Bahujan Mission News:गर्व से कहो हम शूद्र हैं: Sudhra- Bahujan Press – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

Bahujan Mission News:गर्व से कहो हम शूद्र हैं: Sudhra- Bahujan Press

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Writer & bahujan Chintak-Sudhra Shivshankar Singh

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सम्पादकीय ::मुकेश भारती  {Lucknow Office} :: Published Dt.03.08.2023 :Time:7:30PM : गर्व से कहो हम शूद्र हैं :बहुजन प्रेस -संपादक: मुकेश भारती :www. Bahujan india 24 news.com


Mukesh Bharti
Editor- Mukesh Bharti: Bahujan India 24 News

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Lucknow News ।  ब्यूरो रिपोर्ट :मुकेश भारती ।।Date:03 August। (Month August 2023)- Lucknow News Serial: Weak -01:: (01 Days to 07 Days)(Month August-News No-15) (Year 2023 -News No:25)


Bahujan News।गर्व से कहो हम शूद्र हैं तुम्हें, मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं?
संसोधित, दिनांक 18-03-2023:मिशन -गर्व से कहो हम शूद्र हैं, पिछले सात सालों से कुछ लोगों के विरोध प्रतिरोध को झेलते हुए सफलता पूर्वक आगे बढ़ रहा था। अभी फिलहाल एक राजनीतिक पार्टी के समाजवादियों ने इसे मुद्दा बना दिया, तब से मानों देश में भूचाल आ गया है, थोड़े समय में मिशन की सफलताओं के देखते हुए, यह लग भी रहा था कि, आज नहीं तो कल, यह मिशन एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा ज़रूर बनेगा। छोटे तौर पर कुछ लोग इसे आजमा भी रहे थे। राजनीतिक पार्टियों को यह संवैधानिक अधिकार भी है कि, वह किसी सामाजिक मुद्दे को लेकर अपनी बात जनमानस के सामने प्रस्तुत करें। यहां सवाल यह खड़ा हो गया है कि, इस मुद्दे पर कुछेक लोगों को मिर्ची क्यों लग रही है?


Social Media News:।W-bahujan samajwadi sangh।Writer-Sudra Shiv Shankar Singh:तुम्हें, मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं?


Writer & bahujan Chintak-Sudhra Shivshankar Singh

यह सत्य है कि, इस देश में हजारों साल से कुछ शातिर स्वार्थी चालाक लोगों ने एक ऐसी अमानवीय वर्ण व्यवस्था बनाई, जिसमें ब्राह्मणों ने अपने आप को सबसे पवित्र और उच्च बना लिया और एक बहुसंख्यक समाज शूद्र को सबसे नींच, दुष्ट और पापी बना दिया। यही नहीं अपने लिए बैठे बैठाए, हलुआ पूरी खाने, ऐयासी करने और खुद को सुरक्षित रखने के लिए, वैश्य और क्षत्रिय वर्ण को अपना गुलाम बनाकर, मनुस्मृति जैसे कानून को कड़ाई से उन्हीं से लागू भी करवाया।
षष्ट ब्राह्मण: उच्चतम:शष्ट क्षत्रिया:
(6 साल का ब्राह्मण, 60 साल के क्षत्रिय से उच्च है)
न्यूटन्स ला भी कहता है कि, हर क्रिया के विपरित और बराबर प्रतिक्रिया होती है। इसी नियम के अनुसार अपने आप को इतना उच्च बनाते चले गए कि तथाकथित भगवान भी शर्मिंदा होने लगे और ठीक उसी के विपरित एक वर्ग को इतना नींच बनाते चले गए कि मानवता और इंसानियत को भी शर्मशार कर दिया। निर्लज्जता इतनी कि, अपने कुकर्मों और अपराधों को छिपाने के लिए, इसे पुनर्जन्म का फल, भाग्य और भगवान द्वारा दिया गया पुन्य बता दिया और शूद्र अज्ञानता में इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। यही नहीं, शूद्र, भाग्य और भगवान की दी हुई नीति और नीयत को अपने ब्लड के हार्मोन्स में भी घुसा लिया, जो एक जनेटिक ऊंचनीच-छुआछूत की बिमारी का शक्ल ले लिया है। इस बिमारी को पर्मानेंट टिकाऊ और सुरक्षित बनाए रखने के लिए, कुछ देवी-देवता, भगवान आदि दलाल पैदा किये गये, जो इन्सानों को देखने मात्र से अपवित्र होते हैं और इन दलालों को हिन्दू धर्म की आत्मा, आस्था, श्रद्धा, परम्परा से जोड़ दिया गया है। जो आए दिन छोटी छोटी बातों पर कुछ अंधभक्तों की आस्था आहत होती रहती हैं।
पिछले कई दशकों से इस बिमारी से निजात दिलाने के लिए बहुत से महापुरुषों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया है। बहुतों को तो रास्ते से हटा भी दिया गया। मुगलों मुसलमानों और फिर अंग्रेजों ने इस बिमारी को कुछ हद तक दूर किया। इसी पिरियड में संत रविदास, कबीर, फुले, शाहू, पेरियार आदि महापुरुषों ने इसके खिलाफ जबरदस्त आवाज उठाई।
इस बिमारी से संक्रमित (शूद्र) होते हुए भी, अंग्रेजों से दवा लेते हुए, बाबा साहेब ने इस बिमारी से मुक्ति दिलाने में अपनी पूरी जिंदगी लगा दिया। यहां तक कि स्वतंत्र भारत में मनुस्मृति को नकारते हुए, संविधान के माध्यम से समाप्त करने की कोशिश भी की। अबतक समाप्त भी हो जाना चाहिए था।


