चमार जाति का गौरवशाली इतिहास Proudfull history of Chamar Caste : बहुजन इंडिया 24 न्यूज़

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चमार जाति का गौरवशाली इतिहास
मूल रूप से भारत के निवासी और प्राचीन सभ्यता में भारत के शासक रही चमार जाति को दक्षिण एशिया का एक दबा कुचला दलित समुदाय कहा जाता है।जो आज एक जाति के रूप में पायी जाती है। विदेशी आक्रांताओं ने कभी भी इनको उठने का मौका नहीं दिया। इस जाति के लोग पूरे भारतीय उपमहाद्वीप के सभी राज्यों में पाए जाते हैं।कद काठी से बहुत ही श्रेष्ठ रंग सांवला गेहुआ होता था इनकी मुख्य भाषा पाली या प्रकृति भाषा थी लेकिन लिपि के बारे अभी खोज जारी है कुछ विद्वानों का मानना है कि सिंधु घाटी की सभय्ता में मिली लिपि के अवशेष ही इनकी मुख्य लिपि रही होगी।
कद काठी से बहुत ही श्रेष्ठ रंग सांवला गेहुआ होता था इनकी मुख्य भाषा पाली या प्रकृति भाषा थी लेकिन लिपि के बारे अभी खोज जारी है कुछ विद्वानों का मानना है कि सिंधु घाटी की सभय्ता में मिली लिपि के अवशेष ही इनकी मुख्य लिपि रही होगी।
मुख्य रूप से भारत के उत्तरी राज्यों तथा पाकिस्तान और नेपाल आदि देशों में निवास करते हैं। भारत में चमार समुदाय को आधुनिक भारत की सकारात्मक कार्रवाई प्रणाली के तहत अनुसूचित जाति के रूप में वर्गीकृत किया गया है। चमार जाति की अनेक उपजातियों का एक जातीय समूह है। ‘चमार’ शब्द से प्रतीत होता है कि कुछ चमार जाति के लोग केवल चर्म (चमड़े) से संबंधित व्यवसाय करते रहे होंगे।परन्तु इसके विपरित चमार कोई जाति नहीं थी बल्कि राजशाही चॅवर वंश था किसी समय भारत समेत मध्य एशिया तक इसका शासन हुआ करता था इसका शासन सिंधु नदी के दोनों तरफ रहा होगा। इतिहास से पता चलता है की कभी राजशाही चॅवर वंश राज्य क्षेत्र से ईरान और मध्य एशियाई देशो को मीठा पानी की सप्लाई करता था। गणित विज्ञानं भवन निर्माण में पूरी दुनिया ने इसका लोहा माना था। इस जाति के लोग शिक्षा ,धर्म , विज्ञान और चिकित्सा शास्त्र में निपुण पाए गये। अधिकांश लोग कृषक मजदूर और कृषि व बुनकरी का कार्य से अपना भरण पोषण करते सदियों से चले आ रहे है ।
राजशाही चॅवर वंश शासन करने की पद्धति : राजशाही में वंशवाद था लेकिन राजा का चुनाव गणतांत्रिक व्यवस्था के साथ लोकमत से होता था। राज्य की प्रधानता में राज शाही परिवार की महिला को श्रेष्ठता प्रदान थी। इसलिए इनके शासन को मातृत्व (महिला ) प्रधान शासक होने का गौरव प्रदान पुरे विश्व में था। जिसको राजमाता की संज्ञा प्रदान थी।
धर्म और आस्था :
व्यवसाय :
चमार जाति / राजशाही चॅवर वंश आज के आधुनिक समय में मेहनती और बुद्धि जीवी समुदाय ने काफी प्रगति की है। अपनी मेहनत और लगन से सभी जाति और वर्ग को तरक्की में पीछे छोड़ा है। ज्ञान के बल पर ब्राह्मण को परास्त किया है जिस कारण सभी इस जाति से ईर्ष्या भाव रखते है। संत रविदास जिसके साक्षात् उदाहरण है। इस जाति में आधुनिक भारत में मान्यवर कांशीराम और बहन मायावती एक बड़ी लीडर बन कर उभरी है।
गैर बराबरी के चलते मनुवादी विचार धारा के लोग ‘चमार’ शब्द को एक अपशब्द के रूप में कालांतर में भी प्रयोग किया करते थे है। अतः इसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जातिवादी गाली और अपमानजनक शब्द के रूप में वर्णित किया गया है। इस समुदाय के साथ होने वाले दुराचारों को रोकने के लिए कानून द्वारा उन्हें कई विशेष अधिकार दिये गए हैं।
” चमार रेजिमेंट “
अंग्रेजों के समय चमार रेजिमेंट का गठन चमार जाति को मिला सम्मान
