जिला लखीमपुर खीरी 8 विधानसभा सीटों का हाल किन मुद्दों से ज्यादा बागी बिगड़ रहे चुनावी समीकरण
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बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ व बहुजन प्रेरणा दैनिक समाचार पत्र (सम्पादक मुकेश भारती ) मो ० 9161507983
खीरी:( सर्वेश कुमार राज – ब्यूरो रिपोर्ट )
जिला लखीमपुर खीरी 8 विधानसभा सीटों का हाल किन मुद्दों से ज्यादा बागी बिगड़ रहे चुनावी समीकरण
पिछले चुनाव में भाजपा ने लखीमपुर खीरी में शानदार प्रदर्शन किया था। लेकिन किसान आंदोलन के बाद जिले में तेजी से हालात बदले हैं। प्रदेश भर में इस मुद्दे पर खूब राजनीति हुई है। वैसे इस बार जिले में मुद्दों से ज्यादा बागी सियासी समीकरण बना और बिगाड़ रहे हैं। भाजपा पर पांच साल पहले के प्रदर्शन को दोहराने का दबाव होगा। दूसरी ओर सपा, बसपा व कांग्रेस इस बार अलग-अलग रणनीति के साथ चुनावी समर में है।2017 के चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने वाली भारतीय जनता पार्टी के सामने इस बार अपना ‘दुर्ग’ बचाने की चुनौती है। खीरी जिले के तिकुनिया कांड के बाद के हालात और किसानों के मुद्दों की परीक्षा भी इस चुनाव में होनी है। साथ ही अलग-अलग ताल ठोक रहीं विपक्षी पार्टियों की ताकत का अंदाजा भी इस विधानसभा चुनाव में लग सकेगा।
खीरी जिले में आठ सीटें हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में जिले की इन आठों विधानसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने अपना परचम लहराया था। इस बार के विधानसभा चुनाव में पिछले रिकॉर्ड की परीक्षा होनी है। इस बार सभी दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। लिहाजा लड़ाई दिलचस्प है। भाजपा ने आठ में से सात सीटों पर सिटिंग एमएलए को टिकट दिया है। आठवीं सीट (घौरहरा) से विधायक बाला प्रसाद अवस्थी सपा में चले गए तो उनकी जगह पर एक कार्यकर्ता विनोद अवस्थी को भाजपा ने मौका दिया है। खीरी में सियासत किस करवट जाएगी, इस पर सबकी नजर है।हर दल की अलग-अलग गणित
इस चुनाव में भाजपा ने आठ में से सात सीटों पर अपने विधायकों के चेहरों पर ही दांव लगाया है। सपा ने इस बार चार पुराने और चार नए चेहरों के साथ चुनाव में ताल ठोंकी है। इसमें चार पूर्व विधायक हैं। बसपा भी आठों सीटों पर प्रत्याशी उतार चुकी है। हालांकि बसपाई खेमे में इस बार सपा और भाजपा के बागियों को भी जगह मिली है।लखीमपुर सदर-सदर में भाजपा ने विधायक योगेश वर्मा तो सपा ने पूर्व विधायक उत्कर्ष वर्मा को मैदान में उतारा है। बसपा ने मोहन वाजपेयी पर दांव लगा दिया है। इससे मुकाबला और दिलचस्प हो चला है।पलिया-इस सीट पर भाजपा ने रोमी साहनी को उम्मीदवार बनाया है तो सपा ने पूर्व ब्लाक प्रमुख प्रीतेंद्र सिंह काकू के चेहरे पर भरोसा जताया है। बसपा भी यहां डॉ. जाकिर के रूप में नए चेहरे के साथ उतरी है।मोहम्मदी-यहां भी कांटे की लड़ाई होनी है। भाजपा ने विधायक लोकेंद्र सिंह पर दांव लगाया है तो सपा ने पूर्व सांसद दाउद अहमद को उम्मीदवार बनाया है। दाउद इसी सीट पर पिछले चुनाव में बसपा के हाथी निशान के साथ थे। बसपा ने यहां शकील अहमद सिद्दीकी को प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने रितू सिंह को।