माता सावित्रीबाई फुले जी शिक्षा की ज्योति जगाने वाली पहली महिला
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बहुजन प्रेरणा :संवाददाता -मुकेश भारती – लखनऊ ।
माता सावित्रीबाई फुले जी का जन्म 3 जनवरी 1831 में हुआ था। उनका जन्म महाराष्ट्र के एक किसान परिवार में हुआ था। माता सावित्री बाई फूले जी के पिता का नाम खंडोजी नेवसे था और माता का नाम लक्ष्मी बाई था। भारत में महिलाओं में शिक्षा की ज्योति जगाने वाली पहली महिला थी इसी के साथ भारत की सबसे पहली महिला शिक्षिका कहा जाता है। अपने ज्ञान के बदौलत कवित्री और समाज सेविका भी रही थी। माता सावित्रीबाई फूले जी की जिंदगी का सिर्फ एक ही लक्ष्य था कि लड़कियों को शिक्षित किया जाए। 9 वर्ष की आयु में माता सावित्रीबाई फुले जी का विवाह ज्योतिबा राव फूले जी से हो गया था। माता सावित्रीबाई फूले जी एक बुद्धिमान व्यक्ति थी, इन्हें मराठी भाषा का भी ज्ञान था।माता सावित्रीबाई फूले जी की शिक्षा:माता सावित्रीबाई फूले जी एक समाज सेविका के साथ साथ कवियत्री के रूप में भी उभरी माता सावित्रीबाई फूले जी के द्वारा दो काव्य पुस्तकें भी लिखी गई थी, पहला काव्य उनका फुले और दूसरा बावनकशी सुबोधरत्नाकर था।माता सावित्री बाई फूले जी का जीवन
माता सावित्रीबाई फूले जी अपने जीवन में कुछ अच्छा करना चाहती थी। इसके लिए उनका बस एक ही लक्ष्य था कि किसी भी तरह से महिलाओं को शिक्षित किया जाए और उन्होंने इसके लिए कई कदम भी उठाए। 1848 में उन्होंने जब माता सावित्रीबाई फुले जी को बच्चे पढ़ाने जाती थी, सब लोग उन पर ब्राह्मण महिलायें गोबर की बरसात करते थे। अर्थात उनको गोबर फेक कर मारते थे, और उन लोगों का कहना था कि शूद्र से अति शूद्र लोगों को पढ़ाने का अधिकार नहीं होता है, इसीलिए लोगों के द्वारा माता सावित्रीबाई फूले जी को रोका जाता था। इतना अपमान सहने के बाद भी उनका कारवां नहीं रुका और गरीब शोषित मजलूम लड़कियों की पड़े के लिए ढेर सारे स्कूलों की स्थापना भी की। अपमान सहने के बाद भी माता सावित्रीबाई फूले जी नहीं रुकी उनका हौसला और इरादा बड़ा था और वह हमेशा अपना झोला लेकर लड़कियों को पढ़ाने के लिए चलती रही। उस झोले में हमेशा वह एक जोड़ी कपड़े रखा करती थी और जब लोग उन्हें गोबर से मारते थे तब उनके कपड़े गंदे हो जाते थे, इसीलिए वह स्कूल में पहुंचकर अपने कपड़ों को बदल लिया करती थी, इसके पश्चात बच्चों को पढ़ाया करती थी। माता सावित्री बाई फूले जी का लक्ष्य:माता सावित्री बाई फूले जी का सिर्फ एक ही लक्ष्य था कि किसी भी तरह बच्चियों को पढ़ाया जाए। इसी के साथ उन्होंने कई प्रथाओं पर रोक हटाई और उन्हें उन पर कामयाबी में मिली जैसे की विधवा विवाह करना, छुआछूत को मिटाना, महिलाओं को समाज में उनका अधिकार दिलवाना और महिलाओं को शिक्षित करना, इन सब के दौरान माता सावित्रीबाई फूले जी ने खुद के 18 स्कूल भी खोलें सबसे पहले उनका स्कूल पुणे में खुला था। उनके द्वारा जब पहला स्कूल खोला गया