सरकारी अभिलेखों से पता चलता है कि आधिकारिक तौर पर, चमार रेजिमेंट का गठन 1 मार्च 1943 को की गई थी, उस समय 27वीं बटालियन दूसरी पंजाब रेजिमेंट को परिवर्तित किया गया था। चमार रेजिमेंट उन सेना इकाइयों में से एक थी, जिन्हें कोहिमा की लड़ाई में अपनी भूमिका के लिए सम्मानित किया गया था। 1946 में रेजिमेंट को भंग कर दिया गया था। :बहुजन इंडिया 24 न्यूज़
अंग्रेजों ने दूसरे विश्वयुद्ध के वक्त चमार रेजिमेंट को ब्रिटिश सरकार ने बनाई थी जो कि 1943 से 1946 अपने अस्तित्व में रही। सेना के रूप में तीन साल ही इस रेजिमेंट ने अपना जौहर दिखाया। चमार सैनिकों में मुश्किल से मुश्किल युद्ध को जीतने का मादा रखते थे जिससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है की इतने होनहार सैनिक कैसे चमार जाति के लोग हो गए इसका मतलब चमार पहले से कही न कही बलशाली जरूर रहे होंगे। और सैनिक अस्तित्व में ये रेजिमेंट काफी समय पहले से रहा होगा या फिर चमार जाति के लोग पहले से सैन्य सेवा में रहे होंगे। रही सही बात एक ही है कि कहीं न कहीं ऐसी बातें सामने आती हैं कि ये रेजीमेंट काफी पहले से थी।
चमार रेजिमेंट 23वें भारतीय इन्फैंट्री डिवीजन का हिस्सा बनाई गई । 1944 के मध्य में, रेजिमेंट की पहली बटालियन नागालैंड में इंपीरियल जापानी सेना के खिलाफ लड़ने के लिए बर्मा अभियान के लिए प्रतिबद्ध थी। लड़ाई तीन महीने तक चली,और बड़ी ही बहादुरी के साथ जीत दर्ज की गयी उसके बाद चमार रेजिमेंट ने कोहिमा की लड़ाई में भाग लिया। :बहुजन इंडिया 24 न्यूज़
क्या आप जानते हैं कि चमार रेजीमेंट को आखिरकार खत्म कर दिया गया लेकिन क्यों? बताया जाता है कि एक समय था, जब अंग्रेजों ने चमार रेजिमेंट को बैन कर दिया था। आजाद हिंद फौज से मुकाबला करने के चमार रेजिमेंट को अंग्रेजों ने सिंगापुर भेजा उस समय चमार रेजिमेंट को कैप्टन मोहनलाल कुरील लीड कर रहे थे, जिन्होंने साफ साफ देखा कि कैसे चमार रेजिमेंट के सैनिकों के हाथों अंग्रेज हमारे देशवासियों को मरवा रहे हैं। फिर क्या था उन्होंने इसको आईएनए में शामिल किया और अंग्रेजों से भिड़ जाने का निर्णय लिया। अंग्रेजों ने 1946 में तब जाकर इसको बैन कर दिया। अंग्रेजों से लड़ते हुए सैकड़ों सैनिकों की जान गई तो कुछ म्यांमार और थाईलैंड के जंगलों इधर उधर ही भटक कर रह गए और जब पकड़े गए तो उनको भी मार दिया गया।
1946 में चमार रेजिमेंट को भंग करने के बाद कैप्टन मोहनलाल कुरील को भी बंदी बनाया गया पर फिर आजाद भारत में उनको रिहा भी कर दिया गया। कैप्टन मोहनलाल कुरील पहली बार इलेक्शन में साल 1952 में खड़े हुए और उन्नाव की सफीपुर विधानसभा से वो चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुँचे।:बहुजन इंडिया 24 न्यूज़
उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 के जातिवार परिणाम सूची : बीजेपी पहुँची पूर्ण बहुमत से सिंघासन पर होगा बीजेपी का कब्ज़ा। बीजेपी ने सभी जातियों का विश्वास मत हासिल किया जानिए किस जाति से कितनी विधायक चुनकर पहुंचे अबकी बार सदन में
ब्राह्मण जाति से
कुर्मी जाति
चमार /जाटव जाति
यादव जाति
लोध जाति
मौर्या शाक्य कुशवाहा और सैनी जाति
कलवार, तेली, और सोनार जाति
राजभरजाति
भूमिहार जाति से
खटीक जाति
वाल्मीकि जाति से विधायक चुनकर पहुंचे सदन
अन्य विरादरी के विधायक चुनकर पहुंचे सदन
पेरियार रामास्वामी जयंती 17 सितम्बर मनाई जाती है। पेरियार रामास्वामी जयंती 17 सितम्बर 2023 को मनाई जायेगी ।
जीवन परिचय

