गांधीजी को किसने मारा , गांधी जयंती और संघ का स्थापना दिवस:Article
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— गांधी जयंती और संघ का स्थापना दिवस
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गांधीजी को किसने मारा…? ये तो सभी जानते हैं कि बापू की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी। गोडसे का ताल्लुक आरएसएस से रहा है, हालांकि संघ से जुड़े लोग ये कहते रहे हैं कि बापू की हत्या से पहले गोडसे ने संघ छोड़ दिया था। लिहाजा, सवाल यही है कि गांधीजी को किसने मारा.. उस गोडसे ने जो संघ छोड़ चुका था या उस गोडसे ने जिसने फांसी पर चढ़ने से पहले जो आखिरी काम किया वो आरएसएस की प्रार्थना को गाना था। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती है। इस साल ये भी अजीब संयोग ही है कि गांधी जयंती के दिन ही विजयादशमी भी है और विजयादशमी को ही संघ की स्थापना हुई थी।

अधिवक्ता एवं लेखक
भोपाल, मप्र
आरएसएस की स्थापना दिवस और गांधी जयंती के एक ही दिन पड़ जाने से अतीत फिर से ताज़ा हो गया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 27 सितंबर सन् 1925 को विजयादशमी के दिन डॉ केशव हेडगेवार ने की थी। कुछ वक्त कांग्रेस से जुड़े रहने के बाद डाॅ हेडगेवार ने वैचारिक मतभेदों के चलते कांग्रेस छोड़ दी और संघ की स्थापना की थी। इस साल 2025 को विजयादशमी के दिन संघ की स्थापना के सौ साल हो रहे हैं। इस साल विजयदशमी के दिन ही गांधी जी जयंती भी है। मोहनदास करमचन्द गांधी जिन्हें हम प्यार से बापू या महात्मा गांधी के नाम से भी पुकारते हैं का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है। गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था। एक अन्य मत के अनुसार स्वामी श्रद्धानन्द ने 1915 में महात्मा की उपाधि दी थी। तीसरा मत ये है कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने 12 अप्रैल 1919 को अपने एक लेख मे उन्हें महात्मा कहकर सम्बोधित किया था। उन्हें बापू के नाम से भी पुकारा जाता है जिसका गुजराती भाषा में मतलब होता है पिता। एक मत के अनुसार गांधीजी को बापू संबोधित करने वाले पहले व्यक्ति उनके साबरमती आश्रम के शिष्य थे। सुभाष चन्द्र बोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आजाद हिन्द फौज के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगीं थीं। हर साल 2 अक्टूबर को उनका जन्मदिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है। 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में गांधीजी की उस समय नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। 37 साल के मराठी ब्राह्मण नाथूराम गोडसे ने जब गांधीजी की हत्या की तो उस वक्त गांधीजी 78 साल के थे। गोडसे के हिंदु महासभा के साथ संबंध थे। गोड़से और उसके सह षड्यंत्रकारी नारायण आप्टे को बाद में केस चलाकर सजा दी गई तथा 15 नवंबर 1949 को इन्हें फांसी दे दी गई।

——– गोडसे…..गांधी और प्रतिबंध ————–
लाल किले से सबसे पहला भाषण 1947 में नहीं बल्कि सन 1948 में दिया गया था। जिस समय ये भाषण दिया गया था उस समय गांधीजी की हत्या के बाद शोक का वातावरण था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उस समय प्रतिबंधित संगठनों में से था और उनके प्रमुख नेता जेल में थे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उस समय अपने भाषण में गांधीजी की हत्या का जिक्र किया था। नाथूराम गोडसे ने अपनी फांसी से पहले, जो आखिरी चीज की थी वो थी आरएसएस की प्रार्थना गाना। हिन्दुत्व को लेकर संघ की मान्यता है कि हिन्दुत्व एक जीवन पद्धति का नाम है। हर वह व्यक्ति जो भारत को अपनी जन्म-भूमि मानता है, मातृ-भूमि व पितृ-भूमि मानता है (अर्थात् जहाँ उसके पूर्वज रहते आये हैं) तथा उसे पुण्य भूमि भी मानता है (अर्थात् जहां उसके देवी देवताओं का वास है) हिन्दू है। संघ की यह भी मान्यता है कि भारत यदि धर्मनिरपेक्ष है तो इसका कारण भी केवल यह है कि यहां हिन्दू बहुमत में हैं। संघ पर लगा एक आरोप ऐसा है जो उसका पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं लेता वो है गोडसे द्वारा बापू की हत्या का। आरएसएस पर पहली बार प्रतिबंध साल 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद लगाया गया था। 