था तब केवल 9 बच्चे ही उस स्कूल में आते थे और उन्हें भी वह पढ़ाती थी। परंतु 1 वर्ष के अंदर बहुत सारे बच्चे आने लग गए थे। माता सावित्रीबाई फूले जी के द्वारा 3 जनवरी 1848 को अपने जन्मदिन पर उन्होंने अपना सबसे पहला स्कूल खोला था, जिसमें 9 अलग-अलग जातियों के बच्चों को लेकर उन्होंने पढ़ाना शुरू किया था। इसके पश्चात उन्होंने धीरे-धीरे यह मुहिम चलाई की महिलाओं को शिक्षित करना अनिवार्य है और उन्होंने इस मुहिम में सफलता भी पाई इसके पश्चात माता सावित्रीबाई फुले जी और उनके पति ज्योतिबा फुले जी दोनों ने मिलकर 5 स्कूलों का निर्माण करवाया। उस समय लोगों की बहुत ही गलत विचारधारा थी कि लड़कियों को नहीं पढ़ाना चाहिए। इसी के साथ माता सावित्रीबाई फूले जी ने इस विचारधारा को भी बदल कर रख दिया और लोगों को यह भी समझा दिया कि पढ़ने का अधिकार जिस प्रकार लड़कों को है, उतना ही लड़कियों को भी मिलना चाहिए। इसके लिए माता सावित्रीबाई फूले जी ने बहुत संघर्ष किया। इसके बाद उन्होंने एक केंद्र की भी स्थापना की, जहां पर उन्होंने विधवा महिलाओं को पुनर्विवाह के लिए भी प्रेरित किया। इसी के साथ अछूतों के अधिकारों के लिए भी संघर्ष किया गया।माता सावित्रीबाई फूले जी और उनके पति ज्योतिबा फुले दोनों ही एक समाज सुधारक थे। उन दोनों ने मिलकर समाज की बहुत अच्छे प्रकार से सेवा की थी। परंतु उनकी कोई संतान नहीं थी, इसीलिए उन्होंने एक ब्राह्मण विधवा के पुत्र यशवंतराव को गोद ले लिया था। इस बात का विरोध पूरे परिवार के सभी सदस्यों ने किया इसीलिए, उन्होंने अपने परिवार से अपना संबंध समाप्त कर दिया।
माता सावित्री बाई फूले जी का सम्मान:1852 मैं तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने पूरे दंपत्ति को महिला शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने के लिए भली प्रकार सम्मानित किया। इसी के साथ केंद्र और महाराष्ट्र सरकार ने माता सावित्रीबाई फुले जी की स्मृति के रूप में भी कई पुरस्कारों की स्थापना की थी।इन सब के साथ ही माता सावित्री बाई फूले जी के सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया था। क्योंकि यह आधुनिक शिक्षा में सबसे पहली महिला शिक्षिका है। इन्हें मराठी भाषा का भी अच्छा ज्ञान था, इसीलिए इन्हें मराठी भाषा का अगुवा माना जाता है। माता सावित्रीबाई फूले जी के द्वारा एक कविता भी लिखी गई थी, जो मराठी भाषा में थी, जो मराठी भाषा में आज के समय में एकदम सटीक काम कर रही है और इसकी जरूरत आधुनिक लोगों को सबसे ज्यादा पड़ रही है। माता सावित्री बाई फूलेजी का निधन:1897 में जब लोग प्लेग से ग्रसित हो रहे थे तब माता सावित्रीबाई फूले जी और उनके पुत्र के द्वारा एक अस्पताल खोला गया और उस अस्पताल में अछूतों का इलाज भी किया गया। परंतु इस बीमारी के दौरान माता सावित्रीबाई फूले खुद भी इस बीमारी का शिकार हो गई और 10 मार्च 1997 को उनका निधन हो गया।
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