जानें- ‘सच्ची रामायण’ का विवाद क्या है ? sachchi ramayan dispute :” Periyar saheb ”

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पेरियार ई.वी. रामासामी
ई.वी. रामासामी नायकर “पेरियार साहेब “

दक्षिण भारत के सुकरात “पेरियार साहेब ” रामायण को धार्मिक किताब नहीं मानते थे। उनका कहना था कि यह एक राजनीतिक पुस्तक है और कपोल कल्पित है। जिसे ब्राह्मणों ने दक्षिणवासी अनार्यों पर उत्तर के आर्यों की विजय और प्रभुत्व को जायज ठहराने के लिए लिखा गया है और गैर बराबरी की नीव इस किताब के माध्यम भारत में डाली गयी इस किताब के माधयम से लोगो में भ्रम फैलाया गया । ब्राह्मणों का गैर-ब्राह्मणों पर और मूलनिवासी महिलाओं व पुरुषों पर ब्राह्मण के वर्चस्व स्थापित करने का साधन मात्र है । पेरियार साहेब ने अपने मिशन को जिन्दा रखने के लिए ” सच्ची रामायण” की रचना की जिससे आने वाली पीढ़ियां सबक ले सके। “ Periyar saheb “
रामायण की मूल अंतर्वस्तु को उजागर करने के लिए पेरियार ने ‘वाल्मीकि रामायण’ के ब्राह्मणों द्वारा किए गए अनुवादों सहित; अन्य राम कथाओं, जैसे- ‘कंब रामायण’, ‘तुलसीदास की रामायण’ (रामचरित मानस), ‘बौद्ध रामायण’, ‘जैन रामायण’ आदि के अनुवादों तथा उनसे संबंधित ग्रंथों का सम्यक अध्ययन किया था। इसके साथ ही उन्होंने रामायण के बारे में विद्वान अध्येताओं और इतिहासकारों की टिप्पणियों का भी गहन अध्ययन किया। उन्होंने करीब चालीस वर्षों तक अध्ययन करने के बाद तमिल भाषा में लिखी पुस्तक ‘रामायण पादीरंगल’ में उसका निचोड़ प्रस्तुत किया। यह पुस्तक 1944 में तमिल भाषा में प्रकाशित हुई थी। इसका जिक्र पेरियार की पत्रिका ‘कुदी अरासू’ (गणतंत्र) के 16 दिसंबर 1944 के अंक में किया गया है। इसका अंग्रेजी अनुवाद द्रविड़ कषगम पब्लिकेशन्स ने ‘द रामायण : अ ट्रू रीडिंग’ नाम से 1959 में प्रकाशित किया गया। इसका हिंदी अनुवाद 1968 में ‘सच्ची रामायण’ नाम से किया गया।

9 दिसंबर, 1969 को तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘सच्ची रामायण’ पर प्रतिबंध लगा दिया। इसी के साथ पुस्तक की सभी प्रतियों को जब्त कर लिया गया। उत्तर भारत के पेरियार नाम से चर्चित हुए प्रकाशक ललई सिंह यादव ने जब्ती के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी। वे हाईकोर्ट में मुकदमा जीत गए। सरकार ने हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की।

सुप्रीम कोर्ट में इस ऐतिहासिक मामले की सुनवाई तीन जजों की खंडपीठ ने की। खंडपीठ के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर; तथा दो अन्य न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती और सैयद मुर्तज़ा फ़ज़ल अली थे। 16 सितंबर 1976 को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सर्वसम्मति से फैसला देते हुए राज्य सरकार की अपील को खारिज कर दिया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में निर्णय सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ललई सिंह यादव ने हिंदी में ‘सच्ची रामायण’ को प्रकाशित कर एक ऐतिहासिक कार्य को अंजाम दिया।
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