धोखा,धूर्तता,छल,कपट और षड्यंत्र के तहत बहुरूपिया बनें विष्णु वामन नें राजा बलि से कुटिया बनानें के लिए तीन पग जमीन मांगी थी,इसी घटना को पुराणों के रचनाकारों ने विष्णु की वाहवाही में चमत्कार का रंग चढ़ाकर इस प्रकार लिखा कि महाराजा बलि के यज्ञ में पहुंचकर वामन रूपी विष्णु ने कहा कि राजाधिराज ! आपका कल्याण हो ,मैं याचक होकर आपके यज्ञ में आया हूं ,आपका यज्ञ देखने और आपसे कुछ मांगने के लिए आपके पास आया हूं,राजा बलि ने कहा -बताइए आपको क्या चाहिए ,मैं अभी देता हूं,वामन ने कहा मुझे भूमि दो,बलि ने कहा कितनी भूमि दूं ? वामन बोले – राजन ! मुझे कुटी बनाने के लिए केवल तीन पग भूमि दान दे दीजिए,
राजा बली ने कहा – ब्राह्मण ! आपने यह क्या मांगा यह तो बहुत थोड़ा है ,तीन पग भूमि में आपका कौन -सा स्वार्थ सिद्ध होगा ? तीन पग भूमि क्या आप हजारों पग भूमि मागिए अथवा नाना प्रकार के रत्न ,हाथी ,घोड़े ,रथ ,दास – दासियां ,धन आदि वस्तुएं जितनी चाहिए मांग लीजिए,वामन ने कहा- मुझे अन्य दूसरी किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है,यदि आप की श्रद्धा हो तो मुझे केवल तीन पग भूमि ही दीजिए,यह सुनकर राजा बलि ने वामन को सहर्ष तीन पग भूमि देना स्वीकार किया और दान देने के वचन के साथ ही राजाबलि ने संकल्प का जल वामन के हाथ पर गिरा दिया, संकल्प का जल हाथ पर गिरते ही तत्काल वामन ने विराट रूप धारण कर लिया उनके बढ़े हुए स्वरूप को देखकर सभी ब्राह्मण विष्णु की जय जयकार करने लगे विराट रूप में विष्णु ने समूचे ब्रह्माण्ड को माप लिया एक पग में ही पूरी पृथ्वी को नाप लिया और दूसरे पग में आकाश को नाप लिया इस प्रकार दो पग में ही विष्णु ने संपूर्ण जगत को नाप लिया ,तब वामन ने बलि से पूछा कि अब में तीसरा पग कहां रखू ? राजा बलि के पास कोई उत्तर नहीं था उसी समय राजा बलि की पत्नी विन्ध्यावति से विष्णु ने कहा देवी ! तुम्हारे पति के द्वारा आज मुझे तीन पग पृथ्वी मिलनी ही चाहिए ,उसकी पूर्ति इस समय कहां से होगी ? इसका उत्तर शीघ्र दो ?
विन्ध्यावति बड़ी साध्वी थी ,वह विष्णु से इस प्रकार बोली ,देव ! आप समस्त लोकों के एकमात्र स्वामी हैं,भला हम जैसे लोग आपको क्या दे सकते हैं ? इसलिए इस समय मैं आपसे जो निवेदन करती हूं ,वही करें,मेरे स्वमी ने आपको तीन पग भूमि देने की प्रतिज्ञा की थी ,उसके अनुसार मेरे पूज्य पतिदेव तीनों पगों के लिए स्थान इस प्रकार दे रहे हैं आप अपना पहला पग मेरे मस्तक पर रखिए ,दूसरा पग मेरे इस बालक के मस्तक पर रख दीजिए और तीसरा पग मेरे पति के मस्तक पर रख दीजिए,देव ! इस प्रकार मैं आपको ये तीन पग रखने का स्थान दे रही हूं ( देखें स्कंद पुराण , पृ . 50 ), इस प्रकार विष्णु ने अपने तीसरे पग की पूर्ति के लिए राजा बलि के मस्तक पर अपना पैर रख दिया तथा संपूर्ण असुरों को जीतकर राजाबलि का संपूर्ण साम्राज्य इन्द्र को दे दिया ( देखें वही , पृ . 962 ) इसी घटना को और भी चमत्कारिक रूप में पढ़ने के लिए वामन पुराण का इक्तीसवां अध्याय पढ़ें ,किंतु यदि हम तनिक भी स्व -विवेक का उपयोग करें तो यह बात आसानी से समझ में आ सकती है कि इसमें विष्णु को किस तरह हीरो बनाकर उसको विजय दिला दी गई ? जबकि एक राजा की भरी सभा में पहुंचकर छलपूर्वक उसका राज्य छीन लेना और उसके सिर पर पैर रखकर उसकी मर्यादा को कुचलना और उसके प्राण लेना इतना आसान नहीं ,जितनी आसानी से पुराणों में लिख दिया गया है और बात जब महाराजा बलि जैसे प्रतापी सम्राट की हो तो यह और भी कठिन होने में तनिक भी संदेह नहीं ,पुराणों के अनुसार ही सच भी यही है कि महाराजा बलि के सामने एक नहीं ,विष्णु जैसे सैकड़ों विष्णु भी कुछ नहीं थे,तो फिर ये विष्णु किस खेत की मूली थे,लेकिन छल -कपट से तो किसी के भी साथ कुछ भी किया जा सकता है ,विष्णु ने उसी छल कपट के सहारे महाराजा बलि से उनके साम्राज्य का आधार ही मांग लिया था, ज्ञातव्य हो कि शिक्षा ,संपत्ति और सैन्य शक्ति ही एक सम्राट के साम्राज्य का आधार होता है,इन तीनों के बगैर किसी भी राजा का राज्य टिका नहीं रह सकता ,उसका पतन निश्चित है,अथवा इन तीनों यानी शिक्षा ,संपत्ति और शक्ति का भरपूर उपयोग जो भी करेगा , साम्राज्य उसी के अधीन हो जाएगा,चूंकि विष्णु ने षड्यंत्र के द्वारा राजाबलि से उनके साम्राज्य का आधार ही मांग लिया था,उसी आधार को पुराणों में चरम सीमा पर पहुंचा दिया गया, वह इसलिए की राजाबलि के साम्राज्य को तीनों लोकों में माना गया यानी पूरे विश्व में ( पुराणों के अनुसार ) राजा बलि का राज्य था और विश्व का सर्वोच्च आधार पृथ्वी है पुराणों के रचनाकारों ने मूलनिवासी समाज को भ्रमित करने के लिए और विष्णु की महिमामंडित करने के लिए साम्राज्य के तीन आधार की जगह विश्व का आधार ( तीन पग ) पृथ्वी लिख दिया,जबकि विष्णु ने राजाबलि से धोखे से शिक्षा , संपत्ति और शस्त्र से वंचित रहने की वचनबद्धता के तहत स्वीकार करा लिया था, किंतु वह सब कुछ विष्णु को तत्काल मिल जाना संभव नहीं था- महाराजा बलि और उनका वंश-प्रष्ठ-51-52.
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