Pilibhit News:चंदिया हजारा व राहुल नगर समेत 8 गाँव को बाढ़ कटान से बचाने के लिए जिला पंचायत सदस्य रुपेन्द्र कौर और उनके पति मनजीत सिंह ने मंत्री जी को पत्र भेज किया बचाने की मांग
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संवाददाता :: पीलीभीत ::संतोष कुमार मित्रा {C018} :: Published Dt.25.07.2023 :Time:9:25PM :: चंदिया हजारा व राहुल नगर समेत 8 गाँव को बाढ़ कटान से बचाने के लिए जिला पंचायत सदस्य रुपेन्द्र कौर और उनके पति मनजीत सिंह ने मंत्री जी को पत्र भेज बचाने की किया मांग:बहुजन प्रेस -सम्पादक :मुकेश भारती : www. bahujan india 24 news .com
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Pilibhit News । ब्यूरो रिपोर्ट : संतोष कुमार मित्रा । Date : 25 Jully (Month Jully 2023- Pilibhit News Serial: Weak -04::16Days to 22Days: No-7) (Year 2023 News No:33)
चंदिया हजारा व राहुल नगर समेत 8 गाँव को बाढ़ कटान से बचाने के लिए जिला पंचायत सदस्य रुपेन्द्र कौर और उनके पति मनजीत सिंह ने मंत्री जी को पत्र भेज बचाने की किया मांग।
चंदिया हजारा व राहुल नगर समेत 8 गाँव को बाढ़ कटान प्रभावित क्षेत्र है हर साल किसी न किसी गरीब व किसान कटान की मार झेलता है। सामाजिक कार्यकर्ता व जिला पंचायत सदस्य रूपेंद्र कौर और उनके पति कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष राष्ट्रीय लोक दल ने जल शक्ति तथा बाढ़ नियंत्रण के मंत्री उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ को पत्र लिख क्षेत्र की समस्यों से अवगत कराते हुए लिखा कि मेरा जिला पंचायत के पूरनपुर निर्वाचन वार्ड संख्या 9 के अंतर्गत जनपद पीलीभीत की तहसील पूरनपुर के ग्राम चंदिया हजारा में शारदा नदी में इस समय भयंकर उफान और कटान पर है।
जिससे चंदिया हजारा गांव की लगभग 15000 आबादी की पर खतरा उत्पन्न हो गया है। इस गांव को बचाने के लिए 2016 में एक परियोजना बनाई गई थी जो सरकार बदलते ही निधन निरस्त कर दी गई थी यदि शीघ्र से शीघ्र उक्त कटान को रोकने के कोई उपाय नहीं किए गए तो 15000 की आबादी का वजूद खत्म हो जाएगा। शारदा नदी में पानी खतरे के निशान से ऊपर आ चुका है जिस कारण क्षेत्र में कटान जारी है।
साथ ही मजदूर बस्ती राहुल नगर 4 नंबर ढाका 4 ग्राम पंचायत की 8 कालोनियों की लगभग 50000 आबादी भी इस कटान की तबाही से प्रभावित होगी वर्तमान समय में किसानों की गणना की खड़ी फसल को कटाने अपने आगोश में ले लिया है अपने आगोश में ले लिया है।
जिससे किसानों में और निराशा व्याप्त है उक्त गांवों को तबाही से बचाने के लिए कटान को रोकने हेतु समुचित उपाय किया जाना जनहित में अति आवश्यक है।
जिला पंचायत सदस्य रुपेन्द्र कौर और उनके पति मनजीत सिंह ने जल शक्ति तथा बाढ़ नियंत्रण के मंत्री उत्तर प्रदेश शासन लखनऊ ने अनुरोध है कि उक्त गन्ना किसानों के नुकसान का सर्वे कराकर उचित मुआवजा तथा उक्त गांव की आबादी को तबाह होने से बचाने के लिए तत्काल आवश्यक कदम उठाने की आवश्यक्ता है ।
