Mainpuri News:महिलाओं के हित संरक्षण कानून विषय पर विधिक जागरूकता कार्यक्रम का किया आयोजन :Bahujan Press
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संवाददाता :: मैनपुरी::अवनीश कुमार{C016} :: Published Dt.28.07.2023 :Time:9:10PM : महिलाओं के हित संरक्षण कानून विषय पर विधिक जागरूकता कार्यक्रम का किया आयोजन :बहुजन प्रेस -संपादक : मुकेश भारती :www. bahujan india 24 news.com
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Mainpuri News ।ब्यूरो रिपोर्ट :अवनीश कुमार।News Date:28Jully (Month Jully 2023- Mainpuri News Serial: Weak -05)::(From 23Days to 31Days)::(Month Jully-News No:56):: (Year 2023 -News No;186)
महिलाओं के हित संरक्षण कानून विषय पर विधिक जागरूकता कार्यक्रम का किया आयोजन
मैनपुरी – राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण व राष्ट्रीय महिला आयोग के सहयोग से उ.प्र. राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देशानुसार, जनपद न्यायाधीश, अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के आदेशानुसार आज तहसील भोगांव के ब्लाक-जागीर में महिलाओं के हित संरक्षण कानून विषय पर विधिक जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया, उक्त जागरूकता कार्यक्रम में न्यायिक अधिकारी जितेन्द्र मिश्रा, अपर सत्र न्यायाधीश (पॉक्सो) द्वारा बच्चों का लैंगिक अपराधों से संरक्षण अधिनियम (पॉक्सा), 2012 के अंतर्गत उपस्थित महिलाओं को बताया गया कि इस कानून में 18 वर्ष तक आयु के सभी बच्चों को सरंक्षण प्रदान किया गया है, इसमें बच्चों के लैंगिग शोषण, लैंगिग हमला, अश्लील फिल्में बनाने में बच्चों का प्रयोग, बच्चों से सम्बन्धित अश्लील सामग्री रखना आदि को अपराध माना गया है। इसके अतिरिक्त इस अधिनियम में पीडित बच्चे के नाम का प्रकाशन, अपराध की जानकारी होने पर कोई कार्यवाही न करना तथा झूठी शिकायत करना भी अपराध है। इस अधिनियम में बच्चों के लैंगिग शोषण को गंभीर अपराध माना गया है और आजीवन कारावास तक के दण्ड का प्राविधान किया गया है।
नम्रता सिंह, सिविल जज (प्र0व0)/प्रभारी सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा बताया गया कि विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 12 के अन्तर्गत महिलाएं निःशुल्क विधिक सेवा हेतु पात्र व्यक्ति हैं। अतः निःशुल्क विधिक सेवा हेतु पात्रता के लिए मात्र महिला होना ही पर्याप्त है उनके लिए आय एवं आर्थिक दुर्बलता का कोई मानक नहीं है। श्रयांश निरंजन, न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा बताया गया कि गिरफ्तारी से पूर्व यदि किसी महिला को पुलिस द्वारा पूछताछ के लिये बुलाया जाता है तो उसे विधिक सेवा संस्थानों से विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है। महिला को गिरफ्तारी के समय अपने अधिवक्ता से राय प्राप्त करने गिरफ्तारी का कारण जानने, चिकित्सीय परीक्षण का अपने रिश्तेदारों को सूचित करने का अधिकार है। महिलाओं का घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम-2005 के अंतर्गत बताया गया कि इस अधिनियम में पीडिता को न्यायालय से संरक्षण आदेश, साझा मकान में रहने का आदेश, पीडिता को बेदखल न करने आदेश, चिकित्सीय व्यय भरण-प्राप्त करने का आदेश तथा बच्चों की देख-रेख का आदेश प्राप्त किया जा सकता है। इस अधिनियम में न्यायालय को अंतरित अनुतोष एवं एक पक्षीय आदेश प्रदान करने का अधिकार भी होता है।
