चमार जाति के महान योद्धा-बाबा संगत सिंह जी महाराज
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बाबा संगत सिंह जी महाराज:- बाबा संगत सिंह का जन्म पंजाब के रविदासिया (चमार ) /रामदासिया परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम भाई रानिया और माता का नाम बीबी अमरो था। उन्होंने शास्त्र विद्या , गतका, घुड़सवारी, युद्धकला और मार्शल आर्ट की शिक्षा ली और पंजाबी, उर्दू, संस्कृत, फारसी और ब्रज जैसी भाषाओं का भी अध्ययन किया। बाद में उन्हें उनके पिता ने गुरु गोबिंद सिंह की सेवा में भेज दिया।
चमार जाति के महान योद्धा-बाबा संगत सिंह जी महाराज
जन्म की तारीख: 1650, विलेज – कट्टा सबौर , नूरपुर बेदी , जिला रोपड़ पंजाब
मृत्यु की जगह और तारीख: 1705, (चमकौर का युद्ध ) चमकौर साहिब पंजाब
माता का नाम – बीबी अमारों पिता का नाम -भाई रानिया (दादा जी -भाई भानु, सपारोड़ खेड़ी )
बाबा संगत सिंह द्वारा लड़े गये युद्ध – बाबा संगत सिंह ने भंगानी , बजरुड़ , नादौन , आनंदपुर साहिब की चारों लड़ाइयों , बांसली का युद्ध , निर्मोहगढ़ का युद्ध , सरसा का युद्ध और चमकौर का युद्ध की लड़ाइयों में भाग लिया ।
चमकौर की लड़ाई या जिसे चमकौर साहिब की लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है , गुरु गोबिंद सिंह के नेतृत्व में खालसा और वजीर खान के नेतृत्व वाली मुगल सेना के बीच लड़ी गई लड़ाई थी । गुरु गोबिंद सिंह ने ज़फरनामा में इस लड़ाई का उल्लेख किया है। उन्होंने बताया कि कैसे एक लाख मुगल सैनिकों ने उनके आदमियों पर हमला किया।
6 से 7 दिसंबर 1705 की रात को गुरु के आनंदपुर छोड़ने के बाद, वे सरसा नदी पार करके चमकौर में रुके थे। उन्होंने शहर के मुखिया से अपनी गढ़ी या हवेली में रात भर आराम करने के लिए आश्रय की अनुमति मांगी । बड़े भाई ने सोचा कि उन्हें आश्रय देना खतरनाक होगा इसलिए उसने मना कर दिया। लेकिन छोटे भाई ने उन्हें रात भर वहीं रहने की अनुमति दे दी।
सुरक्षित मार्ग का आश्वासन देने के बावजूद, मुगल सैनिक गुरु गोबिंद सिंह की तलाश में थे, ताकि ट्रॉफी के रूप में उनका सिर ले सकें। जब उन्हें पता चला कि सिखों के दल ने हवेली में शरण ले ली है, तो उन्होंने उस पर घेरा डाल दिया ।
चमकौर की दूसरी लड़ाई में, सिखों ने लगभग सभी सैनिक खो दिए और गुरु जी ने युद्ध के मोर्चे पर जाने का फैसला किया, लेकिन मौजूद सिखों ने इसका विरोध किया और उनके आग्रह पर वह चमकौर से भागने के लिए सहमत हो गए और उनकी पोशाक , दस्तार और कलगी किले में भाई संगत सिंह को दे दी गई। वह गुरु गोबिंद सिंह से काफी हद तक शारीरिक समानता रखते थे और दुश्मन को धोखा देने के लिए उन्होंने गुरु की तरह कपड़े पहने और भेष बदला। संगत सिंह और संत सिंह केवल दो सिख थे जो गुरु के जाने के बाद किले में बचे और वे मुगल सेना के सामने युद्ध के मोर्चे पर चले गए और उनके खिलाफ लड़े और शहीद हो गए।……..डॉ अजय अन्नंत चौधरी ।
बाबा संगत सिंह जी को गुरु गोविंद सिंह ने उन्हें दी थी हीरे की कलगी-
श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज के पटना साहिब में 22 दिसंबर, 1666 को अवतार लेने के लगभग चार महीने बाद 25 अप्रैल, 1667 को बाबा संगत सिंह जी का जन्म पटना साहिब में ही हुआ। इनकी माता का नाम बीबी अमरोजी तथा पिता का नाम भाई रनियाजी था। बाबा संगत सिंह जी बाला प्रीतम गोविंद राय जी के हमशक्ल थे। यहां तक कि महारानी विसंभरा जी भी कभी-कभी गोद में बैठाने के समय गोविंद राय और संगत सिंह में फर्क नहीं समझती थीं।
रामदसिया सिख पर गुरु रामदास जी की बड़ी कृपा थी। इतना ही नहीं, सिख पंथ में रामदसिया सिखों की वीरता एवं सेवा भावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। 1699 में श्री गुरुगोविंद सिंह जी जब खालसा पंथ का साजना करने लगे, तो संगत सिंह जी ने भी इनसे अमृतपान किया। यही कारण है की गुरुगोविंद सिंह जी के सच्चे सिख होने के कारण चमकौर के युद्ध में शहीद होने के लिए तैयार हो गए। श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने अपनी हीरे की कलगी, पोशाक एवं शस्त्र सजाकर युद्ध के मैदान में भेजा, जहां संगत सिंह जी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए। इनके जीवन, शहीदी एवं जन्मस्थान पर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, अमृतसर एवं जत्थेदार साहबानों ने मुहर लगा दी है।
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