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी। उस वक्त ये संदेह था कि गांधीजी की हत्या में संघ की भूमिका थी और गोडसे संघ का सदस्य था। सरकार ने उस पर फरवरी 1948 में प्रतिबंध लगा दिया और संघ सरसंघचालक गोलवलकर को गिरफ्तार कर लिया था। सरकार का कहना था कि आरएसएस को लिखित और प्रकाशित संविधान के तहत काम करना चाहिए, अपनी गतिविधियों को सांस्कृतिक क्षेत्र तक सीमित रखना चाहिए, उसे हिंसा और गोपनीयता को छोड़ना चाहिए और भारत के संविधान और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति निष्ठा व्यक्त करनी चाहिए। इसी दौरान सरदार पटेल और गोलवलकर के बीच कई बार पत्राचार हुआ। एक चिट्ठी में सरदार पटेल ने गोलवलकर को लिखा कि संघ के सभी भाषण सांप्रदायिक जहर से भरे हुए थे और उस जहर के अंतिम परिणाम के रूप में देश को गांधीजी का बलिदान झेलना पड़ा। सरदार पटेल ने ये भी लिखा कि उन्हें खुफिया एजेंसियों ने जानकारी दी कि संघ के लोगों ने गांधीजी की मृत्यु के बाद खुशी मनाई और मिठाइयां बांटीं। बताया तो ये भी जाता है कि एक जांच समिति भी गठित की गई थी जिसने संघ के आरोपों पर अपनी रिपोर्ट दी थी। द आरएसएस-ए मेनेस टू इंडिया में एजी नूरानी ने लिखा है कि 11 जुलाई 1949 को सरकार ने एक विज्ञप्ति के जरिए कहा, आरएसएस नेता द्वारा किए गए संशोधन और दिए गए स्पष्टीकरण के मद्देनजर भारत सरकार इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि आरएसएस संगठन को भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा रखते हुए और गोपनीयता से दूर रहते हुए और हिंसा से दूर रहते हुए राष्ट्रीय ध्वज को मान्यता देते हुए एक लोकतांत्रिक, सांस्कृतिक संगठन के रूप में कार्य करने का अवसर दिया जाना चाहिए। इसी के साथ साल 1948 में लगाया गया प्रतिबंध हटा लिया गया लेकिन आरएसएस का कहना है कि ये प्रतिबंध बिना किसी शर्त के हटाया गया था।
तो क्या संघ और गोलवलकर को बचाने दिया था ऐसा बयान
महात्मा गाँधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को संघ का सदस्य माना जाता रहा है। इस बिना या संदेह के आधार पर संघ को प्रतिबंध भी झेलना पड़ा था। हालांकि, संघ की ओर कहा जाता रहा है कि जब गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की थी तब वे संघ का हिस्सा नहीं थे इसलिए गांधी की हत्या के लिए संघ को दोष देना गलत है। आरएसएस, गांधीजी की हत्या में किसी भी तरह की भूमिका से लगातार इनकार करता रहा है। हालांकि, हत्या के बाद चले मुकदमे में नाथूराम गोडसे ने खुद भी अदालत में कहा था कि वो एक वक्त पर आरएसएस में थे लेकिन फिर वो आरएसएस को छोड़कर हिंदू महासभा में शामिल हो गए थे। गाँधीज असैसिन-द मेकिंग ऑफ नाथूराम गोडसे एंड हिज आइडिया ऑफ इंडिया नाम की किताब लिख चुके धीरेन्द्र के झा के दो सवाल हैं कि गोडसे ने आरएसएस कब छोड़ा और वो हिंदू महासभा में कब शामिल हुए ? झा के अनुसार जो रिकॉर्ड है उसके मुताबिक सन 1938 में गोडसे हैदराबाद में निजाम के इलाके में हुए आंदोलन में हिंदू महासभा के नेता के तौर पर गए, तो अब जब वे हिंदू महासभा के नेता के तौर पर वहां गए तो क्या इसका मतलब ये है कि वो आरएसएस छोड़ चुके थे ? महात्मा गांधी की हत्या के बाद जो रिकॉर्ड आरएसएस के नागपुर के मुख्यालय से जब्त किए गए उनमें ये साक्ष्य मौजूद हैं कि साल 1939 और 1940 में आरएसएस की कई सभाओं में गोडसे की मौजूदगी थी। उन दिनों आरएसएस के कई लोग हिंदू महासभा में भी थे और बहुत से हिंदू महासभा के लोग संघ में थे। साल 1947 में जब बॉम्बे पुलिस ने हिंदू महासभा और आरएसएस के लोगों की लिस्ट तैयार की तो उसने पाया कि ओवरलैपिंग है। नाथूराम ने बौद्धिक कार्यवाह रहते हुए 1944 में हिन्दू महासभा के लिए काम करना शुरू किया था।