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लेकिन 72 सालों के बाद भी यह बिमारी खत्म होने के बजाय, आप के सामने कयी बदले विभत्स रूपों में मुंह बाए खड़ी है।
आखिर क्यों? कब तक? सभी तथाकथित बुद्धिजीवी समझते, महसूस करते, यह कहते भी मिल जाएंगे कि, आज के वैज्ञानिक युग में, यह सब बकवास है, ग़लत है, अमानवीय है, फिर सवाल उठना लाजिमी है कि, क्यों इसे चलाया जा रहा है?और कौन चला रहा है ? इससे किसका फायदा हो रहा है? और किसका नुकसान?
यही नहीं किधर भी जाओ? विद्वान बन जाओ, नाम बदल लो, जाती बदल लो, दूसरा नाम जैसे, बहुजन, दलित, मूलनिवासी, आदिवासी आदि बना लो, या बन जाओ, तब भी यह बिमारी पीछे पीछे लगी रहती है। यहां तक कि धर्म बदलने पर भी कोई विशेष फायदा नहीं हो रहा है। पता नहीं यह कैसी बिमारी है कि विदेश जाने पर भी यह पीछा नहीं छोड़ती है।
कारण और उसका निवारण:
यदि सदियों से कोई जनेटिक बिमारी चली आ रही है, यदि उसे पर्मानेंट दूर करना है तो उसके कारण का पता लगाना और फिर उसके निवारण पर काम करना होगा।
कयी सालों के अथक परिश्रम, अध्ययन और रिसर्च से इस बिमारी का कारण ब्राह्मणी उच्चता का वायरस जो करीब करीब सभी भारतीय जनमानस को अपनी चपेट में ले लिया है, जिसे खत्म किए बिना इस बिमारी से निजात पाना मुश्किल है।
इस बिमारी के निदान की दवा भी खोज ली गई है। ब्राह्मणी उच्चता के वायरस को, इसके विपरीत और बराबर शूद्रीय उच्चता के वायरस से ख़त्म करने का पुख्ता और प्रमाणिक दवा मिल भी चुकी है।
पिछले सात सालों से बिमारी की गंभीरता को देखते हुए दवा की संतुलित डोज गर्व से कहो हम शूद्र हैं बराबर दी जा रही थी, रिजल्ट भी सही आ रहे थे। लेकिन अभी अभी पिछले सप्ताह में कुछ समाजवादी लोगों ने सामुहिक रूप से दवा की डोज इतनी बढ़ा दिया कि, बहुत से लोगों को अपच होने के कारण दस्त और उल्टियां शुरू हो गई है। लेकिन उम्मीद है, धीरे धीरे वह भी कंट्रोल में हो जाएगी।
कारण क्या है?
1)- ब्राह्मणों ने अपने को उच्च बनाने की होड़ में सभी मानवीय मूल्यों को ताक पर रखते हुए, शूद्र को अकारण (जो वर्ण पैदाइशी, इन्जीनियर, आविष्कारक, प्रोडक्शनकर्ता रहा है) इतना नींच बना दिया कि, उस नाम से ही लोगों में घृणा पैदा हो गई है।
2)- इस दिमागी घृणा रूपी तिरस्कार के कारण, अहंकार में अपने को उच्च बनाने या ब्राह्मणवादी बनने की मानसिकता जनमानस में पैदा होने लगी। घृणा इतनी पैदा कर दी गई कि खुद शूद्र भी इस नाम से घृणा करने लगा, जो एक मानसिक बिमारी का रूप ले लिया है।
3)- कुछ लोग तो भाज्ञ और भगवान द्वारा दी गई, कभी न ख़त्म होने वाली लाइलाज बिमारी समझकर, उससे समझौता करते हुए, उसके साथ ही जीने-मरने की नियति बना लिया है।
4)- स्वाभाविक है दवा की डोज बढ़ाने पर रिएक्सन पैदा होता ही है।
रिएक्सन क्या, कैसे और क्यों पैदा हो रही है?
1)- प्रश्न उठाते हैं? शूद्र अब कहां कोई है?
उत्तर- शूद्र समाज अहंकार में जातियों में अपने-आप से उच्च बनते और बनाते धीरे धीरे शूद्र वर्ण को ही समाज से व्यावहारिक रूप से लापता कर दिया था, इसलिए अब कोई शूद्र बनने को तैयार नहीं है। शूद्र की सभी जातियां गर्व से चाहिए, लेकिन सभी जातियों का बाप शूद्र नहीं?
2)- प्रश्न- शूद्र संविधान सम्मत नहीं है?