रिसोर्स परसन रीता नैय्यर दीवानी अधिवक्ता द्वारा बताया गया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता धारा-125 के अतर्गत पत्नी को अपने पति से भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार प्रदान करती है। इस धारा में तलाक शुदा, पत्नी भी भरण-पोषण पा सकती है, यदि उसने पुनर्विवाह नहीं किया है। दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के अंतर्गत बलात्कार की पीडिता के चिकित्सीय परीक्षण का प्रावधान करती है। इस धारा के अंतर्गत यह भी प्रावधान है कि यदि सरकारी डाक्टर उपलब्ध नहीं है तो किसी भी पंजीकृत चिकित्सक से 24 घण्टे के अन्दर चिकित्सीय परीक्षण कराया जाये। डॉ. ज्योति तोमर व डॉ. सपना चौहान द्वारा सर्वाइकल कैंसर के सम्बन्ध में बताया गया कि भारत में सर्वाइकल कैंसर, स्तन कैंसर के बाद महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है। महिलाओं में इसके लगभग 30 वर्ष 50 वर्ष के मध्य तक होने की सम्भावना होती है, यह इलाज योग्य है, लेकिन अधिकांश महिलायें इसके बारे में अनजान हैं। इसी अनजानेपन को दूर करने हेतु इस जागरूकता शिविर का आयोजन किया गया है। सर्वाइकल कैंसर के लक्षणों में पैर में सूजन होना, संभोग के दौरान दर्द महसूस होना, अनियमित पीरियड्स आना, ज्यादा रक्तस्राव होना, यूरिन पास करने में परेशानी होना, पेल्विक दर्द जो पीरियड्स से जुडा नहीं होता, किडनी फेलियर, वनज कम हो जाना, भूख में कमी, बेवजह थकान लगना, हड्डियों में दर्द होना आदि। सर्वाइकल कैंसर गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर है, यह तब होता है जब गर्भाशय ग्रीवा की कोशिकायें असामान्य रूप से विकसित होती हैं जो निचले गर्भाशय की गर्दन या संकीर्ण हिस्सा में होती है। यह एक वायरस जनित रोग है। यह ह्यूमन पपिल्लोमाविरू नाम वायरस या एच-पी-वी से फैलता है। सर्वाइकल कैंसर के शुरूआती चरण में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। इसकी पहचान में अनियमित एवं अत्यधिक रक्त स्राव, पेशाब के दौरान दर्द, मासिक धर्म चक्र में अनियमितता, रजोनिवृत्ति के बाद और पैल्विक परीक्षा के बीच होने वाली रक्तसा्रव, अस्पष्टीकृत दर्द, भारी असामान्य पानी का निर्वहन, जो गंदा महकदार जैसा हो सकता है। लीगल एडवाइजर, सीमा रानी द्वारा बताया गया कि भारत में कन्या भ्रूण हत्या रोकने एवं गिरते हुए लिंगानुपात को रोकने के लिए संसद ने यह अधिनयिम बनाया है। इस अधिनियम के तहत जन्म से पूर्व शिशु के लिंग की जांच कराना अपराध है, जिसके लिए 05 वर्ष तक के कारावास एवं 50,000/-रू0 तक के अर्थदण्ड का प्रावधान है। इस प्रकार भी जांच करने के विज्ञापन पर भी प्रतिबन्ध है जिसका उल्लंघन करने पर तीन वर्ष तक के कारावास का प्रावधान है।
इस अवसर पर न्यायिक अधिकारी, जितेन्द्र मिश्रा, अपर सत्र न्यायाधीश (पॉक्सो), नम्रता सिंह, सिविल जज (प्र.व.), प्रभारी सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, तथा श्रयांश निरंजन, न्यायिक मजिस्ट्रेट, एवं नीरज दुबे तहसीलदार, भोगांव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के देवेन्द्र सिंह पाल, अरूण कुमार, रामरतन सिंह, मिताली, मीरा देवी आदि उपस्थित रहे।
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