण ग्लूकोस की मात्रा खून मे ज़ायदा हो जाती है। इस स्तिति को डायबिटीज या मधुमेह कहते है।
डायबिटीज को नियंत्रण करने के लिए ऐसा खाना, खाना चाहिए जो आप के ग्लूकोस की मात्रा को ज़ायदा नहीं बढ़ाये या अचानक तेज़ी से ग्लूकोस के स्तर को असंतुलित कर दे। डायबिटीज के मरीज़ों को इसलिए अपने खान पान पर बहुत धयान देना चाहिए।
घर पर प्राकृतिक रूप से मधुमेह का इलाज कैसे करें, इसका सरल उपाय है कि हमें अपने द्वारा खाए जाने वाले भोजन को भली भांति समझना चाहिए। कुछ खाद्य पदार्थ रक्त शर्करा के स्तर को तेजी से बढ़ाते हैं। ये उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स (High Glycemic index) वाले खाद्य पदार्थ कहलाते हैं। जबकि कुछ खाद्य उत्पाद बहुत धीरे-धीरे ग्लूकोज छोड़ने के लिए जाने जाते हैं। ये लो ग्लाइसेमिक इंडेक्स (low glycemic index) वाले खाद्य पदार्थ कहलाते हैं। इस प्रकार, निम्न और उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाले प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का उचित चयन ग्लूकोस के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।डॉ अजय अनंत चौधरी Dt.21-12-2022
संविधान के अनुच्छेद
अनुच्छेद 14 से 18 समानता का अधिकार:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 और 18 के तहत समानता का अधिकार दिया गया है। ये लेख नागरिकों को कानून के समक्ष समान व्यवहार और कानून की समान सुरक्षा, सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर सुनिश्चित करते हैं और भेदभाव और अस्पृश्यता को रोकते हैं जो सामाजिक बुराइयाँ हैं।
अनुच्छेद 14 से 18 समानता का अधिकार:
अनुच्छेद 14 के अनुसार : भारत राज्य क्षेत्र में राज्य के किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता और विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा इस अनुच्छेद में की दो बातें निहित है। यह अनुच्छेद बहुत व्यापक दृश्टिकोण के लिए संविधान में सम्मलित किया गया है।
विधि के समक्ष समानता : विधि के समक्ष समानता यह ब्रिटिश संविधान से ग्रसित किया गया है यह अनुच्छेद कानून समानता का नकारात्मक दृष्टिकोण है इसमें निम्न तीन अर्थ निकलता है।
1 – देश में कानून का राज: देश में सभी व्यक्ति चाहे वे जिस जाति धर्म व भाषा के हो सभी एक समान कानून के अधीन हैं कोई भी व्यक्ति कानून के ऊपर नहीं है।
2 – विधियों का समान संरक्षण: विधियों के समान संरक्षण यह अमेरिका संविधान से ग्रसित किया गया इसका अर्थ यह है कि समय परिस्थिति वाले व्यक्तियों को कानून के समक्ष सामान समझा जाएगा क्योंकि समानता का अधिकार का मतलब सब की समानता ना होकर सामान रूप में समानता है अर्थात एक ही प्रकार की योग्यता रखने वाले व्यक्तियों के साथ जाति धर्म भाषा व लिंग के आधार पर कोई भेदभाव ना किया जाए।
3-विधानी वर्गीकरण : भारतीय संविधान की विधानी वर्गीकरण के सिद्धांत का प्रतिपादन करता है जो अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता है विधानी वर्गीकरण का अर्थ है कि यदि एक व्यक्ति की अपनी आवश्यकता है परिस्थितियों के अनुसार अन्य से भिन्न है तो उसे एक वर्ग माना जाएगा और समानता का सिद्धांत उस पर अकेले लागू होगा लेकिन इसका आधार वैज्ञानिक तर्कसंगत या युक्त होना चाहिए।
इसमें नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत निहित है। यह अनुच्छेद भारतीय संविधान का मूल ढांचा है। इसमें विधि के शासन का उल्लेख है। इसमें सर्वग्राही समानता का सिद्धांत पाया जाता है।
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