उत्तर- आप लोग कुछ हद तक अज्ञानता में सही कह रहे हैं, लेकिन संविधान ने तो, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य को जनरल कहा है, शूद्र को तीन भागों में बांटा गया है, पिछड़ी जाति, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति, यहां सामाजिक रहन-सहन और व्यवहार में एक परसेंट भी भारतीय संविधान लागू नहीं है। इस विषय पर पढ़ें लिखे विद्वान भी चुप्पी साध लेते हैं। क्या दलित, बहुजन, मूलनिवासी संविधान सम्मत है? अरे शूद्र का विरोध करने वाले मुर्खाधिराजो! 72 सालों से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों की करीब 6000 जातियों का नाम, तुम्हारे पैदा होते ही तुम्हारी जन्मकुंडली में कैैसे लग जाता है? फिर स्कूल सर्टिफिकेट में, नौकरी में कैसे दर्ज हो जाती है। रिजर्वेशन लेने के लिए पढ़ाई, नौकरी आदि मौकों पर सभी लोग, इन जातियों के पीछे संविधान सम्मत होने के कारण ही भागते रहते हो। सभी जातियों की अलग अलग संस्था बनाकर उन्हें गौरवान्वित क्यों करते रहते हो? जब कि शूद्र इन सभी जातियों का बाप है। विचित्र मूर्खता के साथ विडंबना भी है कि, बेटे से मोहब्बत और बाप से नफरत क्यों? यहां तक कि शादी बिना जाती का नाम लिए या पूछे बगैर हो ही नहीं सकती है। यह सब क्या है?अरे विरोध करने वालों! पढ़ें लिखे तथाकथित अंधभक्त विद्वानों! शूद्र और शूद्र की जातियां भी संविधान सम्मत है। शूद्रो!, सदियों से ठूंसा गया मनुवादी कचरा जब तक अपने दिमाग से नहीं निकालोगे, तब तक तुम्हें शूद्र मिशन समझ में नहीं आएगा।
3)- प्रश्न- शूद्र ब्राह्मणों द्वारा दी गई गाली है, इससे अपमान महसूस हो रहा है।
उत्तर- क्या हिन्दू गाली नहीं है? सदियों से चांडाल, हलखोर, भंगी, डोम, मुसहर, चमार आदि जातियों का नाम ले- लेकर आप के बाप दादाओं को अपमानित किया गया, इतना जल्दी कैसे भूल गए?, क्या अब इनसे नूर बरसता है? यदि हां, तुमको लगता है कि, शान-शौख से बंगले में रहने से अपने आप से उच्च बन गये हो, तो यह तुम्हारा अहंकार है। नहीं विश्वास है तो एक बार अखिलेश जी से पूछ लो। (भाजपा वाले हम सभी को शूद्र समझते हैं)। इसी तरह धर्म बदलने वाले, नाम बदलने वाले, दलित, बहुजन, मूलनिवासी आदि समझते हैं कि, वे उच्च बन गये है तो, यह उनकी अहंकारी भूल है। अपने आप से, आप, अपने को कुछ भी समझो, लेकिन ब्राह्मण सभी को अपने से नींच ही समझता है। हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था में जब तक ब्राह्मण को उच्च मानते रहेंगे, तब तक आप, ब्राह्मण से नींच ही बनें रहेंगे।
4)- प्रश्न- हम शूद्र नहीं हैं।
उत्तर- इस व्यवस्था के अनुकूल मनुवादियों के साथ चलने वाले, कुछ स्वार्थी, लालची, मौकापरस्त, पेट पालने वाले और राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले आदि लोगों को, इसके विपरीत जाने पर पेट में दर्द होने लगता है।
आजकल शूद्र की सफलता से नफरत करने वाले, एक नया सगुफा सोसल मीडिया में छोड़ दिये है, कि SC&ST शूद्र नहीं है, वर्ण व्यवस्था से बाहर थे। यदि बाहर थे तो विद्या, सम्पत्ति और शस्त्र से बंचित कैसे हुए? जानवर से बद्तर जिन्दगी जीने को मजबूर क्यों हुए? क्योंकि मनुस्मृति का कानून उन पर भी लागू था।
हजार पांच सौ सालों पहले जब आज का आधुनिकीकरण नहीं था तब यही अछूत जातियां जंगलों में जानवरों के चमड़े से, जंगल की पत्तियों, लकड़ियों, फल फूल कंदमूल आदि से जीवनोपयोगी बस्तुओं का उत्पादन कर सभी प्राणी जातियों की सेवा किया है। आज आधुनिकता के कारण, अज्ञानता में इनके हजार दो हजार साल पहले के रिसर्च और उत्पादन के महत्व को नजरंदाज किया जा रहा है। सरासर उनके साथ नाइंसाफी है।


