बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर के विचार  :अश्पृश्यता का दंश एक सामाजिक बुराई – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

 बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर के विचार  :अश्पृश्यता का दंश एक सामाजिक बुराई

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 बाबा साहेब डॉक्टर अम्बेडकर के विचार  :अश्पृश्यता का दंश।

अस्पृश्यता ,सदियों से चली आ रही एक सामाजिक बुराई है, जिसका जन्म मनुवादी व्यवस्था में निर्धारित वर्णव्यवस्था जनित ग्रेडेड कास्ट सिस्टम की वजह से हुआ था। भारतीय समाज से इस बुराई को दूर करने के लिए समय समय पर बहुजन महापुरुषों और साधु संतों ने अपने अपने तरीके से कोशिशें तो कीं लेकिन उन्हें नाकामयाबी ही हाथ लगी। 19 वीं सदी में ज्योतिबा फुले और बाद में डॉक्टर अम्बेडकर ने एक लम्बी लड़ाई लड़ी। यहां तक कि डॉक्टर अम्बेडकर ने ब्रिटिश भारत के तत्कालीन शासकों को भी खरी खोटी सुनाई कि उन्होंने डिप्रेस्ड क्लास के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया। डॉक्टर अम्बेडकर ने विभिन्न मंचों से अश्पृश्यता, ऊंच नीच और गैरबराबरी के विरुद्ध आवाज उठाई। उन्होंने भारत में विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से इन बुराइयों के विरुद्ध आवाज बुलन्द की, साथ ही गोलमेज सम्मेलनों में भी डिप्रेस्ड क्लास के प्रति हो रहे अमानवीय अत्याचारों को बड़े कारगर ढंग से उजागर किया। इसके फलस्वरूप उन्होंने अंग्रेजों से कम्यूनल अवॉर्ड हासिल किया, लेकिन मिस्टर एम के गांधी को यह कतई रास नहीं आया और इसके ख़िलाफ़ आमरण अनशन पर चले गए। मिस्टर गांधी की जान बचाने के लिए डॉक्टर अम्बेडकर को अवॉर्ड छोड़कर पूना समझौते पर हस्ताक्षर करने पड़े। तब गांधी जी ने कहा था कि वे अपनी शेष जिन्दगी अछूतोद्धार में लगा देंगे। उन्होंने कोशिश तो की लेकिन उन्हें आंशिक सफलता ही मिली। स्वतंत्र भारत के संविधान में अश्पृश्यता को दंडनीय अपराध घोषित किया गया, लेकिन 74 वर्ष बीत जाने के बाद भी इस भारतीय समाज में अश्पृश्यता और ऊंच नीच आज भी व्याप्त है। ग्रामीण भारत में इसकी जड़ें आज भी जस की तस मज़बूत हैं। ग्रेडेड कास्ट सिस्टम का प्रभाव इतना गहरा है कि मात्र अनपढ़ गंवार ही इससे आकर्षित नहीं हैं बल्कि तथाकथित पढ़े लिखे लोग भी अछूते नहीं हैं।

सच तो यह है कि स्वतन्त्र भारत में बनी अब तक की राज्य सरकारों ने और न ही केन्द्र सरकारों ने अस्पृश्यता निवारण की दिशा में कोई समुचित और कारगर नीति अपनाई। दोषियों पर निर्णायक कार्रवाई न होने के कारण अपराधियों में कानून का कोई भय ही नहीं है। भारत में आए दिन अश्पृश्यता, ऊंच नीच, गैरबराबरी और उत्पीड़न की घटनाएं घटित होती रहती हैं और ये घटनाएं मात्र ख़बरें बनकर रह जाती हैं। सरकारें इन घटनाओं को रोकने के लिए कठोर कदम उठाने के लिए उदासीन नज़र आती हैं। एससी एसटी पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए बने एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून को भी बेअसर साबित करने में सरकारों के साथ साथ न्यायालय भी पीछे नहीं हैं। लगता है कि पूर्वाग्रहों और दुराग्रहों से ग्रस्त व्यक्तियों से संवैधानिक प्रावधानों को निष्पक्षता पूर्वक लागू करने की आशा रखना बेमानी है। ग्रेडेड इनिक्वालिटी इस समस्या की जड़ में है।

Jitendra Bauddh
Jitendra Kumar Bauddh :Bureau Report-Sultanpur UP

प्राय: अधिकांश अमानवीय प्रथाओं, ऊंच नीच, जातिवाद और गैरबराबरी के लिए ब्राह्मणवाद को दोषी ठहराया जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि वर्णव्यवस्था और वर्णव्यवस्था जनित क्रमिक जाति व्यवस्था का मकड़जाल तत्कालीन ब्राह्मण बुद्धिजीवियों ने ही बुना था। आजकल पढ़ा लिखा बुद्धिजीवी सवर्ण समाज, दलितों से भेदभाव और उत्पीड़न ,कुछ अपवादों को छोड़कर, प्रत्यक्ष कार्रवाई ( direct action) के रुप में नहीं करता है। इसके लिए वह परोक्ष तौर तरीके अपनाता है। वहीं ओबीसी समुदाय की स्वघोषित उच्च जातियां, छूआछूत, ऊंच नीच, जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न को मुखर होकर अंजाम देती हैं। भारत में ओबीसी समुदाय की जातियों के कथित दबंग, अश्पृश्यता और उत्पीड़न के मामले में, सवर्ण जातियों की तुलना में सर्वाधिक लिप्त पाए जाते हैं। इसका महज़ कारण उनमें अशिक्षा, धर्मांधता, बहुजन महापुरुषों की विचारधारा से दूरी और झूठी शान का होना है। यही कारण है कि वे जातिवादी राजनीति के भी शिकार बनते चले आ रहे हैं। लगता है कि वे अनभिज्ञ हैं कि वे अपने इस कृत्य से जातिवादी ताकतों को ही मज़बूत कर अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चला रहे हैं।

यों तो अश्पृश्यता, ऊंच नीच और दलित उत्पीड़न की घटनाएं आम हो चली हैं। विशेषकर कांग्रेस और भाजपा शासित राज्यों में इन घटनाओं की आवृत्ति बड़ी तेज़ी से हो रही है। मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाले दो लोगों ने एक अपने कथित मित्र को, जो दलित समाज का था, पीट पीट कर इसलिए मार डाला था क्योंकि उसने उनके भोजन को छू लिया था। यह घटना इस बात को दर्शाती है कि ओबीसी समाज में ऊंच नीच और छुआछूत की भावना वैमनस्यता का रुप ले चुकी है। यह बहुजन एकजुटता के लिए किए जा रहे प्रयासों को बहुत बड़ा झटका है। अब ओबीसी जातियों के प्रबुद्ध वर्ग को बहुजन महापुरुषों की विचारधारा को इन सिरफिरे विशुद्ध पिछड़े लोगों तक पहुंचाना अपरिहार्य हो गया है। ओबीसी के प्रबुद्ध वर्ग की जिम्मेदारी बन जाती है कि वे बहुजन सन्देश को जन जन तक पहुंचाएं और इस पिछड़े वर्ग के कथित दबंगों की विकृति मानसिकता पर अंकुश लगाएं और उसे बदलें, अन्यथा यह बहुजन जातियों का सामाजिक विघटन , बहुजन मिशन और बहुजन समाज को गहरी क्षति पहुंचा सकता है।


जितेंद्र कुमार बौद्ध की कलम से

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