क्रूर जरायम पेशा एक्ट के खिलाफ आवाज उठाई श्री लक्ष्मी नारायण झारवाल – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

क्रूर जरायम पेशा एक्ट के खिलाफ आवाज उठाई श्री लक्ष्मी नारायण झारवाल

1 min read
😊 Please Share This News 😊
अंग्रेजो ने Criminal Trible Act 1871 (जरायम पेशा कानून 1871) को 1924 में संशोधित कर 1930 को राजस्थान में जयपुर, अलवर और भरतपुर रियासत के मीणाओ पर लागू कर दिया। ये बहुत ही क्रूर कानून था और मीणाओ के लिए और ज्यादा क्रूर बना दिया गया, अन्य ट्राइबल की अपेशा। क्रूरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता कि बच्चे के जन्मते ही थाने में अपराधियों की लिस्ट में नाम लिख दिया जाता था, 12 साल का होते ही थाने में दो बार हाजिरी लगाना, एक गांव से दूसरे गांव जाने के लिए थाने से परमिशन लेनी पड़ती थी, मीणा आने जाने के लिए कोई साधन नही रख सकता था। उन पर कठोर अत्याचारा किया जाता था। बिना अपराध के ही पकड़ कर थाने में बंद कर दिया जाता था। उनको थाने में कोई खाना नही दिया जाता था। कसूर ये था मीणाओ का की इनको अंग्रेजो की सत्ता स्वीकार नही थी। आजादी के लिए लड़ने वालो का साथ देते थे। मीणा अंग्रेजो और उनकी कठपुतली बन चुकी रियासतों को खतरा लगने लगे । इसलिए उनकी गतिविधयों को मोनिटरिंग करने के लिए मीणाओ पर जरायम पेशा एक्ट लगाया।
इस क्रूर जरायम पेशा एक्ट के खिलाफ आवाज उठाई श्री लक्ष्मी नारायण झारवाल जी ने। जगह जगह सभाएं की, लोगों को जागरूक किया। कांग्रेस के नेताओ से मिले, प्रजामंडल आंदोलनों में भाग लिया। मीणाओ को शिक्षा के प्रति जागरूक किया। जगह जगह सभाएं की, लोगों को जागरूक किया, कांग्रेस के नेताओ से मिले, प्रजामंडल आंदोलनों में भाग लिया। मीणाओ को शिक्षा के प्रति जागरूक किया। इनके साथ और भी बहुत से नेताओ ने इनके कारवा को आगे बढ़ाया। आखिरकार 1946 में इस कानून को वापिस लेना पड़ा। आजादी के बाद मीणाओ को trible की लिस्ट में शामिल नही किया गया रियासतों की रंजिस और दबाव की वजह से, जबकि ये ट्राइबल की शर्तें पूरी करते थे, trible act के तहत 1930 से प्रताड़ित हो चुके थे फिर भी। लेकिन झारवाल साहब और इनके साथ के नेताओ ने जयपुर और दिल्ली के कई साल तक चक्कर काटकर 1956 में ST की लिस्ट में शामिल करवाकर अपना हक लिया। लोग कहते है की मीणा सरकारी नौकरियों में बहुत ज्यादा आ गए और बहुत आगे, बढ़ गए। ये सब फिरि फोकट में ही नही हो गया था। इस उन्नति के पीछे झरवाल साहब जैसे कई मीणा स्वन्त्रता सैनानी और समाज सुधारकों की कठोर तपस्या और बलिदान है। 1940 के जमाने में ही मीणाओ को शिक्षा की तरफ मोड़ना शुरू कर दिया था। जरायम पेशा कानून ने मीणाओ को पहाड़ो और उजाड़ बीहड़ो में दर दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया था। झरवाल साहब जैसे युग पुरुष आवाज नही उठाते, तो मीणा आज भी पहाड़ो और बीहड़ो में छुपते फिर रहे होते।

व्हाट्सप्प आइकान को दबा कर इस खबर को शेयर जरूर करें 

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे

Donate Now

[responsive-slider id=1466]
error: Content is protected !!