गुरु घासीदास जी की जयंती 18 दिसंबर 2021पर गुरू घासीदास जी को शत् शत् नमन
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सामाजिक क्रांति के पुरोधा जननायक गुरु घासीदास जी की जयंती
आज सामाजिक क्रांति के पुरोधा जननायक गुरु घासीदास जी की जयंती है।मध्य क्षेत्र में इनके द्वारा स्थापित सतनाम आंदोलन प्रखरता से फैला! गुरू घासीदास जी का पहला संदेश था “मनखे-मनखे एक बरोबर”(मानव-मानव एक समान)
सामाजिक क्रांति के पुरोधा जननायक गुरु घासीदास जी की जयंती है।मध्य क्षेत्र में इनके द्वारा स्थापित सतनाम आंदोलन प्रखरता से फैला! गुरू घासीदास जी का पहला संदेश था “मनखे-मनखे एक बरोबर”(मानव-मानव एक समान)
शत् शत् नमन 🙏🙏 GuruGhasidas
(माननीया बहनजी द्वारा स्थापित गुरु घासीदास जी की प्रतिमा, दलित प्रेरणा स्थल, नोयडा)
गुरु घासीदास ने छत्तीसगढ़ में सतनाम संप्रदाय की स्थापना की थी इसलिए उन्हें सतनाम पंथ का संस्थापक माना जाता है। गुरु घासीदास का समाज में एक नई सोच और विचार उत्पन्न करने का बहुत बड़ा हाथ है। गुरु घासीदास जी बहुत कम उम्र में पशुओं की बलि अनुकूल प्रभाव जैसे जाति भेदभाव छुआछूत के पूर्ण रूप से खिलाफ थे। सतनाम धर्म हमेशा सच्चाई के पथ पर चलने की शिक्षा देता है। सतनाम धर्म में सात अंक को शुभ माना जाता सतनाम धर्म में जीव हत्या, चोरी ,जुआ, नशाखोरी ,मांसाहार तथा व्यभिचार। इन बातों से दूर रहने को कहा गया है। यहां ना कोई छोटा है ना कोई बड़ा है सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है।
गुरु घासीदास ने समाज के लोगों को प्रेम और मानवता का संदेश दिया पूरे छत्तीसगढ़ राज में गुरु घासीदास जी की जयंती 18 दिसंबर से एक माह तक बड़े उत्सव के रूप में पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है। प्रेरणा स्वरुप बाबा गुरु घासीदास जी की जयंती से हमें पूजा करने की प्रेरणा मिलती है और पूजा से सर विचार तथा एकाग्रता बढ़ती है।वर्तमान छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ की स्थापना हुई। इस संप्रदाय के लोग गुरु घासीदास जी को अवतारी पुरुष के रूप में मानते हैं। इन्होंने सात वचन से सतनाम पंथ की स्थापना की जिसमें सतनाम पर विश्वास मूर्ति पूजा का निषेध पूर्ण भेद से परे हिंसा का विरोध व्यसन से मुक्ति पर स्त्री गमन की वर्जना और दोपहर में कितना जोतना है। गुरु घासीदास की मृत्यु 1850 में। उनके पिताजी का नाम महंगू दास और उनके पुत्र का नाम गुरु बालक दास था।
गुरु घासीदास का जन्म 1756 में ध्यान अज्ञात ग्राम गिरोधपुरी तहसील कसडोल जिला बलौदा बाजार में पिता गुरु महमूद दास जी के माता अमरावती के यहां अवतरित हुए थे। गुरु घासीदास जी सतनाम धर्म जिसे आम बोलचाल भाषा में सतनामी समाज कहा जाता है के प्रवर्तक है। गुरु घासीदास जी भंडारपुरी को अपना धार्मिक स्थल के रूप में संत समाज को प्रमाणित सत्य की शक्ति के साथ दिए। वहां गुरु जी के वंशज आज भी निवासरत है उन्होंने अपने समय की सामाजिक आर्थिक विषमता शोषण जातिवाद को समाप्त करके मानव मानव एक समान का संदेश दिया इससे समाज के लोग बहुत ही प्रभावित रहे। सन 1672 में वर्तमान हरियाणा के नारनौल नामक स्थान पर सात भीर भान और जोगीदास नामक दो भाइयों ने सतनामी साध मत पर प्रचार किया था।
सतनामी साध मत के अनुयाई किसी भी मनुष्य के सामने नहीं झुकने के सिद्धांत को मानते थे। वह सम्मान करते थे लेकिन किसी ने किसी के सामने झुक कर नहीं ।एक बार एक किसान ने तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब के कार्यालय को झुक कर सलाम नहीं किया तो उसने उनको आत्मा अपमान अपमान मानते हुए उस पर लाठी से प्रहार किया। जिसके विरोध में कुछ सतनामी साध ने भी उस कार्य को लाठी से पीट दिया यह विवाद यहीं खत्म ना होकर तूल पकड़ते गया और धीरे-धीरे मुगल बादशाह औरंगजेब तक पहुंच गया किसानों ने बगावत कर दी है यहीं से औरंगजेब और ऐतिहासिक युद्ध हुआ था। जिसके नेतृत्व सात जोगी दास ने किया था युद्ध कई दिनों तक चला । जिसमें युद्ध कई दिनों तक चला जिसमें शाही फ़ौज निहत्थे साधो के हाथो से हारती चली जा रहेथी ।हार के चलते सारी फौज में यह बात फैल गई कि सतनामी समूह में कोई जादू टोना करके शाही फ़ौज को हरा रहे हैं इसके लिए औरंगजेब ने अपने फौजियों को कुरान की आयतें लिखे ताबीज भी बनवाए लेकिन इसके बावजूद कोई फर्क नहीं पड़ा लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि सतनामी सैनिको के पास आध्यात्मिक शक्ति के कारण यही स्थिति थी। क्योंकि सतनामी साधु का तप का समय पूरा हो गया था। उसमें ताकत व गुरु के समक्ष अपना समर्पण पर वीरगति को प्राप्त हुए बचे हुए सतनामी सैनिक पंजाब मध्य प्रदेश की ओर चले गए।