रूपेंद्र और जिला पंचायत पीलीभीत उपेंद्र कौर पत्नी मनजीत सिंह जिला पंचायत सदस्य जिला पंचायत वार्ड नंबर 1 पूरनपुर जनपद पीलीभीत कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष राष्ट्रीय लोक दल उत्तर प्रदेश मनजीत सिंह:
ब्यूरो रिपोर्ट : संतोष कुमार मित्रा – बहुजन इंडिया 24 न्यूज़ पीलीभीत उत्तर प्रदेश।
सम्पादकीय ::मुकेश भारती {Lucknow} :: Published Dt.25.07.2023 :Time:8:30PM : आज ही के दिन पहली बार भारत के वंचित समाज के व्यक्ति बने थे देश के प्रथम व्यक्ति:बहुजन प्रेस -संपादक: मुकेश भारती :www. Bahujan india 24 news.com
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Lucknow News । ब्यूरो रिपोर्ट :मुकेश भारती ।।Date:25 Jully। (Month Jully 2023)- Lucknow News Serial: Weak -05:: (23 Days to 31 Days)(News No-02) (Year 2023 -News No:12)
आज ही के दिन पहली बार भारत के वंचित समाज के व्यक्ति बने थे देश के प्रथम व्यक्ति।
ऐसे दलित राष्ट्रपति जिन्होंने न्यायाधीशों की नियुक्ति फाईल को यह कहकर वापस कर दिया था कि इसमें एक भी यससी, यसटी , ओबीसी, माईनरिटी के नाम क्यों नहीं हैं ?
महामहिम राष्ट्रपति डॉ० के०आर० नारायणन देश के पहले दलित राष्ट्रपति थे। उनका सम्पूर्ण जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। वे केरल के एक गांव में फूस की झोपड़ी में 1920 में पैदा हुए। उनके पिता आयुर्वेदिक औषधिओं के ज्ञाता थे, इसी से वे अपना परिवार चलाते थे। गरीबी इतनी भयंकर कि 15 किमी. दूर सरकारी स्कूल में पैदल पढ़ने जाते थे। कभी-कभी फीस न होने पर उन्हें कक्षा से बाहर खड़ा होना पड़ता था। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में पढ़ाई की। ज़ब वह भारत लौटे तो उनके प्रोफेसर ने एक पत्र भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल के नाम उन्हें दिया उस पत्र में उनकी प्रतिभा का उल्लेख था। चूंकि उन्होंने तीन वर्ष का कोर्स 2 साल में विशेष योग्यता के साथ पास किया था। ज़ब वह पत्र उन्होंने नेहरू जी को दिया तो नेहरू जी ने उन्हें राजदूत नियुक्त कर दिया। सेवानिवृत होने पर उन्हें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया गया। एक बार वे उप राष्ट्रपति रहे। उसके बाद वे भारत के दसवें एवं पहले दलित राष्ट्रपति बने।
1. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को बिना हस्ताक्षर किये फाइल यह कहते हुए वापस कर दी कि 10 न्यायाधीशों के इस पैनल में एक भी SC/ST/OBC का जज क्यों नहीं है। उनके तेवर देखकर सरकार में हड़कंम मच गया तब जाकर मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालकृष्णन को बनाया गया, जो अनुसूचित जाति के पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। इस व्यवस्था को Sc. St. Obc के लोग भूल नहीं सकते। ये भी केरल के ही थे।
2. दूसरा कड़ा कदम तब उठाया जब वाजपेयी सरकार के सावरकर को भारत रत्न देने के प्रस्ताव को वापस कर दिया !
3. तीसरा कड़ा कदम तब उठाया जब वाजपेयी सरकार के उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया।
ऐसे महामहिम की आज जरूरत है ! ऐसे महान पुरुषों को उत्तर भारत के sc. St. Obc. के लोग जानते तक नहीं !