Social Media News:।W-bahujan samajwadi sangh।Writer-Sudra Shiv Shankar Singh:तुम्हें, मिर्ची लगी तो मैं क्या करूं?


मिशन- गर्व से कहो हम शूद्र हैं दो फार्मूले पर आधारित है।
1)- मनुवाद का विकल्प आंबेडकरवाद
2)- ब्राह्मणवाद का विकल्प शूद्रवाद
इस मिशन में काम करने वाले साथियों! यदि भारतीय समाज में हजारों साल से व्याप्त ऊंच-नीच, छुआ-छूत की बिमारी, यदि कुछ हद तक आप के प्रयास से दूर होती है तो, यह बहुत बड़े ऐतिहासिक महत्व का काम होगा।
तहे दिल से, शुभकामनाओं के साथ!
गूगल @ गर्व से कहो हम शूद्र हैं
आप के समान दर्द का हमदर्द साथी!
गूगल @ शूद्र शिवशंकर सिंह यादव


Social media News:।W-bahujan samajwadi sangh।Writer-Sudra Shiv Shankar Singh:नोट- (इस लेख को इसी फार्म में कोई भी अपनी पत्रिका या न्यूज पोर्टल या कोई अन्य माध्यमों से प्रकाशित कर सकता है। मुझे कोई आपत्ती नही है।)


 

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