मध्यप्रदेश वर्तमान छत्तीसगढ़ में संत घासीदास जी का जन्म हुआ और वहां पर उन्होंने सतनाम पंथ का प्रचार और प्रसार किया गुरु घासीदास जी का जन्म 1756 के बालोदा बाजार जिले के गिरौदपुरी में एक गरीब गरीब परिवार में पैदा हुए थे उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर कुठाराघात किया जिसके जिसका असर आज तक दिखाई पड़ रहा है उनकी जयंती हर साल पूरे छत्तीसगढ़ में 18 दिसंबर को मनाया जाता है गुरु घासीदास जातियों में भेदभाव और समाज में भाईचारा के अभाव को देख कर बहुत दुखी थी वह लगातार प्रयास कर रहे थे कि समाज में समाज को इस से मुक्ति दिलाई जाए लेकिन उन्हें इसका कोई हल नहीं दिखाई देता था वे सत्य की तलाश के लिए गिरोधपुरी के जंगल में छाता पहाड़ पर समाधि लगाए इस बीच गुरु घासीदास जी ने गिरोधपुरी में अपना आश्रम बनाया तथा सोनाखान के जंगलों में सत्य और ज्ञान की खोज के लिए लंबी तपस्या भी की गुरु घासीदास सतनाम धर्म की स्थापना की और सतनाम धर्म के सिद्धांत दिए सतनामी समाज 1880 के बाद से आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े होने के कारण अनुसूचित जाति की सूची में डाल दिया गया।
गुरु घासीदास की सात शिक्षाएं सत गुरु घासीदास जिसके साथ शिक्षाएं सतनाम पर विश्वास रखना जीव हत्या नहीं करना मांसाहार नहीं खाना चोरी जुवा से दूर रहना 97 सेवन नहीं करना जात पात के प्रचार में नहीं पड़ना बे विचार नहीं करना अर्थात सत्य अहिंसा धैर्य लग्न करुणाकरम सरलता और व्यवहार है।
सतनामी आंदोलन
सतनामी 1672 में औरंगजेब के विरुद्ध एक विद्रोह किया था इस विद्रोह के बारे में भारत का इतिहास काफी खान लिखता है कि नारनौल में एक सिकदार राजस्व अधिकारी के एक पैदल सैनिक के ने सतनामी किसान पर लाठी से सिर फोड़ दिया था इसे सतनामी में अत्याचार के रूप में लिया और उस सैनिक को मार डाला । सिकदार ने सतनामी को गिरफ्तार करने के लिए कई सैन्य टुकड़ी भेजी जो बराबर परास्त हो गई ।
सतनामी ने इसे अपने धर्म के विरुद्ध आक्रमण समझा और उन्होंने बादशाह के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दी उन्होंने नारनौल के फौजदार को मार डाला और अपनी सत्ता स्थापित करके वहां के लोगों को दिन पर दिन बढ़ती गई । इसी बीच आसपास के जमीदारों राजपूत सरदारों ने अवसर का लाभ उठाकर राजस्व पर अपना कब्जा कर लिया जब औरंगजेब को इस बगावत की खबर मिली तो उसने राजा विशाल सिंह हामिद खां और कुछ मुगल सरदारों के प्रयास से कई हजार विद्रोही सतनामियों को मरवा दिया जो बचे हुए भाग गए ।इस प्रकार या विद्रोह को चल दिया गया ।
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय
भारत का एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है इसकी स्थापना 16 जून 1983 को तत्कालीन मध्य प्रदेश के बिलासपुर में हुई थी मध्य प्रदेश के विभाजन के पश्चात बिलासपुर छत्तीसगढ़ में शामिल हो गया । जनवरी 2009 में केंद्र सरकार द्वारा संसद में पेश ने केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 के माध्यम से इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया गया । गुरु घासीदास विश्वविद्यालय राज्य विधान सभा के अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था । 16 जून 1983 को उद्घाटन किया गया यह भारतीय विश्वविद्यालय का एक सदस्य राष्ट्रीय मूल्यांकन रूप में मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय है। सामाजिक और आर्थिक रूप से चुनाव चुनौती वाले क्षेत्र में स्थित विश्वविद्यालय को उचित नाम महान संत गुरु घासीदास जन्म 17वीं शताब्दी के सम्मान स्वरूप दिया गया जिन्हें उन्होंने दलितों और सभी सामाजिक बुराइयों और समाज में प्रचलित अन्य अन्याय के खिलाफ एक अनवरत संघर्ष छेड़ा था। विश्वविद्यालय एक आवासीय संस्था है इसका अधिकार क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य की बिलासपुर राजस्व डिवीजन है।
गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसंबर 1756 गिरधरपुर छत्तीसगढ़ भारत में हुआ था।
मृत्यु अज्ञात……………….?
कार्यकाल 1756 से 1850 , उत्तराधिकारी गुरु बालक दास , धार्मिक मान्यता सतनामी , जीवनसाथी शाहपुरा माता , बच्चे सहोदरा माता गुरु अमर दास गुरु बालक दास , माता पिता महंगू दास माता अमरौतीन: Bahujan India 24 News
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