लोगों द्वारा समाज में यह भ्रम फैलाया गया है कि दलित लोग शिक्षा के लायक नहीं थे, जबकि संविधान सभा में 14 महिलाएं ग्रेजुऐट थी एक sc. की महिला ग्रेजुएट थी। हजारों लोग ब्रिटिश शासन में उच्च शिक्षित थे।
दूसरे महामहिम राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधा कृष्णन जिनके नाम से शिक्षक दिवस मनाया जाता है। वे तथा डॉ केआर नारायणन सभी अंग्रेओं के इंग्लिश माध्यम में पढ़े थे।
#महामहिम राष्ट्रपति डॉ० केआर नारायणन जी ने सन् 1948 में अंग्रेजी साहित्य में प्रथम श्रेणी से एमए पास किया। एमए पास करने के बाद उन्होंने’ महाराजा कालेज में अंग्रेजी प्रवक्ता पद के लिये आवेदन किया। लेकिन त्रावणकोर के दीवान सीपी रामास्वामी अय्यर ने नारायणन जी को प्रवक्ता पद पर काम करने से रोक दिया और कहा कि आपको सिर्फ़ क्लर्क पद पर ही कार्य करना होगा।
अय्यर के मन में जातीय भेदभाव इस क़दर भरा हुआ था कि वह कामगार किसान आदिवासी-कबाइली जमात के किसी भी युवक-युवतियों को प्रवक्ता पद पर आसीन होते सहन नहीं कर सकता था।
स्वाभिमानी डॉ० केआर नारायणन जी ने क्लर्क की नौकरी पर काम करने से साफ-साफ इंकार कर दिया और इसके ठीक बाद में विवि के दीक्षांत समारोह में बीए की डिग्री लेने से भी मना कर दिया।
इस घटना के 4 दशक बाद सन 1992 में उपराष्ट्रपति बनने पर उनके गृह राज्य केरल विवि के उसी सीनेट में उनका जोरदार स्वागत हुआ।
उस वक़्त की तत्कालीन जातिवादियों पर तंज कसते हुए नारायणन जी ने कहा “आज मुझे उन जातिवादियों के दर्शन नहीं हो रहे हैं’, जिन्होंने वंचित जमात का सदस्य होने के कारण इसी विवि में मुझे प्रवक्ता बनने से वंचित कर दिया था”।
1946 में श्री केआर नारायणन जी दिल्ली में डॉ० बी०आर० अम्बेडकर जी से मिलने आये थे। डॉ० अम्बेडकर जी उस समय के वायसराय की काउंसिल में श्रम विभाग के सदस्य थे। नारायणन जी की योग्यता को देखते हुए डॉ० अम्बेडकर जी ने उन्हें दिल्ली में ही भारत ओवरसीज विभाग (जिसे अब “विदेश विभाग “कहा जाता है) में’ 250 रुपये प्रतिमाह पर सरकारी नौकरी दिलवा दी।
राजनयिक के तौर पर नारायणन जी टोकियो, लंदन, ऑस्ट्रेलिया, हनोई में स्थित भारतीय उच्चायोग में प्रतिष्टित पदों पर रहे और चीन के राजदूत भी नियुक्त हुए। वहाँ से रिटायर होने के बाद सन 1979 से 1980 तक जेएनयू के कुलपति रहे। सन1980 से 1984 तक अमेरिका के राजदूत भी रहे।
श्री के आर नारायणन जी 14 जुलाई 1997 को भारत के दसवें राष्ट्रपति चुने गए।
श्री के आर नारायणन जी ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने वंचित वर्ग के लोगों के लिये’ उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश बनने का रास्ता खोला था।
उच्चतम न्यायालय के तत्कलीन मुख्य न्यायाधीश ए एस आनंद ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के लिये दस न्यायविद उच्च न्यायालयों के कानून विशेषज्ञों का एक पैनल बनाकर मंजूरी के लिये राष्ट्रपति को भेजा था।श्री के आर नारायणन जी ने उस फाइल को स्वीकृति करने की बजाय तल्ख टिप्पणी लिखी-“क्या इन दस व्यक्तियों के पैनल में रखने के लिये उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों में’ भारत में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित वर्ग के अनुसूचित जाति एवं जनजाति का एक भी व्यक्ति योग्य न्यायाधीश नहीं है?”
