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भारतीय राजनीति में विचारवाद की जगह परिवारवाद हावी – अजीत सिन्हा

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राजनितिक विश्लेषक व लेखक :अजीत सिन्हा

भारतीय राजनीति में विचारवाद की जगह परिवारवाद हावी – अजीत सिन्हा
बोकारो (झारखण्ड) – राष्ट्रीय अमन महासंघ के सर महासंघ दिग्दर्शक और नेताजी सुभाष सेना के कमांडर – इन – चीफ अजीत सिन्हा ने कहा कि एक समय ऐसा था कि दुनिया की राजनीति में विचारवाद ही चलती थी जिसे लोग समाजवाद, साम्यवाद (लेनिनवाद व मार्क्सवाद), पूंजीवाद इत्यादि ही चलती थी लेकिन आज दुनिया की राजनीति में केवल पूंजीवाद ही हावी है लेकिन अपने भारत में पूंजीवाद ने समाजवाद और परिवारवाद का चोला ओढ़ रखा है जिसको हिन्दुत्ववाद, दलितवाद, आरक्षणवाद, पिछड़ावाद, अति पिछड़ावाद, सवर्णवाद, जातिवाद, नक्सलवाद इत्यादि के टूल द्वारा राजनीतिज्ञ आज अपनी राजनीति की दुकान चलाकर वोटों की गोलबंदी में लगे हुए हैं और या तो वे सत्तासीन हैं या सत्ता प्राप्ति हेतु प्रयासरत।
आज देश में तीन राजनीतिक शक्तियां हैं पहली वे जो सत्तासीन हैं जिस पर भाजपा काबिज है और दूसरी विपक्षियों में से एक कॉंग्रेस जो देश पर अनवरत 70 सालों तक राज की है और आज प्रमुख विपक्षी लेकिन कमजोर विपक्ष की भूमिका में है और तीसरी वे जो लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी के सम्पूर्ण क्रांति से निकली है जिसमें सपा, बसपा, राज़द, जेडी (यू) और दक्षिणी भारत के क्षेत्रीय दल। लेकिन यहां पर यह भी विदित हो कि भाजपा भी लोकनायक जय प्रकाश नारायण जी की संपूर्ण क्रांति की देन है लेकिन आज कल देखने को यह मिल रही है

सत्तासीन भाजपा, प्रमुख विपक्षी दल कॉंग्रेस के साथ कमोबेश सभी दलों में परिवारवाद ही हावी है।
कतिपय मिली आजादी के बाद से ही हिन्दुओं के भेष में छिपे मुगल के वंशज महात्मा गांधी का सहारा लेकर और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हत्या कर रास्ते से हटाकर भारत की सत्ता पर कॉंग्रेस के माध्यम से काबिज हुई लेकिन पंडित नेहरू के दिवंगत होने के पश्चात् भारतीय राजनीति में गुदड़ी के लाल लाल बहादुर शास्त्री  के सत्ता पर काबिज होने के बाद भारतीय राजनीति सुनहरी दौर में थी लेकिन उनको भी ताशकंद में मरवाकर पंडित नेहरू की सुपुत्री पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी सत्ता पर काबिज हो गईं जिन्होंने राजनीति की लंबी पारी को खेला लेकिन इसी बीच लोकनायक जय प्रकाश नारायण  सम्पूर्ण क्रांति की बिगुल को फुंककर कॉंग्रेस को सत्ताच्युत किया और जनता पार्टी सत्ता में आई लेकिन जय प्रकाश नारायण  द्वारा स्वयं सत्ता की बागडोर नहीं सम्हालने की वज़ह से जनता पार्टी ज्यादा दिनों तक सत्तासीन नहीं रह पाई और फिर श्रीमती गांधी फिर से सत्तासीन हुईं लेकिन इसी बीच जनता पार्टी के धराशायी हो जाने से कई पार्टियों की अभ्युदय हुई जिसमें जनसंघ से भाजपा निकली जो कि आज सत्तासीन है और साथ में जनता दल बनी जो कई हिस्सों में टूटकर जद (यू), राज़द और दक्षिण भारत में कई नामों से कई पार्टियां बनी।

