–भारतीय संविधान पर सांप्रदायिकता का हमला——अध्यक्षीय शासन बनाम संसदीय शासन प्रणाली—–
सम्प्रदायवादियों के साथ साथ पूंजीवादियों द्वारा सरकार की राष्ट्रपति शासन प्रणाली के लिए इतना शोर शराबा क्यों किया जा रहा है.?.कारण है कि दलित एवम शोषित समाज में सामाजिक एवम राजनीतिक जागृति आने के कारण और अपने राजनीतिक अधिकारों की उपलब्धता के प्रति सजग और जानकार हो जाने के कारण देश का राजनीतिक दृश्य बड़ी तेजी से बदल रहा है,मतदान की शक्ति नें देश में राजनीतिक समीकरण एकदम बदल दिए हैं,दलित शोषित समाज नें अपने मतदान के अधिकार का प्रयोग सावधानी एवम बुद्धिमत्ता से करना शुरू कर दिया है,परिणामस्वरूप प्रत्येक चुनाव में सत्ता का पलड़ा अनपेक्षित तरीके से डगमगाने लगा है,लालू प्रसाद यादव बिहार में पिछड़ी जाति के नेता,विधानसभा में बहुमत के लायक विधायक न होते हुए भी 1995 में बिहार के मुख्यमंत्री बन गए,और दिल्ली की अनुसूचित जाति की महिला मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बन गयीं, इस वोट शक्ति की एकदम नयी और आश्चर्यजनक प्रक्रिया तब देखने को मिली जब मात्र 43 जनता दल सांसदों के साथ कर्नाटक के एक पिछड़े वर्ग के नेता श्री एच डी देवगौड़ा भारत के प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हुए,यह सब कुछ इसलिए सम्भव हो पाया क्योंकि हमारे संविधान में संसदीय शासन प्रणाली का प्रावधान है,अन्यथा एक अछूत जाति की शूद्र महिला या शूद्र जाति का एक व्यक्ति मुख्यमंत्री अथवा प्रधानमंत्री जैसे सिंहासन पर विराजमान होने की सपने में भी नहीं सोच सकता था,यह सब सम्भव हुआ केवल सरकार की संसदीय शासन प्रणाली की बदौलत,वहीँ इसी बात नें अथवा संविधान के इसी प्रावधान नें हिंदुत्व के समर्थकों की नींद हराम की हुई है,जो देश में सामाजिक -राजनीतिक प्रणाली में यथास्थिति के पक्षधर हैं,वर्णाश्रम व्यवस्था वाले समाज में और उन्ही दिनों को फिर से लाने की जुगाड़ में हैं बदले आवरण के साथ.
शताब्दियों तक ये ही मनुवादी समाज नें सत्ता रूपी फल का स्वाद लिया है और शूद्रों तथा अतिशूद्रों को सभी प्रकार से शिक्षा,समाज,संस्कृति,आर्थिक और राजनीतिक शक्ति से वंचित कर रखा है,और धार्मिक आलेखों की आड़ में तमाम तरह की कार्यनीति और आडम्बर रचे हैं,और सत्ता को अपने हाथ में रखने की कोशिश की है,लेकिन बिहार और उत्तरप्रदेश का राजनीतिक दृश्य साथ ही साथ केंद्र में भी लालूप्रसाद,मायावती और देवगौड़ा जैसे धुरंधरों के पदार्पण से इन यथास्थितिवादियों को ऐसा आघात लगा है कि वे इनको मजबूरन सहन कर रहे हैं,इस यथास्थिति नें मनुवादियों की आँखें खोल दीं हैं,और इसी राजनीतिक हालात नें उनकी दिली ख्वाहिश-राष्ट्रपति शासन प्रणाली को लागू करने की मुहिम को और अधिक तेज करने पर बाध्य कर दिया है,मनुवादियों नें कभी भी किसी अवसर को व्यर्थ नहीं जानें दिया है,और नाज़ुक तथा विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने स्वार्थ का उपाय खोजा है,वे कभी आशा नहीं छोड़ते,वे कभी दिग्भ्रमित और निराश नहीं हुए,चाहे अस्थाई रूप से उन्हें भले ही थोड़ा पीछे हटना पड़ा हो,पर उन्होंने अपने आगे बढ़ने का क्रम और प्रयास लगातार जारी रखा है,और इस सफलतम कार्य को उन्होंने उत्तर प्रदेश में चरितार्थ कर दिखाया है,इसलिए बहुजनों को चाहिए कि बड़ी मुश्किल से मिले संवैधानिक अधिकारों को बरकरार रखने के लिए संविधान की संसदीय प्रणाली और खुद संविधान को बचाये रखने की नैतिक जिम्मेदारी हमारी है अन्यथा संविधान के खतम होते ही बहुजनों के अस्तित्व को खतम होते देर नहीं लगेगी.
“भारतीय संविधान पर साम्प्रदायिकता का हमला”पृष्ठ-85-86. ——–मिशन अम्बेडकर.Facebook Post-एस चंद्रा बौद्ध———-Date:15-12-2021