देश के राष्ट्रपति की इस टिप्पणी से सरकार से लेकर न्यायालय में हड़कंप सा मच गया। न्यायिक पदों के लिए देश में वंचितों और आदिवासियों के प्रतिनिधित्त्व पर बहस शुरू हो गई ।
एक समय ऐसा भी आया जब राष्ट्रपति श्री के आर नारायणन जी किसी दौरे पर थे और श्री के आर नारायणन जी को जिस होटल में ठहराया जाना था, उसी दौरान दक्षिण पंथी मनुवाद व मुनीमवाद के पक्षधर लोगों ने होटल के कर्मचारियों से मिलकर श्री के आर नारायणन जी को भोजन में जहर देकर मारने की कोशिश की थी। परन्तु होटल के रसोइयों ने ऐसा करने से मना कर दिया था।
एक राष्ट्रपति की इस बेबाक टिप्पणी ने वंचित जमात के लोगों के लिये सर्वोच्च न्यायालय में प्रवेश का रास्ता खोला गया था। सत्तारूढ़ मनुवाद व मुनीमवाद के अनुसार नहीं चलने के कारण ही श्री के आर नारायणन जी ने दोबारा राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। श्री के आर नारायणन जी वह पहले देश राष्ट्रपति थे जो अनुसूचित वर्ग से थे। जबकि राष्ट्रपति का चुनाव लड़ते समय उन्हें सामान्य श्रेणी में चुनाव लड़ा था।
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा
सम्पादकीय ::मुकेश भारती {Lucknow} :: Published Dt.25.07.2023 :Time:8:30PM : वीरांगना बहन के नाम से मशहूर फूलन देवी एक विद्रोही और जाबांज महिला के साथ साथ भारतीय संसद की सदस्य जिसकी हत्या एक षणयंत्र:बहुजन प्रेस -संपादक: मुकेश भारती :www. Bahujan india 24 news.com
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Lucknow News । ब्यूरो रिपोर्ट :मुकेश भारती ।।Date:25 Jully। (Month Jully 2023)- Lucknow News Serial: Weak -05:: (23 Days to 31 Days)(News No-03) (Year 2023 -News No:13)
वीरांगना बहन के नाम से मशहूर फूलन देवी एक विद्रोही और जाबांज महिला के साथ साथ भारतीय संसद की सदस्य जिसकी हत्या एक षणयंत्र
Phoolan Devi: फूलन देवी का जन्म उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन ज़िले में स्थित एक नगर और नगरपालिका है। जिसका प्रशासनिक मुख्यालय उरई में स्थित है। वीरांगना बहन के नाम से मशहूर फूलन देवी (1963-2001) एक विद्रोही और जाबांज महिला के रूप में जानी जाती थी। जिनकी हत्या से पहले भारतीय संसद की सदस्य बनीं। फूलन देवी एक मल्लाह विरादरी की महिला थी।
फूलन देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को भारत के उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के गोरहा का पुरवा गाँव में हुआ था । यह भूमि घाटियों और खड्डों से भरी हुई है, जो इसे डकैतों (डाकुओं) के लिए स्वतंत्र रूप से घूमने के लिए उपयुक्त बनाती है, और इसे यमुना और चंबल नदियों द्वारा पार किया जाता है। उनका परिवार गरीब था और मल्लाह मछुआरा उपजाति से था, जो भारत में हिंदू जाति व्यवस्था के निचले भाग में स्थित है , मल्लाह शूद्र वर्ण के थे । फूलन देवी का परिवार ईंधन के रूप में जलाने के लिए गोबर के उपले इकट्ठा करके और चना , सूरजमुखी और बाजरा उगाकर जीवित रहा ।