गोला-बेहद प्रतिष्ठापूर्ण सीट गोला में भाजपा ने चार बार के विधायक अरविंद गिरि को टिकट दिया है तो सपा ने पूर्व विधायक विनय तिवारी पर भरोसा जताया है। बसपा ने यहां कुर्मी समाज की महिला व जिला पंचायत सदस्य शिखा वर्मा को उम्मीदवार बनाया है।धौरहरा-यह सीट भाजपा विधायक बाला प्रसाद अवस्थी के पार्टी छोड़ने से दिलचस्प हो गई है। यहां सपा ने पूर्व मंत्री यशपाल चौधरी के बेटे वरुण को टिकट दिया है तो भाजपा ने कार्यकर्ता विनोद अवस्थी पर दांव लगाया है। वहीं बसपा ने भाजपा छोड़कर आए आनंद मोहन त्रिवेदी को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर एक ब्राह्मण चेहरे की बगावत और दो के मैदान में होने से स्थिति दिलचस्प हो गई है। बाला प्रसाद सपा से टिकट नहीं मिलने के कारण फिर भाजपा खेमे में वापस आ गए हैं।श्रीनगर-इस सुरक्षित सीट पर भाजपा ने विधायक मंजू त्यागी, सपा ने पूर्व विधायक रामसरन को उतारा है तो बसपा ने सपा की ही बागी मीरा बानो को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में मीरा बानो दूसरे स्थान पर थीं।निघासन-तिकुनिया कांड के बाद यह सीट चर्चित है। यहां भाजपा ने विधायक शशांक वर्मा, सपा ने पूर्व बसपा प्रदेश अध्यक्ष आरएस कुशवाहा को इस बार उतारा है। जबकि बसपा ने मनमोहन मौर्य को टिकट दिया है।कस्ता-कस्ता सुरक्षित सीट पर भाजपा से विधायक सौरभ सिंह सोनू, सपा से पूर्व विधायक सुनील कुमार को उतारा है। बसपा से सरिता वर्मा हैं।कई बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर जिले के नेताओं को बड़ा मुकाम हासिल है। इनमें से एक केंद्र सरकार के गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी हैं। जबकि दूसरी धौरहरा की सांसद रेखा अरुण वर्मा, जिनको भाजपा ने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का ओहदा दिया है। इस चुनाव में भले ही दोनों सांसद मैदान में ना हों, लेकिन उनकी प्रतिष्ठा जरूर दांव पर है। यही नहीं, भाजपा सरकार के मौजूदा मंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद का भी यह क्षेत्र रहा है। वह यहां के धौरहरा सीट के सांसद रहे हैं। उनका प्रभाव जिले में हैं।सबकी नजर किसान व किसानी पर तराई की इस गन्ना बेल्ट में सबकी नजर किसान और किसानी के मुद्दों पर है। जिले में किसानों का अपना एजेंडा है। इसमें गन्ना मूल्य का भुगतान जोर पकड़ता रहा है। किसान पिछले दिनों दो महीनों तक आंदोलन की राह पर रहे। किसान चीनी मिलों को गन्ना देते हैं, लेकिन उसकी कीमत उनको समय से नहीं मिल पा रही है। हालात यह है कि चुनावी सीजन में भी पिछले 30 दिनों तक किसान गोला में धरने पर बैठे रहे। इससे पहले किसान तीन चीनी मिलों के लिए गन्ना रोककर उन्हें नो केन भी कर चुके हैं। दूसरा दर्द आवारा जानवरों का है। यह पूरे जिले का मुद्दा है। किसान इस कदर नाराज हैं कि जानवरों को कभी रेलवे के अंडर पास में बन्द करते हैं तो कभी कॉलेजों में। यह चुनाव किसानी के मुद्दों और जाति की राजनीति के बीच का इम्तिहान भी साबित होने वाला है।
क्या कहती हैं मुद्दों की हवाएं
• बाढ़ और कटान रोकने के लिए ठोस कार्ययोजना बने
• जिले में गन्ना शोध संस्थान की स्थापना हो
• नए उद्योगों की स्थापना की दिशा में कदम बढ़े
• किसानों को गन्ना मूल्य का समय से भुगतान हो
• ग्रामीण क्षेत्र की सड़कों की दशा सुधारी जाए
•सबसे मुख्य चुनावी मुद्दा आवारा पशु है
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