नाथूराम गोडसे के भाई और गांधी हत्याकांड में सह अपराधी गोपाल गोडसे जेल से निकलने के बाद ये बात पूरी जिंदगी कहते रहे कि नाथूराम गोडसे ने आरएसएस नहीं छोड़ा था। गोडसे परिवार के लोग बाद में भी ये कहते रहे हैं कि नाथूराम गोडसे अंत तक आरएसएस से जुड़े हुए थे। उन्होंने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि आरएसएस ने नाथूराम गोडसे से दूरी बना ली। गोपाल गोडसे ने 28 जनवरी 1994 को एक इंटरव्यू में कहा था कि हम सभी भाई आरएसएस में थे। नाथूराम, दत्तात्रेय, मैं खुद और गोविंद. आप कह सकते हैं कि हम अपने घर में नहीं, आरएसएस में पले-बढ़े हैं। आरएसएस हमारे लिए परिवार था। नाथूराम आरएसएस में बौद्धिक कार्यवाह बन गए थे। नाथूराम ने अपने बयान में आरएसएस छोड़ने की बात कही थी। उन्होंने यह बयान इसलिए दिया था क्योंकि गोलवलकर और आरएसएस, गांधीजी की हत्या के बाद मुश्किल में फँस जाते, लेकिन नाथूराम ने आरएसएस नहीं छोड़ा था। नाथूराम गोडसे और विनायक दामोदर सावरकर के वंशज सत्याकी गोडसे ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था, नाथूराम जब सांगली में थे तब उन्होंने 1932 में आरएसएस ज्वाइन किया था। वो जब तक जिंदा रहे तब तक संघ के बौद्धिक कार्यवाह रहे। उन्होंने न तो कभी संगठन छोड़ा था और न ही उन्हें निकाला गया था।
हालांकि, इसके विपरीत ये तर्क दिया जाता है कि संघ सदस्यता पर आधारित संगठन नहीं है इसलिए इसमें सदस्यता लेने या इस्तीफा देने की कोई प्रक्रिया है। गोडसे आरएसएस में थे और फांसी पर चढ़ने से पहले जो आखिरी काम किया वो आरएसएस की प्रार्थना को गाना था। गांधी के निजी सचिव रहे प्यारेलाल ने गांधी द लास्ट फेज नामक किताब में लिखा है, आरएसएस के सदस्यों को कुछ स्थानों पर पहले से निर्देश था कि वो शुक्रवार को अच्छी खबर के लिए रेडियो खोलकर रखें. इसके साथ ही कई जगहों पर आरएसएस के सदस्यों ने मिठाई भी बांटी थी। गांधी की हत्या के दो दशक बाद आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गेनाइजर ने 11 जनवरी 1970 के संपादकीय में लिखा था, नेहरू के पाकिस्तान समर्थक होने और गांधी जी के अनशन पर जाने से लोगों में भारी नाराजगी थी। ऐसे में नाथूराम गोडसे लोगों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, गांधी की हत्या जनता के आक्रोश की अभिव्यक्ति थी। दूसरी तरफ, कपूर आयोग की रिपोर्ट में समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और कमलादेवी चटोपाध्याय की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उस बयान का जिक्र है जिसमें इन्होंने कहा था कि गांधी की हत्या के लिए कोई एक व्यक्ति जिम्मेदार नहीं है बल्कि इसके पीछे एक बड़ी साजिश और संगठन है। इस संगठन में इन्होंने आरएसएस, हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग का नाम लिया था। गांधी की हत्या के बाद आरएसएस पर पाबंदी भी लगी। आरएसएस पर यह पाबंदी फरवरी 1948 से जुलाई 1949 तक रही थी। बहरहाल, भारत की आज़ादी में गांधीजी के योगदान को ये कृतज्ञ देश और देशवासी कभी भुला नहीं पाएंगे। बापू हिन्दुस्तानियों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।
-मुस्ताअली बोहरा
अधिवक्ता एवं लेखक
भोपाल, मप्र
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