महापराक्रमी राजा बिजली पासी का जीवन परिचय
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महापराक्रमी राजा बिजली पासी का जीवन परिचय
जग प्रसिद्ध विद्वान सर एच.एम. इलियट द्वारा लिखित पुस्तक- हिस्ट्री ऑफ अवध भाग 1 के प्रष्ट 33 से 53 के अध्ययन से ज्ञात होता है। कि राजा बिजली पासी कन्नौज के राजा जयचंद के समकालीन थे। इस तथ्य की पुष्टि लगभग सभी इतिहासकार करते हैं। कन्नौज के राजा जयचंद का शासन काल सन 1170 से 1194 ई तक था। इस प्रकार राजा बिजली पासी का शासन काल में 11वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में था।
उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग के द्वारा प्रकाशित अभिलेखों के अनुसार महाराजा बिजली पासी का राज्य 148 वर्ग मील लखनऊ और उसके आसपास के क्षेत्र में फैला हुआ था उक्त क्षेत्र के प्रशासन के लिए उन्होंने पहले अपनी मां के नाम बिजनागढ़ का निर्माण कराया जो कालांतर में बिजनौड़गढ़ हो गया। उनकी मां का नाम विजना और पिता का नाम नटवा था। बिजनौर से लगभग 3 किलोमीटर उत्तर की ओर उन्होंने अपने पिता के सम्मान में नटवागढ़ का निर्माण कराया। पुनः राज्य के विस्तार के साथ उन्होंने उसे किले से 3 किलोमीटर और उत्तर की ओर उसे विशाल किले का निर्माण कराया जिसे अब महाराजा बिजली पासी का किला कहा जाता है। महाराजा बिजली पासी के
उपयुक्त 3 किलो के अतिरिक्त 9 किले और थे।जिनके नाम थे- माती किला, परवर पश्चिम किला, कल्ली पश्चिम किला, पुराना किला, भटगांव किला, औरांव किला, दादूपुर किला, ऐन किला और पिपरसण्ड किला। इनमें से नटवा, माटी, परवर पश्चिम तथा कल्ली पश्चिमी किलो के अवशेष आज भी टीलों के रूप में ऊपर मौजूद हैं।
महाराजा बिजली पासी के द्वारा बनवाए गए इन 12 किलो के निर्माण से यह ज्ञात होता है कि राजा बिजली पासी स्थापत्य कला में कितने निपुण थे ।इन 12 किलो की श्रृंखला का निर्माण कर उन्होंने एक ऐसे चक्रव्यूह की रचना की थी, कि कोई भी दुश्मन उनकी सत्ता को नुकसान न पहुंच सके। महाराजा बिजली पासी के किले का चित्र अंग्रेज कर्नल डी.एस. हाडसन ने 1857 ईस्वी में अपने हाथ से किले के पास बैठकर बनाया था। इसके लिए की भव्यता देखते ही बनती थी।
कन्नौज के राजा जयचंद ने महाराजा बिजली पासी से कर देने के लिए कहा था राजा बिजली पासी ने किसी प्रकार का कोई कर देने से साफ इनकार कर दिया था। इससे रुष्ट होकर जयचंद ने अपनी सेना महाराजा बिजली पासी को हराने और अपनी शर्तों मनवाने के लिए भेजी, लेकिन पराक्रमी राजा बिजली पासी के सेना ने जयचंद की सेनाओं को परास्त कर खदेड़ दिया। यह वही क्षत्रिय राजा थे जिन्होंने अपने मतलब के लिए विदेशी आक्रामकारी मोहम्मद गौरी को भारत वर्ष में अपने दुश्मनों को पराजित करने के लिए आमंत्रित किया था। महाराजा बिजली पासी के हाथों पराजित होने के बाद राजा जयचंद अत्यंत कुपित हुआ और उसने उनके ऐन केन प्रकारेण राजा बिजली पासी को पराजित करने की चाल चली उसने आल्हा ऊदल जो बानापार हीरोज के रूप में मशहूर लड़के थे, से संपर्क किया और उसने राजा बिजली पासी के हाथों अपनी पराजय का बदला लेने के लिए संधि की आल्हा ऊदल ने अपने साले जोगा आज को महाराजा बिजली पासी को हराने के लिए एक विशाल सेवा के साथ भेजा। महाराजा बिजली पासी और आल्हा ऊदल की सेना जो जोगा के नेतृत्व में लड़ाई लड़ रही थी के मध्य घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में आल्हा ऊदल के साले जोगा की भीषण पराजय हुई। इस पराजय से आल्हा ऊदल तिलमिला गए और उन्होंने अपने सेना को संगठित कर महाराजा बिजली पासी पर हमला बोल दिया लखनऊ से सटे गांजर के मैदान में राजा बिजली पासी और आल्हा ऊदल की सेना के मध्य लंबे समय तक भयंकर युद्ध हुआ। कुछ विद्वान मानते हैं कि इसी गांजर की लड़ाई में वर्ष 1194 में महाराजा बिजली पासी वीरगति को प्राप्त हो गए थे। जबकि कुछ का मानना है कि महाराजा बिजली पासी ने आल्हा उदल को परास्त कर दिया था। आल्हा ऊदल अपनी अवशेष सेना के साथ बाराबंकी की ओर पलायन कर गए थे। जहां से राजा देवामाती वासी ने आल्हा उदल को खदेड़ा और वह भाग कर अपनी राजधानी महोबा पहुंच गए थे। ———–(पंकज राज – पत्रकार Add; पैला -जनपद लखीमपुर खीरी )
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