और ओबीसी जाति का प्रतिनिधित्व करती है। 1885 में उन्होंने एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में अध्ययन हेतु दाखिला लिया था । पर कोई पाँच साल से कम की औपचारिक शिक्षा मिलने के बाद ही उन्हें अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ना पड़ा। कई पीढ़ियों से उनके घर पर भजन , कीर्तन तथा उपदेशों का सिलसिला चलता ही रहता था। बचपन से ही वे तर्कशील और विवेकवान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे धार्मिक ग्रन्थ और उपदशों में कही बातों की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते रहते थे जिससे उनके पिता बहुत नाराज रहते थे । हिन्दू महाकाव्यों तथा पुराणों में कही बातों की परस्पर विरोधी तथा बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरुद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के घोर विरोधी थे। अपने काशी यात्रा के बाद उन्होंने हिन्दू वर्ण व्यवस्था और कुरीतियों का भी विरोध ही नहीं बल्कि बहिष्कार भी किया। 19 वर्ष की उम्र में उनकी शादी नगम्मल

Periyar saheb :
“पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।”
अर्थ – कबीर दास जी के दोहे से समझ में आता है कि संसार की बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर कितने ही लोग मृत्यु के द्वार तक पहुंच गए, मगर वे सभी विद्वान नहीं हो सके थे। वे कहते हैं कि इतन पढ़ने के बजाय अगर कोई प्रेम या प्रेम के ढाई अक्षर ही पढ़ ले यानी कि प्रेम के वास्तविक रूप को पहचान ले तो वह सच्चा ज्ञानी माना जाएगा
तुरंत ब्लड शुगर लेवल के स्तर को कैसे कम करें? Sugar Level Kam Karne ka Gharelu Upay
पहला उपाय
दूसरा उपाय:

शुगर को कम करने के लिए क्या खाना चाहिए ?
डायबिटीज में अरहर की दाल, काबुली चने, हरे चने, कुलथी की दाल का सेवन अधिक करना चाहिए. डायबिटीज में कौन-से फल खाने चाहिए? शुगर के मरीज सेब, संतरा, आड़ू, बेरीज, चेरी, एप्रिकोट, नाशपाती और कीवी जैसे फल हर दिन खा सकते हैं. आप बिना गुड़ के उबाली हुई शकरकंद का सेवन भी कर सकते हैं. डॉ अजय अनंत चौधरी Dt.21-12-2022
मधुमेह के लिए प्राकृतिक घरेलू उपचार का अवलोकन।
मधुमेह रोग (Diabetes)

जब इन्सुलिन की कमी होती है या शरीर इन्सुलिन प्रतिरोधक (insuline resistance) हो जाता है तो ग्लूकोस का कोशिकाओं मे प्रवेश कम हो जाता है। जिस कारण ग्लूकोस की मात्रा खून मे ज़ायदा हो जाती है। इस स्तिति को डायबिटीज या मधुमेह कहते है।

डायबिटीज को नियंत्रण करने के लिए ऐसा खाना, खाना चाहिए जो आप के ग्लूकोस की मात्रा को ज़ायदा नहीं बढ़ाये या अचानक तेज़ी से ग्लूकोस के स्तर को असंतुलित कर दे। डायबिटीज के मरीज़ों को इसलिए अपने खान पान पर बहुत धयान देना चाहिए।
घर पर प्राकृतिक रूप से मधुमेह का इलाज कैसे करें, इसका सरल उपाय है कि हमें अपने द्वारा खाए जाने वाले भोजन को भली भांति समझना चाहिए। कुछ खाद्य पदार्थ रक्त शर्करा के स्तर को तेजी से बढ़ाते हैं। ये उच्च ग्लाइसेमिक इंडेक्स (High Glycemic index)
संविधान के अनुच्छेद
अनुच्छेद 14 से 18 समानता का अधिकार:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 17 और 18 के तहत समानता का अधिकार दिया गया है। ये लेख नागरिकों को कानून के समक्ष समान व्यवहार और कानून की समान सुरक्षा, सार्वजनिक रोजगार में समान अवसर सुनिश्चित करते हैं और भेदभाव और अस्पृश्यता को रोकते हैं जो सामाजिक बुराइयाँ हैं।
अनुच्छेद 14 से 18 समानता का अधिकार:
अनुच्छेद 14 के अनुसार :
विधि के समक्ष समानता : विधि के समक्ष समानता यह ब्रिटिश संविधान से ग्रसित किया गया है यह अनुच्छेद कानून समानता का नकारात्मक दृष्टिकोण है इसमें निम्न तीन अर्थ निकलता है।
1 – देश में कानून का राज:
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3-विधानी वर्गीकरण
इसमें नैसर्गिक न्याय का सिद्धांत निहित है। यह अनुच्छेद भारतीय संविधान का मूल ढांचा है। इसमें विधि के शासन का उल्लेख है। इसमें सर्वग्राही समानता का सिद्धांत पाया जाता है।
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