भाजपा के तब का नारा पूर्ण हिन्दुत्ववाद से लबरेज था जिसकी कमान लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अटल बिहारी वाजपेयी इत्यादि जैसे वरिष्ठ नेताओं के हाथ में थी लेकिन इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति वोट प्राप्ति की वज़ह से पुनः सत्ता प्राप्ति की कमान उनके पुत्र राजीव गांधी जी के हाथो में आ गई और फिर से एकबार कॉंग्रेस सत्तासीन हुई और इस तरह से कॉंग्रेस में परिवारवाद का खेल चलता गया लेकिन दुर्भाग्य से राजीव गांधी जी की भी हत्या हो गई। उसके बाद उनकी पत्नी श्रीमती सोनिया के कमान के अंतर्गत मनमोहन सिंह  पहले सिख समुदाय से आने वाले प्रधानमंत्री बनें लेकिन सत्ता की चाभी परिवारवाद की पोषक काँग्रेस के पास ही रही इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी जो कम समय तक ही चली लेकिन कभी दो सीटों से अपनी नींव रखने वाली भाजपा आज दुनिया की सबसे शक्तिशाली पार्टी है जिसकी कमान वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी  के हाथ में है लेकिन चूकी इसकी शीर्ष नेतृत्व परिवारवादी नहीं है इसलिए यह परिवारवादी पार्टी नहीं कहलाती है लेकिन इसके अन्दर कई परिवारों के सुपुत्र – सुपुत्री राजनीतिक लाभ ले रहे हैं इसलिये यह पार्टी भी परिवारवाद से अछूती नहीं है। यदि क्षेत्रीय दलों की बात की जाए समाजवादी पार्टी में स्वर्गीय मुलायम सिंह यादव के पुत्र अखिलेश सिंह यादव, बसपा में मायावती जी के भतीजे, चौधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह रालोद से, लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव और तेज प्रसाद यादव बिहार में, ममता बनर्जी के भतीजे पश्चिम बंगाल में झारखंड मुक्ति मोर्चा के शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन, भतीजे बसंत सोरेन और इसी तरह दक्षिण भारत में भी राजनीतिज्ञों के सुपुत्र भी, महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे के बेटे उद्धव ठाकरे, भतीजे राज ठाकरे, प्रपौत्र आदित्य ठाकरे इत्यादि भी परिवारवाद के अंग हैं और आज देखने को यह मिल रही है कि पार्टियों में विचारवाद की जगह परिवारवाद हावी है जो कि किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए उचित नहीं है। और सारी परिवारवादी पार्टियाँ पूंजीवादी व्यवस्था की पोषक बन कर रह गई हैं जिनका उद्देश्य धन बल का प्रयोग कर सत्तासीन होने की संभावना बनती और बिगड़ती रहती है। जब सत्ता पूंजीपतियों की रखैल बन जाये तो यह किसी भी देश की राजनीति के लिए शुभ संकेत नहीं होते हैं क्योंकि उनमें सेवा भाव की जगह अपने धन को दिन दुगना और रात चौगुना करने कोशिश रहती है जिससे लोंगो की भलाई कम और उनका काम ज्यादा होता है क्योंकि उन्होंने पूँजी लगाई होती है।
मेरी समझ से आज देश में चौथी ईमानदार शक्ति के उद्भव की पटकथा को लिखने की आवश्यकता है और जिसका नेतृत्व कर्ता सही मायनों में देश और देश के लोंगो के प्रति ईमानदार हो इसलिये आज मुझे कॉंग्रेस विमुक्तीकरण के साथ भाजपा तथा तीसरी क्षेत्रीय राजनीतिक शक्तियों से मुक्तिकरण की राह राष्ट्र हित में सुझाई दे रही है और इसके लिए राष्ट्र में चौथी राजनीतिक शक्ति के उद्भव की नितांत आवश्यकता है और साथ में पूँजी विहीन चुनाव प्रणाली की आधारशिला भी रखने की तैयारी होनी चाहिये ताकि जब राजनीतिज्ञों या राजनीति पार्टी की पूँजी जब लगेगी ही नहीं तो उसे वसूलने हेतु वे प्रयासरत नहीं होंगे और साथ में राष्ट्र के सच्चे सेवक भी बिना पूँजी के अपने भाग्य को आजमा सकेंगे। जय हिंद Social Media Whatapp News: Mobile No:6202 089 385

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