भीमा -कोरेगांव की शौर्यगाथा-एक चोट लोहार की-लेखक सज्जन क्रांति – बहुजन इंडिया 24 न्यूज

भीमा -कोरेगांव की शौर्यगाथा-एक चोट लोहार की-लेखक सज्जन क्रांति

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भीमा -कोरेगांव की शौर्यगाथा-एक चोट लोहार की-लेखक सज्जन क्रांति

युवा एवं विद्वान लेखक सज्जन क्रांति ने प्रस्तुत पुस्तक “ एक चोट लोहार की ” में भीमा -कोरेगांव की शौर्यगाथा को नाट्य शैली में लिखा है,पुस्तक में करीब 200 वर्ष पूर्व पूना शहर से 16 मील दूरी पर स्थित भीमा नदी किनारे हुए युद्ध का वर्णन है,उपरोक्त युद्ध में दलितों के शौर्य का बोध लेखक द्वारा इस पुस्तक के माध्यम से बहुत ही सहजतापूर्वक कराया गया है,यह युद्ध सन 1857 ई .से करीब 39 वर्ष पहले अर्थात 1 जनवरी 1818 ई .को लड़ा गया, इसमें केवल 500 महार योद्धाओं ने लगभग 28 हजार सैनिकों की भारी -भरकम पेशवाई फौज को

Mukesh Bharti
Mukesh Bharti: Chief Editor- Bahujan India 24 News

हराया था,प्रस्तुत पुस्तक के नाट्यशैली में होने के कारण पाठक सरल एवं सुगमता से इस गौरवशाली घटना की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं,उपरोक्त गौरवशाली दलित शौर्य की घटना के साथ ही हमारे अनेक दलित योद्धाओं ने इस देश की आजादी के लिए बड़ी -बड़ी लड़ाइयों में भाग लिया तथा अपने प्राण न्यौछावर किए,किंतु इन दलित शहीदों के नामों का उल्लेख इतिहास में नहीं मिलता,लेखक ने बहुत शोध करके इस पुस्तक के माध्यम से वास्तविक दलित इतिहास की जानकारी दी है।

हजारों साल से दलितों को उत्पीडित तथा अपमानित किया जाता रहा है ,जिसका एक लम्बा इतिहास है,ईसा से चार -पांच हजार वर्ष पूर्व भारत में आए विदेशी लोगों ने इस देश के दलित ,पिछड़े ,आदिवासी और मूलनिवासियों को असुर ,राक्षस , दैत्य ,दानव ,दस्यु आदि नामों से संबोधित कर अपमानित किया और अनेक षड्यंत्रों के तहत इस देश की सभ्यता को नष्ट भ्रष्ट कर दिया तथा सभी प्रकार के अधिकारों से वंचित करके उनकी संपत्ति हड़प ली और शूद्र श्रेणी में रख दिया,दलितों का स्वर्णिम इतिहास मिटा दिया गया, शूद्रों पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए गए, सामाजिक ,शैक्षणिक और आर्थिक अधिकारों से भी वंचित कर दिया गया,इस कारण शूद्रों की स्थिति काफी दयनीय हो गई, उनका जीवन जानवरों से भी गिरा हुआ बना दिया गया,यूं तो पूरे भारत में ही दलितों को अपमानित किया जाता था ,परंतु स्थिति दक्षिण में सबसे ज्यादा खराब थी,जहां दलित जब शहर में जाता था तो उसे गले में हाण्डी बांधनी पड़ती थी ,जिससे कि वह उसमें थूक सके ,दलितों को अपने पीछे झाडू बांधनी पड़ती थी ताकि दलितों के पैरों के निशान साफ हो सके,दलितों की परछाईं पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था दलितों का जीवन नरकीय तथा जानवरों से भी गया गुजरा हुआ करता था,ऐसे ही तमाम प्रतिबंधों की व्यवस्था पेशवा अपने राज्य में भी दलितों के विरुद्ध स्थापित कर चुके थे,जिसका अंत भीमा-कोरेगांव युद्ध की ऐतिहासिक घटना के बाद हुआ।और अधिक जानकारी के लिए पढ़िए- सज्जन क्रान्ति की अप्रतिम कृति- एक चोट लोहार की।——-मिशन अम्बेडकर. Facebook Post-एस चंद्रा बौद्ध———-Date:15-12-2021

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