फूलन देवी की माँ नाम मूला था। फूलन देवी की चार बहनें और एक भाई था; उनके पिता देवीदीन का एक भाई था, जिनका मइयादीन नाम का एक बेटा था। फूलन देवी के चाचा और उनके बेटे (उनके चचेरे भाई) ने भूमि रिकॉर्ड बदलने के लिए गांव के नेता को रिश्वत देकर उनके पिता से जमीन छीन ली। उसका परिवार गाँव के किनारे एक छोटे से घर में रहने को मजबूर था; चाचा और बेटे ने परिवार को परेशान करना और उनकी फसलें चुराना जारी रखा, जिसका उद्देश्य उन्हें गांव से भगाना था। 10 साल की उम्र में फूलन देवी ने विवादित जमीन पर जाकर अन्याय का विरोध करने का फैसला किया. वह अपनी बड़ी बहन रुख्मिणी के साथ एक खेत में बैठी और वहां उगने वाले चने खाए और कहा कि यह फसल उसके परिवार की है। मइयादीन ने उसे जाने का आदेश दिया, और जब वह नहीं गई, तो उसने उसे पीट-पीटकर बेहोश कर दिया; तब गाँव के नेता ने आदेश दिया कि उसके माता-पिता को भी पीटा जाए।
फूलन देवी के माता-पिता ने उनकी शादी तय करने का फैसला किया। उनकी शादी पुत्तीलाल नामक व्यक्ति से हुई थी, जिन्होंने दहेज के रूप में Rs 100, एक गाय और एक साइकिल की पेशकश की थी । सेन द्वारा संबंधित संस्करण के अनुसार यह सहमति हुई थी कि फूलन देवी तीन साल बीतने के बाद उनके साथ रहेंगी, लेकिन तीन महीने से भी कम समय के बाद पुत्तीलाल वापस आए और उन्हें अपने साथ ले गए। 44-45 वह उसकी उम्र से तीन गुना बड़ा था; उसने उसकी यौन इच्छा को अस्वीकार कर दिया और बाद में बीमार हो गई। जब उसके माता-पिता आए और उसे इकट्ठा किया, तो वे उसे एक डॉक्टर के पास ले गए, जिसने खसरे का निदान किया ।जो उत्तर प्रदेश राज्य के जालौन के एक गाँव में गरीबी में पली-बढ़ी थी , जहाँ उसका परिवार एक भूमि विवाद में हार गया था, जिससे उन्हें कई समस्याएँ हुईं। क्षत्रियों द्वारा बार-बार यौन शोषण का शिकार होने और ग्यारह साल की उम्र में शादी हो जाने के बाद, वह एक बाग़ी समूह में शामिल हो गईं और कम समय में अपनी पहचान बनाकर उसकी नेता बन गईं। उसके समूह ने उच्च जाति के गांवों को लूटा और ट्रेनों और वाहनों को रोक दिया। वह रॉबिनहुड होने के कारण निचली जातियों की नायिका बन गईं। वह पहली महिला शख्स थी जिसने अपने बलात्कारियों को सज़ा स्वंम दी और अधिकारियों की पकड़ से बची रही । ऐसे बहादुर बेटी के जज्बे को बारम्बार प्रणाम।
फूलन देवी पर 1981 के बेहमई नरसंहार के लिए उनकी अनुपस्थिति में आरोप लगाया गया था , जिसमें कथित तौर पर उनके आदेश पर बीस ठाकुर लोगों को मार डाला गया था। बाद में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दे दिया और देवी को पकड़ने की मांग तेज हो गई। दो साल बाद सावधानीपूर्वक बातचीत के बाद उसने आत्मसमर्पण कर दिया और मुकदमे का सामना किए बिना, ग्यारह साल ग्वालियर जेल में बिताए।
1994 में आरोप खारिज होने के बाद फूलन देवी को रिहा कर दिया गया, फिर वह एक भारतीय राजनेता बन गईं, 1996 में समाजवादी पार्टी के लिए संसद सदस्य के रूप में खड़ी हुईं। उन्होंने 1998 में अपनी सीट खो दी और अगले वर्ष इसे वापस हासिल कर लिया; 2001 में उनकी मृत्यु के समय वह पदधारी थीं।
फूलन देवी की हत्या और साजिश : शेर सिंह राणा द्वारा उनके घर के बाहर उनकी हत्या कर दी गई थी, जिन्हें अंततः 2014 में हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। उनकी मृत्यु के समय, वह अभी भी बहाल आपराधिक आरोपों के खिलाफ लड़ रही थीं। 1994 की विवादास्पद फिल्म बैंडिट क्वीन की रिलीज के बाद फूलन देवी की दुनिया भर में प्रसिद्धि बढ़ गई , जिसने उनके जीवन की कहानी को उस तरह से बताया जिसे वह खुद स्वीकार नहीं करती थीं। उनके जीवन ने कई जीवनियों को भी प्रेरित किया है, और उनकी निर्देशित आत्मकथा का शीर्षक थामैं, फूलन देवी . उसके जीवन के अलग-अलग वृत्तांत हैं क्योंकि उसने अपनी कहानी अलग-अलग तरीकों से बताई है।
संवाददाता :: पीलीभीत ::संतोष कुमार मित्रा {C018} :: Published Dt.25.07.2023 :Time:9:25PM ::शारदा नदी के निशाने पर चंदिया हजारा में खेतों व जंगल के कटान का कहर है जारी कटान पीड़ितों की जनप्रतिनिधियों ने भी नहीं ली सुध :बहुजन प्रेस -सम्पादक :मुकेश भारती : www. bahujan india 24 news .com
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Pilibhit News । ब्यूरो रिपोर्ट : संतोष कुमार मित्रा । Date : 25 Jully (Month Jully 2023- Pilibhit News Serial: Weak -04::16Days to 22Days: No-5) (Year 2023 News No:31)
ट्रांश शारदा क्षेत्र के कई गाँव शारदा नदी के निशाने पर चंदिया हजारा में खेतों व जंगल के कटान का कहर है जारी कटान पीड़ितों की जनप्रतिनिधियों ने भी नहीं ली सुध:जिला- संवाद दाता-संतोष कुमार मित्रा।
जिला-पीलीभीत:हजारा , पूरनपुर ट्रांश शारदा क्षेत्र के कई गाँव शारदा नदी के निशाने पर जो अपना अस्तित्व खोने के कगार पर हैं । वहीं नदी अपना कहर बरपाती हुई खेतों में खड़ी फसलों समेत पेड़ों को लील रही है। जिससे ग्रामीणों में हड़कंप मचा हुआ है। शारदा नदी कटान की तबाही से ग्रामीणों व गांवों का अस्तित्व खतरे में दिखाई दे रहा है।
तहसील पूरनपुर से लगभग 15 किलोमीटर दूर चंदिया हजारा में शारदा नदी का कटान निरंतर जारी है। शारदा नदी ट्रांस क्षेत्र के दर्जनों गांवों समेत हजारों एकड़ कृषि योग्य भूमि को अपनी आगोश में समा लिया ! शारदा नदी ने 1990 से ट्रांस शारदा क्षेत्र के क्षेत्रवासी नदी किनारे तटबंध बनवाने की मांग करते चले आ रहे हैं लेकिन किसी जनप्रतिनिधि या सरकारी तंत्र ने इस मांग पर कोई गौर नहीं किया। तटबंध की मांग को अनदेखा करने का नतीजा यह रहा कि एक के बाद एक गांव को निशाना बनाते हुए क्षेत्र के दर्जनों गांवों का वजूद खत्म हो गया है। चंदिया हजारा को अपने निशाने पर लेकर शारदा नदी ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया है। शारदा नदी का जलस्तर सामान्य होते ही शारदा ने भू-कटान तेज कर दिया है। जिससे ग्रामीणों की दर्जनों एकड़ भूमि में लगे गन्ना की फसलों समेत जंगल के पेड़ पौधे नदी में समाते जा रहे है। लगातार कटान होने से ग्रामीणों की धड़कने तेज हो गई है। और बेबस नजरों से ग्रामीण अपने खेतों को नदी में समाते देख रहे हैं। कटान की विनाशलीला को देखते हुए ग्रामीण खुद अपनी गृहस्थी बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। कार्य सेवा के जरिये नदी किनारे रस्सियों से पेड़ों की टहनींयों को बांधकर नदी में डाल कर कटान को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन सरकारी तंत्र ने अपनी संवेदनहीनता की सारी हदों को पार कर लिया है। ग्रामीणों ने हमें बताया कि हम लोगों के साथ हो रही विनाशलीला की सुध लेने के लिए शासन प्रशासन का कोई भी जिम्मेदार अधिकारी व कर्मचारी मौके पर नहीं आया। इसके अलावा वो लोग जो चुनाव के दौरान हर मुश्किल घड़ी में साथ देने की बात करते थे वो भी नहीं पहुंचे सुध लेने के लिए। जिससे ग्रामीणों में काफी रोष व्याप्त है। अब प्रश्न उठता है कि शारदा नदी द्वारा विनाशलीला का नंगा नाच हो रहा है तो शासन प्रशासन व जन प्रतिनिधियों का पीड़ितों के प्रति उदासीनता बता रही है कि जनता से उनका वोट और सपोर्ट का ही रिश्ता है बाकी शायद जनता को ऊपर वाले के भरोसे छोड़ दिया गया है ।
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